50 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर कैलिफोर्निया जैसे हालात

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भारत सहित सभी देश लू के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे है । भारत में मौसम की स्थिति ने पिछले सप्ताह हल्की से मध्यम बारिश के बावजूद रहम के संकेत नहीं दिखाए हैं। मौजूदा गर्मी की स्थिति के साथ, पारा 50 डिग्री सेल्सियस के आसपास छूना एक सामान्य परिदृश्य बन गया है और मौसम विशेषज्ञों को आश्चर्य हो रहा है कि क्या होगा यदि 50 डिग्री सेल्सियस के आसपास एक नियमित तापमान बन जाता है और मानव शरीर इसका सामना करने में सक्षम होगा ।
दिल्ली और भारत के कई अन्य हिस्सों में रविवार को तापमान 49 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया था, जो बताता है तापमान का स्तर 50 डिग्री का स्तर होने के आसपास है। उत्तर प्रदेश के बांदा में रविवार को दिन का अधिकतम तापमान 49 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है, जो राज्य में सबसे अधिक है। भारत मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के अनुसार, मई में बांदा में यह अब तक का सबसे अधिक तापमान दर्ज किया गया है ।
50 डिग्री सेल्सियस तापमान हो जाए तो क्या होगा?
बढ़ते तापमान के लिए वैज्ञानिकों ने बार-बार बड़े पैमाने पर वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को जिम्मेदार ठहराया है। अमेरिका में रटगर्स यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के अनुसार, अगर ग्लोबल वार्मिंग का मौजूदा स्तर जारी रहता है, तो वर्ष 2100 तक दुनिया भर में 1.2 बिलियन लोग गर्मी के तनाव की स्थिति का सामना कर सकते हैं। बढ़ा हुआ तापमान लोगों के आसपास के परिदृश्य को बदल देगा, अनिश्चित गर्मी के कारण वनस्पति और फसलों को नुकसान होगा। वायु प्रदूषण में वृद्धि के कारण जंगल की आग आम हो जाएगी।
कहा जाता है कि मानव शरीर को एक निश्चित तापमान और मौसम की स्थिति में कार्य करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। कुछ हद तक इसे हम सही भी ठहरा सकते है क्योंकि एक बार हमारा शरीर मौसम की चरम स्थितियों से बच तो सकता है, लेकिन शरीर में तनाव बढ़ाने में रोक नहीं सकता। यही कारण है कि हम अक्सर लोगों को गंभीर बुखार, पाचन और रक्तचाप से जूझते हुए देखते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई बार मृत्यु भी हो सकती है।
यूएस कैलिफोर्निया में एक जगह है, जिसे फर्नेस क्रीक रेंच कहा जाता है, जो पृथ्वी पर अब तक के सबसे अधिक तापमान को मापने का रिकार्ड रखती है। 10 जुलाई, 1913 को यह 56.7 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया था। उस समय इस स्थान को ग्रीनलैंड रेंच कहा जाता था।
पछले एक दशक में भारत में 6,000 से अधिक लोग लू के कारण अपनी जान गवा चुके हैं। गुरुग्राम के पारस अस्पताल में आंतरिक चिकित्सा विभागाध्यक्ष डॉ. आर आर दत्ता का कहना है कि हीट वेव ने श्रमिकों किसानों, निर्माण श्रमिकों, और डिलीवरी का काम कर रहे लोगों पर अधिक प्रभाव डाला है, क्योंकि वे आमतौर पर धूप में काम कर रहे होते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और गर्मी के तनाव से प्रति वर्ष लगभग 250,000 अतिरिक्त मौतें होने की संभावना है।
यदि पर्यावरण का तापमान गर्मी सहनशीलता सीमा से अधिक हो जाता है तो पक्षियों को घातक हाइपोथर्मिया का खतरा हो सकता है। कैनसस स्टेट यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान बढ़ने पर कुत्तों को भी लू लगने का खतरा बना रहता है।
