वैज्ञानिकों को दिखा बृहस्पति जैसा ग्रह जो अभी बन रहा है
वैज्ञानिकों ने सुदूर अंतरिक्ष में एक ऐसा ग्रह देखा है जो बृहस्पति से नौ गुना ज्यादा बड़ा है लेकिन अभी निर्माण की शुरुआती अवस्था में ही है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह ग्रह अभी गर्भ में है।
ग्रहों का निर्माण कैसे हुआ, इसके बारे में मनुष्य की जो समझ है, वैज्ञानिकों की एक नई खोज ने उसे चुनौती दे दी है। अमेरिका के हवाई स्थित सुबारू टेलीस्कोप से वैज्ञानिकों ने एक ऐसा ग्रह देखा जो अभी बन रहा है। अंतरिक्ष में चक्कर काट रहे हबल टेलीस्कोप से इस ग्रह की और ज्यादा नजदीक से पड़ताल की गई तो कई हैरतअंगेज बातें पता चली हैं।
सुदूर अंतरिक्ष में जो यह नया ग्रह देखा गया है, इसका आकार बृहस्पति से नौ गुना बड़ा है लेकिन खगोलविदों का मानना है कि यह अभी गर्भ में है, यानी अपने निर्माण की बहुत ही शुरुआती अवस्था में है। यह सौरमंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति से बहुत मिलता जुलता है। बृहस्पति और उसका साथी शनि ग्रह भी गैसीय ग्रह हैं और मुख्यतया हीलियम व हाइड्रोजन से बने हैं।
‘डोंट लुक अप’ वाला तारा
नासा के एमेस रिसर्च सेंटर में काम करने वाले खगोलविज्ञानी थाएन करी का एक अध्ययन चार अप्रैल को नेचर एस्ट्रोनोमी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में करी लिखते हैं, ‘‘हमें लगता है कि यह अभी भी अपने जन्म की बहुत शुरुआती प्रक्रिया में है।’’
नया दिखा ग्रह तश्तरी के आकार का गैस और धूलकणों का समूह है जो एबी आरिगाए नाम तारे का चक्कर लगा रहा है। यह तारा पृथ्वी से 508 प्रकाश वर्ष दूर है। यह वही तारा है जो 2021 में आई चर्चित फिल्म ‘डोंट लुक अप’ में नजर आया था।
वैज्ञानिकों ने अब तक हमारे सौरमंडल के बाहर लगभग पांच हजार ग्रह या क्षुद्रग्रह खोजे हैं। इस नए ग्रह को एबी आर बी कहा गया है, जो अब तक खोजे गए ग्रहों में सबसे बड़ों में शामिल हो गया है। इससे पहले प्रोटोप्लैनेट यानी ऐसा ग्रह जो अभी निर्माण की अवस्था में है, सिर्फ एक बार देखा गया है।
पहले से अलग है एबी आर बी
अब तक जितने भी ग्रह मिले हैं वे अपने तारों से उतनी दूरी पर चक्कर काटते हैं जितना हमारे सूर्य से नेपच्यून है। लेकिन एबी पहला ऐसा ग्रह है जिसकी अपनी तारे से दूरी नेपच्यून और सूर्य के बीच की दूरी से तीन गुना है। यानी यह दूरी पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी से 93 गुना ज्यादा है।
वैज्ञानिक कहते हैं कि अब तक ग्रहों के निर्माण की प्रक्रिया के बारे में जो जानकारी थी, एबी की निर्माण प्रक्रिया उससे अलग लगती है। अध्ययन के सह-लेखक और एरिजोना यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले खगोलविद ओलिवर गुयोन कहते हैं, ‘‘पारंपरिक समझ यह कहती है कि सभी नहीं तो ज्यादातर ग्रह बनने की प्रक्रिया ठोस पदार्थों के जमा होने से शुरू होती है। ये ठोस पदार्थ मिलकर एक मजबूत चट्टानी भीतरी भाग बनाते हैं। जब यह ठोस भीतरी भाग एक विशेष आकार ले लेता है तब गैसें जुड़ने लगती हैं और इस तरह गैसी ग्रह बनते हैं।’’
