देश में उपलब्ध सारे धन का निवेश केवल स्थायी धारणीय विकास कार्यों हेतु ही हो

You are currently viewing देश में उपलब्ध सारे धन का निवेश केवल  स्थायी धारणीय विकास कार्यों हेतु ही हो

कोराना वायरस के महासंक्रमण काल में सम्पूर्ण विश्व में मानव जीवन अस्त-व्यस्त है। लाखों लोग जीवन एवं मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे हैं, तो शेष करोड़ों-अरबों लोग अपने आपको इसके संक्रमण से मुक्त रखने हेतु संघर्षरत हैं यह एक ऐसी छूत की बीमारी है, जिसके संक्रमण के सही मार्ग का सम्यक ज्ञान अभी तक वैज्ञानिकों एवं आम नागरिकों को नहीं हो पाया है। इस कारण से जो स्थूल रूप से अनुभव हैं, उसके अनुसार भौतिक दूरी बनाए रखते हुए जीवन को संचालित रखने का ही सर्वत्र आव्हान है। तदापि, सामान्य मानव के लिए सुरक्षित दूरी बनाए रखते हुए जीवन का निर्वाह करना भी सहज नहीं है। चूॅंकि भारत एक ऐसा देश है, जिसमें वर्तमान में करोड़ों लोगों का जीवन ऐसे असुरक्षित आवासों में जारी है, जहॉं पर एक घर में ही दर्जनों लोग रहने को विवश हैं। एक कमरे में 8-8 से 10-10 लोग रहने को विवश हैं। इन घरों में पृथक और स्वतंत्र शौचालय भी उपलब्ध नहीं होते हैं। सामूहिक शौचालयों का दर्जनों लोग उपयोग करते हैं, जिसमें स्वच्छता को बनाए रखना बहुत बड़ी चुनौती होती है। ऐसे सार्वजनिक शौचालय भी संक्रामक रोग के संक्रमण विस्तार का बहुत बड़ा कारण होते हैं। यही नहीं पीने का पानी, भोजन, रसोई आदि की व्यवस्था इतनी संयुक्त होती है कि सहजता से सुरक्षित दूरी बनाए रखना संभव नहीं है। परिणामतः ऐसी सभी सघन बस्तियों में यथा मुॅंबई में धारावी, अहमदाबाद के पांजरापोल, भिवंडी, थाने, मुंब्रा, सूरत, दिल्ली की घनी बस्तियों में कोरोना के संक्रमण के प्रादुर्भाव के बाद से इसका निरंतर विस्तार जारी है। ऐसी तमाम सुरक्षित भौतिक सुविधाओं के अभाव के अलावे एक बड़ा दुर्भाग्य यह भी है कि हमारे देश के धार्मिक आस्थाओं के प्रति लोगों में अत्यंत दुरूहता है। सम्पूर्ण विश्व के सर्वोच्च धर्मस्थलों के पूर्णतया बंद कर दिए जाने के बावजूद भी भारत में अनेकों स्थानों पर सार्वजनिक पूजा, अर्चना, नमाज, जुलूस आदि भीड़-भरे आयोजनों को निरंतर आयोजित करते हुए देखा जा सकता है। इसके बाद से भी ज्यादा चिंता का एक और विषय है, वह है लोगों में व्याप्त भयावह नशा प्रेम।
लाकडाउन -3 के दौरान शराब की दुकानों के खुलते ही हजारों लोगों का मीलों-मील लम्बी कतारों में खड़े होकर खराब खरीदने का दृश्य भय पैदा करता है। इन कतारों में किसी भी प्रकार की सुरक्षित दूरी के अनुशासन का नितांत अभाव था। इन सामाजिक समस्याओं से संघर्ष कर रहे देश के समक्ष अक्सर यह भी देखने को आया कि जब कभी पुलिस, डॉक्टर या चिकित्सा कर्मी किसी क्षेत्र विशेष में अपनी सेवाएं देने पहुॅंचे तो न जाने किस प्रकार की अफवाहों के वशीभूत होकर लोगों ने इन पर पत्थरबाजियां कीं, लाठियों और डंडों से मारकर इनके विरूद्ध हिंसक प्रदर्शन किया। इससे ऐसे कोरोना योद्धाओं के मनोबल को काफी आघात पहुॅंचा है। जबकि इस महामारी के संघर्ष में भारत में ही कितने ही डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों एवं पुलिस के अधिकारियों ने अपने प्राणों की आहूति दी है।