आंतरिक तापमान में वृद्धि से कुत्तों में दौरे पड़ सकते हैं और वे बेहोश भी हो सकते हैं। इस तरह के उच्च तापमान आंतरिक अंगों को बंद कर देंगे, जो कि कुत्ते के लिए घातक हो सकता है,
1985 की रिपोर्ट के जरिये नासा ने समझाया कि मानव शरीर आमतौर पर 4-35 डिग्री सेल्सियस के तापमान के बीच ही अनुकूल रहता है। लेकिन, अगर आर्द्रता 50 प्रतिशत से कम है, तो मानव शरीर अधिक गर्म मौसम की स्थिति को झेल सकता है। मलतब साफ़ है आर्द्रता जितनी अधिक होती है, शरीर उतना ही गर्म महसूस करता है और अंदर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए अधिक पसीने की आवश्यकता होती है।
गर्म और अधिक आर्द्र परिस्थितियों में पानी की कमी से हाइपोथर्मिया हो सकता है। इसकी शुरुआत गर्मी की थकावट और तनाव से होती है। व्यक्ति कमजोर, चक्कर, मिचली और प्यास महसूस कर सकता है। सोडियम और पोटेशियम जैसे कई इलेक्ट्रोलाइट्स खो जाते हैं। ये इलेक्ट्रोलाइट्स हृदय, तंत्रिका तंत्र और मांसपेशियों के कामकाज के लिए आवश्यक हैं। अत्यधिक गर्मी में, शरीर अपने आप को ठंडा करने के लिए संघर्ष करना शुरू कर देता है, जिससे बाद में गर्मी में ऐंठन, गर्मी की थकावट या यहां तक कि हीटस्ट्रोक भी हो सकता है – जिसे सनस्ट्रोक भी कहा जाता है।
उच्चतम दर्ज तापमान देश
यूएस कैलिफोर्निया में एक जगह है, जिसे फर्नेस क्रीक रेंच कहा जाता है, जो पृथ्वी पर अब तक के सबसे अधिक तापमान को मापने का रिकार्ड रखती है। 10 जुलाई, 1913 को यह 56.7 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया था। उस समय इस स्थान को ग्रीनलैंड रेंच कहा जाता था।
इसके उच्च तापमान ने इसे नया नाम मिला। इसे अब डेथ वैली से जाना जाता है जो एक रेगिस्तानी घाटी है, यहां के कई हिस्से में बोर्ड लगे हैं, जिसमें साफ लिखा है कि सुबह 10 बजे के बाद बाहर खुले में जाने से बचें। इसलिए दोपहर के समय यहां के लोग घर से बाहर निकलने से बचते हैं।
डेथ वैली के नेशनल पार्क में काम करने वाली ब्रैंडी स्टीवर्ट हाँ कि स्थितियों के बारे में जानकारी देते हुए कहती हैं, यहां इतनी गर्मी पड़ती है कि लगता है मैं अपना सब्र खो दूंगी। घर से बाहर निकलने पर बाल सख्त हो जाते हैं। पसीना बहने से पहले ही भाप बनकर उड़ जाता है। मैं दुनिया के उन लोगों में से हूं जिसका घर दुनिया की सबसे ज्यादा गर्म जगह पर है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) द्वारा 2010-12 के दौरान एक समीक्षा में 1922 में लीबिया के अल अज़ीज़िया में दर्ज 58 डिग्री सेल्सियस के दावे को खारिज करने के बाद फर्नेस क्रीक रेंच आधिकारिक तौर पर पृथ्वी पर सबसे गर्म स्थान घोषित किया गया था।
भारत में, राजस्थान में फलोदी में अब तक का सबसे अधिक तापमान मापा गया है। पोखरण के पास फलोदी में 19 मई, 2001 को 51 डिग्री सेल्सियस वा 123.8 डिग्री फ़ारेनहाइट का तापमान दर्ज किया गया था। चुरू (राजस्थान) में, जो अक्सर उच्च तापमान के लिए खबरों में बना रहता है। अगस्त 2017 में यह 50.2 डिग्री सेल्सियस वा 122.4 डिग्री फ़ारेनहाइट तक तापमान पहुंच गया था।
वही 2010 से 2019 तक 26 दिनों के लिए वैश्विक स्तर पर तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया, जबकि 1980 से 2009 के बीच तापमान केवल 14 दिनों में ही पार हो गया। जबकि भारत जैसे पश्चिमी एशियाई देशों में चरम जलवायु परिस्थितियों के कारण ऐसा तापमान समझ में आता है, लेकिन वैज्ञानिकों को कनाडा जैसे ठन्डे देशों ये उम्मीद कभी नहीं थी। लेकिन मौजूदा हालातों में उन्होंने भी वहाँ हीटवेव को महससू किया है।
शिवेंद्र