2050 तक कुल मछलियों के वजन से भी महासागरों में मौजूद प्लास्टिक की मात्रा ज्यादा होगी। यह जानकारी एनवायर्नमेंटल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी, यूके द्वारा जारी नई रिपोर्ट ‘कनेक्टिंग द डाटसः प्लास्टिक पाल्यूशन एंड द प्लैनेटरी इमरजेंसी’ में सामने आई है। जिसके अनुसार बढ़ता प्लास्टिक पृथ्वी और उसपर रहने वाले जीवों के लिए बड़ा खतरा है।
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर के महासागरों में मौजूद जो कुल मछलियों का वजन आंका गया है वो करीब 70 करोड़ टन है। वहीं अनुमान है कि महासागरों में पहुंच चुके कुल प्लास्टिक कचरे की मात्रा 2025 में करीब 25 करोड़ टन होगी, जो 2040 तक बढ़कर 70 करोड़ टन पर पहुंच जाएगी। वहीं अनुमान है कि 2050 तक यह कचरा मछलियों के कुल वजन से भी ज्यादा होगा।
हालांकि रिपोर्ट के अनुसार यह जो नजर आता है वो इस प्लास्टिक के बढ़ते खतरे के केवल एक बहुत छोटे से हिस्से को ही दिखाता है। आमधारणा के विपरीत ज्यादातर प्लास्टिक हमारी आंखों से ओझल रहता है। समुद्र की सतह पर मौजूद लगभग 92 फीसदी प्लास्टिक, माइक्रोप्लास्टिक के रूप में मौजूद है। जिसका आकार 5 मिलीमीटर से भी कम है।
देखा जाए तो हमारे समुद्र अब प्लास्टिक के बड़े से सूप में बदल गए हैं। अकेले सतह पर मौजूद जल में माइक्रोप्लास्टिक के करीब 51 लाख करोड़ टुकड़े मौजूद हैं। यह प्लास्टिक धरती के सबसे गहरे हिस्सों से लेकर ऊंचे पहाड़ों पर भी मौजूद है। इनमें से कुछ टुकड़े तो दूर-दराज के द्वीपों तक पहुंच चुके हैं जहां तक इंसान भी नहीं पहुंचा है। वहीं कुछ टुकड़े तो माइक्रोप्लास्टिक के रूप में इंसानी शरीर में भी मौजूद हैं।
इसका बिना सोचे समझे बढ़ता उपयोग जहरीला प्रदूषण पैदा कर रहा है जो जैवविविधता को नुकसान पहुंचा रहा है। यह जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा बन चुका है। इस प्लास्टिक आपातकाल के लिए केवल प्लास्टिक कचरे के रूप में पैदा हुआ प्रदूषण ही जिम्मेवार नहीं है। इस प्लास्टिक का पूरा जीवनचक्र ही खतरा पैदा कर रहा है।
650 करोड़ टन पर पहुंच जाएगा प्लास्टिक उत्सर्जन
यदि प्लास्टिक की बनावट की बात करें तो उसमें 80 फीसदी कार्बन होता है, जबकि 99 फीसदी प्लास्टिक कच्चे तेल, जीवाश्म गैस या कोयले का उपयोग फीडस्टाक के रूप में करते हैं। इतना ही नहीं इसके निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया जाता है। 2015 में, प्लास्टिक के पूरे जीवनचक्र में होने वाला उत्सर्जन करीब 178 करोड़ टन कार्बन डाइआक्साइड के बराबर था। यदि इसकी तुलना देशों द्वारा किए जा रहे उत्सर्जन से की जाए तो यह इस लिहाज से दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा उत्सर्जक होता।
अनुमान है कि 2050 तक हर साल होने वाला यह उत्सर्जन बढ़कर 650 करोड़ टन कार्बन डाइआक्साइड के बराबर हो जाएगा, जोकि कुल बाकी कार्बन बजट का करीब 15 फीसदी है। यह जलवायु परिवर्तन के 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक बड़ा खतरा है। ऐसे में जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से यह कितना खतरनाक है उसका अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं।
