हर साल 16 सितंबर को ‘‘वर्ल्ड ओजोन डे’’ मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मकसद लोगों को ओजोन परत के प्रति जागरूक करना है। ओजोन परत, ओजोन अणुओं की एक परत है जो 10 से 50 किलोमीटर के बीच के वायुमंडल में पाई जाती है। ओजोन परत पृथ्वी को सूर्य की हानिकारक अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाने का काम करती है। ओजोन परत के बिना जीवन संकट में पड़ सकता है, क्योंकि अल्ट्रावायलेट किरणें अगर सीधे धरती पर पहुंच जाए तो ये मनुष्य, पेड़-पौधों और जानवरों के लिए भी बेहद खतरनाक हो सकती हैं। ऐसे में ओजोन परत का संरक्षण बेहद महत्वपूर्ण है।
इंसानों को कई जानलेवा बीमारियों से बचाने वाली ओजोन परत के लिए कोरोना लाकडाउन राहत वाला समय कहा जा सकता था। विश्व में लाकडाउन का जो असर हुआ, उसका एक बड़ा फायदा ओजोन परत को भी मिला है।
एनसीबीआई जर्नल में प्रकाशित भारतीय वैज्ञानिकों की रिसर्च कहती है, दुनिया के कुछ देशों में लाकडाउन लगने के बाद प्रदूषण में 35 फीसदी की कमी और नाइट्रोजन आक्साइड में 60 फीसदी की गिरावट आई। इसी दौरान ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचाने वाले कार्बन का उत्सर्जन भी 1.5 से 2 फीसदी तक घटा और कार्बन डाई आक्साइड का स्तर भी कम हुआ। पिछले साल अप्रैल महीने की शुरुआत में ओजोन लेयर पर बना सबसे बड़ा छेद अपने आप ठीक होने की खबर भी आई। वैज्ञानिकों ने कहा कि आर्कटिक के ऊपर बना दस लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि वाला छेद बंद हो गया है।
ओजोन डे की थीम
इस साल वर्ल्ड ओजोन डे की थीम है ष्डवदजतमंस च्तवजवबवस . ज्ञममचपदह नेए वनत विवक ंदक अंबबपदमे बववसष्। धरती पर ओजोन परत के महत्व और पर्यावरण पर पड़ने वाले उसके असर के बारे में जानकारी के लिए हर साल ‘विश्व ओजोन दिवस’ मनाया जाता है। इस साल हम 36 साल के वैश्विक ओजोन परत संरक्षण का जश्न मना रहे हैं। इस थीम के जरिए लोगों को यह बताना है कि ओजोन पृथ्वी पर हमारे जीवन के लिए महत्वपूर्ण है और हमें अपनी भावी पीढ़ियों के लिए भी ओजोन परत की रक्षा करनी चाहिए।
कैसे बनती है ओजोन परत
आक्सीजन के तीन अणु मिलकर ओजोन बनाते हैं। ओजोन की परत धरती से 10 किलोमीटर की ऊंचाई पर शुरू हो जाती है और 50 किलोमीटर ऊपर तक मौजूद रहती है। यह सूर्य की घातक किरणों से धरती की रक्षा करती है। यह परत इंसानों में कैंसर पैदा करने वाली सूरज की पराबैंगनी किरणों को रोकती है।
ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले कण कैसे बनते हैं?
वातावरण में नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन जब सूर्य की किरणों के साथ प्रतिक्रिया करते हैं तो ओजोन प्रदूषक कणों का निर्माण होता है। वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलने वाली कार्बन-मोनो-ऑक्साइड व दूसरी गैसों की रासायनिक क्रिया भी ओजोन प्रदूषक कणों की मात्रा को बढ़ाती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, आठ घंटे के औसत में ओजोन प्रदूषक की मात्रा 100 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए।
कैसे हुई वर्ल्ड ओजोन डे की शुरुआत
16 सितंबर, 1987 को संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में ओजोन छिद्र से उत्पन्न चिंता के निवारण के लिए कनाडा के मांट्रियल शहर में दुनिया के 33 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसे ‘मांट्रियल प्रोटोकाल’ कहा जाता है। इसकी शुरुआत एक जनवरी, 1989 को हुई। इस प्रोटोकाल का लक्ष्य वर्ष 2050 तक ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों पर नियंत्रण करना था। प्रोटोकाल के मुताबिक, यह तय किया गया था कि ओजोन परत का विनाश करने वाले पदार्थ क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (सीएफसी) के उत्पादन और उपयोग को सीमित किया जाए, लेकिन इस पर बहुत ज्यादा अमल नहीं हुआ। जिससे इसके हानिकारक प्रभाव भी झेलने पड़े।
इसके बाद 19 दिसंबर, 1994 को संयुक्त राष्ट्र महासभा (न्छळ।) ने 16 सितंबर को ओजोन परत के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया। 16 सितंबर 1995 को पहली बार विश्व ओजोन दिवस मनाया गया। पृथ्वी की सतह से करीब 30 किलोमीटर की ऊंचाई पर ओजोन गैस की एक पतली परत पाई जाती है। इसे ही ओजोन लेयर या ओजोन परत कहते हैं। ओजोन की ये परत सूर्य से आने वाली अल्ट्रावायलेट रेडिएशन को सोख लेती है। ये रेडिएशन अगर धरती तक बिना किसी परत के सीधी पहुंच जाए तो ये मनुष्य के साथ पेड़-पौधों और जानवरों के लिए भी बेहद खतरनाक को सकती है।
क्या लाकडाउन के कारण भरा ओजोन लेयर का छेद?