लेकिन एबी के मामले जो तश्तरी नुमा चीजें तारे का चक्कर लगा रही हैं, उनमें मौजूद ठोस हिस्सा गैसों से बाहर आता जा रहा है। जब यह ठोस हिस्सा पृथ्वी से कई गुना भारी हो जाएगा तो उस तश्तरी में गैसों को अपनी ओर आकर्षित करेगा। गुयोन बताते हैं, ‘‘इस प्रक्रिया से जो ग्रह बनते हैं वे तारे से बहुत ज्यादा दूर नहीं हो सकते। इसलिए इस खोज ने ग्रह निर्माण के बारे में हमारी समझ को चुनौती दी है।’’
सूर्य से 50 गुना बड़े तारे की खोज
अंतरिक्षविज्ञानियों ने अब तक का सबसे सुदूर तारा खोज निकाला है। अत्यधिक गर्म, बेहद चमकीला और विशाल आकार वाला यह तारा करीब 13 अरब साल पहले बना था जब ब्रह्मांड अभी नया नया आकार ले रहा था।
हालांकि यह चमकदार नीला तारा पहले ही खत्म हो चुका है, यह इतना बड़ा था कि बनने के कुछ करोड़ साल बाद ही छोटे छोटे टुकड़ों में बंट गया। इसके तुरंत टूटने की घटना अनोखी थी और इसी वजह से एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने इसे हबल अंतरिक्ष दूरबीन की मदद से देखा। सुदूर तारों से निकले प्रकाश को हम तक पहुंचने में बहुत लंबा समय लग जाता है।
इस तारे पर हुए रिसर्च की रिपोर्ट प्रतिष्ठित साइंस जर्नल ‘नेचर’ में छपी है। जान हापकिंस यूनिवर्सिटी के छात्र और रिसर्च रिपोर्ट के लेखक ब्रायन वेल्श का कहना है, ‘‘हम लोग तारे को उस रूप में देख रहे हैं जैसा वह 12.8 अरब साल पहले था, जो इसे बिग बैंग के 90 करोड़ साल बाद का बता रहा है। निश्चित रूप से हम खुशकिस्मत हैं।’’
दोनों ही मामलों में अंतरिक्षविज्ञानियों ने तारे के अतिसूक्ष्म प्रकाश को बढ़ाने के लिए ग्रेविटेशनल लेंसिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया। हमारा आसपास की आकाशगंगाओं को फोरग्राउंड में रखने पर ये बैकग्राउंड की छोटी चीजों को बढ़ा कर देखने में लेंस का काम करती हैं। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो इकेरस और इयरेंडल को देख पाना संभव नहीं होता क्योंकि उनकी दूरी बहुत ज्यादा है।
हबल ने बिग बैंग के बाद 30 से 40 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर आकाश गंगाओं को देखने में कामयाबी पाई है लेकिन उनके अलग अलग तारों को देख पाना असंभव है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिक जेन रिग्बी ने इस भी इस रिसर्च में हिस्सा लिया है। रिग्बी बताते हैं, ‘‘आमतौर पर सारे एक साथ चिपके होते हैं। लेकिन प्रकृति ने हमें एक ऐसा तारा दिया है जिसे खूब ज्यादा बढ़ा कर यानी हजारों गुना ज्यादा बढ़ा कर, जिससे कि हम इसका अध्ययन कर पाए।“
