भगवान श्रीराम के नाम की वैज्ञानिकता

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पूरे इतिहास में यह सच है कि हर बार मानव जाति ने एक नए रूप में महारत हासिल की है और हमारे जीवन की गुणवत्ता को आगे बढ़ाने मे मदद की है। प्रकाश किरण की खोज भी इसी की एक कड़ी है। भारत में भगवान संकल्प एवं आध्यात्मिकता कितना अधिक वैज्ञानिक है, ये बात आज भी बहुत कम लोग जानते हैं। संस्कृत भाषा के एक एक शब्द हो या शब्दों से बुने अक्षरों के समूह हों, हर एक में जीवन उपयोगी कई वैज्ञानिक गुण छिपे हुए हैं। इसी प्रकार भगवान ‘श्रीराम’ का भी नाम है । इस अकेले एक नाम लेने से प्रभु श्रीराम जी के एवं हनुमान जी के जो गुणों के बारे में विद्वतजन वर्णन करते हैं, हमारे अंदर भी प्रफ़ुल्लित होने लगते हैं और हम मन से, वचन से, कर्म से नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर बढ़ने लगते हैं। जिसका विकास प्रकृति एवं दर्शन के अध्ययन से हुआ है ।

भागदौड़ एवं माया मोह से अत्यंत ग्रसित इस आधुनिक काल में ‘राम’ शब्द की वैज्ञानिकता एवं गुणों का वर्णन एक सराहनीय कार्य है एवं युवा पीढ़ी के लिए अनुकरणीय है । ऐसा आचरण ही हमारे भारत के संस्कृति, आध्यात्मिकता एवं सनातन कर्म कर्तव्यों को जीवित रखने में एवं युवा पीढ़ी को सही दिशा में मार्गदर्शन करने के लिए प्रेरक बन सकते हैं। भगवान श्रीराम के नाम में ढाई अक्षर है वैसे ही ओम में ढाई अक्षर है जो ब्रह्म का सूचक है, जो साउंड के माध्यम से सबसे शुद्ध व ब्रह्म का सूचक है, जो क्वांटम फिजिक्स से सजा है।

क्वांटम भौतिकी में हम बहुत ही छोटे स्तर पर परमाणुओं और अन्य छोटे कणों का अध्ययन करते हैं, जो हमें ब्रह्माण्ड को परमाणु स्तर पर समझने में मदद करता है। क्वांटम फिजिक्स एक ऐसा विषय है जिसे पढ़ना काफी कठिन है। यह दुनिया की सबसे कठिन पढ़ाई में से एक है। लेकिन इसमें हम ऐसे कणों की पढ़ाई करते हैं, जिन्हें देखना बहुत कठिन है। क्वांटम भौतिकी के एक कण में, एक समय से अधिक स्थान पर हो सकते हैं अर्थात यदि हम एक परमाणु कण जैसे छोटे होते हैं, तो हम एक समय में एक से अधिक स्थान पर जा सकते हैं।

क्वांटम फिजिक्स के ऐसे ही सिद्धांत की वजह से ही यह डाक्युमेंट काफी मुश्किल है। यहां तक कि मानव जाति के सबसे महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन को भी पार्टिकल्स के ऐसे ही सिद्धांत पर अमल करना बहुत मुश्किल था। यदि भगवान श्रीराम के नाम को इंग्लिश में लिखेंगे तो त्।ड (राम) होगा जिसमें त् का मतलब रे यानी किरण से है। । को फिजिक्स की भाषा में लिखें तो अंम्प्लीफाइड और ड से मेजेंडा कलर से है यानि amplification ray of magenta.

मैजेंटा (magenta) एक बैंगनी-लाल रंग है। आरजीबी (एडिटिव) और सीएमवाई (सबट्रैक्टिव) रंग माडल के रंगीन पहियों पर, यह लाल और नीले रंग के ठीक बीच में स्थित होता है। इस पर नासा के वैज्ञानिकों ने इस मजेंटा कलर के अम्लीफिकेशन में मजेंटा में अंकित द्विध्रुव के साथ गामा किरण आकाश की कलाकीर्ति की अवधारणा को अद्भुत पाया गया जो एक रहस्य है।

इस कलाकीर्ति की अवधारणा पूरे आकाश को गामा किरणों में मैजेंटा वृत्तों के साथ दिखती है जो उस दिशा में अनिश्चितता को दर्शाती है जहाँ से औसत से अधिक उच्च-ऊर्जा गामा किरणें आती हुई प्रतीत होती हैं। इस दृश्य में, हमारी आकाशगंगा का तल मानचित्र के मध्य में चलता है। वृत्त 68ः (आंतरिक) और इन गामा किरणों की उत्पत्ति के 95ः संभावना वाले क्षेत्रों को घेरते हैं।

नासा के फर्मी गामा-रे स्पेस टेलीस्कोप से 13 साल के डेटा का विश्लेषण करने वाले खगोलविदों को हमारी आकाशगंगा के बाहर एक अप्रत्याशित और अभी तक अस्पष्टीकृत सुविधा मिली है।

