कजाकिस्तान में मीथेन रिसाव का पर्यावरण पर प्रभाव

You are currently viewing कजाकिस्तान में मीथेन रिसाव का पर्यावरण पर प्रभाव

मीथेन गैस का अब तक का सबसे खतरनाक रिसाव पिछले साल कजाकिस्तान के एक कुएं में हुआ था। इस बात की जानकारी एक विश्लेषण से मिली है। अनुमान के मुताबिक इस दौरान क़रीब एक लाख 27 हज़ार टन गैस का रिसाव हुआ। यह तब हुआ जब एक विस्फोट से कुएं में आग लग गई, जो करीब छह महीने तक रही।

मीथेन कार्बन डाइआक्साइड से कहीं अधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है। जिस कुएं से रिसाव हुआ, उसका मालिकाना हक बुचाजी नेफ्ट के पास है। कंपनी ने इतनी अधिक मात्रा में गैस रिसाव से इनकार किया है।

विशेषज्ञों का कथन
अमेरिकी संस्था ग्रीनहाउस गैस इक्यूवैलेंसी कैलकुलेटर पर्यावरण पर नज़र रखती है। संस्था के मुताबिक़ इतनी बड़ी मात्रा में गैस रिसाव का प्रभाव उतना ही होगा, जितना की सात लाख 17 हज़ार से अधिक कारों को पूरे एक साल तक चलाए जाने से होगा।

मैनफ्रेडी कैल्टागिरोन संयुक्त राष्ट्र की इंटरनेशनल मीथेन इमिसन आब्ज़र्वेटरी के प्रमुख के अनुसार जिस पैमाने और जितने अधिक समय तक रिसाव हुआ है, वह निश्चित तौर पर बहुत असामान्य है। यह बहुत बड़ा है। इस रिसाव की शुरुआत नौ जून 2023 को हुई थी। यह घटना तब हुई जब एक कुएं की खुदाई के दौरान उसमें धमाका हो गया। यह घटना दक्षिण-पश्चिम कजाकिस्तान के मंगिस्टों इलाके की है। इस घटना के बाद वहां आग लग गई, जो साल के अंत तक जारी रही। इस आग पर 25 दिसंबर 2023 को काबू पाया जा सका। स्थानीय अधिकारियों ने बीबीसी से कहा कि इस समय कुएं को सीमेंट से बंद किया जा रहा है।

नेचुरल गैस प्राथमिक तौर पर मीथेन से बनाई जाती है, जो कि एक पारदर्शी गैस है। लेकिन जब सूर्य का प्रकाश मीथेन के बादलों से होकर गुज़रता है तो वह ऐसे निशान छोड़ जाता है, जिसका कोई सैटेलाइट आसानी से पता लगा सकता है।

पकड़ाई मीथेन की गाढ़ी परत
इस रिसाव की जांच सबसे पहले फ्रांस की एक संस्था कैरोस ने की। उनके विश्लेषण को अब नीदरलैंड्स इंस्टीट्यूट फार स्पेश रिसर्च और स्पेन की पालिटेक्टिनिक यूनिवर्सिटी आफ वैलेनिका की ओर किया जा रहा है। सैटेलाइट से मिले डाटा का विश्लेषण करने के बाद वैज्ञानिकों ने पाया कि जून से दिसंबर के बीच मीथेन की गाढ़ी सघनता 115 बार देखी गई। इस आधार पर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि इस एक कुएं से एक लाख 27 हज़ार टन मीथेन का रिसाव हुआ।

यह इंसान की वजह से हुआ मीथेन का अब तक का दूसरा सबसे बड़ा रिसाव हो सकता है। इस रिसाव की पहचान करने में मदद करने वाले स्पेन की पालिटेक्टिनिक यूनिवर्सिटी आफ वैलेनिका के लुइस गुंटेर के अनुसार केवल नार्ड स्ट्रिम में होने वाली तोड़-फोड़ से ही तगड़ा रिसाव हो सकता है।

सितंबर 2022 में पानी के नीचे हुए धमाके में रूसी गैस को जर्मनी ले जा रही पाइपलाइन नार्ड स्ट्रीम-1 और 2 को तहस-नहस कर दिया था। इससे दो लाख 30 हज़ार टन मीथेन का रिसाव हुआ था। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक औद्योगिक क्रांति के बाद वैश्विक तापमान में हुई बढ़ोतरी का 30 फीसदी जिम्मेदार मीथेन है। सैटेलाइट से मिली तस्वीरें, बादल जैसी चीज़ों से प्रभावित हो सकती हैं, ऐसे में वैज्ञानिकों का कहना है कि वो इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि केवल अकेले एक कुएं से ही बड़े पैमाने पर गैस का रिसाव हुआ।

