तेज धूप वाले देशों में घरों को सफेद रंग से पोता जाता है ताकि धूप टकराकर लौट जाए। इसी रणनीति को आगे बढ़ाते हुए एक नई शीतलन सामग्री तैयार की जा रही है। इसे किसी भी सतह पर पोता जा सकता है और तापमान लगभग 6 डिग्री सेल्सियस तक कम किया जा सकता है।
वास्तव में धूप में अवरक्त (आईआर) और पराबैंगनी (यूवी) किरणें गर्मी का मुख्य कारण होती हैं। सफेद रंग 80 प्रतिशत दृश्य प्रकाश को परावर्तित करता है लेकिन आईआर और यूवी को नहीं। इस नई सामग्री में अधिकांश आईआर और यूवी को परावर्तित करने की क्षमता है। इसमें उपस्थित बहुलक और अन्य पदार्थों की रासायनिक संरचना के कारण अतिरिक्त गर्मी ऐसी तरंग लंबाइयों पर विकिरित होती है जिन्हें वायुमंडल नहीं रोकता और हवा गर्म नहीं होती।
पहले भी इस क्षेत्र में काफी काम किए जा चुके हैं। सिलिकान डाईआक्साइड और हाफनियम डाईआक्साइड की परावर्तक सतह तैयार करके तापमान में 5 डिग्री सेल्सियस की कमी प्राप्त की गई। इसी प्रकार से, एयर कंडीशनिंग में पानी को ठंडा करने के लिए एक बहुलक और चांदी की मिली-जुली फिल्म के उपयोग से एयर कंडीशनिंग लागत में 21 प्रतिशत बचत की गई। कांच के महीन मोती जड़ी एक प्लास्टिक फिल्म सतह को 10 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा करने में सक्षम थी। आस्ट्रेलिया में, एक ऐसा पालिमर तैयार किया गया जो छत को 3-6 डिग्री सेल्सियस ठंडा रख सकता था।
कोलंबिया विश्वविद्यालय में भौतिकविद युआन यांग और नैनफांग यू के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने प्लास्टिक में वायु रिक्तिकाएं जोड़कर अत्यधिक परावर्तक सामग्री बनाने पर प्रयोग किया। एक बहुलक पर काम करते हुए उन्होंने पाया कि कुछ स्थितियों में, यह सामग्री सूखने के बाद सफेद हो जाती है। सूक्ष्मदर्शी से देखने पर पाया कि सूखी फिल्म में एक दूसरे से जुड़ी वायु रिक्तिकाएं बन गई हैं जो अधिक प्रकाश को परावर्तित कर सकती हैं।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने अन्य बहुलक की मदद से इसको बेहतर बनाने की कोशिश की। आखिरकार, उन्होंने पीवीडीएफ-एचएफपी नामक एक बहुलक एसीटोन में घोल के रूप में तैयार किया। जब सतह पर पोता गया तो एसीटोन वाष्पित हो गया और बहुलक में पानी की बूंदों का एक जाल बन गया। अंत में, पानी भी वाष्पित हो गया जिससे वायु-छिद्रों से भरी एक फिल्म तैयार हो गई। यह 99.6 प्रतिशत प्रकाश को परावर्तित कर सकती है। साइंस में आनलाइन प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार दोपहर के समय में इस फिल्म से पुती सतह 6 डिग्री सेल्सियस तक ठंडी बनी रही। यह नई सामग्री कुछ मौसमों में ठंडा करने की लागत को 15 प्रतिशत तक कम कर सकती है। लेकिन यह पेंट आजकल उपयोग होने वाले एक्रिलिक पेंट की तुलना में पांच गुना अधिक महंगा है। तो सवाल यह है कि क्या यह व्यावसायिक तौर पर उपयोगी होगा या अभी पारंपरिक तरीके ही काम आएंगे।
सीने में छुपा पक्षियों की मधुर आवाज का राज
