वैज्ञानिक उपलब्धियां वर्ष 2020 की

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बीते वर्ष 2020 में प्राप्त सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धियों में एक निजी अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा समानव अंतरिक्ष यान का प्रमांचन सम्मिलित है। मई माह में, ईलॉन मस्क की निजी कंपनी ‘स्पेस एक्स‘ ने अपने पहले मानव अभियान को प्रमोचित कर अंतरिक्षयात्रियों को सफलतापूर्वक अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचाकर एक नया इतिहास रचा। यह वर्ष 2011 के बाद से अमेंरिकी भूमि से चालक दल के साथ उड़ान भरने वाला पहला अंतरिक्ष मिशन भी था।
इसी वर्ष ऐसी पहली त्रिआयामी कृत्रिम आंख का विकास हुआ, जिसके बारे में यह दावा किया गया है कि इसकी क्षमता मौजूद जेवनिक (जैव इलेक्ट्रॉनिकी) आंखों से श्रेष्ठतर है। इसके अतिरिक्त, नाइट्रोजन से एक क्रिस्टलीय संरचना का निर्माण, भारत की पहली प्रदूषण रहित हाइड्रोजन ईंधन सेल (एचएफसी) कार के आदिप्ररूप् का शुभारंभ, एक गैर ऑक्सीजन-श्वसन वाले जंतु की खोज आदि अनेक उपलब्धियां गत वर्ष प्राप्त हुई। इनमें से कुछ यहां प्रस्तुत है।
पार्कर सौर अभियान से प्राप्त प्रथम आंकडे़
जनवरी 2020 में, नासा ने अपने पार्कर सौर अभियान, जिसे सूर्य के बहुत निकट मानो उसे स्पर्श करने के लिए भेजा गया है, द्वारा भेजे आंकडों को जारी किया। अंतरिक्ष यान पहले की तुलना में सुर्य के और अधिक निकट से गुजरा और उसने पहले आंकड़े पृथ्वी को भेजे। पार्कर सौर अभियान सूर्य से मात्र 1 करोड़ 87 लाख किलामीटर की निकटता से गुजरने वाला अब तक का पहला यान होगा।
वर्ष 2025 में अपने मिशन के अंत तक की अवधि में इसके सूर्य से 24 नजदीकी मिलन होंगे यानी यह परिक्रमा करते हुए 24 बार सूर्य के अत्यंत निकट से गुजरेगा-वस्तुतः अब तक सूर्य से निकटस्थ मिलन की तुलना में यह तीन गुना कम दूरी तक पहुंचेगा। वर्ष 2025 में सूर्य से अपने अंतिम निकटस्थ चरण में खोजी यान को सूर्य की सतह से मात्र 60 लाख किलामीटर की दूरी तक निकट ले जाने का उद्देश्य है। उस समय यह सूर्य के बाहरी वायुमंडल सौर किरीट या कोरोना के अंदर पहुंच जाएगा।
12 अगस्त, 2018 को प्रमोचित किए गए पार्कर सौर अभियान को इस प्रकार डिजाइन किय गया है कि यह सूर्य के अत्यंत निकट पहुंचने पर उसकी प्रचंड गर्मी और संकटदायी सौर विकिरण वाले क्षेत्र में अपनी वैज्ञानिक जांच संफलतापूर्वक कर सकने में सक्षम हो सके। वर्तमान योजनानुसार इस अभियान को सूर्य की कुल 24 परिक्रमाएं करनी हैं, इस अवधि में यह अपनी कक्षा में सात बार शुक्र ग्रह के निकट से गुजरकर ग्रह के गुरूत्वाकर्षण की सहायता से अपनी गति बढ़ाएगा। परिणामस्वरूप शुक्र से प्रत्येक मिलन में यान की कक्षा की उपसौर (पैरीहिलिक) दूरी उत्तरोत्तर कम होते हुए अंतिम चरण में सूर्य की सतह से मात्र 60 लाख किलोमीटर रह जाएगी। अत्यंत निकट से किए गए वैज्ञानिक प्रेक्षणों से अनुसंधानकर्ता सूर्य की आंतरिक कार्यप्रणाली को श्रेष्ठतर रूप से समझने में समर्थ हो पाएंगे।