पूरी दुनिया में कोरोना वायरस की वजह से लाकडाउन लगा दिया गया था। सड़कों पर ट्रैफिक नहीं था। फैक्ट्रियां भी बंद थी। मार्च से मई में अनलाक 1 तक देश में कोई प्रदूषण फैलाने वाले काम नहीं हो रहे थे। इससे एक बड़ा फायदा ये हुआ है कि इससे ओजोन लेयर में बना छेद भरने लगा था।
यूनिवर्सिटी आफ कोलोराडो बोल्डर के रिसर्चर्स ने पता लगाया था कि पृथ्वी के दक्षिणी हिस्से में स्थित अंटार्कटिका के ऊपर बने ओजोन लेयर का छेद अब भर रहा है। क्योंकि चीन की तरफ से जाने वाला प्रदूषण अब उधर नहीं जा रहा था।
बता दें, लाकडाउन से पहले प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा था। पृथ्वी के ऊपर चलने वाली जेट स्ट्रीम यानी ऐसी हवा जो कई देशों के ऊपर से गुजरती है। वह ओजोन लेयर में छेद की वजह से पृथ्वी के दक्षिणी हिस्से की तरफ जा रही थी। लाकडाउन के कारण वह वह पलट गई थी।
यूनिवर्सिटी की रिसर्चर अंतरा बैनर्जी ने बताया था कि यह एक अस्थाई बदलाव है। लेकिन अच्छा है। इस समय विश्व में हुए लाकडाउन की वजह से जेट स्ट्रीम सही दिशा में जा रही है। कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन भी कम है। इसलिए ओजोन का घाव भर रहा है।
इतिहास का सबसे बड़ा छेद, वैज्ञानिक भी हैरान
धरती के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के ऊपर ओजोन लेयर है। एक तरफ कोरोना वायरस की वजह से लगाए गए लाकडाउन ने दक्षिणी ध्रुव के ओजोन लेयर के छेद को कम किया। वहीं दूसरी तरफ उत्तरी ध्रुव के ओजोन लेयर पर एक बड़ा छेद देखा गया है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा छेद है। उत्तरी ध्रुव यानी नार्थ पोल यानी धरती का आर्कटिक वाला क्षेत्र। इस क्षेत्र के ऊपर एक ताकतवर पोलर वर्टेक्स बना हुआ है। नार्थ पोल के ऊपर बहुत ऊंचाई पर स्थित स्ट्रेटोस्फेयर पर बन रहे बादलों की वजह से ओजोन लेयर पतली हो रही है।
इसके बाद ओजोन लेयर के छेद को कम करने के पीछे मुख्यतः तीन सबसे बड़े कारण हैं ये बादल, क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन्स। अभी इन तीनों की मात्रा स्ट्रेटोस्फेयर में बढ़ गई है। इनकी वजह से स्ट्रेटोस्फेयर में जब सूरज की अल्ट्रवायलेट किरणें टकराती हैं तो उनसे क्लोरीन और ब्रोमीन के एटम निकलते हैं। यही एटम ओजोन लेयर को पतला कर रहे हैं। जिसके उसका छेद बड़ा होता जा रहा है।
नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसी स्थिति आमतौर पर दक्षिणी ध्रुव यानी साउथ पोल यानी अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन लेयर में देखने को मिलता है। लेकिन इस बार उत्तरी ध्रुव के ऊपर ओजोन लेयर में ऐसा देखने को मिल रहा है। आपको बता दें कि स्ट्रेटोस्फेयर की परत धरती के ऊपर 10 से लेकर 50 किलोमीटर तक होती है। इसी के बीच में रहती है ओजोन लेयर जो धरती पर मौजूद जीवन को सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है। बसंत ऋतु में दक्षिणी ध्रुव के ऊपर की ओजोन लेयर लगभग 70 फीसदी गायब हो जाती है। कुछ जगहों पर तो लेयर बचती ही नहीं। लेकिन उत्तरी ध्रुव पर ऐसा नहीं होता। यहां लेयर पतली होती आई है लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि इतना बड़ा छेद देखने को मिला है।
ओजोन लेयर का अध्ययन करने वाले कापर्निकस एटमास्फेयर मानिटरिंग सर्विस के निदेशक विनसेंट हेनरी पिउच ने कहा कि यह कम तापमान और सूर्य की किरणों के टकराव के बाद हुई रासायनिक प्रक्रिया का नतीजा है। विनसेंट हेनरी ने कहा कि हमें कोशिश करनी चाहिए कि प्रदूषण कम करें। लेकिन इस बार ओजोन में जो छेद हुआ है वो पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन का विषय है। हमें स्ट्रैटोस्फेयर में बढ़ रहे क्लोरीन और ब्रोमीन के स्तर को कम करना होगा। विनसेंट ने उम्मीद जताई है कि ये ओजोन लेयर में बना यह बड़ा छेद जल्द ही भरने लगेगा। ये मौसम के बदलाव के साथ ही संभव होगा। इस समय हमें 1987 में हुए मान्ट्रियल समझौते को अमल में लाना चाहिए। सबसे पहले चीन के उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को रोकना होगा।
उत्तम सिंह गहरवार
जीवन के लिए ओजोन : ओजोन परत संरक्षण के 36 वर्ष