इस भयावह महामारी को परास्त करने सम्पूर्ण विश्व के समक्ष वर्तमान में कोई भी सिद्ध मार्ग नहीं है। इतनी गंभीर परिस्थितियों के बीच भी इस देश के कुछेक अत्यंत स्वार्थी राजनेताओं ने भी मजदूरों को भड़काने का काम शुरू किया और इसका दुष्परिणाम यह निकला कि लाखों-लाख मजदूरों ने अपने गांवों की ओर यात्रा आरंभ कर दिया। कोई ट्रक में, कोई बस में, कोई साइकल में, कोई बैलगाड़ी में, कोई रिक्शे में तो कोई पहिया अटैची पर बच्चों को सवार कर पैदल खींचते हुए चलने लगा। अनेकों स्थानों पर मजदूर अपने गांव लौटने को सड़कों पर आंदोलन करने लगे हैं। अत्यंत दुखद एवं दारूण परिस्थितियां उत्पन्न हो गईं हैं। चारों ओर हाहाकार की स्थिति बन गई है। कोरोना के संक्रमण से मरने वालों के आर्तनाद के समक्ष इन मजदूरों की ट्रेन की पटरियों में मृत्यु, तो ट्रकों के टक्करों से मृत्यु या यूॅं भूख-प्यास से मृत्यु, ज्यादा हृदय विदारक हो गई है। टेलीविजन चैनलों को खोलने पर प्रति पल बढ़ते मृत्यु के आंकड़े ही दिखाई देते हैं। समाचार पत्रों में भी ऐसे ही समाचार भरे हुए हैं। सोशल मीडिया या आपस पर चर्चा का भी मुख्य बिन्दु कोरोना का आतंक, मजदूरों का पलायन, गंदी राजनीति से सघर्ष करते देश में मौत के आंकड़ों के बीच ही अटका होता है। यद्यपि केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें अपनी-अपनी ओर से मजदूरों को घर तक वापस पहुॅंचाने ट्रेनों का संचालन भी आरंभ कर चुकी है और बसों से भी परिवहन किया जा रहा है। फिर भी बेसब्री बहुत ज्यादा है।
इन हालातों के बीच उत्पन्न हुई भयावह आर्थिक मंदी एवं आय के संकट से निजात दिलाने केन्द्र एवं राज्य सरकारें अपनी ओर से श्रेष्ठतम प्रयास कर रही हैं। नित्य नई घोषणाएं की जाती हैं। नकद राशि समर्थन और ऋण राहत आदि के मार्ग से अर्थव्यवस्था को पटरी में लाने का प्रयास किया जा रहा है। पर भारत में व्याप्त यह संकट केवल आर्थिक संकट नहीं है। अपितु इस संकट के जो अन्य आयाम हैं वे और भी भयावह एवं दुरूह हैं। चूॅंकि वैसे भी भारत कभी भी अर्थ प्रधान देश नहीं रहा, तदैव यहॉं के जन मानस को आर्थिक विपन्नता का दर्द उतना कभी रहा भी नहीं, और शायद यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी ही सबसे बड़ी शक्ति भी थी और है भी। इसलिए भारत के अंतर्गत् इस महामारी से उत्पन्न संकटों के समाधान के लिए अर्थ के अलावे अन्य प्रयोजन भी किए जाने अनिवार्य हैं। शायद इसी तरह के चिंतन के वशीभूत प्रधानमंत्री महोदय ने देश को एक सांस्कृतिक शक्ति के अंतर्गत् बांधे रखने हेतु समय-समय पर दीप प्रज्ज्वलन, स्वागत ध्वनि प्रसारण, तालियों के स्वागत नाद से अपनी राष्ट्रीय और सामाजिक एकता के भाव को कोरोना याद्धाओं के उत्साहवर्धन हेतु भी अभिव्यक्त करते रहने का आव्हान किया था। यद्यपि इसके भौतिक परिदृश्य परिणाम दिखाई नहीं पड़ते, पर इनके दूरगामी राष्ट्रीय एकता के चिन्ह तो अवश्य प्रस्फुटित होते दिख रहे हैं।
आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं की पृष्ठभूमि में इस महामारी का संबंध पर्यावरणीय आयामों से भी गहरा है। एक तरफ जब पूरी पृथ्वी में मानवीय गतिविधियां महीनों के लिए शिथिल कर दी गई थीं, प्रकृति ने अपने आपको पुनःजीवित कर उसके स्वस्थ्य होने के सुख का आभास कराया। औद्योगिक समृद्धि के आर्थिक सुख से ग्रसित मानव को उससे जनित पर्यावरणीय हलास के दुख की अनुभूति भी कराया। स्वच्छ आकाश, पवित्र हो चुके नदियों का जल, पशु-पक्षियों के उन्मुक्त विचरण ने प्रकृति के पवित्र होने की स्थिति में आनंद की अनुभूति कराया। वहीं वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि कोरोना संक्रमण के दुष्प्रभावों में सर्वाधिक ज्यादा जीवन को क्षति उन देशों के उन नगरों में हो रही है, जो गंभीर रूप से प्रदूषित हैं। तदैव जल तथा वायु प्रदूषण नियंत्रण हेतु जो काम इस देश में रचित दर्जनों कानूनों के परिपालन करने वाले अनेकों विभाग नहीं कर पाए, वह काम कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न लॉकडाउन