सूर्य का अत्यंत विस्तृत प्रतिबिंब
संयुक्त राज्य अमेरिका के माऔवी हवायन द्वीप के हालिआकला शिखर पर स्थित नेशनल साइंस फाउंडेशन द्वारा संचालित, विश्व की नवीनतम और 4 मीटर व्यास की सर्वाधिक विशाल डैनियल के इनौए सौर दूरबीन (डीकेआईएसटी) द्वारा सूर्य का अब तक का सर्वाधिक विस्तृत प्रतिबिंब प्रस्तुत किया गया। इन नवीन छवियों में सूर्य की सूक्ष्म चुम्बकीय संरचनाएं अविश्वसनीय रूप से स्पष्ट नजर आती है। 29 जनवरी, 2020 को जारी की गई ये छवियां सूर्य की सतह पर 30 किलोमीटर आकार की आकृति प्रत्यक्ष कर देती है, जो कि अभी तक स्पष्ट दिखाई देने वाली आकृतियों से, परिमाण में तीन गुना अधिक छोटी है। जारी की गई छवियों में सूर्य की संपूर्ण सतह में ‘उबलती‘ गैस के बुलबुलों जैसे प्रक्षोभ (टर्बुलेंस) के प्रतिरूप दिखाई देते हैं।
ज्ञातव्य है कि सूर्य के बाहरी वायुमंडल, किरीट (कोरोना) का तापमान सूर्य की सतह (प्रकाशमंडल) के तापमान की तुलना में लाखों डिग्री सेल्सियस अधिक है, ऐसा क्यों और कैसे होता है यह अभी पूर्णतः स्पष्ट नहीं हो पाया है।
सौर दूरबीन (डीकेआईएसटी) को विशेष रूप से सूर्य की वायुमंडलीय परतों की चुम्बकीय संरचनाओं के अध्ययन के लिए डिजाइन किया गया है। इसके द्वारा किए अध्ययन द्वारा कोरोना के अत्यधिक तप्त होने के वास्तविक कारण पर एक नई अंतदृष्टि मिलने की प्रबल संभावना है।
इसके अतिरिक्त अध्ययन से यह भी पता लगेगा कि सामान्यतया ‘स्पेस वैदर’ के नाम से जानी जाने वाली सूर्य सतह पर होने वाली तीव्र गतिविधियां, हमारी संचार व्यवस्था, विद्युत आपूर्ति और अन्य प्रौद्योगिकियों को किस प्रकार से प्रभावित करती हैं। आशा है कि नासा के ‘पार्कर अभियान’ व यूरोपियन स्पेस एजेंसी के ‘सोलर ऑर्बिटर’ द्वारा जुटाए गए आंकड़े तथा सौर दूरबीन (डीकेआईएसटी) की छवियों के संयोजन द्वारा प्राप्त जानकारियां, सूर्य की कार्यप्रणाली तथा इससे उत्पन्न ‘स्पेस वैदर‘ और उसके पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण पर एक नया प्रकाश डालेंगी।
अतीत की आवाजें फिर से सजीव की गईं
ब्रिटेन के वैज्ञानिकों के एक दल ने 3000 वर्ष पूर्व दिवंगत हुए मिस्र के एक पुजारी नेस्यमन (जैसा उनके ताबूत पर अंकित है) की ममी (सुरक्षित शव) की सहायता से उनकी आवाज पुनरूत्पन्न करने में सफलता प्राप्त की। यह कार्य रॉयल हॉलॉवे, लंदन विश्वविद्यालय, यॉर्क विश्वविद्यालय, लीड्स संग्रहालय एवं वीथिकाएं और लीड्स जनरल इनफर्मरी के संयुक्त तत्वावधान में चलाई जा रही
‘वॉइस ऑफ द पास्ट‘ नाम की इस परियोजना का भाग है। इस कार्य के लिए वैज्ञानिकों ने सर्वप्रथम त्रिआयामी सीटी र्स्कन का उपयोग करते हुए ममी के संपूर्ण स्वर पथ (वोकल ट्रैक्ट) का प्रतिचित्रण किया, फिर 3डी प्रिंटर की सहायता से प्लास्टिक क उपयोग करते हुए इसका पुननिर्माण किया गया। आधुनिक वाक् संश्लेषण (स्पीच सिंथेसिस) में प्रयोग किए जाजे वाले कम्प्यूटर संश्लेषित कृत्रित कंठ से प्लास्टिक के इस त्रिआयामी स्वर पथ में वायु प्रवाह कराकर हूबहू मृत मिस्री व्यक्ति जैसे एकल स्वर का ध्वनि उत्पादन किय गया। शोधकर्ताओं के अनुसार यह ध्वनि मृत्यु के क्षण पर रही नेस्यमन के स्वर पथ की अवस्था पर आधारित है।
