कोविड-19 के दुष्प्रभावों से सारा देश दहशत में है। सम्पूर्ण विश्व के अनेकों देशों में अर्थव्यवस्था के तहस-नहस होने का बहुत अधिक दुष्प्रभाव नजर आ रहा है। किन्तु, इसका सबसे कम प्रभाव चीन पर दिखाई पड़ रहा है। चूॅंकि चीन ने अपने राष्ट्र को एक निर्माता राष्ट्र के रूप में स्थापित कर लिया है। ऐसा करने के लिए उन्होंने अपने यहॉं किसी भी उत्पाद के उत्पादन या निर्माण की सर्वश्रेष्ठ तकनीकी को विकसित करने में किसी प्रकार की कोई कोताही नहीं की है।
चीन ने लगभग सभी निर्माण प्रक्रियाओं में श्रेष्ठ ऊर्जा दक्षता, श्रेष्ठ सामग्री दक्षता आदि प्राप्त करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। क्लीन डेवलपमेंट मेकेनिज्म के कार्यकाल में वर्ष 2002 से 2012 के बीच अनेकों चीनी परियोजनाओं का विस्तार से अध्ययन करने पर हमने पाया कि सीमेंट, स्टील, फर्टिलाइजर, अल्यूमीनियम इत्यादि सभी सघन ऊर्जा भोगी उत्पादन प्रक्रियाओं में उच्चतम ऊर्जा दक्षता एवं सामग्री दक्षता उन्होंने हासिल कर ली है।
लगभग सभी प्रकार के ईंधन आधारित निर्माण प्रक्रियाओं में वेस्ट हीट रिकवरी संयंत्र स्थापित कर लिए गए हैं, जो कि या तो विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करते हैं या फिर अपशिष्ठ ताप का उपयोग शीतलन (एयर कंडीशनिंग) हेतु करते हैं। इस अवस्था को प्राप्त करने हेतु चीन ने अपने सभी विश्वविद्यालयों एवं सभी अनुसंधान संस्थानों को कठोरतापूर्वक नियामित करते हुए परिणामजनक अनुसंधान कर तकनीकी विकसित करने का लक्ष्य दिया था। वहॉं के अनुसंधान संस्थानों को पर्याप्त धन तथा साधन उपलब्ध कराने के साथ ही अमेरिका, जापान एवं पश्चिमी देशों के अंतर्गत् विकसित पेटेंटेड ज्ञान को भी अपने यहॉं अनुसरित करने पूरी ताकत झोंक दी थी। परिणामतः आज चीन के इस्पात संयंत्रों में कोक की खपत भारत की तुलना में 60 से 70 प्रतिशत तक ही होती है। भारत से घटिया किस्म के लौह अयस्क पाउडर को आयात करके अपने यहॉं बढ़िया लोहा बनाकर विश्व बाजार में बेचते हैं।
पर, भारत में अनुसंधान विकास को पर्याप्त समर्थन नहीं दिए जाने के कारण तथा परम्परागत प्राचीन पद्धतियों पर आश्रित संयंत्रों के कारण ऊर्जा उपभोग भी ज्यादा है एवं प्रदूषण भी अधिक है। चीन ने अपने औद्योगिक संयंत्रों से प्रभावशाली प्रदूषण नियंत्रण के विश्व स्तरीय उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। उनके स्टील प्लांटों से न केवल धूल कण अपितु ैव्गए छव्ग एवं मरकरी (पारा) का भी सफल नियंत्रण किया जा रहा है।