वैज्ञानिकों का कहना है कि हबल के आंकड़ों से पता चल रहा है कि इयरेंडल शायद बिंग बैंग के बाद बने पहली पीढ़ी के तारों में एक है। भविष्य में जेम्स वेब टेलिस्कोप की मदद से इस बारे में और जानकारी मिल सकेगी। फिलहाल जो जानकारी मिली है उसके मुताबिक यह हमारे सूर्य से 50 गुना ज्यादा बड़ा और तरकीबन 10 लाख गुना ज्यादा चमकीला था। इयरेंडल की छोटी मगर अभी परिपक्व ना हुई आकाशगंगाएं सर्पिल आकाशगंगाओं की तरह नजर आती हैं, ऐसी कई तस्वीरें हब्बल ने दूसरे आकाशगंगाओं की ली है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इयरेंडल दो स्टार वाले तंत्र का प्रमुख सितारा या फिर तीन तारे या चार तारे वाले तंत्र का हिस्सा हो सकता है। इस तारे के एक ब्लै होल होने के भी कुछ कुछ आसार हैं। हालांकि 2016 और 2019 में जो जानकारी मिली उससे ऐसा लगता नहीं है।
बहरहाल तारे के आस पास जो कुछ भी हो यह महज कुछ ही करोड़ सालों तक इस रूप में रहा उसके बाद इसमें सुपरनोवा की तरह विस्फोट हुआ और जैसा कि ज्यादातर विस्फोटों को नहीं देखा जा सका है इसका भी यही हाल हुआ। अंतरिक्षविज्ञानियों ने जो अब तक का सबसे सुदूर सुपरनोवा विस्फोट देखा है वह 12 अरब साल पहले हुआ था।
यह तारा कितना बड़ा और कितना गर्म था और इसको जन्म देने वाली गैलेक्सी के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए हबल से 100 गुना ज्यादा ताकतवर दूरबीन चाहिए।
प्लूटो पर मिली विशाल बर्फीली ज्वालामुखियां
वैज्ञानिकों ने प्लूटो की उबड़ खाबड़ जमीन पर पहली बार ऐसी विशाल बर्फीली ज्वालामुखियों को देखा है जो तुलनात्मक रूप से हाल ही में सक्रिय थीं। नासा के न्यू होराइजन अंतरिक्ष यान की मदद से ली गई तस्वीरों के विश्लेषण के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि प्लूटो का भीतरी हिस्सा पहले के अनुमान से ज्यादा गर्म था। नेचर कम्युनिकेशन जर्नल ने इस बारे में स्टडी रिपोर्ट छापी है।
कोलोराडो के साउथवेस्ट रिसर्च इस्टीट्यूट के प्लेनेटरी साइंटिस्ट और रिसर्च रिपोर्ट की लेखक केल्सी सिंगर का कहना है कि बर्फीली ज्वालामुखी लावा को हवा में उड़ेलने की बजाय उसे ‘‘एक गाढ़े, कीचड़ जैसे ठंडे पानी के मिश्रण या फिर यह भी संभव है कि ग्लेशियर जैसे ठोस बहाव“ के रूप में धीरे-धीरे बाहर निकालती हैं।
कई उपग्रहों पर हैं बर्फीली ज्वालामुखियां
माना जाता है कि बर्फीली ज्वालामुखी सौरमंडल के कई और ठंडे उपग्रहों पर मौजूद हैं। हालांकि सिंगर का कहना है कि प्लूटो पर जो ज्वालामुखी दिखी हैं, वो ‘‘अब तक देखी गई बर्फीली ज्वालामुखियों से काफी अलग हैं।“
सिंगर के मुताबिक ठीक-ठीक यह बताना मुश्किल है कि इन ज्वालामुखियों का निर्माण कब हुआ लेकिन वैज्ञानिक मान रहे है, ‘‘कुछ करोड़ साल या फिर उससे भी जल्दी इनका निर्माण हुआ होगा।“ प्लूटो के ज्यादातर हिस्सों से अलग इस इलागे में क्रेटर या गड्ढे नहीं हैं। सिंगर के मुताबिक, ‘‘इसका मतलब है कि आप इस संभावना से भी इनकार नहीं कर सकते कि अब भी इनका बनना जारी है।“
दिखा आज तक का सबसे शक्तिशाली सुपरनोवा
