धरती पर सनातन संस्कृति का महाकुंभ प्रयागराज में

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‘अमृत’ जब धरती पर छलक पड़ा था…! एक पौराणिक घटना ‘समुद्र मंथन’! ‘कुंभ’ से अमृत का छलकना…! ‘मेला’ से मानव का समागम…! यही कुंभ मेला सदियों से मनाया जा रहा है।
प्रयागराज कुंभ
पृथ्वी का विशालतम मानव समागम का कुंभ जहां स्नान, दान और दर्शन से मानव को अनंत चक्र से मुक्ति मिल जाती है। हर बारह बरस में मानव मोक्ष के द्वार, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार खुलते हैं। 2025 में बृहस्पति मेष राशि में और सूर्य, चन्द्र मकर राशि पर आएंगे तब प्रयागराज में कुंभ का योग बनेगा। प्रयागराज के गंगा यमुना और सरस्वती नदियों के संगम तट पर कुंभ मेला आयोजित होगा।

कुंभ में स्नान, दान
कुंभ एक तरह से कोई संगठित आयोजन नहीं बल्कि एक आंतरिक, प्राचीन और निरंतर घटना है। एक रहस्यमय आयोजन जिसमें लाखों लोग शांति पूर्ण रूप से शामिल होते हैं। भारतीय उपमहाद्वीप का धार्मिक, सांस्कृतिक, पौराणिक और आर्थिक महत्व का विशालतम आयोजन है। धार्मिक तीर्थ करते हुए स्नान और दान जीवन और मृत्यु के साथ मोक्ष को साकार करता है। वहीं कुंभ मेला ‘पवित्र’ नदी के तट पर आयोजित किये जाते हैं, जो विशेष मुहूर्त में स्नान के अनुष्ठानों से गहराई से जुड़े हैं।
कुंभ मेला पूर्व निर्धारित, अद्वितीय और शुभ खगोलीय घटना के दौरान होते हैं, जिसमें विभिन्न नक्षत्रों में सूर्य, चंद्रमा या बृहस्पति शामिल होते हैं। इनके प्रभाव को समझने के लिए, हमें मूल तत्वों के रूप में समझना शुरू करना होगा। पंच महाभूतों में से जल मानव जाति के लिए लगभग उतने ही समय से गहरा, सहज महत्व रखता है, जितने समय से मानवता का अस्तित्व रहा है। जल, आत्मा का तत्व और जीवन देने वाला ग्रह और शरीर दोनों का सबसे बड़ा घटक है। वैदिक काल से ही भारत में जल के महत्व को शाब्दिक रूप से दर्ज किया गया है। ऋग्वेद में इसकी स्तुति करते हुए कहा गया है,

‘‘या आपो दिव्या वा स्त्रवंति खनित्रिमा उत वा याः स्वयंजाः । समुद्रार्थ याः शुचयः पावकास्ता आपो देवीरिह मामवन्तु।।“
बादल और बूँद, नहरें और नदियाँ और समुद्र, सभी एक ही के विस्तार हैं। यह दिव्य गुणों वाला जल हमारी रक्षा करे।
भारत के चार स्थानों पर गिरने वाले अमरता के अमृत की कथा को देखें, जहां कुंभ मेला मनाया जाता है। पवित्र गंगा या संगम में स्नान के लाभकारी गुणों में विश्वास और कुंभ के शक्तिशाली आकर्षण को आत्मसात करने हर कोई लालायित हो उठता है।

अमृत के लिए संघर्ष
पौराणिक आख्यान के अनुसार महर्षि दुर्वासा के श्राप से देवराज इंद्र और देवता श्रीहीन हो गए। तब समुद्र मंथन के लिए देव दानव एक साथ जुट गये। मंथन से निकले अमृत कलश को दैत्यों से बचाने के लिए देवराज इंद्र के पुत्र जयंत उसे लेकर भागे। बृहस्पति, चंद्रमा और सूर्य ने उसकी सहायता की। अमृत कलश को लेकर भागते हुए जयंत ने हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में कलश को रखा जहां कलश से अमृत की बूंदें छलक पड़ी। अमृत कलश के लिए बारह दिनों तक देव-दानवों के बीच संघर्ष चलते रहा और यही अवधि कुंभ मेला के लिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार निर्धारित हुई।

