अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून को मनाया जाता है। यह दिन वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है और योग मनुष्य को दीर्घायु बनाता है। देश ही नहीं, बल्कि आज पूरे विश्व में योग को सराहा और अपनाया जा रहा है। कई वैज्ञानिक शोध में भी इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि विभिन्न प्रकार के योगासनों के अभ्यास से कई शारीरिक समस्याओं में राहत पाई जा सकती है। खैर यह तो है सामान्य बात, लेकिन अगर पूछें कि योग का आधार क्या है, तो इस बारे में कम ही लोग जानते होंगे। ऐसे में योग के आधार को गहराई से समझने के लिए अष्टांग योग उत्तम विकल्प हो सकता है। यही वजह है कि इस लेख में हमने अष्टांग योग करने के फायदे के साथ इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं को समझाने की कोशिश की है। साथ ही पाठक इस बात का भी ध्यान रखें कि नियमित योग वैकल्पिक रूप से शारीरिक समस्याओं से बचाव और उनके लक्षणों को कुछ हद तक कम करने में मदद कर सकता है।
विषय से जुड़े एक शोध में माना गया कि अष्टांग योग में शामिल योगाभ्यास मांसपेशियों की मजबूती, शरीर में लचीलापन, श्वसन क्रिया में सुधार, हृदय कार्य क्षमता को बढ़ावा और नींद की समस्या में सुधार कर सकते हैं। साथ ही जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का काम भी कर सकते हैं । इस आधार पर यह माना जा सकता है कि अष्टांग योग के लाभ शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मददगार साबित हो सकते हैं।
21 जून : अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस
किसी भी समस्या के पूर्ण इलाज के लिए डाक्टरी परामर्श अत्यंत आवश्यक है। अष्टांग योग अन्य योगों से भिन्न है। वजह यह है कि यह एक शारीरिक योग नहीं, बल्कि एक तरह की कर्म साधना है।
माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस साधना को सिद्ध कर ले, वह जीवन के असल सार को समझ लेता है। यही वजह है कि योग को समझाने के लिए योग पिता महर्षि पतंजलि ने करीब 200 ईसा पूर्व अष्टांग योग सूत्र की रचना की थी। सूत्र इसलिए, क्योंकि जिस प्रकार गणित के सूत्रों के आधार पर बड़े से बड़े सवाल को हल किया जा सकता है, ठीक उसी प्रकार यह अष्टांग योग सूत्र जीवन के संपूर्ण सार को समझने में मदद करता है।
महर्षि पतंजलि के अनुसार, अष्टांग योग के अंग कर्म योग से समाधि पाने का मार्ग हैं। इन आठ अंगों में शामिल यम, नियंत्रण से जुड़ा है। वहीं, नियम, जीवन के उन नियमों से जुड़ा है, जो सांसारिक जीवन के मोह से मुक्त करने में मदद करते हैं। वहीं, इसमें शामिल आसन, शरीर की मुद्रा से जुड़ा है। वहीं, प्राणायाम, सांसों को नियंत्रित करने से जुड़ा है। इसके अलावा, प्रत्याहार का मतलब है ध्यान को बाधित करने वाली आवाज, गंध, स्पर्श आदि के प्रति ध्यान को हटाना है।
वहीं, इसमें शामिल धारणा, एकाग्रता से संबंधित है। वहीं, इनमें शामिल सातवां अंग ध्यान है, जब एकाग्रता किसी भी चीज से बाधित नहीं होती है। अंत में बात आती है समाधि की। समाधि को योग में शून्य भी कहा गया है, जिसका अर्थ है, कुछ भी बाकी न रह जाना यानी समाधि को प्राप्त कर व्यक्ति संपूर्ण अष्टांग योग को सिद्ध कर लेता है। यही है अष्टांग योग के अंग का सार।
अष्टांग योग में शामिल आसन और प्राणायाम की प्रक्रिया मन को शांत रखने में मदद कर सकती हैं। साथ ही ये चिंता, अवसाद और तनाव को दूर करने में मदद कर सकता है। मन की ये तीनों स्थितियां व्यक्ति के मस्तिष्क से संबंधित है, इसलिए यह माना जा सकता है कि इन तीनों स्थितियों को नियंत्रित कर मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में अष्टांग योग के लाभ पाए जा सकते हैं । डायबिटीज की समस्या में भी अष्टांग योग के लाभ पाए जा सकते हैं।
