प्लास्टिक उत्पादन और प्लास्टिक कचरे की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। दुनिया भर में प्लास्टिक सभी पारिस्थितिक तंत्रों में व्याप्त है और इसके लंबे समय तक बने रहने की आशंका है। नदियों के बहाव से छोटे और हल्के माइक्रोप्लास्टिक नीचे की ओर बहते है, लेकिन अक्सर वे नदी के तलछट में भी पाए जाते हैं। अभी तक इस बारे में अधिक जानकारी नहीं थी कि माइक्रोप्लास्टिक नदियों के तल पर भी जमा हो रहा है।
अब एक नए अध्ययन में पाया गया है कि माइक्रोप्लास्टिक समुद्र में पहुंचने से पहले सात साल तक नदी के तल में जमा रह सकता है। जबकि शोधकर्ताओं ने पहले माना था कि हल्के माइक्रोप्लास्टिक तेजी से नदियों के द्वारा बहा ले जाए जाते हैं, क्योंकि नदियां लगभग निरंतर गति से बहती रहती हैं। पहले यह माना जाता था कि शायद ही कभी माइक्रोप्लास्टिक नदी के तल के तलछट पर प्रभाव डालते हैं।
अब इंग्लैंड की नार्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी और बर्मिंघम विश्वविद्यालय के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने माइक्रोप्लास्टिक के बहाव में हाइपोरिक एक्सचेंज पाया है। हाइपोरिक एक्सचेंज – एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सतह का पानी नदी के तल के पानी के साथ मिलता है, जो हल्के माइक्रोप्लास्टिक्स को फंसा सकता है जिसके तैरने की उम्मीद की जाती है।
यह पूरे जल प्रवाह में प्लास्टिक प्रदूषण के स्रोतों से ताजे या मीठे पानी में माइक्रोप्लास्टिक के मिलने और जमा होने के समय का पहला आकलन है। नया माडल गतिशील प्रक्रियाओं का वर्णन करता है जो हाइपोरिक एक्सचेंज सहित कणों को प्रभावित करते हैं। बड़े और छोटे आकार में 100 माइक्रोमीटर से लेकर प्रचुर मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक पर आधारित हैं।
अध्ययनकर्ता नार्थवेस्टर्न के हारून पैकमैन ने कहा प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में हम जो कुछ भी जानते हैं वह महासागरों से है क्योंकि यह वहां अधिक दिखाई देता है। अब, हम जानते हैं कि छोटे प्लास्टिक के कण, टुकड़े और फाइबर या रेशे लगभग हर जगह पाए जा सकते हैं।
पैकमैन ने कहा हालांकि हम अभी भी नहीं जानते हैं कि शहरों और अपशिष्ट जल से निकलने वाले कणों का क्या होता है। अब तक अधिकांश काम दस्तावेजीकरण करने के लिए किया गया है, जिसमें प्लास्टिक के कण कहां मिल सकते हैं और समुद्र तक इसकी कितनी मात्रा पहुंच रही है।
अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि हमारे काम से पता चलता है कि शहरी अपशिष्ट जल से बहुत अधिक मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक नदी के स्रोत के पास जमा हो जाते हैं और नीचे की ओर महासागरों में पहुंचने में लंबा समय लेते हैं। अध्ययन की अगुवाई करने वाले पैकमैन, ड्रमोंड और उनकी टीमों ने यह अनुकरण करने के लिए एक नया माडल विकसित किया कि कैसे हर कण मीठे पानी की व्यवस्था में प्रवेश करते हैं और वहां जमा हो जाते हैं और फिर बाद में फिर से इकट्ठा होकर बिखर जाते हैं।
यह माडल हाइपोरिक एक्सचेंज प्रक्रियाओं को शामिल करने वाला पहला माडल है, जो नदियों के भीतर माइक्रोप्लास्टिक को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यद्यपि यह सर्वविदित है कि हाइपोरिक एक्सचेंज प्रक्रिया प्रभावित करती है कि प्राकृतिक कार्बनिक कण मीठे पानी की प्रणालियों के माध्यम से कैसे इधर-उधर जाते हैं और प्रवाहित होते हैं, इस प्रक्रिया को शायद ही कभी माइक्रोप्लास्टिक का जमा होना माना जाता है।
पैकमैन ने कहा हमने देखा कि माइक्रोप्लास्टिक की अवधारण कोई आश्चर्य की बात नहीं थी क्योंकि हम पहले ही समझ चुके थे कि यह प्राकृतिक कार्बनिक कणों के साथ होता है। अंतर यह है कि प्राकृतिक कण बायोडिग्रेड होते हैं, जबकि बहुत सारे प्लास्टिक बस जमा हो जाते हैं। क्योंकि प्लास्टिक नष्ट नहीं होते हैं, लंबे समय तक ताजे या मीठे पानी में रहते हैं यह तब तक चलता रहता है जब तक कि वे नदी के प्रवाह में बह नहीं जाते हैं।
माडल को चलाने के लिए, शोधकर्ताओं ने शहरी अपशिष्ट जल और नदी प्रवाह की स्थिति पर वैश्विक आंकड़ों का उपयोग किया। नए माडल का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने पाया कि माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण एक नदी या धारा के स्रोत जिसे ‘‘हेडवाटर“ के रूप में जाना जाता है, इसके स्रोत पर सबसे लंबे समय तक रहता है। हेडवाटर में माइक्रोप्लास्टिक कण औसतन पांच घंटे प्रति किलोमीटर की दर से बहे। लेकिन कम-प्रवाह की स्थिति के दौरान, यह गतिविधि धीमी हो गई, इसमें केवल एक किलोमीटर की दूरी तय करने में सात साल का समय तक लग गया। इन क्षेत्रों में जीवों के पानी में माइक्रोप्लास्टिक के निगलने की आशंका अधिक होती है, जो पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बिगाड़ सकता है।
जानकारी की उपलब्धता होने पर पैकमैन ने उम्मीद जताई है कि शोधकर्ता ताजे पानी में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के लंबे समय तक पड़ने वाले प्रभावों का बेहतर आकलन कर सकते हैं।
जमा हुए माइक्रोप्लास्टिक पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा सकते हैं और बड़ी मात्रा में जमा कणों का मतलब है कि इन सभी को मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्र से धुलने में बहुत लंबा समय लगेगा। यह जानकारी हमें इस बात पर विचार करने की ओर इशारा करती है कि क्या हमें मीठे पानी के पारिस्थितिक तंत्र को बहाल करने के लिए प्लास्टिक को हटाने के लिए समाधान की आवश्यकता है। यह अध्ययन जर्नल साइंस एडवांस में प्रकाशित हुआ था।
-ए.के. पाण्डेय