बढ़ता वैश्विक तापमान और जलवायु परिवर्तन आज काफी गंभीर समस्या है। इसे कम करने के प्रयास में लंबे समय से वैज्ञानिक जीवाश्म र्इंधनों के विकल्प के रूप में, सौर ऊर्जा का दोहन कर, मीथेन बनाने के प्रयास कर रहे हैं। मिशिगन युनिवर्सिटी के ज़ेटियन माई और उनके साथियों का हालिया शोध इसी दिशा में एक और कदम है। उन्होंने तांबा और लोहा आधारित ऐसा उत्प्रेरक विकसित किया है जो सौर ऊर्जा का उपयोग कर कार्बन डाईआक्साइड को मीथेन में परिवर्तित करता है, जिसे ईंधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
हाल ही में अमेरिका में बिजली पैदा करने के प्राथमिक स्रोत के रूप में मीथेन ने कोयले को मात दी है। मीथेन से बिजली पैदा करने की प्रक्रिया में होता यह है कि मीथेन जलने पर कार्बन डाईआक्साइड और पानी में बदल जाती है और इस प्रक्रिया में ऊष्मा उत्पन्न होती है। इस ऊष्मा का उपयोग बिजली बनाने में किया जाता है।
सौर ऊर्जा की मदद से मीथेन बनाने की प्रक्रिया इसके विपरीत है। इसमें विद्युत की मदद से कार्बन डाईआक्साइड और पानी को मीथेन में बदला जाता है। हालांकि इस तरह मीथेन बनाना इतना आसान नहीं है। कार्बन डाईआक्साइड के एक अणु में आठ इलेक्ट्रान और चार प्रोटान जुड़ने पर मीथेन का एक अणु बनता है। हर इलेक्ट्रान और हर प्रोटान को अणु में जोड़ने के लिए ऊर्जा की ज़रूरत होती है।
वैज्ञानिक यह तो पहले ही पता लगा चुके थे कि जब तांबे के कण प्रकाश-अवशोषक पदार्थों के साथ जुड़ते हैं तब वे कार्बन डाईआक्साइड को अधिक ऊर्जा वाले यौगिकों में परिवर्तित कर देते हैं। लेकिन इसमें समस्या यह थी कि इनकी दक्षता और अभिक्रिया दर कम थी। इसलिए वे तांबे और अन्य धातुओं की जोड़ियों को प्रकाश-अवशोषकों के साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे थे।
इसी प्रयास में माई और उनके साथियों ने सिलिकान पापड़ (सिलिकान अर्धचालक की पतली चादर) के ऊपर प्रकाश-अवशोषक गैलियम नाइट्राइड से बने नैनोवायर विकसित किए। नैनोवायर पर उन्होंने विद्युत-लेपन करके तांबा और लोहे के 5-10 नैनोमीटर बड़े कण जोड़े। इस तरह तैयार सेटअप ने सूक्ष्म सौर-सेलों की तरह काम किया, यानी सूर्य के प्रकाश को अवशोषित कर उसे विद्युत ऊर्जा में बदल दिया। इसका उपयोग कार्बन डाइआक्साइड को मीथेन में परिवर्तित करने के लिए किया गया।
तैयार सेटअप ने प्रकाश और कार्बन डाईआक्साइड व पानी की मौजूदगी में प्रकाश में मौजूद 51 प्रतिशत ऊर्जा को मीथेन में परिवर्तित किया। प्रोसिडिंग्स आफ दी नेशनल एकेडमी आफ साइंसेज़ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक तांबा-लोहा आधारित यह नया उत्प्रेरक अब तक की सबसे तीव्र दर से और सबसे अधिक ऊर्जा उत्पन्न करने वाला है।
माई का कहना है कि इस सेटअप का एक और फायदा है – इसमें इस्तेमाल किए गए प्रकाश-अवशोषक और उत्प्रेरक सस्ते और आसानी से उपलब्ध हैं, और उद्योगों में उपयोग किए जा रहे हैं। लेकिन मीथेन उत्पादन को व्यावहारिक रूप में लाने के लिए अभी उत्पादन दक्षता और दर, दोनों ही बढ़ाने की ज़रूरत है।