ई पक्षियों की मधुर आवाज उनके सीने में छुपे एक रहस्यमयी अंग से आती है जिसे सिरिंक्स कहते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जैव विकास की प्रक्रिया में सिरिंक्स केवल एक बार विकसित हुआ है और यह विकास से सर्वथा नवीन रचना के निर्माण का दुर्लभ उदाहरण है क्योंकि अन्य किसी सम्बंधित जीव में ऐसी कोई रचना नहीं पाई जाती जिससे सिरिंक्स विकसित हो सके।
सरीसृप, उभयचर और स्तनधारी सभी में ध्वनि के लिए लैरिंक्स होता है जो सांस नली के ऊपरी हिस्से में होता है। इसके ऊतकों की तहों (वोकल कार्ड) में कम्पन्न से मनुष्यों की आवाज, शेर की दहाड़ या सुअरों के किंकियाने की आवाज पैदा होती है। पक्षियों में भी लैरिंक्स होता है। लेकिन ध्वनि निकालने के लिए वे इस अंग का उपयोग नहीं करते। वे सिरिंक्स का उपयोग करते हैं। सिरिंक्स सांस नली में थोड़ा नीचे की ओर वहां स्थित होता है जहां सांस नली दो भागों में बंटकर अलग-अलग फेफड़ों की ओर जाती है।
टेक्सास विश्वविद्यालय की जीवाश्म विज्ञानी जूलिया क्लार्क और उनका समूह जानना चाहता था कि पक्षियों में यह विचित्र अंग कैसे विकसित हुआ। उन्होंने आधुनिक सरीसृपों और पक्षियो में सिरिंक्स और लैरिंक्स के विकास की तुलना की। उन्होंने पाया कि ये दोनों अंग बहुत अलग हैं। वोकल कार्ड के काम करने के लिए लैरिंक्स उसकी उपास्थि से जुड़ी मांसपेशियों पर निर्भर होता है। लेकिन सिरिंक्स उन मांसपेशियों पर निर्भर करता है जो अन्य जानवरों में जीभ के पीछे से हाथों को जोड़ने वाली हड्डियों से जुड़ी रहती हैं। अब तक यह माना जाता था कि दोनों अंग की संरचना समान है। ये दोनों अंग अलग-अलग तरह से विकसित हुए हैं। लैरिंक्स मेसोडर्म और न्यूरल क्रेस्ट कोशिकाओं से बनता है, जबकि सिरिंक्स सिर्फ मेसोडर्म कोशिकाओं से बनता है।
क्लार्क और उनके साथियों का अनुमान है कि आधुनिक पक्षियों के पूर्वजों में लैरिंक्स मौजूद था। पक्षियों के आधुनिक रूप में आने के समय फेफड़ों के ठीक ऊपर श्वासनली की उपास्थि ने फैलकर सिरिंक्स का रूप ले लिया। हो सकता है कि इस प्रसार ने श्वासनली को अतिरिक्त सहारा दिया होगा। अंततः इसमें मांसपेशियों के छल्ले विकसित हुए जिससे ध्वनि पैदा होती है। धीरे-धीरे ध्वनि उत्पादन का काम लैरिंक्स से हटकर सिरिंक्स के जिम्मे आ गया। सिरिंक्स विभिन्न तरह की ध्वनि निकालने के लिए अधिक उपयुक्त भी है। सिरिंक्स की एक खासियत यह है कि यह दो भागों से बना है और पक्षी एक साथ दो तरह की ध्वनियां निकाल सकते हैं।
क्लार्क और उनके सहयोगियों ने अपने निष्कर्ष गत दिनों प्रोसीडिंग्स आफ दी नेशनल एकेडमी आफ साइंसेज में प्रकाशित किए हैं। सिरिंक्स विकास में एकदम नई संरचना है जिसमें पहले से मौजूद विशेषताओं या संरचनाओं से जुड़ी कोई स्पष्ट कड़ी नहीं हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह अध्ययन अन्य जीवों, जैसे कछुओं और मगरमच्छों की ध्वनि संरचना समझने में मददगार साबित हो सकता है।