शोध पर न्यूनतम खर्च: कैसे होगा ‘जय अनुसंधान’?

You are currently viewing शोध पर न्यूनतम खर्च: कैसे होगा ‘जय अनुसंधान’?

भारत का क्षेत्रफल करीब 33 लाख वर्ग किमी है और इजरायल का एरिया महज 22 हजार वर्ग किमी। दोनों में एरिया के हिसाब से देखा जाए तो भारत इजरायल से 150 गुना ज्यादा बड़ा है। आबादी के लिहाज से भी इजरायल हमसे काफी पीछे है। परन्तु, इजरायल वैज्ञानिक पैदा करने, नई खोज करने समेत अनुसंधान और विकास में खर्च करने के मामले में हमसे 10 गुना आगे है। हम तो सकल घरेलू विकास दर यानी कुल जीडीपी का महज 0.65 फीसदी ही खर्च करते हैं, जबकि इजरायल इस मामले में दुनिया में सबसे ज्यादा यानी 5.67 फीसदी खर्च करता है।

भारत की स्थिति इस मामले में दक्षिण कोरिया, जापान जैसे छोटे देशों से भी काफी पीछे है। तो सवाल यह है कि क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस दावे में कितनी सच्चाई है, जो उन्होंने हाल ही में कहा था कि वैज्ञानिकों को रिसर्च के लिए रिसोर्स की कोई कमी नहीं होने देंगे। क्या महज 65 हजार करोड़ रुपए के बजट से देश में आला दर्जे की रिसर्च हो पाएगी।

शिक्षण संस्थानों को नोटिस
अगस्त में केंद्र सरकार ने देश के 6 बड़े शिक्षण संस्थानों को रिसर्च ग्रांट पर 220 करोड़ रुपए का टैक्स नोटिस भी भेजा था। इनमें आईआईटी, दिल्ली और पंजाब यूनिवर्सिटी भी शामिल थीं। जीएसटी काउंसिल की बैठक में इस पर चर्चा हुई कि क्या रिसर्च ग्रांट पर जीएसटी लगना सही है।

ज्यादातर खर्च रक्षा और परमाणु ऊर्जा पर
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अनुसंधान एवं विकास विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 2020-21 में अनुसंधान एवं विकास में भारत का कुल निवेश 17.2 बिलियन डालर यानी करीब 1.42 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया। इस रकम में से करीब 54 प्रतिशत (9.4 बिलियन यूएस डालर) सरकारी क्षेत्र को दिए गए, जो मुख्य रूप से चार प्रमुख वैज्ञानिक एजेंसियां इस्तेमाल करती हैं। जिनमें रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन यानी क्त्क्व् (30.7ः), अंतरिक्ष विभाग (18.4ः), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी प्ब्।त् (12.4ः) और परमाणु ऊर्जा विभाग (11.4ः)।

बजट कम फिर जय कैसे
भारत का रिसर्च और डेवलपमेंट पर खर्च बीते वर्षों से काफी कम रहा है। 2020-21 में यह खर्च 1,27,380 करोड़ रुपए रहा था। वहीं 2010-11 में यह करीब 60 हजार करोड़ रुपए था। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने 2019 में देश में रिसर्च एवं विकास पर खर्च जीडीपी का कम से कम 2 फीसदी किए जाने की सलाह दी थी।

राज्यों को रिसर्च में रूचि नहीं
आरबीआई की ‘राज्य वित्तः 2023-24’ के बजट पर एक अध्ययन के अनुसार, ज्यादातर राज्यों की प्राथमिकता में रिसर्च नहीं है। इस स्टडी में 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से केवल 10 ने ही इसमें इंटरेस्ट दिखाया। ज्यादातर राज्यों में अनुसंधान पर सालाना खर्च भी काफी कम था। यानी स्टेट जीडीपी का यह महज 0.09ः ही था। इसमें राजस्थान आगे रहा था।

2047 तक जीडीपी का 3 फीसदी खर्च करना होगा
देश के कई विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को हर साल अपनी कुल जीडीपी का कम से कम 1 फीसदी तो रिसर्च और डेवलपमेंट पर खर्च करना चाहिए। 2047 तक यह आंकड़ा 3 फीसदी तक पहुंचना चाहिए। इसरो के पूर्व साइंटिस्ट विनोद कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि भारत को अगर विज्ञान और अनुसंधान के क्षेत्र में ग्लोबल लीडर के देशों में आना है तो उसे जीडीपी का 3 फीसदी खर्च करना ही चाहिए। अभी अंतरिक्ष, खेती और डिजिटल के क्षेत्र में अनुसंधान पर ज्यादा काम करने की जरूरत है, जिसके लिए सरकार को खूब बजट देना चाहिए।