तीर्थराज प्रयाग
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार महाकुंभ मेला बारह साल में मनाया जाता है। बारह वर्षों के दौरान चार बार कर तीर्थ पर कुंभ आयोजित होता है। पहला उत्तराखंड की गंगा नदी पर हरिद्वार में, दूसरा मध्यप्रदेश की शिप्रा नदी पर उज्जैन में, तीसरा महाराष्ट्र की गोदावरी नदी पर नासिक में और चैथा उत्तर प्रदेश की गंगा यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर आयोजित होता है। अभी प्रयागराज में कुंभ मेला 2025 में आयोजित हो रहा है।

तीर्थराज प्रयाग पवित्र स्थलों में सबसे ऊपर माना जाता है। पवित्रता का प्रतीक कही गई गंगा नदी जिसे पुण्यदायिनी कहा जाता है। पुण्य और धार्मिकता की दाता गंगा भक्ति की प्रतीकात्मक यमुना नदी से मिलती है जिनसे अदृश्य स्वरूप वाली ज्ञान की प्रतीक सरस्वती मिलती है। तीर्थराज प्रयाग की त्रिवेणी के कुंभ को शक्तिशाली कहा गया है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों का शुभ फल मानव जीवन पर पड़ता है। बृहस्पति जब विभिन्न ग्रहों के अशुभ फलों को नष्ट कर पृथ्वी पर शुभ प्रभाव का विस्तार करते हैं, तब शुभ स्थानों में अमृत पद कुंभ योग अनुष्ठित होता है और इस शुभ घड़ी में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। प्रयागराज में कुंभ मेला बृहस्पति मेष राशि में और सूर्य चंद्र मकर राशि में माघ मास की अमावस्या तिथि पर आते हैं, यही कुंभ का योग बनता है।

प्रयागराज कुंभ- मेला देखा। चीनी यात्री सुयेनच्यांग ने
सातवीं सदी में भारत आये चीनी यात्री सुयेनच्यांग ने प्रयागराज के कुंभ मेला का आँखों देखा हाल का वर्णन करते हुए कहा है, ‘‘…गंगा-यमुना के संगम तट पर बहुत दूर तक जो अनुमानतः दस ‘ली’ से ऊपर होगा, रेत पड़ी हुई थी। यह रेत स्वच्छ बालू की है और सर्वत्र समतल है। इसे यहाँ के लोग महादान क्षेत्र कहते हैं। प्राचीनकाल से बड़े बड़े राजे-महाराजे, सेठ-साहूकार यहाँ पर दान करते चले आये हैं। उस समय भी राजा श्रीहर्ष शिलादित्य प्रति पाँचवें वर्ष यहाँ आता था और बड़ा दान-पुण्य करता था। उस समय यहाँ बड़ा मेला लगता था और भारतवर्ष के सब बड़े-बड़े राजा और गणमान्य मेले में आते थे। भारतवर्ष भर के साधु- महात्मा, श्रमण- ब्राह्मण आदि इकट्ठे हो जाते थे। राजा पहले पूजा करता था, फिर यथाक्रम पहले यहाँ के श्रमणों का फिर आये हुए श्रमणों और भिक्षुओं को, फिर विद्वानों और पंडितों को, फिर यहाँ के ब्राह्मणों और पंडों को और अंत में विधवाओं, अनाथों, लंगड़े लूले, निर्धन और भिखमंगों को भोजन, वस्त्र, धन, रत्न प्रदान करता था। इस प्रकार वह नित्य दान-पुण्य करके अपने कोष के रूपये खर्च कर देता था और जब कुछ भी नहीं रह जाता था तो अपना मुकुट-वस्त्राभूषण और वाहनादि सब कुछ लुटा देता था। जब उसके पास एक कौड़ी भी नहीं रह जाती थी तब वह बड़े आनंद से कहता था कि ‘‘आज मैने अपने सारे कोष और धन को अक्षय कोष में रख दिया, वहाँ यह घटने का नहीं है।“ फिर अन्य देश के राजा लोग भी दान करते थे।