यह सुस्थापित हो जाने के बाद कि किसी व्यक्ति के स्वर पथ, जो कि व्यक्ति विशेष के लिए विशिष्ट होता है, को 3डी प्रिंटर की सहायता से पुनर्निर्मित करना संभव है, ‘वॉइसेज फ्रॉम द पास्ट’ नामक परियोजना आरंभ की गई है। इसका उद्देश्य बहुत पुराने समय में मृत हुए लोगों की जांच पड़ताल करना है। इसके लिए परम आवश्यक है कि मृतक का स्वर पथ इष्टतम रूप से संरक्षित हो और साथ ही उसका सीटी-प्रतिबिंबन अत्यधिक परिशुद्धता से किया जाए। अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, सभी तथ्यों के मूल्यांकन के बाद नेस्यमन का ममीकृत शरीर इस कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त विकल्प था।
‘इनसाइट’ खोजी यान ने किया मंगल की सतह के कंपनों का संसूचन
कई दशकों से किए जा रहे अन्वेषण के बावजूद लाल ग्रह मंगल के संबंध में अभी बहुत कुछ जानना शेष है। हमें पता है कि इसके अंदर एक क्रोड (कोर) है परंतु वैज्ञानिक अभी इस बात पर सुनिश्चित नहीं हें कि यह कितनी बड़ी है और इसका संघटन क्या है।
इंटीरियर एक्सप्लोरेशन यूजिंग साइज्मिक इन्वेस्टिगेशन जिओडेसी एंड हीट ट्रांसपोर्ट जिसका संक्षिप्तीकरण कर लोकप्रिय नाम दिया गया ‘इनसाइट‘, मंगल की सतह पर उतरने वाला एक अन्वेषी अंतरिक्ष यान है जो 4.5 अरब वर्ष पहले मंगल के जन्म लेने के बाद से अब पहली बार इस ग्रह का संपूर्ण परीक्षण करने के प्रयोजन से डिजाइन किया गया है। वस्तुतः यह बाहरी अंतरिक्ष में छोड़ा गया ऐसा पहला रोबोटिक अन्वेषी यान है जो मंगल की आंतरिक संरचना-इसकी पर्पटी (क्रस्ट), प्रावार (मैंटल) तथा क्रोड का गहराई से अध्ययन करेगा।
19 दिसम्बर, 2018 को इनसाइट के लैंडर द्वारा मंगल की सतह पर भूकंपमापी यंत्र ने फरवरी 2019 को मंगल की सतह और भूकंपनों की गतिविधि की सूचना पृथ्वी पर प्रेषित की। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार लाल ग्रह पर मध्यम स्तर के भूकंपन होते हैं जो पृथ्वी और चंद्रमा की सतह में हो रही कंपन गतिविधियों कें बीच के स्तर के हैं। आंतरिक संरचना हेतु भूकंपनों के प्रयोग (एसईआईएस) द्वारा पहली बार मंगल की ऊपरी पर्पटी (ग्रह की बाहरी चट्टानी परत) और अधस्थल (सबसर्फेस) पर हो रहे मंगल के भू-कंपनों को सीधे मापा गया।
वैज्ञानिकों के अनुसार कुल 235 मंगल दिवसों के प्राप्त आंकड़ों में 174 भूकंपन गतिविधियां अथवा मंगलकंप दिखाई दिए। इनमें से 150 उच्च आवृत्ति वाली घटनाएं थीं जिसमें सतह के कंपनों की प्रकृति कुछ वैसी थी जैसे अपोलो अभियानों द्वारा चंद्रमा की सतह में अंकित की गई थी, जबकि एसईआईएस द्वारा प्रेक्षित अन्य 24 कंपन निम्न आवृत्ति वाले थे। तीन गतिविधियों में 2 ऐसे विशिष्ट चित्राम (वेव पैटर्न) ठीक उस प्रकार के थे जैसा की पृथ्वी पर प्लेट विवर्तनिकी (प्लेट टैक्टोनिक्स) की गति के कारण भूकंप के द्वारा उत्पन्न होते है।
कृत्रिम मेधा द्वारा नए ऐंटिबायोटिक की पहचान
