जलवायु परिर्वतन और बढ़ते तापमान के खतरे से अनजान इंसान

You are currently viewing जलवायु परिर्वतन और बढ़ते तापमान के खतरे से अनजान इंसान

जलवायु परिवर्तन का ही असर माने कि समूचे यूरोप में कड़ाके की ठंड के दिनों में भीषण गर्मी पड़ी। यूरोप के कम से कम आठ देशों में ऐसे हालत देखे गए। इस वर्ष यूरोप के इन आठ देशों में औसतन पीछले कई वर्षों के मुकाबले लगभग 15 डिग्री सेल्सियस ज्यादा तापमान रहा।

भारत में 1877 के बाद इस साल फरवरी का महीना सबसे गर्म रहा और औसत अधिकतम तापमान 30 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया। उसके बाद अप्रैल महीने में भयंकर गर्मी को देखते हुए ऐसा लगा कि हीट वेब की शुरूआत होगी।

भारत समेत एशिया के कई देशों में तापमान बढ़ा है। बांग्लादेश में तापमान ने 60 वर्ष का रिकार्ड तोड दिया। थाईलैंड में भी तापमान ने 60 साल का रिकार्ड तोड़ दिया। यहां भी दो लोगों की गर्मी की वजह से मौत हो गई। चीन, जापान, म्यांमार और वियतनाम में भी तापमान ने रिकार्ड तोड़ा। गर्मी के बाद देश के कुछ हिस्सों में बारिश और ओलावृष्टि हुई। जलवायु परिर्वतन से मौसम का लय बदलता जा रहा है।

मौसम के दिनोदिन आ रहे बदलाव को सामान्य तो नहीं कह सकते। दरअसल यह एक भीषण समस्या है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। समूची दुनिया इसके दुष्प्रभाव उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के बीच जलवायु में बदलाव का अंतर दिनोंदिन तेजी से बढ़ता जा रहा है, जिसके काफी दूरागामी परिणाम होंगे।

दुख तो यह है कि इन सब के बावजूद हम इसे सामान्य घटना मानने में लगे हुए हैं। यही नहीं तापमान में बढ़ोतरी और जलवायु में बदलाव को रोकने की दिशा में जो भी अभी तक प्रयास किए गए हैं, इसका कोई कारगर परिणाम नही निकल सका है। यह चिन्ता की बात है। 2003 में यूरोप और रूस की घटना इसका जीता जागता सबूत है जबकि वहां तापमान बहुत अधिक नहीं था तब लगभग 70 हजार से अधिक लोग मौत के मुंह में चले गए थे।

यह स्पष्ट है कि जलवायु परिर्वतन और बढ़ता तापमान हमारे अस्तित्व के लिए गंभीर विषय है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हम वास्तव में इस खतरे से अनजान हैं? पृथ्वी ग्रह कई प्रमुख पर्यावणीय समस्याओं जैसे भूमि, वायु और जल प्रदुषण, वनों की कटाई, ग्रीन हाउस गैसों में वृद्धि, पानी की कमी, जलवायु परिर्वतन और जैव विविधता के नुकसान जैसी ज्वलंत समस्याओं से ग्रसित है।

ऊर्जा के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग, वाहन उत्सर्जन और औद्योगीकरण व अनियंत्रित, अनियोजित विकास मानव का प्रकृति चक्र में प्रवेश जैसी समस्याएं वे मुख्य कारण हैं, जिन्होंने वैश्विक तापमान में उल्लेखनीय वृद्धि की है।

जिस प्रकार देश में लोग बाजारवाद और भौतिकवाद की तरफ जा रहे हैं, वह दिन दूर नहीं जब गर्मी के मामले में हम आफ्रीकी देशों के साथ पंक्ति में खड़े मिलेंगे। इसमें कोई शक नहीं ग्लोबल वार्मिंग का अपराध विकसित यूरोपियन देशों का किया धरा है।

भारत में जब तक कुछ मौसमी गड़बड़ियां दिखती हैं, तो उनके पीछे प्राकृतिक कारण हो सकते हैं। लेकिन आईआईटी दिल्ली में हुई नौ सालों के तापमान के अध्ययन बताता है कि भारत के औसत तापमान में हुई बढ़ोतरी के पीछे कोई प्राकृतिक कारण नही होकर सिर्फ इंसानी हाथ है और हमारे अभी के जीवन व्यवहार की इसमें अहम भूमिका है।

जलवायु परिवर्तन को लेकर हम सचेत हो या न हों, पर प्रकृति जरूर चेतावनी दे रही है। जिन महीनों को हम वसंत और सर्दियां मान रहे थे वे इस बार गर्मी का एहसास करा रहे थे। इस साल फरवरी में ही गर्मी शुरू हो गई थी।

भारतीय शहरों का स्वरूप पिछले कुछ दशकों में काफी बदला है। यहां की हरियाली में दिनों दिन कमी आ रही है। धड़ल्ले से पेड़ काटे जा रहे हैं। इमारतों की संख्या बढ़ती जा रही है। घरों में एयर कंडीशन का इस्तेमाल बढ़ रहा है। यही वजह है कि तापमान भी इसी रफ्तार से बढ़ रहा है। ऐसे में शहरों को अर्बन हीट आइलैंड कहा जाने लगा। शहरों में जितनी जनसंख्या होगी, हीट आइलैंड बनने की गुंजाइश उतनी ही ज्यादा होगी।

प्रायः देखा गया है कि शहरों की सीमा पार करते ही राहत महसूस होती है। जलवायु परिर्वतन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल की हालिया रिर्पोट में चेतावनी दी गई है कि ग्लोबल वार्मिंग में हर वृद्धि कई और खतरों को तेज करेगी।

बेशक प्रदूषण की वजह से जलवायु परिवर्तन की रफ्तार बढ़ी है। यह भी सच है कि हम ग्लोबल वार्मिंग के दौर में जी रहे हैं। यह भी सही है कि प्राकृतिक गतिविधियों के कारण कई तरह के परिर्वतन या आपदाएं घटती हैं। लेकिन प्रकृति को प्रभावित करने वाले कारकों के पीछे इंसानी गतिविधियां भी कम जिम्मेदार नहीं है। अभी भी वक्त है, यदि हम नही चेते और सब मिलकर कोई ठोस कदम नहीं उठाए तो भविष्य में हमें इसके गंभीर परिणाम झेलने होंगे।

स डाॅ. प्रशान्त सिन्हा