खाने की बर्बादी पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा

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यूनाइटेड नेशन की इंटर गोवेर्मेंटरल पैनल की छठी आकलन रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हो गई है की हमारी नई पीढ़ी को जलवायु संकट के गंभीर नतीजों का सामना करना पड़ सकता है। रिपोर्ट में स्पष्ट कहा गया है कि ग्लोब वार्मिंग मनुष्य को भी किसी न किसी तरह से प्रभावित करेगी। विश्वभर में प्रदूषित तत्वों से फैले प्रदूषण में 8 प्रतिशत खाने की बर्बादी की वजह से होता है। भारत में बर्बाद हुए खाने से सामाजिक, पर्यावरणीय और आर्थिक प्रभावों और मौजूदा स्थितियों को समझने के लिए वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट इंडिया ( ॅत्प् प्दकपं) द्वारा 106 प्रकाशित और अप्रकाशित दस्तावेजों को नियमित रूप से विश्लेषण करने के साथ-साथ विशेषज्ञों की राय भी ली। इस अध्ययन में फूड एंड लैंड काल कोलिशन (थ्व्स्न्) इंडिया ने भी सहयोग बखूबी सहयोग दिया।
इस अध्ययन में रिसर्च, पालिसी और प्रशिक्षण में जो भी खामियां थी उसे व्यवस्थित रूप से बताया गया है ताकि भारत में खाने की बर्बादी को रोका जा सके। फूड लास एंड वेस्ट इन इंडियाः द नोन्स एंड द अननोन्स पर डब्ल्यूआरआई का नया अध्ययन देश में खराब खाने की समस्या से निपटने के लिए एक ऐसा रोडमैप तैयार कर रहा है जिससे इसके महत्व, हाटस्पाट और महत्वपूर्ण नुकसान की पहचान की जा सके।
अध्ययन में क्या कहा गया
भारत में खराब खाने की बजाए फसल काटने के बाद होने वाले नुकसान की मात्रा पर अधिक अध्ययन किया जाता है। यहां तक कि फसल काटने के बाद होने वाले नुकसान में भी भोजन के खराब होने के कारणों को भी नजरअंदाज कर दिया जाता है।
हालांकि फसल काटने के बाद उसमें होने वाले नुकसान के आकलन के लिए राष्ट्रीय और उप राष्ट्रीय स्तर पर शोध होते हैं लेकिन विभिन्न अध्ययनों के तथ्यों की कभी भी तुलना नही की जाती है। क्योंकि इन सभी अध्ययनों के लिये अलग-अलग मापदंड इस्तेमाल किए जाते है ।
घरेलू, रिटेल और सेवा स्तर पर खराब खाने की कोई भी ऐसी अनुभवी रिसर्च अभी तक सामने नही आई है जिस पर विश्वास किया जा सके।
भोजन को खराब होने से बचाने के लिए जो भी प्रयास किए गए हैं वह फूड बैंक वा कंपोसिटिंग के माध्यम से बर्बाद खाने के प्रबंधन पर केंद्रित होते है।
भारत में खाने के खराब और बर्बाद होने के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय पहलुओं को अधिक खंगाला नही गया है। भोजन के खराब और बर्बाद होने पर लिंग संबंधी रिसर्च ना तो उपलब्ध है ना ही तकनीक में सुधार और इसके प्रबंधन पर विचार किया जाता है।
रिसर्च में इन सभी विचारों को ध्यान में रखते हुए तथ्य आधारित समाधानों के आधार पर विभिन्न हितधारकों के सामने आने वाली चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए भारत मे खराब और बर्बाद खाने के प्रबंधन के लिए एक रोड मैप तैयार करने की सिफारिश की गई है।
की गई एक साझेदारी
डब्ल्यूआरआई इंडिया और एफओएलयू इंडिया ने एक आधिकारिक रिपोर्ट जारी करने और ‘‘चैंपियंस 12.3 स्ट्रेटजी आफ टारगेट मेजर एक्ट’’ पर चर्चा करने के लिए हाथ मिलाया हैं। इस बातचीत में भोजन के सड़ने तथा उसके नुकसान को आधा करने से संबंधित सतत विकास के लक्ष्य 12.3 को अपनाने, खराब होने वाले भोजन की मात्रा को नापने और जिन स्थानों पर अधिक मात्रा में भोजन बर्बाद होता है वहां पर इसे रोकने के लिए कदम उठाने जैसे समाधान शामिल किए हैं। इस कार्यक्रम का समापन फ्रेंड्स आफ चैंपियंस 12.3 इन इंडिया में शामिल होने के आग्रह के साथ हुआ। यह विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे ऐसे लोगों का एक समूह है जो भोजन के सड़ने और खराब होने में कमी लाने का लगातार प्रयास करता है ।
डब्ल्यूआरआई इंडिया की सीनियर मैनेजर मोनिका अग्रवाल ने कहा ‘‘भारत में एक बड़ी मात्रा में भोजन का कभी इस्तेमाल ही नहीं हो पाता, क्योंकि यह खेत से खाने की थाली तक पहुंचते पहुँचते खराब हो जाता है। यह नुकसान भोजन की मात्रा से अधिक होता है। क्योंकि यह हमारे लोगों के स्वास्थ्य, पारिस्थितिकीतंत्र, पेड़-पौधों, जानवरों, मिट्टी, पानी और जैव विविधता जैसी एक दूसरे से जुड़ी चीजों से संबंधित मामला है। भोजन के उत्पादन, उसके भंडारण, ट्रांसपोटेशन, प्रक्रिया और वितरण के साथ उसकी बर्बादी को कम करने के लिए हमें बहुत से ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।“