फरवरी माह में अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के अनुसंधानकर्ताओं ने मशीन लर्निंग एल्गॅरिद्म का प्रयोग करते हुए एक नए शक्तिशाली एेंटिबायोटिक यौगिक की पहचान की है। प्रयोगशाला परीक्षणों में इस औषधिक यौगिक ने विश्व के बहुत से समस्यात्मक रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया को मार डाला, जिनमें से कुछ ऐसे भी थे जो सभी वर्तमान ऐंटिबायोटिक दवाओं के विरूद्ध प्रतिरोधी हो चुके थे।
इस यौगिक ने चूहे के दो अलग-अलग मॉडलों में संक्रमण को बिल्कुल साफ कर दिया। अपने नवीन अध्ययनों में अनुसंधानकर्ताओं ने अन्य कई आशाजनक एेंटिबायोटिक-उम्मीदवारों की पहचान भी की है, जिनका आगे परीक्षण किए जाने की योजना है। इस मॉडल से उस रासायनिक संरचाना, जो इसे बैक्टीरिया का नाश करने योग्य बनाता है, के बारे में जान लेने के आधार पर वैज्ञानिकों को विश्वास हो गया है कि इसका उपयोग कर नई औषधियों को डिजाइन किया जा सकता हैं।
दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे प्रतिजैविक यानी एेंटिबायोटिक प्रतिरोध के संकट से निपटने के लिए संश्लिष्ट जैवविज्ञानियों और कम्प्यूटर वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से एक डीप लर्निंग प्लेटफार्म विकसित किया है जो ऐंटिबायोटिक सक्रियता की अग्रिम जानकारी देगा।
विशेष रूप से औषधि-प्रतिरोधी बैक्टीरिया के विरुद्ध सफलता को बढ़ाने के लिए वैक्सीन दल ऐसे यौगियों की खोज करना चाहता था जिसकी संरचना परिचित ऐंटिबायोटिक दवाओं से पूर्णतः भिन्न हो।
अनुसंधान दल के कथनानुसार, इस कार्य के लिए कम्प्यूटर मॉडलों को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह ऐसे संभावित ऐंटिबायोटिक को चुने जो वर्तमान औषधियों की तुलना में बैक्टीरिया की भिन्न क्रियाविधि का प्रयोग करे।
नया खोजा गया अणु हैलिसिन है, जिसकी रासायनिक संरचना सामान्य पारंपरिक ऐंटिबायोटिक से भिन्न होने के बावजूद इसकी ऐंटिबायोटिक गतिविधि अत्यंत प्रभावशाली है। हैलिसिन एक ऐसा यौगिक है जिसको मशीन लर्निंग सॉफ्टवेयर की सहायता से खोजा गया है।
संरचना में इस श्रेणी की औषधीयों से बिलकुल भिन्न होने के बावजूद यह एक उत्कृष्ट ऐंटिबायोटिक सिद्ध हो रहा है। अनुसंधानकर्ताओं का मानना है कि हैलिसिन एक अनोखा व असाधारण रूप से प्रभावकारी ऐंटिबायोटिक प्रतिरोधी रोगाणुओं के विरुद्ध व्यापक क्रिया करता है।
गैर ऑक्सीजन-श्वसन वाले जंतु की खोज
फरवरी में, इजराइल के तेल अवीव विश्वविद्यालय (टीएयू) के शोधकर्ताओं ने एक ऐसे जंतु – हेनेगया सॉल्मिनिकोला नामक परजीवी, की खोज करने की जानकारी दी जो ऑक्सीजन अंतःश्वसन नहीं करता। अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि यह पूरी तरह से अप्रत्याशित है और जंतुओं की दुनिया से संबंधित विज्ञान की बुनियादी धारणाओं में से एक को बदल देता है।
यह ज्ञात है कि अवायवीय बैक्टीरिया और प्रोटोजोअन जैसे एकल-कोशिका वाले जीव ऑक्सीजन के बिना जीवित रह सकते है। क्योंकि वे किण्वन से अपनी ऊर्जा प्राप्त करते हैं अथवा मर्क्युरी या आइरन जैसे अन्य अणुओं क उपयोग करते है। लेकिन सभी जन्तुओं सहित बहुकोशिकीय जीवो को जीवित रहने के लिए सांस लेने हेतु ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है।
