आकाश में सूरज, चांद, ग्रहों और तारों की दुनिया बहुत अनोखी है। आपने चांद और तारों को खुशी और आश्चर्य से कभी न कभी ज़रूर निहारा होगा। गांवों में तो आकाश में तारों को देखने में और भी अधिक आनंद आता है, क्योंकि शहरों की अपेक्षा गांवों में बिजली की रोशनी की चकाचौंध कम होती है और वातावरण भी स्वच्छ एवं शांत होता है। तारों को निहारते-निहारते और उनकी विशाल संख्या को देखकर आप ज़रूर आश्चर्यचकित हो जाते होंगे। इस बात की पूरी संभावना है कि आपने शहर में कभी भी ऐसा सुंदर दृश्य न देखा होगा!
हम अपनी कोरी आंखों से जितने भी ग्रहों, तारों एवं तारा-समूहों को देख सकतें हैं, वे सभी एक अत्यंत विराट योजना के सदस्य हैं, जो आकाश में लगभग उत्तर से दक्षिण तक फैली हुई नदी के समान प्रवाहमान प्रतीत होती है। यह एक निहारिका (गैलेक्सी) है। हमारा सूर्य और उसका परिवार यानी सौरमंडल जिस निहारिका का सदस्य है उसका नाम आकाशगंगा (मिल्की-वे) है। हमारी आकाशगंगा में 100 अरब से भी ज़्यादा तारे हैं। हमारा सूर्य इन्हीं में से एक साधारण तारा है।
सूर्य आकाशगंगा के केंद्र से लगभग 27,000 प्रकाश वर्ष दूर एक किनारे पर है। इसलिए पृथ्वी से देखने पर आकाशगंगा तारों के एक सघन पट्टे के रूप में दिखाई देती है। चूंकि हम स्वयं आकाशगंगा के भीतर ही स्थित हैं, इसलिए हम इसकी सही आकृति का सटीक अनुमान नहीं लगा पाए हैं। हम आकाशगंगा के 90 प्रतिशत हिस्से को नहीं देख सकते। वास्तव में, हम अपनी आकाशगंगा के बारे में जो कुछ भी जानते हैं, वह ब्राहृंड की हज़ारों अन्य निहारिकाओं की संरचना के अध्ययन और अप्रत्यक्ष खगोलीय प्रेक्षणों पर ही आधारित है। वैज्ञानिकों ने हमारी आकाशगंगा को सर्पिल या कुंडलित निहारिका (स्पाइरल गैलेक्सी) की श्रेणी में वर्गीकृत किया है। अधिकांश पाठ्यपुस्तकों और विज्ञान की लोकप्रिय पुस्तकों में आकाशगंगा को एक सपाट तश्तरीनुमा सर्पिल संरचना के रूप में ही दिखाया जाता है।
हाल ही में पोलैंड के वारसा विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने आकाशगंगा के अब तक के सर्वश्रेष्ठ 3-डी मानचित्र विकसित करते हुए आकाशगंगा को समतल या सपाट मानने की हमारी परंपरागत धारणा को चुनौती दी है। इस नए अध्ययन से यह पता चलता है कि हमारी आकाशगंगा ऊपर और नीचे के घुमावदार किनारों के साथ काफी विकृत है। सपाट तश्तरीनुमा योजना बनाने की बजाय मिल्की-वे के तारे एक ऐसी तश्तरी बनाते हैं जो किनारों पर बिलकुल मुड़ जाती है, कुछ-कुछ अंग्रेजी के अक्षर ‘ै’ की तरह।
शोधकर्ताओं ने हमारी आकाशगंगा में बिखरे और नियमित अंतराल पर चमकने वाले (स्पंदन करने वाले) सेफाइड वेरीएबल तारों की सूर्य से दूरी मापकर आकाशगंगा का पहले से बहुत ज़्यादा सटीक 3-डी चार्ट बनाया है। सेफाइड तारों के स्पंदन और उनके निरपेक्ष कांतिमान (एब्साल्यूट मैग्नीट्यूड) में सीधा सम्बंध होता है। इसके चलते ये तारे दूरियां मापने वाले तारे कहे जाते हैं। सेफाइड तारों का स्पंदन जितना ज़्यादा होता है, उतनी ही उस तारे की निरपेक्ष कांति ज़्यादा होती है। अतः स्पंदन-काल की जानकारी होने पर निरपेक्ष कांति भी ज्ञात हो जाती है। उसके बाद प्रत्यक्ष कांति और निरपेक्ष कांति के परस्पर सम्बंध के आधार पर गणित की सहायता से उस तारे की दूरी मालूम हो जाती है। इसी तरह सेफाइड तारों की चमक की विविधता का इस्तेमाल करते हुए सूर्य से इनकी सटीक दूरी को मापा जाता है।
शोधकर्ताओं ने 2400 से अधिक सेफाइड तारों की दूरी को मापा। इनमें से अधिकांश तारों की पहचान चिली के दक्षिणी अटाकामा रेगिस्तान के लास कैंपानास आब्ज़र्वेटरी के आप्टिकल ग्रेविटेशनल लेन्सिंग एक्सपेरिमेंट (ओजीएलई) की सहायता से की गई। ओजीएलई एक पोलिश खगोलीय परियोजना है, जो मुख्यतः सेफाइड तारों की जांच-पड़ताल करती है। यह खगोलविदों को बड़ी सटीकता के साथ ब्राहृंडीय दूरियों की गणना करने में सक्षम बनाता है।
खगोलविद डोरोटा स्कोरान ने इस अध्ययन का नेतृत्व किया है, जो जर्नल साइंस के हालिया अंक में प्रकाशित हुआ है। शोध पत्र के सह-लेखक पर्जमेक म्राज के मुताबिक आकाशगंगा की जिस वर्तमान आकृति को हम जानते हैं, वह दूसरी मिलती-जुलती निहारिकाओं के आधार पर तथा मुख्यतः अप्रत्यक्ष मापों पर आधारित है। उन सीमित प्रेक्षणों द्वारा तैयार किए आकाशगंगा के मानचित्र अधूरे हैं। हालिया 3-डी मानचित्र प्रत्यक्ष प्रेक्षणों और बड़े पैमाने पर हुए अध्ययन पर आधारित हैं।
इस नए शोध के नतीजों के मुताबिक आकाशगंगा की वक्र भुजाएं कई लहरदार तरंगों में बंटी होती हैं। संक्षेप में कहें, तो इस शोध से यह पता चला है कि आकाशगंगा और उसकी भुजाएं एक चपटे समतल में तारों की तश्तरी नहीं, बल्कि लहरदार हैं। यह बहुत ही उलझी हुई एक विराट संरचना है। बहरहाल, यह नया 3-डी मानचित्र निश्चित रूप से हमारी आकाशगंगा की आकृति सम्बंधी हमारी समझ में आमूल-चूल परिवर्तन लाएगा।
प्रदीप कुमार