जर्नल आफ डायबिटीज रिसर्च द्वारा किए गए एक शोध में माना गया कि योग के विभिन्न आसनों के प्रयोग से ब्लड ग्लूकोज के स्तर को कम किया जा सकता है। इससे डायबिटीज की समस्या के जोखिमों को कम करने में मदद मिल सकती है। वहीं, हम ऊपर बता चुके हैं कि अष्टांग योग में आसन को भी अंग के रूप में शामिल किया गया है।
इस आधार पर कहा जा सकता है कि अन्य शारीरिक आसनों के साथ ही अष्टांग योग भी डायबिटीज की समस्या से राहत दिलाने में मददगार साबित हो सकता है । अष्टांग योग के सभी चरणों का पालन कर शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रहने में मदद मिल सकती है।
विषय से जुड़े एक शोध में माना गया कि अष्टांग योग में शामिल योगाभ्यास मांसपेशियों की मजबूती, शरीर में लचीलापन, श्वसन क्रिया में सुधार, हृदय कार्य क्षमता को बढ़ावा और नींद की समस्या में सुधार कर सकते हैं। साथ ही जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने का काम भी कर सकते हैं । इस आधार पर यह माना जा सकता है कि अष्टांग योग के लाभ शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मददगार साबित हो सकते हैं।
अष्टांग योग करने का तरीका
अष्टांग योग करने के लिए इसके अंगों के साथ-साथ उनमें शामिल उप अंगों को समझना बहुत जरूरी है, तभी संपूर्ण अष्टांग योग को जीवन में समाहित किया जा सकता है।
अष्टांग योग सूत्र में शामिल सभी अंगों और उप अंगों के माध्यम से इसके प्रत्येक चरण को समझते हैं।
यम : यम के पांच उप अंग हैं, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। इन पांच उप अंगों को स्वयं के जीवन में समाहित करना ही अष्टांग योग का पहला चरण है। आइए, इन्हें जीवन में कैसे शामिल करना है, इसे थोड़ा विस्तार से समझ लेते हैं।
अहिंसा : यहां अहिंसा का अर्थ केवल शारीरिक हिंसा नहीं है। अष्टांग योग के इस अंग में साधक को अपने विचारों और शब्दों से भी हिंसा भाव को निकालना होता है। अर्थ यह हुआ कि मन में किसी के भी प्रति बुरे विचार नहीं आने चाहिए।
सत्य : इस उप अंग में मनुष्य को सत्य धर्म का पालन करना होता है यानी मन, कर्म और वचन से केवल सत्य को जीवन में जगह देने वाला व्यक्ति ही इस उप अंग को पार कर पाएगा।
अस्तेय : अस्तेय का अर्थ है चोरी का त्याग करना। इस उप अंग को अपनाने के लिए व्यक्ति को किसी के भी धन, वस्तु या संपत्ति के प्रति लालच का भाव त्यागना होता है।
ब्रह्मचर्य : आमतौर पर लोग ब्रह्मचय का अर्थ शारीरिक संबंधों से जोड़ कर निकालते हैं, लेकिन यहां प्राकृतिक इन्द्रियों को वश में करने की बात कही जा रही हैं। जैसेः- खाना, पीना, मनोरंजन में समय बिताना, आरामदायक बिस्तर जैसी चीजों का मोह त्यागना।
अपरिग्रह : अपरिग्रह का अर्थ होता है, त्याग करने वाला। इसलिए, यम के इस अंतिम उप अंग के माध्यम से साधक को लोभ और मोह (जरूरत से अधिक धन व संपत्ति जमा करने की चाहत) जैसे विकारों को दूर करने का सलाह दी जाती है।
इसका अर्थ यह हुआ कि जो यम के इन पांच उप अंगों को अपने जीवन में समाहित कर पाएगा, वहीं अष्टांग योग के पहले चरण यानी यम अंग को पार कर पाएगा।
योग विशेषज्ञों का कहना है कि अष्टांग योग को ऊंचा उठाने में महर्षि पतंजलि का अहम रोल है, जिन्होंने अष्टांग योग की रचना की और इसे सफल बनाने में अपनी भूमिका निभाई।
आज के जीवन में अष्टांग योग का बहुत महत्व है। यह सिर्फ एक योग नहीं है, बल्कि ईश्वर को पाने का एक साधन है। यह आपको शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है। यह एक व्यक्ति को शारीरिक शुद्धि से लेकर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है, जिसे हर कोई पाना चाहता है। अष्टांग योग केवल शारीरिक और मानसिक लाभ तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह तो जन्म और मरण के बीच का रास्ता है।
तो हम कह सकते हैं कि यह शारीरिक रूप से कठोर, मानसिक रूप से स्थिर, भावनात्मक रूप से लचीला और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है।
डॉ. सरोज शुक्ला
केए 94/628, कुरमनचल नगर, लखनऊ-226016