खगोल विज्ञानियों ने अब तक के सबसे बड़े सुपरनोवा यानि तारों के विस्फोट का पता लगाया है। यह किसी आम सुपरनोवा से 10 गुना अधिक शक्तिशाली बताया जा रहा है।
यह ना केवल सामान्य सुपरनोवा से 10 गुना अधिक शक्तिशाली है बल्कि उससे करीब 500 गुना ज्यादा चमकदार भी। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सुपरनोवा दो विशाल तारों के आपस में टकरा कर एक हो जाने के दौरान बना है। ब्रिटेन और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने नेचर एस्ट्रोनामी नाम के पीयर रिव्यू जर्नल में प्रकाशित अपने रिसर्च पेपर में इसका खुलासा किया है। ब्रिटेन की बर्मिंघम यूनिवर्सिटी और अमेरिका के हार्वर्ड-स्मिथसोनियन सेंटर फार एस्ट्रोफिजिक्स ने अपनी इस खोज को ैछ2016ंचे नाम दिया है। स्टडी के सहलेखक इडो बर्गर ने इसे इसके आकार और चमक के अलावा भी कई दूसरे मायनों में भी ‘‘बेहद खास“ बताया।
जैसे दो सूर्य आपस में टकराएं
असल में आमतौर पर ऐसे सुपरनोवा अपनी कुल ऊर्जा का केवल एक फीसदी दिखने वाले प्रकाश की रेंज में उत्सर्जित करते हैं। लेकिन ैछ2016ंचे इससे कहीं बड़ा हिस्सा इस दृश्य प्रकाश के रूप में निकालता है। वैज्ञानिकों ने इस सुपरनोवा में इतनी ऊर्जा होने का अनुमान लगाया है जो 200 ट्रिलियन ट्रिलियन गीगाटन टीएनटी के विस्फोट के बराबर होगी।
इस तरह की असामान्य ऊर्जा वाले सुपरनोवा के आसपास के बादल में हाइड्रोजन की बहुत अधिक मात्रा होने का पता चला है। रिसर्चरों ने इसका अर्थ यह निकाला है कि यह सुपरनोवा जरूर हमारे सूर्य जैसे दो तारों के आपस में मिल जाने के कारण बना होगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी घटना का जिक्र अब तक केवल सैद्धांतिक तौर पर होता आया था लेकिन पहली बार ऐसा कुछ होने का प्रमाण मिला है। उन्हें उम्मीद है कि आगे इससे मिलते जुलते और सुपरनोवा का भी पता चलेगा जिनसे यह जानने में मदद मिलेगी कि बहुत पहले हमारा ब्रह्मांड और उसका माहौल कैसा हुआ करता था।
क्या होता है सुपरनोवा
किसी बुजुर्ग तारे के टूटने से वहां जो ऊर्जा पैदा होती है, उसे ही सुपरनोवा कहते हैं। कई बार एक तारे से जितनी ऊर्जा निकलती है, वह हमारे सौरमंडल के सबसे मजबूत सदस्य सूर्य के पूरे जीवनकाल में निकलने वाली ऊर्जा से भी ज्यादा होती है। सुपरनोवा की ऊर्जा इतनी शक्तिशाली होती है कि उसके आगे हमारी धरती की आकाशगंगा कई हफ्तों तक फीकी पड़ सकती है।
आमतौर पर सुपरनोवा के निर्माण में व्हाइट ड्वार्फ की अहम भूमिका होती है जिसके एक चम्मच द्रव्य का वजन भी करीब 10 टन तक हो सकता है। ज्यादातर व्हाइट ड्वार्फ गर्म होते होते अचानक गायब हो जाते हैं। लेकिन कुछ गिने चुने व्हाइट ड्वार्फ दूसरे तारों से मिल कर सुपरनोवा का निर्माण करते हैं। लेकिन इस बार दिखे सुपरनोवा में व्हाइट ड्वार्फ तारे से नहीं टकराया बल्कि दो तारे ही आपस में टकराए हैं और अंतरिक्ष विज्ञान के आज तक के इतिहास का सबसे बड़ा सुपरनोवा पैदा कर गए हैं।
-उत्तम सिंह