लाकडाउन से सुधरा प्रकृति पर्यावरण

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कोरोना वायरस इंसानों के लिए जितना भयावह बना, वहीं धरती की सेहत सुधारने में सबसे बेहतर साबित हुआ। लाकडाउन में दुनिया के लोग अपने घरों में दुबके रहे और पृथ्वी पर छाए प्रदूषण के बाद छंट गए। विकासशील देशों में आवागमन थम गया, कारखाने बंद हो गए। ऐसे में फैलते प्रदूषण को विराम मिला और कुदरत अपने आप साफ-सुथरी हो गई।
निर्मल हुई प्रकृति
लाकडाउन जारी है, लोग घरों में कैद हैं, तब हवा अपने आप साफ-सुथरी हो गई। अब दूर-दूर तक साफ नजर आने लगा है। नदियां खुद निर्मल हो गईं। पशु-पक्षी तो गांव-शहरों में बेखौफ विचरण कर रहे हैं। सब कुछ ठीक-ठाक होता नजर आ रहा है। धरती पर कहॉं, केसा नजारा है प्रकृति का, इसे नासा की रिपोर्ट से देखें, आखिर कहॉं कैसा बदलाव हुआ है तो कैसे?
उद्योगों से निकलने वाली जहरीली गैस नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी आई। वहीं कारें नहीं चलीं, बिजली संयंत्रों में उत्पादन कम करना पड़ा। नासा की रिपोर्ट जारी करते हुए उम्मीद जताई, ऐसा परिणाम दुनिया में कम से कम एक दशक के प्रयासों से होता, जो केवल 2 माह के भीतर प्रदूषण नियंत्रित हो गया।
शहरी प्रदूषण खत्म
विश्व में आर्थिक मंदी कोरोना वायरस के प्रकोप से आई। लेकिन ऐसे माहौल में पर्यावरण में आश्चर्यजनक सुधार हुए हैं। नासा ने अपने जारी चित्रों में नाइट्रोजन ऑक्साइड के गिरते स्तर को दिखाया है। जहॉं नासा ने क्यू एयर की रिपोर्ट का भी जिक्र किया है, जिसके मुताबिक हॉटन और कारगर को दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाता था। यह साल 2005 और 2019 के बीच के दौरान नाइट्रोजन डाईऑक्साइड की दर औसतन 30 प्रतिशत कम थी।
2008 में ओलंपिक के दौरान बीजिंग के आसपास भी प्रदूषण में भारी गिरावट दर्ज की गई थी, लेकिन इसका प्रभाव ज्यादातर स्थानीय इलाके में ही था। ओलंपिक खत्म होने के बाद प्रदूषण का स्तर फिर से बढ़ गया।
प्रदूषित हवा में सुधार
वायु प्रदूषण के मामले में चीन हमेशा सुर्खियों में रहता है। बेतहासा औद्योगिक गतिविधियों के चलते चीन में हर साल दस लाख से भी अधिक लोग प्रदूषित हवा के शिकार बनते, अपनी जान गंवा बैठते हैं। यही नहीं प्रदूषण के कारण चीन की अर्थव्यवस्था को 267 बिलियन युवान (लगभग 26700 करोड़) का नुकसान उठाना पड़ता है।
चीन में 60 हजार से अधिक छोटे-बड़े उद्योग हैं और 340 बिलियन वाहन दौड़ते हैं, जिनमें 240 मिलियन कार हैं। 6 हजार से अधिक एयरक्राफ्ट हैं। ऐसे ही प्रदूषण फैलाने वाले कई साधन हैं, जिसकी वजह से चीन का आसमान काला नजर आता रहा। लेकिन अब चीन का आसमान नीला, साफ-सुथरा हो गया है।
नासा ने जो तस्वीरें भेजी हैं, उसमें अब अंतरिक्ष से चीन का आसमान साफ नजर आ रहा है। अब चीन का आसमान नीला, साफ-सुथरा हो गया है।
नासा ने जो तस्वीरें भेजी हैं, उसमें अब अंतरिक्ष से चीन का आसमान साफ नजर आ रहा है। एक शोध में पता चला कि बीते एक पखवाड़े में चीन के कार्बन उत्सर्जन में करीब 100 मिलियन टन की कमी आई है। जबकि चीन ने प्रदूषण से निपटने के लिए काफी इंतजाम किए थे। हवा को साफ करने वाला विश्व का सबसे बड़ा एयर प्यूरीफायर टॉवर लगाया था। प्लास्टिक को देश में प्रतिबंधित कर दिया था। उद्योगों में पर्यावरण के मुद्दे पर खास ध्यान दिया जा रहा था, फिर भी चीन की धरती क्या उसका आसमान भी धुंध में खोता नजर आ रहा था। नासा द्वारा जारी तस्वीरों में जनवरी से फरवरी माह के बीच नाइट्रोजन ऑक्साइड का स्तर गिरता हुआ दिखाई दिया।
भारत के महानगर
भारत के वे महानगर, जहॉं प्रदूषण बड़ा खतरा बन चुका था, वहॉं अब जनता कर्फ्यू और लाकडाउन के बाद प्रदूषण स्तर 25 फीसदी कम हुआ है। दिल्ली, मुॅंबई, अहमदाबाद और पुणे में हवा की गुणवत्ता बेहतर हो गई। देश के महानगर जो प्रदूषण के नाम पर बदनाम थे, सभी अब बेहतर वायु गुणवत्ता वाले हो गए।