सबसे बड़ी बात यह है कि चीनी राष्ट्रीय व्यवस्था में किसी भी प्रकार के राजनैतिक, सामाजिक, प्रजातांत्रिक, धार्मिक या कानूनी या प्रेस या मीडिया का न तो व्यवधान है और न ही इन पर भारत में किए जाने वाले भारी खर्चों जैसे भारी खर्च का बोझ है। परिणामतः अत्यंत सीमित लौह अयस्क खनिज साधनों के बावजूद चीन विश्व का सर्वोच्च स्टील उत्पादक देश है। चीन ने अपने देश में लगभग 113 करोड़ टन स्टील उत्पादन क्षमता विकसित कर ली थी। इससे वे वर्ष 2016-17 में 11.5 करोड़ टन की ऐसी क्षमता, जिनमें कम ऊर्जा दक्षता एवं कम उत्पादन दक्षता थी, ऐसे सभी पुरानी तकनीकी के प्रदूषणकारी स्टील प्लांटों को बंद कर उखाड़ दिया गया। तदुपरांत भी अभी भी लगभग 101.5 करोड़ टन स्टील क्षमता उत्पादनरत है।
कोविड संकट के बाद अक्सर प्रश्न आता है कि भारत में स्थापित वर्तमान क्षमता लगभग 11 करोड़ टन के लिए ही बाजार मिलना मुश्किल होगा। तदापि सत्य यह है कि भारत के महानगरों में रहने वाले लगभग 6 से 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों को स्थायी निवास भी तत्काल मुहैया कराना आवश्यक है। यदि इन मजदूरों के पास इन महानगरों में भले ही 500 वर्गफुट का भी निजी आवास उपलब्ध होता तो भी इस महामारी के संकट में वे अपना घर छोड़कर गांवों की ओर पलायन नहीं करते।
तदैव, यदि केन्द्र सरकार और राज्य सरकार इन 6 करोड़ मजदूरों के लिए प्रति वर्ष 1.0 करोड़ आवास भी बनाते हैं
तो इसके निर्माण में लगने वाली स्टील की आपूर्ति में भारत के वर्तमान स्टील क्षमता भी खप जावेगी और भविष्य में भी विस्तार की भूमिका बनेगी। नगरों में परिवहन को सुगम और सुचारू करने हेतु भी ओवरब्रिज, सुपर हाईवे इत्यादि का निर्माण अत्यंत आवश्यक है। सीवेज सिस्टम, ड्रेनेज सिस्टम, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट इत्यादि नगरीय स्वास्थ्य सुधार अधोसंरचनाओं के निर्माण एवं नदी-नालों में बांध और स्टापडेम आदि के निर्माण में भारी मात्रा में लौह का खपत हो सकता है। अतः कोविड के दुष्परिणामों को सुपरिणामों में बदलने के लिए इसे एक सुनहरे अवसर में बदलने के लिए चिंतन की दिशा को सम्यक करना तथा धारणीय विकास की ओर लक्ष्यित करना आवश्यक है।
अस्तु, आशय यह है कि पोस्ट कोविड अर्थव्यवस्था में भारत के आर्थिक पुनर्निर्माण के लिए लौह उद्योग पूर्ण रूप से पुनरूद्धार का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। इसके लिए आवश्यकता यह है कि नूतन तकनीकियों को विकसित करने हेतु भारत सरकार और राज्य सरकारें मुक्त हस्त से समर्थन प्रदान करें। इसके अतिरिक्त कोकिंग कोल के स्थान पर नान कोकिंग कोल पर आधारित स्टील निर्माण प्रक्रिया को तत्काल प्रोत्साहत करें। स्टील निर्माण से उत्पन्न प्रदूषण के नियंत्रण को और प्रभावी करने हेतु अनुसंधान विकास को ज्यादा प्राथमिकता प्रदान करें, ताकि कार्यरत उद्योगों से भी वायु प्रदूषण का नियंत्रण प्रभावशाली हो। फलतः उद्योगों के आसपास के मानव बसाहटों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़े। चूॅंकि औद्योगिक अर्थव्यवस्था भी राष्ट्रीय अस्मिता का एक सिद्ध मार्ग है, अतः कोविड-19 के उपरांत इसके स्वरूप को धारणीय करते हुए आगे बढ़ाना आवश्यक है।
ललित कुमार सिंघानिया