संपादकीय टीप
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित प्रदूषण के दुष्प्रभावों के आंकलन से यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि भारतवर्ष में सामान्य नागरिकों के स्वास्थ्य पर वायु तथा जल प्रदूषण का गंभीर दुष्प्रभाव हो रहा है। राष्ट्र की राजधानी दिल्ली में भी अभी तक वायु प्रदूषण तथा जल प्रदूषण का सम्यक समाधान नहीं हो पाया है, जो कि स्पष्ट रूप से नागरिक ईच्छा शक्ति की दुर्बलता को दर्शाता है। शासन-प्रशासन की विडम्बना यह है कि लोकतांत्रिक देश में प्रदूषणकारी संस्थानों पर भी कठोर कार्यवाही करना कभी-कभी राजनैतिक अलोकप्रियता का जोखिम पैदा कर सकता है। अतः प्रदूषण के विरूद्ध युद्ध में नागरिक संकल्पों को सुदृढ़ करके ही समाधान सिद्ध हो सकता है।
– संपादक
दि लेसेंट प्लेनेटरी हेल्थ में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार इस शताब्दी के आरंभ से अब तक वायु प्रदूषण के कारण मृत्यु की दर में पिछली शताब्दी की तुलना में 50% से अधिक की वृद्धि हुई है, जिसे कि पृथ्वी पर मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया गया है। वर्ष 2000 में 29 लाख लोगों की वायु प्रदूषण से मृत्यु की तुलना में वर्ष 2019 में 45 लाख लोगों की मृत्यु हुई है।
बोस्टन कालेज के ग्लोबल पाल्यूशन आब्जरवेटरी तथा ग्लोबल हेल्थ प्रोग्राम के संचालक तथा इस रिपोर्ट के लेखक फिलिप लैण्ड्रीगन के अनुसार, ‘‘वायु प्रदूषण मानव तथा पृथ्वी के स्वास्थ्य के लिए अभी भी सबसे बड़ा मौजूदा खतरा है, जिससे आधुनिक समाज का धारणीय विकास छिन्न-भिन्न हो गया है।’’
इस प्रतिवेदन के अनुसार न्यूनतम सामूहिक आय वाले देशों के लोगों में तुलनात्मक रूप से ऐसे वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव ज्यादा है। अतः ऐसे देशों की सरकारों को जीवाश्म ईंधन (फासिल फ्यूल) के स्थान पर स्वच्छ ईंधनों के प्रयोग करने का आव्हान किया गया है।
रिचर्ड फुलर के अनुसार भयावह सामाजिक, आर्थिक एवं स्वास्थ्यगत दुष्प्रभावों के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय स्तरों पर विकास की गाथा में वायु प्रदूषण नियंत्रण की बहुधा अनदेखी की जाती है। वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों पर तमाम दस्तावेजों एवं प्रमाणों के उपरांत भी वर्ष 2015 से आज तक इसके निदान हेतु धन की व्यवस्था में कोई वृद्धि नहीं की गई है। लैन्सेट के 2017 के अध्ययन के अनुसार 12 लाख लोगों की मृत्यु घरेलू आंतरिक प्रदूषण के कारण, 13 लाख लोगों की मृत्यु जल प्रदूषण के कारण तो 9 लाख लोगों की मृत्यु सीसा (लेड) प्रदूषण के कारण हुई।
इस रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार संपूर्ण विश्व में औसतन 16% लोगों की मृत्यु प्रदूषण के कारण से होती है, जिससे अर्थव्यवस्था पर कम से कम 4 ट्रिलियन डॉलर (300 खरब रूपए) की क्षति प्रतिवर्ष पहुॅंचती है।
वाशिंगटन स्टेट यूनीवर्सिटी में सहायक प्राध्यापक सुश्री दीप्ति सिंह के अनुसार अभी हाल के वर्षों में अमेरिका के पश्चिमी तट के राज्य में बड़वानल (जंगल की आग) के कारण उत्पन्न धुएं और प्रदूषण से लगभग 70 प्रतिशत क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता में गंभीर गिरावट आई है।
दावानल (जंगल की आग) से उत्पन्न धुओं में नाना प्रकार के हानिकारक प्रदूषक तत्व होते हैं, जिसका तो अभी तक हमको पूरा पता भी नहीं है। पर हमें यह अवश्य पता है कि इसमें व्याप्त अत्यंत सूक्ष्म कण स्वास्थ्य के लिए घातक हैं। फलस्वरूप इसके कारण स्वास्थ्य जन्य रोग तथा कोविड जनित रोगों में भी वृद्धि हुई है।
इसी संस्था के माईकल ब्राउर के अध्ययन के अनुसार पिछले पांच सालों से लगातार 90 लाख लोगों की मृत्यु प्रतिवर्ष प्रदूषण के कारण से हो रही है। सबसे दुखद बात यह है कि हम इन कारणों का निराकरण कर सकते हैं, पर कुछ अपेक्षित नहीं हो रहा है। हमें मालूम है कि स्वच्छ ऊर्जा से इन मौतों को टाला जा सकता है, फिर भी यह सिलसिला चल रहा है। अतः इसे हमें गंभीरता से लेकर इस हेतु आवश्यक वित्तीय संसाधन एवं राजनैतिक ईच्छा शक्ति का प्रबंधन करना चाहिए, ताकि हम विश्व की जनसंख्या को ज्यादा स्वस्थ कर सकें।
(साभारः विक्टोरिया सेंट मार्टिन, ‘‘स्वास्थ्य एवं पर्यावरण न्याय रिपोर्टर, फिलाडेल्फिया (अमेरिका) के लेख, ‘इनसाइड क्लाईमेट न्यूज में प्रकाशित लेख से)
पर्यावरण ऊर्जा टाइम्स