इस वक्त दुनिया जिन चुनौतियों का सामना कर रही है, उसमें प्लास्टिक से निपटने की समस्या सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। हर साल करीब 1.27 करोड़ टन प्लास्टिक समुद्र में समा जा रहा है। इसकी वजह से समुद्री जीव-जंतुओं के लिए भयावह साबित हो रहे हैं। कछुओं की दम घुटने से मौत हो रही है। व्हेलें जहर की शिकार होकर मर रही हैं।
प्लास्टिक की इस चुनौती से निपटने का पहला कदम तो इसका इस्तेमाल कम से कम करना है। पर, इसके अलावा भी वैज्ञानिक, बढ़ते प्लास्टिक कचरे की चुनौती से निपटने के तरीके तलाश रहे हैं, ताकि इस कचरे के राक्षस का सामना किया जा सके। आज हम आप को पांच ऐसे ही अजूबे नुस्खों के बारे में बताएंगे, जो प्लास्टिक से निपटने में मदद कर सकते हैं।
प्लास्टिक गलाने वाला मशरूम
एस्परजिलस ट्यूबिनजेनसिस एक गहरे रंग का चकत्तेदार कुकुरमुत्ता होता है। ये गर्म माहौल में खूब पनपता है। ऊपर से देखने में इसमें कुछ खास नहीं है। लेकिन, इसकी एक खूबी हमें प्लास्टिक के राक्षस से लड़ने में मदद कर सकती है।
प्लास्टिक की सबसे बड़ी चुनौती होती है कि ये नष्ट नहीं होता या गलता नहीं है। यही वजह है कि आज ये हमारे शरीर के भीतर तक जगह बना चुका है। ऐसे जरिए तलाश किए जा रहे हैं जिससे प्लास्टिक को कुदरती तौर पर गलाया जा सके। पाकिस्तान की कायद-ए-आजम यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलाजिस्ट ने इस फफूंद में ऐसे गुण पाए हैं, जो प्लास्टिक को गला सकते हैं। एस्परजिलस ट्यूबिनजेनसिस से पालीयूरेथेन को गलाया जा सकता है। इस रिसर्च के अगुवा सहरून खान कहते हैं कि, ‘इस फफूंद से ऐसे एंजाइम निकलते हैं, जो प्लास्टिक को गलाते हैं। इस गले हुए प्लास्टिक से फफूंद को पोषण मिलता है।’ यानी ये ट्यूबिनजेनसिस की मदद से प्लास्टिक को गलाया जा सकता है।
समुद्र की सफाई
प्रशांत महासागर में ‘द ग्रेट पैसिफिक गार्बेज पैच’ समुद्र में कचरे का सबसे बड़ा ठिकाना है। यहां पर 80 हजार टन से भी ज्यादा प्लास्टिक जमा हो गया है। ये कचरा फ्रांस के बराबर इलाके में कैलिफोर्निया और हवाई द्वीपों के बीच फैला हुआ है। नीदरलैंड के 24 बरस के इंजीनियर बायन स्लैट की अगुवाई में इस कचरे को साफ करने का अभियान छेड़ा गया है। इसे सिस्टम 001 नाम दिया गया है।
ये कचरा जमा करने वाली 600 मीटर लंबी, तैरती हुई मशीन है। जो तीन मीटर की गहराई तक से कचरा जमा करती है। इस जमा कचरे को हर महीने एक जहाज में लाद कर हटाया जाएगा। बायन स्लैट की इस परियोजना की तारीफ भी हो रही है, और विरोध भी। किसी को भी नहीं पता कि आगे चल कर क्या होने वाला है।
बायन स्लैट कहते हैं कि, ‘इस वक्त तो मैं उम्मीद के साथ आगे बढ़ रहा हूं। हम ने इससे प्लास्टिक जमा कर के ये दिखा दिया है कि ये तकनीक कारगर है।’
प्लास्टिक से बनी सड़कें