इस प्लास्टिक के निर्माण के लिए सबसे पहले जीवाश्म ईंधन को ढूंढना और उन्हें जमीन से बाहर निकलना पड़ता है। जिसके चलते पर्यावरण, जैवविवधता और जलवायु पर बुरा असर पड़ता है, क्योंकि जहां इनका खनन होता है वो स्थान जंगलों में जैवविविधता से भरे पूरे क्षेत्रों में होते हैं जिनके लिए बड़े पैमाने पर जंगलों का विनाश किया जाता है और जैविविधता को नुकसान पहुंचाया जाता है। उदाहरण के लिए तेल निष्कर्षण ब्लाक इक्वाडोर के अमेज़ॅन वनों में 68 फीसदी क्षेत्रों और संरक्षित क्षेत्रों के एक तिहाई हिस्से को कवर करते हैं। यह स्थान जैविविधता का एक प्रमुख गढ़ है।
2018 में तेल की मांग का 12 फीसदी पेट्रोकेमिकल्स के लिए खपत किया गया था। अनुमान है कि यह हिस्सेदारी 2050 तक बढ़कर 50 फीसदी पर पहुंच जाएगी। अनुमान है कि एक टन नए प्लास्टिक के निर्माण में करीब 1.89 टन कार्बन डाइआक्साइड के बराबर उत्सर्जन होता है। यदि इसके निर्माण की बात की जाए तो दुनिया के केवल 20 पालीमर उत्पादक दुनिया के करीब 50 फीसदी सिंगल यूस प्लास्टिक कचरे के लिए जिम्मेवार हैं, जबकि 100 प्रमुख उत्पादक करीब 90 फीसदी सिंगल यूस प्लास्टिक कचरे की वजह हैं।
दुनिया में जितना प्लास्टिक कचरा पैदा होता है उसमें से करीब 12 फीसदी को जला दिया जाता है जो बड़े पैमाने पर पर्यावरण प्रदूषण पैदा करता है। वहीं यदि जापान जैसे देश की बात की जाए तो वहां प्लास्टिक कचरे के निपटान के लिए करीब 64.6 फीसदी प्लास्टिक कचरे को जला दिया जाता है। गौरतलब है कि यदि एक टन प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे को जलाया जाता है तो उससे करीब 2.9 टन कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में मुक्त होती है।
914 प्रजातियों को सीधे प्रभावित कर रहा है प्लास्टिक कचरा
इतना ही नहीं इस कचरे को जलाने से कई हानिकारक केमिकल मुक्त होते हैं जो हमारी खाद्य श्रंखला को दूषित कर रहे हैं। वहीं बड़े पैमाने पर प्लास्टिक कचरे को ऐसे ही वातावरण में फेंक दिया जाता है। जितनी जानकारी उपलब्ध है उसके अनुसार 914 प्रजातियां सीधे तौर पर प्लास्टिक से प्रभावित हैं।
इनमें धरती पर रहने वाली हाथी से लेकर समुद्री मछलियां, कछुए, पक्षी तक शामिल हैं। अनुमान है कि संयुक्त अरब अमीरात के करीब एक फीसदी ड्रोमेडरी ऊंटों की मौत के लिए प्लास्टिक प्रदूषण जिम्मेवार था। वहीं 25 फीसदी ध्रुवीय भालू में प्लास्टिक को निगलने के मामले सामने आए थे। इतना ही नहीं यह प्लास्टिक कचरा बीमारियों के फैलने, आक्रामक प्रजातियों के हमले, एंटीबायोटिक रेसिस्टेन्स तक के लिए जिम्मेवार है।
कभी जो प्लास्टिक हमारे लिए एक वरदान से कम नहीं था अब वो एक अभिशाप में बदल गया है। क्या इसके लिए हमारी बढ़ती महत्वाकांक्षा जिम्मेवार नहीं है। इसका बिना सोचे समझे बढ़ता उपयोग जहरीला प्रदूषण पैदा कर रहा है जो जैवविविधता को नुकसान पहुंचा रहा है। यह जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए भी बड़ा खतरा बन चुका है। ऐसे में इसे अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
देखा जाए तो जलवायु परिवर्तन और जैवविविधता को होते नुकसान की तरह ही बढ़ता प्लास्टिक प्रदूषण आज एक अंतराष्ट्रीय समस्या है, लेकिन इसके बावजूद इससे निपटने के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर कोई समझौता नहीं किया गया है जो कानूनी तौर पर इस बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए बाध्य करता हो। ऐसे में इस समस्या से निपटने के लिए न केवल अंतराष्ट्रीय स्तर पर बल्कि साथ ही राष्ट्रीय और लोगों को अपने स्तर पर भी कदम उठाने की जरुरत है, जिससे इस बढ़ते प्रदूषण के जहर को वातावरण में घुलने से रोका जा सके।
-देवराज सिंह