एच. सॉल्मिनिकोला के जीनोम अनुक्रमण के समय पता चला की इसमें माइटोकॉन्ड्रिया जीनोम का समावेश नहीं था। किसी जंतु के माइटोकॉन्ड्रिया में डीएनए का छोटा लेकिन ऐसा अत्यंत महत्वपूर्ण अंश भंडारित होता है जिसमें श्वसन के लिए उत्तरदायी जीन शामिल होते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया कोशिका का एक आवश्यक घटक है और इसे कोशिका के पॉवरहाउस के रुप में जाना जाता है जहां ऊर्जा उत्पादन करने के लिए ऑक्सीजन का अभिग्रहण किया जाता है।
अतः इसकी अनुपस्थिति से यह संकेत मिला कि इस जंतु को श्वसन के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता नहीं होती। अनुसंधान दल का कहना है कि एच. सॉल्मिनिकोला पृथ्वी पर एकमात्र ज्ञात ऐसा जीव है जो सांस नहीं लेता। वस्तुतः इस जंतु में कोई माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए नहीं है अतः इसके लिए सांस लेने का कोई मार्ग नहीं है।
अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार, यह खोज विकासीय अनुसंधान के लिए विशेष महत्व रखती है। आमतौर पर यह माना जाता है कि विकासीय प्रक्रिया के दौरान, जीव अधिक से अधिक जटिल होते गए तथा सरल, एकल अथवा अल्प कोशिका वाले जीव, जटिल जीवों के पूर्वज होते हैं। लेकिन एच. सॉल्मिनिकोला एक ऐसा जंतु है जिसका विकासीय प्रक्रम विपरीत है। ऑक्सीजन रहित वातावरण में रहने के कारण, वायुवीय श्वसन के लिए उत्तरदायी अपने अनावश्यक जीन को निकाल कर यह और भी सरल जीव बन गया।
सौरमंडल के बाहर का एक ग्रह जहां पिघले लोहे के बूंदें बरसती हैं
मार्च माह में खगोलविज्ञानियों ने सौरमंडल के बाहर एक ऐसे आश्चर्यजनक ग्रह की खोज की घोषणा की जिसके अंधेरे गोलार्द्ध (जहां रात है) पर पिघले लोहे की सूक्ष्म बूंदों की वर्षा होने के प्रमाण उन्हें मिले।
यह खोज चिली के आटाकामा रेगिस्तान स्थित यूरोपियन सदर्न ऑब्जर्वेटरी की वेरी लार्ज टेलीस्कोप (वीएलटी) में एस्प्रेसो (एशैल स्पैक्ट्रोग्राफ फॉर रॉकी एक्जोप्लैनेट एंड स्टेबल स्पेक्ट्रोस्कोपिक ऑब्जर्वेशन) नाम के यंत्र को जोड़कर की गई। मीन तारामंडल में स्थित पृथ्वी से 640 प्रकाश वर्ष दूर इस बाहरी ग्रह (एक्जोप्लैनेट) का नाम डब्ल्यूएएसपी-76बी रखा गया जो डब्ल्यूएएसपी-76 तारे की परिक्रमा करता है।
वैज्ञानिकां द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार डब्ल्यूएएसपी-76बी अपने तारे के इतने निकट परिक्रमा करता है कि इसका तारे से प्रकाशित गोलार्द्ध (जहां दिन है) अत्यंत तप्त हो जाता है। तारे से इसकी कक्षा की दूरी भी बहुत कम है। पृथ्वी और सूर्य की दूरी के मात्र 3 प्रतिशत दूरी पर तारे की परिक्रमा करने के कारण ग्रह की सतह पर तापमान परिदाही रुप से तेज हो जाता है। परिणामस्वरूप पिघले लोहे की बूंदें गिरने की विलक्षण घटना होती है।