दान क्षेत्र के आगे पूर्व दिशा में गंगा यमुना के संगम पर सहस्त्रों की भीड़ लगी रहती है। कितने तो स्नान करके चले जाते हैं, कितने यहाँ कल्पवास करते हैं और मरने के लिए यहाँ आकर रहते हैं। उस देश में लोगों का विश्वास है कि यहाँ आकर एक समय भोजन कर स्नान करते हुए जो कल्पवास करता प्राण त्यागता है, वह मरने पर स्वर्ग को प्राप्त होता है। यहाँ स्नान करने से जन्म-जन्म के पाप क्षय हो जाते हैं। दूर-दूर से लोग यहाँ स्नान करने आते हैं।

कुंभ मेला सनातन परंपरा की प्राचीन धार्मिक सर्वोच्च तीर्थ यात्रा पवित्र परंपरा को लिए स्नान कर ज्ञान की पिपासा लिए मानव संत समागम करते हैं। मोक्ष की आस दिए सर्वस्व दान करते जहां मंत्रोच्चार के बीच अनहत नाद सी ध्वनित होती है। ऐसे सुंदरतम दृश्य को निहारने अपार जनसमूह आ जुटता है कुंभ के मेला में…!

प्रयागराज में महाकुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी 2025 से होगी और इसका समापन 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि पर होगा।

कुंभ आयोजन का चक्र
ज्योतिष गणना के क्रम में कुम्भ का आयोजन चार प्रकार से माना गया है-
बृहस्पति के कुम्भ राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रविष्ट होने पर हरिद्वार में गंगा-तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
बृहस्पति के मेष राशि चक्र में प्रविष्ट होने तथा सूर्य और चन्द्र के मकर राशि में आने पर प्रयागराज में त्रिवेणी संगम तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।

बृहस्पति एवं सूर्य के सिंह राशि में प्रविष्ट होने पर नासिक में गोदावरी तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।
बृहस्पति के सिंह राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रविष्ट होने पर उज्जैन में शिप्रा तट पर कुम्भ पर्व का आयोजन होता है।

शाही स्नान की तिथियां
13 जनवरी: महाकुंभ 2025 का पहला शाही स्नान होगा। इस दिन पौष पूर्णिमा भी है। 14 जनवरी: मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर भी शाही स्नान का भव्य आयोजन किया जाएगा। 29 जनवरी: इस दिन मौनी अमावस्या है। इस दिन भी शाही स्नान होगा। 3 फरवरी: बसंत पंचमी के मौके पर शाही स्नान है। 12 फरवरी: माघ पूर्णिमा के शुभ मौके पर भी शाही स्नान किया जाएगा। 26 फरवरी: महाशिवरात्रि के मौके पर भी शाही स्नान किया जाएगा और यह अंतिम शाही स्नान होगा और इसी दिन कुंभ का समापन भी होगा।

कैसे पहुॅंचे
हवाई मार्ग से:- प्रयागराज कुंभ मेले के लिए सबसे तेज़ और सबसे सुविधाजनक यात्रा विकल्प की तलाश करने वालों के लिए, प्रयागराज के लिए उड़ान भरना एक बढ़िया विकल्प है। प्रयागराज हवाई अड्डा (बमरौली हवाई अड्डा), जिसे इलाहाबाद हवाई अड्डे के रूप में भी जाना जाता है, भारत भर के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। प्रयागराज सीधे प्रमुख भारतीय शहरों से जुड़ा हुआ है जैसे, दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, कोलकाता, लखनऊ। इंडिगो, एयर इंडिया और स्पाइसजेट जैसी कई घरेलू एयरलाइंस प्रयागराज के लिए नियमित उड़ानें प्रदान करती हैं।

अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों के लिए, वाराणसी में लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा या लखनऊ का चैधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा सबसे नज़दीकी विकल्प हैं। दोनों हवाई अड्डे दुनिया भर के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं। वहाँ से, आप आसानी से घरेलू उड़ान ले सकते हैं या प्रयागराज पहुँचने के लिए ट्रेन या बस जैसे अन्य परिवहन विकल्पों का विकल्प चुन सकते हैं।

