भारत को अंग्रेजी कुशासन से मुक्त हुए 74 वर्ष हो गए। हमारे हजारों पुरखों ने इस आजादी के लिए अपना तन-मन-धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया था, ताकि आने वाली पीढ़ी एक स्वाभिमान युक्त जीवन को सुखपूर्वक एवं सम्पन्नतापूर्वक जी सके। तदापि इस लक्ष्य की पूर्ति का मूल्यांकन करने पर जो प्रशासनिक, आर्थिक एवं राजनैतिक पारिस्थितिकी में परिवर्तन हुआ दिखाई पड़ता है, वह अत्यंत दुरूह है, जिस पर विस्तार से टिप्पणी करना हमारा विषयवस्तु नहीं है। तदापि सारांश में यह कहा जा सकता है भौतिकवादी-भोग को सुख का साधन बता कर इसके माध्यम में सत्ता सुख साधने के भ्रष्ट संकल्प से भारतीय नागरिकों का जीवन अत्यंत क्लेशमय और विषाक्त हो गया है। जिसके सबसे दुःखद परिणाम वर्तमान पर्यावरणीय पारिस्थितिकी पर तथा जल, वायु, पृथ्वी, आकाश पर पड़ चुके दुष्प्रभावों की भयावहता द्वारा परिलक्षित है।
वैज्ञानिक तकनीकी उपलब्धियों के जो साधन विकसित हुए हैं, उनका नियोजन प्रकृति संरक्षण में न करके, प्रकृति के भक्षण में किए जाने के कारण यह विषाद उत्पन्न हुआ है और ऐसी विषम परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं।
संकेत के रूप में सूचित हो कि वनों को काट कर, काष्ट विक्रय कर आर्थिक समृद्धि पाने हेतु नाना प्रकार के यंत्रों का उपयोग कर वृक्षों को काटा गया। किन्तु, वनों में लगने वाले भयावह दावानल के शमन हेतु आधुनिक अग्नि शामक यंत्रों का नियोजन नहीं किया गया। वनों के दोहन से प्राप्त धन का पर्याप्त मात्रा में समुचित वैज्ञानिक विधि से वन विकास करने हेतु तथा वन्य प्राणियों के संरक्षण हेतु, उनके लिए आवश्यक अन्न, फल, वनस्पति आहार, जल तथा आश्रय को प्रदान करने पर्याप्त प्रयास नहीं किए गए। ऐसा नहीं कि कुछ भी नहीं किया गया, किन्तु जो किया गया, वह क्षति-पूर्ति के लिए पर्याप्त नियोजन नहीं होने के कारण उसके दुष्प्रभाव समाज और मानव व्यवस्थाओं पर प्रतिलक्षित हो रहे हैं। जिनमें हाथियों और तेंदुओं का अतिक्रमण तो बहुधा चर्चा में है, पर कभी-कभी बंदरों का आतंक भी इसी प्रकार की अव्यवस्था का संकेत है।
यद्यपि भारत सरकार के पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का वन विभाग तथा राज्य सरकारों के वन विभाग इस दिशा में सार्थक प्रयास अवश्य कर रहे हैं, पर आम आदमी की भूमिका एवं योगदान, इस महान संकल्प में लगभग सिफर है। चूॅंकि सामान्य नागरिक को प्रकृति के इस प्राणदायिनी अंग के पहलू को कभी समझाया नहीं गया और न इसके ह्लास से हो रहे क्षति को वे भी गंभीरता से समझ ही पाए। पत्र-पत्रिकाओं और समाचारों से कुछ बोध तो अवश्य उत्पन्न होता है, पर यह सिद्धि के लिए संघर्ष करने हेतु जिद करने का संकल्प नहीं पैदा करता है। अतः आजादी के इस पर्व पर हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में वनों के महत्व, खासकर मौसम परिवर्तन तथा भयावह प्रदूषण की मार झेल रहे समय में इन समस्याओं के समाधान में इनकी भूमिका को प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में ही प्रदाय करने की आवश्यकता प्रतीत होती है।
हमारी औद्योगिक अर्थव्यवस्था तथा नगरीय सभ्यता के विकास में भी विज्ञान तथा तकनीकी ने भरपूर योगदान किया। कोयला जला कर भारी क्षमता के विद्युत संयंत्रों से लेकर स्टील उत्पादन, अल्यूमीनिअम उत्पादन जहां संभव हुआ है, तो वहीं खेतों एवं जंगलों में जाकर शौच करने हेतु भटकने की जिल्लत से आजादी घर-घर में शौचालय सुविधाओं से भी मिली है। आर्थिक समृद्धि भी हासिल हुई और काफी सुविधा और सुःख भी। किंतु इन विकास उपादानों से उत्पन्न प्रदूषण के दुष्प्रभावों को पूर्णतया शिथिल करने हेतु विकसित प्रौद्योगिकियों को, यंत्रों को हम अपने आर्थिक व्यय को बचाने के लोभ के कारण अंगीकार करने से कतरा गए। परिणाम आज प्रत्यक्ष है, वायु प्रदूषण व्याप्त है, तो नदी-नालों का पानी शुद्धिकरण करने के उपरांत भी स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित नहीं है। जबकि वायु प्रदूषण नियंत्रण हेतु