दूसरी तरफ तारे के ज्वारीय पाश (टाइडली लॉक्ड) में होने के कारण ग्रह का एक फलक हमेशा उसके तारे के सामने रहता है जो स्थिति को और भी बदतर बना देता है और इसका प्रकाशित फलक कभी भी ठंडा नहीं हो पाता। परिणामस्वरुप डब्ल्यूएएसपी-76बी के दिन वाले भाग का तापमान 2,400 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। इस तापमान पर धातुएं पिघल जाती हैं। दिन और रात वाले गोलार्द्धों के तापमान में अत्यधिक अंतर के कारण गर्म गोलार्द्ध से ठंडे की ओर चलती तेज हवाएं अपने साथ लौह वाष्प को भी ले जाती है। ठंडे गोलार्द्ध का तापमान लगभग 1,500 डिग्री सेल्सियस रहता है और इस तापमान पर लौह वाष्प संघनित होकर द्रव अवस्था में आ जाती है।
वीएलटी के साथ एस्प्रेसों यंत्र का उपयोग करते हुए खगोलविज्ञानियों ने इस ग्रह के दिन और रात्रि के संधिस्थल के निकट, जहां संध्या काल की स्थिति थी, लौह वाष्प के शक्तिशाली चिन्हक देखे। वैज्ञानिकों का मानना है कि डब्ल्यूएएसपी-76बी एक्जोप्लैनेट के दिन वाले भीषण गर्म गोलार्द्ध के वायुमंडल में लौह वाष्प की पर्याप्त मात्रा उपस्थित है। ग्रह के अक्षीय घूर्णन और वातावरण में होने वाले तीक्ष्ण वायु प्रवाह के कारण लौह वाष्प के अंश, रात्रि वाले ठंडे भाग में अंतःक्षेपित होते है। यहां के अपेक्षाकृत काफी कम तापमान में यही वाष्प द्रव में संघनित होकर लौह बूंदों के रुप हमें बरसती है।
निजी कंपनी का पहला चालक दल सहित अंतरिक्ष मिशन
मई 2020 में अमेरिकी उद्योगपति एलोन मस्क की निजी कंपनी ‘स्पेस एक्स‘ द्वारा अंतरिक्ष में पहला चालक दल मिशन शुरू किया गया। वर्ष 2011 के बाद से अमेरिका की भूमि से उड़ान भरने वाला यह पहला अंतरिक्ष मिशन था। इस मिशन ने नासा द्वारा अंतरिक्षयात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए नियमित अंतरिक्षयान बनाने के मार्ग की दिशा में स्पेस एक्स के परीक्षण का प्रयोजन भी पूरा किया। इस सफल प्रमोचन द्वारा स्पेस एक्स कंपनी ने मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान भेजने की व्यवहार्यता को साबित करने के साथ ही अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा को अपने अंतरिक्षयात्रियों को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक भेजने के लिए अब तक प्रयुक्त किए जा रहे रूसी सोयूज रॉकेट का विकल्प भी प्रस्तुत कर दिया।
अंतरिक्षयात्रियों – बॉब बैंकन और डॅग हर्ली को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन तक ले जाने के लिए प्रमोचन हेतु फाल्कन-9 रॉकेट और डै्रगन नामक चालक कैप्सूल स्पेस एक्स द्वारा स्वयं विकसित किए गए थे। कंपनी द्वारा विकसित किए गए रॉकेट अद्वितीय है क्योंकि इनके अधिकतर महंगे कलपूर्जे पुनः प्रयोग किये जा सकते हैं।
इस कारण कृत्रिम उपग्रहों और अंतरिक्ष अभियानों की प्रमोचन लागत के एक बड़े भाग की बचत हो जाती है। मई माह में किए गए प्रमोचन में भी प्रयुक्त किए गए रॉकेट सफलतापूर्वक पृथ्वी पर नियत स्थल पर वापस आ गए। इससे पहले भी कंपनी द्वारा 83 प्रमोचन और 44 सफल अवतरण किए जा चुके हैं, जिनमें से 31 रॉकेटों का पुनः प्रयोग किया गया। (साभार : वैज्ञानिक)
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