सैटेलाइटों से मीथेन का पता
गुंटर कहते हैं, ‘‘हमने मीथेन के ग़ुबार का पता लगाने वाली पांच अलग-अलग सैटेलाइट से मीथेन का पता लगाया है। इनमें से हर उपकरण मीथेन का ख़ासतौर पर आंकलन करता है, लेकिन हमने इनमें से केवल सटीक आंकलन को ही लिया है।’’ मंगिस्टों इलाके के डिपार्टमेंट आफ इकोलाजी ने इस बात की पुष्टि की है कि मीथेन की सांद्रता का स्तर 9 जून से 21 सितंबर के बीच 10 जगह वैध स्तर से अधिक हो गया था। इसमें यह भी कहा गया है कि धमाके के बाद के घंटों में मीथेन का स्तर मान्य स्तर से 50 गुना अधिक था।

कुएं का स्वामित्व रखने वाली कजाकिस्तान की कंपनी बुचाजी नेफ्ट ने इन आरोपों से इनकार किया है कि बड़े पैमाने पर गैस का रिसाव हुआ था। कंपनी का कहना है कि कुएं में गैस की मात्रा नगण्य थी। उसका कहना है कि गैस कुएं से बाहर आते ही जल गई होगी। उसका यह भी मानना है कि वायुमंडल में केवल जलवाष्प का रिसाव हुआ, जिससे सफ़ेद ग़ुबार बने जो अंतरिक्ष से दिखाई दे रहे थे।

बुचाजी नेफ्ट ने भी इस मामले का अध्ययन बाहरी विशेषज्ञों से करवाया है। पर उसके नतीजों तक पहुंच नहीं दी गई। इसमें फ्रांस की संस्था कैरोस के नतीजों पर संदेह जताया गया है। कंपनी के मुताबिक़, इसमें कहा गया है कि सैटेलाइटों ने ग़लती से मीथेन की जगह कुछ दूसरी गैसों का पता वातावरण में लगा लिया होगा, जैसे वाष्पीकृत पानी। इसके अलावा वैज्ञानिकों ने यह नहीं बताया है कि धमाके से पहले हवा में मीथेन की मात्रा कितनी थी।

निष्कर्षों से किया इनकार
पालिटेक्टिनिक यूनिवर्सिटी आफ वैलेनिका के लुइस गुंटेर कहते हैं, ‘‘हमने जल वाष्प या धुएं के संभावित प्रभाव का परीक्षण किया है।’’ वैज्ञानिक केवल सिंगल मीथेन का ग़ुबार तलाश रहे थे। जिस तरीके यह पता लगाया जा रहा था, वो वातावरण में पहले से मौजूद मीथेन से प्रभावित नहीं हुआ होगा।

कजाकिस्तान का संकल्प
अत्राउ की औद्योगिक सुरक्षा समिति ने इस हादसे के कारणों का जांच की। समिति ने पाया कि बुचाजी नेफ्ट कुएं की ड्रिलिंग की उचित देखभाल करने में नाकाम रहा। इसके अलावा कंपनी के एक सब कांट्रैक्टर जामन ईनेर्गो को खुदाई के दौरान उचित प्रक्रिया का पालन न करने का दोषी पाया गया।

कज़ाकिस्तान के ऊर्जा मंत्रालय का कहना है कि रिसाव एक जटिल तकनीकी समस्या थी और इस तरह के हादसों को रोकने का कोई सर्वमान्य तरीका नहीं है।

यह पहली बार नहीं है जब मध्य एशिया में मीथेन का बड़े पैमाने पर रिसाव का पता चला है। तुर्कमेनिस्तान की तरह, कज़ाकिस्तान ने दर्जनों बार मीथेन के बड़े पैमाने पर रिसाव की घटनाएं दर्ज की हैं। वैज्ञानिक इस तरह की घटनाओं को ‘सुपर-एमिटर’ कहते हैं।

गुंटर का कहना है कि मंगिस्टौ इलाके में इस तरह की घटनाएं देखी गई हैं। उन्होंने कहा, ‘‘यह सामान्य मानवीय गतिविधियों से अब तक मीथेन का सबसे बड़ा रिसाव है, जिसका हमने पता लगाया है।“

पिछले साल आयोजित ब्व्च्28 जलवायु शिखर सम्मेलन में, कजाकिस्तान ग्लोबल मीथेन प्रतिज्ञा में शामिल हुआ। यह प्रतिज्ञा 150 से अधिक देशों द्वारा 2030 तक अपने मीथेन उत्सर्जन को 30 फीसदी तक कम करने के लिए किया गया एक स्वैच्छिक समझौता है।

स अभिलाषा ठाकुर