नीदरलैंड में ही प्लास्टिक से निपटने का एक और नुस्खा आजमाया जा रहा है। यहां प्लास्टिक से सड़कें बनाई जा रही हैं। डच शहरों ज्वोले में साइकिल चलाने के लिए प्लास्टिक से सड़कें बनाई जा रही हैं। इस सड़क बनाने में प्लास्टिक की बोतलों, कपों और पैकेजिंग के दूसरे सामान इस्तेमाल हो रहे हैं।
इस वक्त सड़क को बनाने में लगे कुल सामान का 70 फीसदी हिस्सा प्लास्टिक है। लेकिन, आगे चल कर पूरी तरह प्लास्टिक से ही सड़कें बनाने का इरादा है। इसे बनाने वाली कंपनी कहती है कि ये पूरी तरह से रिसाइकिल किया गया प्लास्टिक इस्तेमाल कर रही है। इसे बनाने में कम भारी मशीनों की जरूरत होती है। ईंधन भी कम खर्च होता है। यानी के पर्यावरण के लिए भी मुफीद है।
अभी ज्वोले शहर में प्लास्टिक से बनी पहली सड़क की लंबाई 30 मीटर है। इसमें 2 लाख 18 हजार प्लास्टिक के कपों और 5 लाख प्लास्टिक बोतलों का इस्तेमाल हुआ है। इसी महीने में प्लास्टिक से एक और सड़क बनाने की योजना है।
समुद्री खतरपतवार का इस्तेमाल
प्लास्टिक के खिलाफ जंग लड़ने के लिए इंजीनियर और डिजाइनर दूसरे तत्वों के विकल्प आजमा रहे हैं, जिनमें खाने-पीने के सामान को पैक किया जा सके। ऐसे बायोप्लास्टिक को फिर से इस्तेमाल हो सकने वाली कुदरती चीजों से बनाया जा रहा है। जैसे कि वनस्पति तेल, कसावा स्टार्च और लकड़ियों की छाल। इंडोनेशिया की कंपनी इवोवेयर पैकेजिंग का सामान समुद्री खरपतवार से बना रही है। ये कंपनी स्थानीय समुद्री खरपतवार उगाने वाले किसानों के साथ मिलकर ऐसी पैकेजिंग तैयार करती है, जिसमें बर्गर और सैंडविच पैक हो सकें। काफी में मिलाने वाले पाउडर की पैकिंग की जा सके। इस खरपतवार से बने पैकेट को गर्म पानी में घोला जा सकता है। अब इस पैकेजिंग का इस्तेमाल साबुन पैक करने में भी हो रहा है। कंपनी का दावा है कि ये पूरी तरह से कचरा मुक्त विकल्प है। पैकेजिंग को भी लोग खा सकते हैं। ये पोषक भी है और पर्यावरण के लिए मुफीद भी।
सामाजिक प्लास्टिक
प्लास्टिक से समुद्रों को भारी नुकसान हो रहा है। कहा जा रहा है कि 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा प्लास्टिक होगा। इस कचरे को समुद्र में जमा होने से रोकने के लिए जो एक नुस्खा आजमाया जा रहा है, वो है प्लास्टिक बैंक का।
इस कंपनी के लोग ज्यादा पैसे देकर जनता से इस्तेमाल हुआ प्लास्टिक खरीदते हैं। इसके बदले में पैसे के अलावा रोजमर्रा के सामान जैसे ईंधन, चूल्हे या दूसरी तरह की सेवाएं देते हैं। इस प्रोजेक्ट से लोगों को समुद्र में जा रहे प्लास्टिक को रोकने का बढ़ावा मिलता है। लोगों की आमदनी भी हो जाती है। सड़कें साफ होती हैं।
प्लास्टिक बैंक का मकसद प्लास्टिक को इतना कीमती बना देना है कि लोग इसे फेंकने से बचें। इस जमा किए गए प्लास्टिक को कंपनी बड़े कारोबारियों को बेच देती है, जो इसकी तीन गुनी तक कीमत अदा करते हैं। प्लास्टिक बैंक फिलहाल हैती, ब्राजील और फिलीपींस में काम कर रहा है। जल्द ही ये भारत, दक्षिण अफ्रीका, पनामा और वेटिकन में भी सेवाएं शुरू करने वाला है।
लूसी जोन्स