अमल में लाने की हरी झंडी दे दी थी।
इस बाधा के दूर होने पर नर्मदा और क्षिप्रा को जोड़ने की इच्छाशक्ति मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दिखाई और उन्होंने तय समय-सीमा में दो नदियों को जोड़ने की परिकल्पना को अंजाम तक पहुंचा भी दिया था। 2008 में राष्ट्रीय विकास परिषद (एनडीसी) द्वारा आहूत की गई मुख्यमंत्रियों की बैठक में राज्यों के साथ जल बंटवारा विवाद में उलझे तमिलनाडू ने प्रस्ताव रखा था कि नदियों को परस्पर जोड़ने की प्रक्रिया को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा मिलना चाहिए। इसी क्रम में केंद्र सरकार ने सिंचाई और पन बिजली के बढ़ते संकट पर काबू पाने की दृष्टि से 14 नदियों को राष्ट्रीय परियोजना में शामिल कर इस दिशा में एक अभिनव पहल की थी। न्यायालय के निर्देश के बाद ये सुझाव एक दूसरे के पूरक होने के साथ जल संकट के भयावह दौर से गुजर रहे राष्ट्र को जल समस्या से भी किसी हद तक निजात दिलाने के ठोस उपाय थे।
जीवनदायी नदियां हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं। नदियों के किनारे ही ऐसी आधुनिकतम बड़ी सभ्यताएं विकसित हुईं, जिन पर हम गर्व कर सकते हैं। सिंधु घाटी और सारस्वत (सरस्वती) सभ्यताएं इसके उदाहरण हैं। भारत के सांस्कृतिक उन्नयन के नायकों में भागीरथी, राम और कृष्ण का नदियों से गहरा संबंध रहा है।
भारतीय वांगमय में इन्द्र और कुबेर विपुल जल राशि के प्राचीनतम वैज्ञानिक-प्रबंधक रहे हैं। भारत भूखण्ड में आग, हवा और पानी को सर्वसुलभ नियामत माना गया है। हवा और पानी की शुद्धता और सहज उपलब्धता नदियों से है। दुनिया के महासागरों, हिमखण्डों, नदियों और बड़े जलाशयों में अकूत जल भण्डार हैं। लेकिन मानव के लिए उपयोग जीवनदायी जल और बढ़ती आबादी के लिए जल की उपलब्धता का बिगड़ता अनुपात चिंता का बड़ा कारण बना हुआ है।
ऐसे में भी बढ़ते तापमान के कारण हिमखण्डों के पिघलने और अवर्षा के चलते जल स्त्रोतों के सूखने का सिलसिला भी जारी है। वर्तमान में जल की खपत कृषि, उद्योग, विद्युत और पेयजल के रूप में सर्वाधिक हो रहा है। हालांकि पेयजल की खपत मात्र आठ फीसदी है। जिसका मुख्य स्त्रोत नदियां और भू-जल हैं।
औद्योगिकिकरण, शहरीकरण और बढ़ती आबादी के दबाव के चलते एक ओर नदियां सिकुड़ रही हैं, वहीं औद्योगिक कचरा और मल मूत्र बहाने का सिलसिला जारी रहने से गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियां इतनी प्रदूषित हो गईं हैं कि यमुना नदी को तो एक पर्यावरण संस्था ने ‘मरी हुई नदी’ तक घोषित कर दिया है।
करीब 120 अरब डालर अनुमानित खर्च की प्रस्तावित नदी परियोजना को दो हिस्सों में बांटकर अमल में लाया जाएगा। एक प्रायद्वीप स्थित नदियों को जोड़ना और दूसरे, हिमालय से निकली नदियों को जोड़ना।
प्रायद्वीप भाग में 16 नदियां हैं, जिन्हें दक्षिण जल क्षेत्र बनाकर जोड़ा जाना है। इसमें महानदी, गोदावरी, पेन्नार, कृष्णा, पार, तापी, नर्मदा, दमनगंगा, पिंजाल और कावेरी को जोड़ा जाएगा। इनमें से नदियां जोड़ने के पांच डीपीआर बन भी गए हैं।
पश्चिम के तटीय हिस्से में बहने वाली नदियों को पूर्व की ओर मोड़ा जाएगा। इस तट से जुड़ी तापी नदी के दक्षिण भाग को मुंबई के उत्तरी भाग की नदियों से जोड़ा जाना प्रस्तावित है। केरल और कर्नाटक की पशिचम की ओर बहने वाली नदियों की जलधारा पूर्व दिशा में मोड़ी जाएगी। यमुना और दक्षिण की सहायक नदियों को भी आपस में जोड़ा जाना इस परियोजना का हिस्सा है।
हिमालय क्षेत्र की नदियों के अतिरिक्त जल को संग्रह करने की दृष्टि से भारत और नेपाल में गंगा, यमुना, ब्रह््रापुत्र तथा इनकी सहायक नदियों पर विशाल जलाशय बनाने के प्रावधान हैं। ताकि वर्षाजल इकट्ठा हो और उत्तर-प्रदेश, बिहार एवं असम को भंयकर बाढ़ का सामना करने से निजात मिल सके। इन जलाशयों से बिजली भी उत्पादित की जाएगी। इसी क्षेत्र में कोसी, घाघरा, मेच, गंडक, साबरमती, शारदा, फरक्का, सुन्दरवन, स्वर्णरेखा और दमोदर नदियों को गंगा, यमुना और महानदी से जोड़ा जाएगा।
प्रमोद भार्गव