भारत में 10 लाख की आबादी में बस 265 रिसर्चर
आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर 10 लाख की आबादी पर महज 265 रिसर्चर ही हैं, जो कि अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों के मुकाबले काफी कम है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के 2022 के आंकड़ों के अनुसार, पीएचडी कराने के मामले में अमेरिका और चीन के बाद भारत (40,813) तीसरे नंबर पर है। विनोद कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि ये आंकड़े बताते हैं कि हालात बहुत बेहतर नहीं है। हमें इस दिशा में बहुत कुछ करने की जरूरत है।

भारत की ब्रिक्स देशों में भी इस मामले में स्थिति ठीक नहीं है। 2020-21 के अनुसार, भारत जहां इस मामले में जीडीपी का कुल 0.64 फीसदी खर्च कर रहा था। वहीं, ब्राजील 1.3 फीसदी, रूस 1.1 फीसदी, चीन 2.4 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका 0.60 फीसदी खर्च कर रहा था।

पेटेंट में भारत काफी पीछे
नई-नई खोजों और आविष्कार को पेटेंट कराने के मामले में भी भारत काफी पीछे है। 2022 में भारत इस मामले में दुनिया में छठे पायदान पर था। भारत के 30,490 पेटेंट को ही 2022 में मंजूरी मिली थी। वहीं, अमेरिका में इस दौरान 3.23 लाख, चीन में करीब 8 लाख, जापान में 2 लाख, दक्षिण कोरिया में 1.35 लाख पेटेंट कराए गए थे।

शोध प्रकाशन की स्थिति
शोध प्रकाशन के मामले में भारत में 3 लाख से ज्यादा रिसर्च और स्टडी प्रकाशित कराई गई थी। वहीं अमेरिका में 15 लाख से ज्यादा ऐसे रिसर्च छपे थे। वहीं, चीन में 9.8 लाख रिसर्च छपी। दक्षिण कोरिया में 1 लाख से ज्यादा रिसर्च पेपर छापे गए। ब्रिटेन में 2.8 लाख रिसर्च छपी। इस मामले में अमेरिका और चीन के बाद भारत की तीसरी रैंक थी। भारत में रिसर्च तो खूब होती है, मगर उनमें से ज्यादातर बस नाम की होती है। काम की रिसर्च कुछ ही होती हैं। किसी को प्रोफेसर बनना है तो किसी को कुछ और। अनुसंधान को लेकर काम कम होता है।

सबसे ज्यादा रिसर्च किन क्षेत्रों में
साइंस एंड इंजीनियरिंग इंडीकेटर्स, 2022 के अनुसार, भारत में सबसे ज्यादा रिसर्च पेपर कंप्यूटर और इन्फार्मेशन साइंस के क्षेत्र में (18 फीसदी) छपे। इसके बाद इंजीनियरिंग (17 फीसदी), हेल्थ साइंस (16 फीसदी), बायोलाजिकल और बायोमेडिकल साइंसेज (12 फीसदी), फिजिक्स (11 फीसदी) और केमिस्ट्री (08 फीसदी) का नंबर आता है।

रिसर्च में महिलाएं
रिसर्च और डेवलपमेंट के मामले में भारत में 1 अप्रैल, 2021 तक 5.55 लाख कर्मचारी रिसर्च और डेवलपमेंट के क्षेत्र में काम कर रहे थे।
इनमें से 3.62 लाख कर्मचारी सीधे तौर पर रिसर्च के क्षेत्र में कार्यरत थे। इनमें से 67,441 महिलाएं थीं। महिलाओं की संख्या बीते 20 साल में दोगुनी हुई है। 2001 में जहां इस क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 13 फीसदी थी, वहीं 2020 तक आते-आते यह 25 फीसदी हो गई। नंबर के मामले में 848 महिलाएं पिं्रसिपल इन्वेस्टिगेटर्स थीं, जबकि 232 महिलाएं सहायक में थीं।

स विकास ठाकुर