पश्चिमी देशों ने तो इतनी सुघड़ व्यवस्था कर ली है कि धूल कणों का उत्सर्जन 25 मिग्रा/घनमीटर से कम किया जा सकता है। तो साथ ही सल्फर डाईऑक्साइड एवं नाइट्रस आक्साइड के उत्सर्जन स्तर को भी 100 मिग्रा/घनमीटर से कम किया जा सकता है। इसी प्रकार मल-जल में व्याप्त प्रदूषकों को बायो गैस में परिवर्तित करके कंप्रेस्ड बायो गैस (ब्ठळ) का निर्माण कर आयातित नेचुरल गैस से मुक्ति मिल सके। पर इन कृत्यों को कार्यान्वित करने हेतु जो आर्थिक आकर्षण व्यवस्था के द्वारा दिया जाना चाहिए, उसका गंभीर अभाव अभी भी है। तदैव राष्ट्रीय स्तर पर तथा राज्य स्तरों पर शासकीय नीति नियोजकों से यह अपेक्षा है कि मल-जल समाधान, नगरीय ठोस अपशिष्ठ समाधान को एक सफल व्यवसाय के रूप में विकसित करने हेतु पर्याप्त वित्तीय आकर्षण पैदा करने के प्रावधान प्रदान करे।
सूचना-प्रौद्योगिकी ने निश्चित रूप से संचार गति में और लागत में सर्वोच्च क्रांति पैदा की है। इसका प्रशासनिक चुस्ती के लिए आंशिक उपयोग किया गया है। तदापि वर्तमान में भी प्रशासनिक उत्पादकता में सम्यक मूल्यांकन के अभाव में इसका अपेक्षित नियोजन संभव नहीं हो पाया है। इस देश को प्रदूषण मुक्त करने तथा पर्यावरण संरक्षण को सार्थक बनाने के साथ अर्थव्यवस्था को तेज गति देने के लिए प्रशासनिक चुस्ती लाना अत्यंत अनिवार्य है।
इस हेतु समानांतर मैनेजमेंट इंफारमेशन सिस्टम (डप्ै) की तरह ही गवर्नेस इंफारमेशन सिस्टम (ळप्ै) को विकसित करना आवश्यक है, जिससे कि किसी भी विषय हेतु स्वीकृति के लिए किसी नागरिक द्वारा किए गए आवेदन की स्वीकृति की सम्पूर्ण प्रक्रिया तथा समयसारणी तथा आधिकारिक प्रक्रिया का संज्ञान उसे मिल सके एवं उसके आवेदन की जानकारी भी उसे प्राप्त हो सके। यद्यपि राज्य शासनों ने लोक सेवा गारंटी योजनाओं को घोषित अवश्य किया है, पर अभी भी धरातल में इनकी स्थिति धूमिल है।
भारत सरकार ने सूचना के अधिकार (त्पहीज जव प्दवितउंजपवद) को भी लागू किया है। तदापि इसके सार्थक परिणाम कम ही देखने में आते हैं। चूॅंकि पारदर्शिता का पराक्रम एक समय के उपरांत समाप्त हो जाता है। तदैव प्रशासनिक व्यवस्था में गति लाकर प्रशासन जनित पर्यावरण पर पड़ रहे दुष्प्रभावों को भी कम किया जा सकता है। भारत शासन के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने अवश्य आवेदनों को ट्रैक (ज्तंबा) करने के अच्छे प्रावधान किए हैं। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा भी ज्यादातर आवेदनों का निपटान आनलाइन किया जा रहा है। चाईस सेंटरों के माध्यम से स्वीकृत होने वाली अनेकों प्रक्रियाओं से भी अनावश्यक शासकीय दफ्तरों में दौड़ने की भीड़ कम हुई है। दस्तावेजों में लगने वाले कागज भी कम हुए हैं। तदापि कुछ और सुधार से नागरिकों को बहुत ज्यादा राहत तो मिलेगी, प्रशासनिक व्यय भार भी कम होगा।
वर्तमान अर्थ प्रधान युग में हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि सच्ची स्वतंत्रता देश को पूर्णरूपेण आर्थिक रूप से स्वतंत्र किए बिना तथा स्वस्थ आत्मनिर्भरता, पूरे देश को प्रदूषण मुक्त गिए बिना, पर्यावरण को लगभग पूरी तरह प्राकृतिक किए बिना संभव नहीं है। इस दिशा में हम सभी नागरिकों में आजादी के लिए पुरखों द्वारा किए गए संघर्ष के जुनून की तरह जुनून आज भी हमारे अंदर जिंदा कर जद्दोजहद करना जरूरी है। अन्यथा एक आर्थिक रूप से विपन्न राष्ट्र में, प्रदूषित वातावरण युक्त देश में एवं कंगाल हो गए प्रकृति-पर्यावरण मय भारत में हमारा वर्तमान तथा भविष्य सुखद, सम्मानजनक तथा समृद्ध नहीं रह सकता।
अतः आजादी के संघर्ष के जुनून को अंग्रेजों के विरूद्ध अब रखने की आवश्यकता नहीं है, पर अपने आप में विकसित हो रहे लालच, आलस्य और भय के विरूद्ध संघर्ष के जुनून को जीवित रखने की जरूरत है। आपमें सुसुप्त नागरिक संघर्ष जागृत हो, देश समृद्ध हो-सुखद हो, आपके समस्त प्रयासों में पर्यावरण संरक्षण तथा प्रदूषण से आजादी पहला संकल्प हो। इन्हीं भावनाओं के साथ स्वतंत्रता दिवस पर शुभकामनाएं।
-संपादक