पर्यावास तथा पारिस्थितिकी बचाने पूर्ण युद्ध विराम तत्काल जरूरी

You are currently viewing पर्यावास तथा पारिस्थितिकी बचाने पूर्ण युद्ध विराम तत्काल जरूरी

पिछले लगभग 1.5 माह से जारी यूक्रेन-रूस युद्ध से विश्व के समस्त राष्ट्र गंभीर रूप से चिंतित प्रतीत होते हैं। पर दुर्भाग्य यह है कि युद्ध समाप्त करने के लिए सार्थक पहल किसी भी राष्ट्र के द्वारा अभी तक संभव नहीं हो पा रही है। जबकि वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व पहले से ही नाना प्रकार के अनेकों अन्य स्थानीय एवं वैश्विक समस्याओं से गंभीर रूप से जूझ रहा है।
रूस के द्वारा जारी भयावह आक्रमण के कारण, युद्ध में प्रयोग किए जा रहे मिसाइल, बम एवं अनेकों प्रकार के आग्नेयास्त्रों के प्रयोग से एवं उसी की प्रतिक्रिया में यूक्रेन द्वारा रूस के विरूद्ध किए जा रहे आग्नेयास्त्रों के प्रयोग से यूक्रेन की स्थानीय पारिस्थितिकी को तो गंभीर क्षति पहुॅंच चुकी है, जिसमें उजाड़ हो गए नगर, ध्वस्त हो गई सड़कें, बेघर हुए लाखों लोग, खंडहर हो चुके भवन प्रत्यक्ष दिखाई पड़ते हैं, किन्तु युद्ध में मारे मासूम नागरिकों एवं विकलांग हुए नागरिकों की सही संख्या का आंकलन वर्तमान में करना कठिन है।
युद्ध की दुष्परिणिति से बचने के लिए पलायन कर रहे शरणार्थी नागरिक यूरोप के अनेकों देशों में फैल चुके हैं, जिनके अनेकों प्रकार से शोषण की कुसंभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता है। दूरदर्शनों एवं समाचार पत्रों में प्रकाशित हो रहे समाचारों में अनेकों ऐसे समाचार साक्षात पढ़ने में आ रहे हैं, जहॉं पर अबोध बालिकाओं, युवतियों, महिलाओं के भी शारीरिक शोषण की खबर पढ़ने में आ रही है। अनेकों प्रकार की बीमारियों, भुखमरी से पूरी-पूरी यूक्रेन की प्रजा त्रस्त है एवं इसके दुष्परिणाम समीपवर्ती राष्ट्रों में भी अवश्य दिखाई पड़ रहे हैं। किन्तु एक पर्यावरणविद के नाते हमारी चिंता इस यूद्ध के द्वारा उत्पन्न वैश्विक दुष्प्रभावों पर भी जाती है, जिसमें सबसे ज्यादा गंभीर चुनौती, क्रांतिक रूप से पहले से ही प्रदूषित पर्यावरण पर हो सकने वाले दुष्परिणामों की गंभीर कुशंका से है।
पृथ्वी का तापमान पहले ही तेजी से बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप मौसम में आये हुए परिवर्तन के कारण से उत्पन्न दुष्प्रभाव सतत-साक्षात दृष्टिगोचर हो रहे हैं। चिंता यह है कि यदि यह युद्ध यूॅं ही जारी रहा, और भले ही, यह युद्ध विश्व युद्ध में परिणित न हुआ, तो भी वैश्विक पर्यावरण को सदैव के लिए अपूर्णीय क्षति तो पहुॅंचा ही रहा है और भी अधिक पहुॅंचा ही सकता है। यद्यपि ऐसे कोई अधिकृत आंकड़ों का ब्यौरा उपलब्ध नहीं है कि वर्तमान में इस युद्ध में प्रयुक्त किए गए आग्नेयास्त्रों के कारण पृथ्वी पर कितनी अतिरिक्त ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन हो चुका है एवं कितना हरित भाग इस युद्ध के अंतर्गत भष्म हो चुका है और कितने भवन ध्वस्त हो चुके हैं, जिनके निर्माण में पुनः कितनी हरितकारी गैसों का उत्सर्जन होगा। वर्तमान परिवेश में जारी इस युद्ध में विजय के लक्ष्य जो भी हों, पर यह तो स्पष्ट दिख रहा है कि इस युद्ध की विभीषिका में सर्वाधिक क्षति उन मासूम यूक्रेनी नागरिकों की हो रही है, जिन्हें विजय से कुछ हासिल नहीं होगा और न ही पराजय से भी उनका शायद ही बहुत कुछ विशेष खोया पावेगा। पर सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि इन जन हानियों से ज्यादा हानि जो इस पृथ्वी के पर्यावरण पर पड़ रहा है, उसके प्रति किसी को कोई चिंता नहीं है। न तो संयुक्त राष्ट्र संघ को है, और न ही यूरोपीय देशों को, और न ही रूस को और न ही संयुक्त राज्य अमेरिका को, और न ही किसी अन्य किसी एशियाई देश को या आस्ट्रेलिया को।
विश्व में अनेकों छोटे-बड़े देश पृथ्वी पर पर्यावरण को बचाने के लिए कहीं एक-एक वॉट बिजली बचा रहे हैं, एक-एक किलो कोयला बचा रहे हैं, सर्वत्र खाली स्थानों पर वृक्षारोपण कर रहे हैं, घरों में ऊर्जा दक्षता की बात हो रही है, कारखानों में ग्रीन हाउस गैस फुट प्रिंट की गणना हो रही है, खेतों-खलिहानों और पशुधनों से भी उत्सर्जित होने वाले ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन नियंत्रण पर निरंतर प्रयास जारी हैं। वहीं इन तमाम कोशिशों से पृथ्वी पर से प्रलय को परे रखने की सारी कोशिशें वर्तमान में जारी यूक्रेन-रूस युद्ध से ध्वस्त होती नजर आ रही हैं। इसलिए विश्व के समस्त राष्ट्राध्यक्षों को पृथ्वी पर जीवन की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए तत्काल युद्ध विराम लगवाना चाहिए। चूॅंकि यदि पृथ्वी से पर्यावास तथा पारिस्थितिकी ध्वस्त हो गई, तो कितना भी अकूत धन तथा ऐश्वर्य किसी व्यक्ति या देश या समाज के पास एकत्रित भले हो जावे, फिर भी वह न तो स्वस्थ रह पावेगा और न ही सुरक्षित। इससे पहले की पूरी पृथ्वी किसी नाभिकीय युद्ध या परमाणु युद्ध की आगोश में झुलस जावे, हम सबको मिलकर आव्हान करना चाहिए कि बहुत हो चुका, अब सम्पूर्ण युद्ध विराम तत्काल लागू हो।
-संपादक