डब्ल्यूआरआई इंडिया के सीईओ डॉक्टर ओ. पी. अग्रवाल ने कहा ‘‘इस मुद्दे पर डब्ल्यूआरआई इंडिया द्वारा काम किये जाने का मुख्य कारण यह है कि बड़े पैमाने पर भोजन के खराब और बर्बाद होने पर कमी लाई जाए ताकि 2050 तक बेहतर स्वास्थ्य भोजन का लक्ष्य प्राप्त कर सके। डॉक्टर ओ. पी. अग्रवाल कहते है कि हमें आज खाने की बर्बादी को कम करने के लिए एक अवसर मिला है ताकि इसके कारण जमीन ,पानी और हवा पर जो दबाव पड़ रहा उसे कम किया जा सके। अगर ऐसा संभव होता है तो इससे भोजन की उपलब्धता में सुधार तो होगा ही बल्कि किसान, उपभोक्ता और विभिन्न समूहों की आमदनी भी बढ़ेगी। यह सही है कि इससे संबंधित शोधों में कई खामियां हैं मगर फसल कटने के बाद होने वाले खादय पदार्थों के नुकसान को लेकर उल्लेखनीय जानकारियां हैं, जिन पर सुव्यवस्थित ढंग से काम करने की जरूरत है।’’
गोदरेज एंड बायस मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड इंडिया के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक तथा डब्ल्यूआरआई इंडिया के निदेशक मंडल के अध्यक्ष जमशेद गोदरेज ने कहा कि ‘‘डब्ल्यूआरआई इंडिया ने आर्थिक लाभ और जलवायु संबंधी फायदे को देखते हुए भोजन के खराब और बर्बाद होने पर सही समय पर अध्ययन शुरू किया है। भारत में खाद्य पदार्थों के उत्पादन, वितरण तथा उपभोग का बेहतर तरीके से प्रबंधन करने में फ्रेंड्स आफ चैंपियंस 12.3 नामक क्षेत्रीय नेटवर्क का गठन करना एक महत्वपूर्ण कदम है। मैं आशा करता हूँ कि यह नेटवर्क इस दिशा में सहयोग और कार्रवाई को बढ़ावा देगा।’’
डब्ल्यूआरआई इंडिया में सस्टेनेबल लैंडस्केप एंड रीस्टोरेशन शाखा की निदेशक डाक्टर रुचिका सिंह ने कहा ‘‘भोजन को खराब और बर्बाद होने से बचाना जलवायु के लिए अच्छा होने के साथ-साथ अनेक सामाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय फायदों को अनलाक करने का एक बेहतर मौका भी है। ग्रामीण क्षेत्रों की आजीविका में सुधार से मिलने वाला लाभ और हरित उद्यमिता को बनाने के अवसर के असीमित फायदे हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हर व्यक्ति को भोजन को खराब होने से बचाने के लिए एजेंडा बनाने का यह सही समय है।’’
भारत में एफओएल्यू के कंट्री कोआर्डिनेटर डॉक्टर जयहरी केएम ने कहा ‘‘एफओएलयू भोजन के खराब और बर्बाद होने में कमी लाने के लिए समूचे विश्व में भोजन तथा पोषण सुरक्षा के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के तौर पर देखता है। निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में भारतीय कृषि और वस्तुओं के आपूर्ति चेन के प्रबंधन में व्याप्त जटिलताओं को देखते हुए एफओएलयू फ्रेंड्स आफ चैंपियन 12.3 साझेदारी के तहत एक ऐसा मजबूत कार्ययोजन का गठजोड़ बनाने का प्रयास कर रहा है, जिसमें अधिक व्यापक सहभागिता और लक्षित शामिल हो। मुझे आशा है कि राष्ट्रीय तथा उप-राष्ट्रीय सरकारें इस गठबंधन में शामिल होंगी।’’
डब्ल्यूआरआई इंडिया
डब्ल्यूआरआई इंडिया एक शोध संगठन है जिसमें ऐसे विशेषज्ञ और स्टाफ कर्मी शामिल हैं, जो स्वस्थ पर्यावरण को बनाए रखने के लिए नेतृत्वकर्ताओं के सहयोग से बड़े विचारों को जमीन पर उतारने के लिए काम करते हैं। स्वस्थ पर्यावरण ही आर्थिक अवसर और मानव कल्याण का आधार है। हम एक ऐसी समानतापूर्ण और खुशहाल धरती की परिकल्पना करते हैं जो प्राकृतिक संसाधनों का ज्ञानपूर्ण प्रबंधन से संचालित होती हो। हम एक ऐसे विश्व को बनाने की आकांक्षा रखते हैं जहां सरकार, कारोबारी वर्ग तथा विभिन्न समुदाय मिलकर गरीबी को हटाने और सभी लोगों के लिए एक सतत और प्राकृतिक पर्यावरण बनाने के लिए काम करते है।
क्या करता है एफओएलयू इंडिया
फूड एंड लैंड यूज़ आफ वैल्यू (एफओएलयू) इंडिया दरअसल, काउंसिल आन एनर्जी एनवायरमेंट एंड वाटर (सीईई डब्ल्यू), इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट अहमदाबाद (आईआईएम-ए), द एनर्जी एंड रिसोर्सेसइंस्टीट्यूट (टेरी), रिवाइटलाइजिंग रेनफेड एग्रीकल्चर नेटवर्क (आरएसएन) तथा वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट इंडिया (डब्ल्यूआरआई) इंडिया द्वारा संयुक्त रुप से शुरू की गई एक पहल है। इसके तहत खाद्य तथा भू उपयोग की सतत प्रणालियों के लिए दीर्घकालिक उपाय विकसित करने के साथ-साथ नीति संबंधित निर्णयों पर काम करता है ।
शिवेन्द्र कश्यप