ट्रेन सेः- ट्रेन यात्रा प्रयागराज पहुँचने के सबसे लोकप्रिय और किफ़ायती तरीकों में से एक है, खास तौर पर कुंभ मेले के दौरान। प्रयागराज जंक्शन (च्त्ल्श्र), जिसे पहले इलाहाबाद जंक्शन के नाम से जाना जाता था, एक प्रमुख रेलवे हब है जो प्रयागराज को भारत के लगभग सभी हिस्सों से जोड़ता है। भारतीय रेलवे आमतौर पर तीर्थयात्रियों की आमद को ध्यान में रखते हुए कुंभ मेले के दौरान प्रयागराज में विशेष ट्रेनें भी चलाता है। प्रयागराज जंक्शन पर पहुँच जाते हैं, तो आपको अपने आवास या सीधे कुंभ मेला स्थल तक ले जाने के लिए आटो-रिक्शा, बस और टैक्सी सहित कई परिवहन विकल्प उपलब्ध होते हैं।

सड़क मार्ग सेः- यदि आप अधिक लचीले यात्रा विकल्प को पसंद करते हैं, तो सड़क मार्ग से प्रयागराज तक पहुॅंचना एक अच्छा विकल्प है। शहर राजमार्गों के व्यापक नेटवर्क के माध्यम से पड़ोसी क्षेत्रों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है, जिससे कार या बस द्वारा यहाँ पहुँचा जा सकता है। दिल्ली से प्रयागराजः छभ्19 के माध्यम से लगभग 700 किमी दूर है। लखनऊ से प्रयागराजः छभ् 30 के माध्यम से लगभग 200 किमी की दूरी पर है। वाराणसी से प्रयागराजः छभ्19 के माध्यम से लगभग 120 किमी पर स्थित है। कानपुर से प्रयागराजः लगभग 200 किमी पर स्थित है।

बस सेवाएँः-सरकारी और निजी दोनों बसें प्रयागराज के लिए नियमित सेवाएँ संचालित करती हैं। राज्य परिवहन निगम जैसे कि यूपी राज्य सड़क परिवहन निगम और निजी आपरेटर दिल्ली, वाराणसी, लखनऊ और कानपुर सहित प्रमुख शहरों से प्रयागराज के लिए एसी और नान-एसी बसें चलाते हैं।

निजी कार या टैक्सी:- परिवार या समूहों के साथ यात्रा करने वालों के लिए, निजी कार या टैक्सी किराए पर लेना अधिक आरामदायक और व्यक्तिगत यात्रा अनुभव हो सकता है। कई टूर आपरेटर कुंभ मेला पैकेज के हिस्से के रूप में कार किराए पर लेने की सेवाएँ प्रदान करते हैं, जिसमें हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों या आस-पास के शहरों से पिक-अप और ड्राप-आफ विकल्प शामिल हैं।

नाव सेः- जो लोग अधिक अनोखे और सुंदर मार्ग की तलाश में हैं, उनके लिए नाव से कुंभ मेले की यात्रा करना एक अविस्मरणीय अनुभव है। हालाँकि यह परिवहन का सबसे आम तरीका नहीं है, लेकिन तीर्थयात्री गंगा नदी के माध्यम से नाव के माध्यम से प्रयागराज पहुँच सकते हैं। यह विकल्प आम तौर पर कुछ टूर आपरेटरों द्वारा पेश किए जाने वाले विशेष कुंभ मेला पैकेजों का हिस्सा होता है। नाव से पहुँचने पर आप पवित्र नदी को उसकी पूरी भव्यता में अनुभव कर सकते हैं और पवित्र शहर के पास पहुँचने पर आपको आध्यात्मिक रूप से तैयार कर सकते हैं।

ठहरने के स्थान: उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा कुंभ स्थल के समीप पर टेंट सिटी का निर्माण किया गया है। यहां ठहरने के लिए शासन की वेबसाइट ीजजचेरूध्धनउइीण्हवअण्पदध् में जाकर अपनी सुविधानुसार टेंट हाउस की बुकिंग की जा सकती है। इसके अतिरिक्त विविध होटल और धर्मशालाएं प्रयागराज में विद्यमान हैं, जहां तीर्थयात्री ठहर सकते हैं। कुम्भ और महाकुम्भ के दौरान प्रयागराज के नागरिकों द्वारा अपने घरों को होम स्टे के रूप में यात्रियों को किराये पर देने की भी परम्परा है, जो कि शहर में हरने के लिए एक और किफायती विकल्प हो सकते हैं।

रविन्द्र गिन्नौरे