साफ मौसम का असर सभी जगह नजर आते दिख पड़ा है। पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के लोग 5 मई की सुबह एक खूबसूरत नजारे से रूबरू हुए। जहॉं के लोग पहली बार देख रहे थे दुनिया की तीसरी सबसे ऊॅंची चोटी कंचनजंघा को। सिलीगुड़ी के लोग इस खूबसूरत नजारे को शेयर कर रहे हैं।
विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में भारत के दस शहर शामिल हैं। इसमें अकेले उत्तरप्रदेश के सात शहर लखनऊ, वाराणसी, कानपुर, गाजियाबाद, आगरा, नोएडा आदि हैं। कोरोना संक्रमण रोकने के लिए हुए लाकडाउन ने इन शहरों को साफ-सुथरा बना दिया। सड़कों पर दौड़ते वाहन बंद हुए, मानक के विपरीत चल रहे तमाम कारखाने बंद हो गए। नतीजतन लखनऊ का एक्यू आई 78 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर हो गया था, जो अप्रैल माह में सबसे कम है। नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी प्रदूषणकारी गैसों में गिरावट आई। मीथेन उत्सर्जन में 35 फीसदी कमी आई। कार्बन डाईऑक्साइड में 5 से 10 फीसदी कमी हुई।
नजारा हिमालय का
हवा स्वच्छ हो चली है, तो प्रकृति के खूबसूरत नजारे सैकड़ों किलोमीटर दूर से भी नजर आने लगे हैं। सिलीगुड़ी के बाद रूड़की से हिमालय के गंगोत्री रेंज के पहाड़ दिखाई देने लगे। बिहार के सीतामढ़ी जिले से हिमालय पर्वत श्रृंखला की मनोरम छटा दिख पड़ रही है।
बर्फ से ढकी हिमालय की पर्वत श्रृंखला नजर आई तो लोग हैरत में पड़ गए। रूड़की से गंगोत्री 312 किलोमीटर पर है। विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण कम होने और बारिश के चलते ऐसा दृश्य देखना संभव हो सका है।
पृथ्वी पर कंपन कम
लाकडाउन के बाद धरती पर शोर-शराबा कम हो गया। सड़कें खाली, धुआं उगलते कारखाने बंद, इसके सकारात्मक परिणाम भी नजर आए। धरती में पहले बहुत कंपन होता था, लेकिन इन दिनों धरती पहले से कहीं अधिक स्थित हो गई है। वैज्ञानिक कहते हैं, अब धरती उतनी नहीं कांप रही है, जितनी लाकडाउन के पहले कांपती थी।
धरती पर दिन-रात होने वाली गतिविधियों में विराम लगने के बाद काफी प्राकृतिक बदलाव नजर आए। पूरी दुनिया इस समय ठहरी हुई है। भूकंप वैज्ञानिकों का कहना है कि इस समय दुनिया भर में कम हुए ध्वनि प्रदूषण के चलते, वे बहुत छोटे-छोटे भूकंप को भी नापने में सफल हुए, जबकि इसके पहले बड़ी मुश्किल से संभव हो पाता था।
ब्रिटिश जिओलाजिकल सर्वे ने दुनिया के कुछ देशों के भूगर्भ वैज्ञानिकों के साथ मिलकर अहम जानकारी जुटाई है। लाकडाउन की वजह से हमारी धरती का कांपन कम हो गया। लंदन, पेरिस, लास एंजिलिस, बेल्जियम और न्यूजीलैंड में थॉमस लेकाक के यंत्रों और तकनीक से इसकी जांच की गई। सभी जगह से एक सी रीडिंग मिली।
बेल्जियम के रॉयल आब्जर्वेटरी के भूगर्भ वैज्ञानिक थॉमस लेकॉक ने एक ऐसा यंत्र विकसित किया है, जो धरती की कंपन और आवाजों में हो रहे बदलाव का अध्ययन करता है। साथ ही दोनों के बीच के अंतर को दिखाता है। इस समय पूरी दुनिया में धरती की कंपकपी नापने के लिए थामस लेकॉक की ही तकनीक का उपयोग किया जा रहा है।
धरती पर कंपन कम होने के कारण वैज्ञानिकों को पृथ्वी की सतह पर प्राकृतिक गतिविधि का बेहतर अध्ययन करने का अच्छा अवसर मिला है। भूवैज्ञानिक ज्वालामुखी के व्यवहार की भविष्यवाणी करने और भूकम्प के उपकेन्द्र के स्थान को त्रिभुजित करने के लिए जिम्मेदार समुद्र की लहरों के प्रभाव का उपयोग करने वालों सहित अन्य शोध आसानी से कर रहे हैं। शोधकर्ता मिनटों के परिवर्तनों का पता लगाने और अधिक सटीक डेटा इकट्ठा करने में सक्षम होंगे। यह समय भूवैज्ञानिक शोध के लिए वरदान साबित हो रहा है।
रविन्द्र गिन्नौरे