‘‘यह एक पूरी तरह से आकस्मिक खोज है,“ मैरीलैंड विश्वविद्यालय और ग्रीनबेल्ट में नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के एक ब्रह्मांड विज्ञानी अलेक्जेंडर काशिं्लस्की ने कहा, जिन्होंने न्यू आरलियन्स में अमेरिकन एस्ट्रोनामिकल सोसायटी की 243 वीं बैठक में शोध प्रस्तुत किया था। ‘‘जिस सिग्नल की हम तलाश कर रहे थे, उससे कहीं अधिक मजबूत सिग्नल हमें आकाश के एक अलग हिस्से में मिला।“

दिलचस्प बात यह है कि गामा-किरण संकेत एक समान दिशा में और लगभग समान परिमाण के साथ एक और अस्पष्ट विशेषता के रूप में पाया जाता है, जो अब तक खोजे गए कुछ सबसे ऊर्जावान ब्रह्मांडीय कणों द्वारा उत्पन्न होता है।

निष्कर्षों का वर्णन करने वाला पेपर बुधवार, 10 जनवरी को द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स में प्रकाशित हुआ था।

यह टीम ब्रह्मांड के सबसे पुराने प्रकाश सीएमबी (कास्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड) से सम्बंधित गामा-रे सुविधा की खोज कर रही थी। वैज्ञानिकों का कहना है कि सीएमबी की उत्पत्ति तब हुई जब गर्म, विस्तारित ब्रह्मांड पहले परमाणुओं को बनाने के लिए पर्याप्त ठंडा हो गया था, एक ऐसी घटना जिसने प्रकाश का विस्फोट जारी किया, जो पहली बार ब्रह्मांड में प्रवेश कर सका। पिछले 13 अरब वर्षों में अंतरिक्ष के बाद के विस्तार से विस्तारित, इस प्रकाश को पहली बार 1965 में पूरे आकाश में धुंधले माइक्रोवेव के रूप में पाया गया था।

1970 के दशक में, खगोलविदों को एहसास हुआ कि सीएमबी में एक तथाकथित द्विध्रुवीय संरचना थी, जिसे बाद में नासा के ब्व्ठम् (कास्मिक बैकग्राउंड एक्सप्लोरर) मिशन द्वारा उच्च परिशुद्धता पर मापा गया था। सीएमबी लगभग 0.12ः गर्म है, औसत से अधिक माइक्रोवेव के साथ, सिंह राशि की ओर और समान मात्रा में ठंडा, औसत से कम माइक्रोवेव के साथ, विपरीत दिशा में। सीएमबी के भीतर छोटे तापमान भिन्नताओं का अध्ययन करने के लिए, इस संकेत को हटाया जाना चाहिए।

खगोलशास्त्री आम तौर पर पैटर्न को सीएमबी के सापेक्ष लगभग 230 मील (370 किलोमीटर) प्रति सेकंड की गति से हमारे अपने सौर मंडल की गति के परिणामस्वरूप मानते हैं। 2017 के बाद से, अर्जेंटीना में पियरे आगर वेधशाला ने यूएचईसीआर के आगमन की दिशा में एक द्विध्रुव की सूचना दी है। विद्युत आवेशित होने के कारण, ब्रह्मांडीय किरणों को आकाशगंगा के चुंबकीय क्षेत्र द्वारा उनकी ऊर्जा के आधार पर अलग-अलग मात्रा में मोड़ दिया जाता है, लेकिन यूएचईसीआर द्विध्रुव एक आकाश स्थान में शिखर पर होता है, जैसा कि काशलिंस्की की टीम गामा किरणों में पाती है और दोनों में आश्चर्यजनक रूप से समान परिमाण हैं-एक दिशा से आने वाली औसत से लगभग 7ः अधिक गामा किरणें या कण और विपरीत दिशा से आने वाली छोटी मात्रा।

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह संभव है कि दोनों घटनाएँ जुड़ी हुई हों-कि अभी तक अज्ञात स्रोत गामा किरणों और अल्ट्राहाई-ऊर्जा कणों दोनों का उत्पादन कर रहे हैं। इस ब्रह्मांडीय पहेली को हल करने के लिए, खगोलविदों को या तो इन रहस्यमय स्रोतों का पता लगाना चाहिए या दोनों विशेषताओं के लिए वैकल्पिक शोध होना चाहिए।

यह श्रीराम के नाम की गति किसी भी खगोल भौतिकी स्रोत से आने वाले प्रकाश में एक द्विध्रुवीय संकेत को जन्म देती है, लेकिन अब तक रहस्य है। प्रकाश के अन्य रूपों में पैटर्न की तलाश कर, खगोलविद इस विचार की पुष्टि या चुनौती हैं कि द्विध्रुव पूरी तरह से हमारे सौर मंडल की गति के कारण है जो, एक ब्रह्मांडीय पहेली है । अतः भगवान राम का शब्द वैज्ञानिक रूप से ब्रह्म का ही रूप है जिसे जानना यानि गाड पार्टिकल की तरह है। कुछ वैज्ञानिको ने तो इस किरण की विशाल शक्ति और चमक को एक ईश्वर का सोर्स माना है। अतः प्रभु राम की कृपा की किरणों से सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है.

स संजय गोस्वामी
यमुना जी/13, अणुशक्तिनगर,
मुंबई -94