से संभव हुआ। पर समाज आज भी कोरोना वायरस के संक्रमण के प्रसार से दुष्प्रभावित होते जा रहा है, फिर भी अर्थव्यवस्था को जारी रखना भी आवश्यक है। तदैव इन परिस्थितियों में प्राथमिकता अवश्य यह हो कि देश में उपलब्ध सारे धन का निवेश केवल स्थायी धारणीय विकास कार्यों हेतु ही हो। सर्वप्रथम प्रदूषण नियंत्रण, चाहे वह वायु का हो या जल का हो, इस पर निवेश अवश्य किया जावे। तदुपरांत श्रमिकों के लिए स्वतंत्र आवास, जो स्वच्छ शौचालय युक्त हो का निर्माण हो। नगरों में ड्रेनेज सिस्टम, सीवेज सिस्टम, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जावें। सभी नदियों, नालों के तटों को संरक्षित करने तटबंध निर्माण हों, तट वन रोपित हों, वर्षा जल संधारण, संग्रहण हेतु तालाब, बांध, चेक डैम, स्टाप डैम बनाए जावें। नदियों को आपस में जोड़ने (रिवर लिंकिंग) हेतु प्रयास आरंभ किए जावें। लातूर जैसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों तक जल आपूर्ति के लिए नहरों का निर्माण किया जावे। बिहार के बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों से बाढ़ मुक्ति के लिए निवेश किया जावे। नगरों से निकलने वाले गंदे पानी से मीथेन का उत्पादन, कृषि अपशिष्ठ, एवं अतिरिक्त अनाज (चावल) से भी बायो एथेनाल का उत्पादन या मीथेन का उत्पादन प्राथमिकता में हो। इस प्रकार के उद्योगों को ग्रामीण अंचल में स्थापित करने क्रूड ऑयल के आयात को भी कम किया जा सकता है। खरपतवार नाशकों को प्रतिबंधित कर श्रमिकों को खरपतवारवार नियंत्रण हेतु कृषि कार्यों में प्रयुक्त करें। जैविक खेती और रसायन मुक्ति खेती का प्रसार हो। ग्रामीण अर्थव्यवस्था तथा कृषि अर्थव्यवस्था को सहज और सुदृढ़ करें। आयुर्वेदिक चिकित्सा-प्राकृतिक चिकित्सा-ग्राम्योऔषधि निर्माण को प्रोत्साहन हो।
वर्तमान संकट में अर्थव्यवस्था का पुनःरूद्धार इस प्रकार से हो कि जब कभी भी इन प्रवासी श्रमिकों को वापस जाना पड़े तो वे अपने खुद के लिए सुरक्षित आवास उन महानगरों में पा सकें। चूॅंकि जिन किसी प्रवासी श्रमिकों के स्वयं के आवास हैं, वे इस महासंकट में भी अपना घर छोड़कर गांव नहीं गए हैं। चूॅंकि यह महामारी इस देश, समाज और विश्व में कुछ लम्बे समय तक के लिए है, अतः ऐसी समस्याओं का स्थायी निदान अवश्य हो। यह समय नए हवाई अड्डों के निर्माण का नहीं है और न ही नए प्रशासनिक भवनों के निर्माण का है, अपितु यह समय सघन महानगरों से बहुत से विभागों के कार्यालयों एवं मुख्यालयों को दिल्ली, मुॅंबई, अहमदाबाद से बाहर निकालने का है। यह समय महानगरों से भीड़ को सदा के लिए कम करने का है। महानगरों में हरित क्षेत्र और नगरीय वनों, उपवनों के विस्तार का समय है।
अंत में यह भी आवश्यक है, धर्मांध हो चुके भारतीय समाज को विज्ञान सम्मत बनाया जावे। भारतीय संस्कृति एवं वांग्मय का वैज्ञानिक पृष्ठ सम्मुख किया जावे, जो कि प्रकृति एवं मानव कल्याणकारी है, पर्यावरण संरक्षण एवं प्रकृति से परस्परता को प्रमुखता देते हुए। अंतिम व्यक्ति की समस्याओं के समाधान के लिए नियोजन कर, प्रयास कर परिणाम को सिद्ध किया जावे।
कोरोना का संकट भारत के लिए और विश्व के लिए अभूतपूर्व है। यह समय सम्पूर्ण भारतीयों को अपने-अपने स्वयं के सामाजिक, राष्ट्रीय और पर्यावरणीय दायित्वों के अब तक किए गए निर्वहन तथा अवहेलनाओं के मूल्यांकन का भी अवसर देता है। यह हमारी सरकार को, भारतीय प्रजातंत्र को कानून के पेचीदे मकड़जालों से मुक्त करने का भी आव्हान करता है। यह संकट इस देश को प्रजातंत्र के नाम और प्रेस की आजादी के नाम पर हो रहे भयावह अपव्यय को नियंत्रित करने का आव्हान करता है। इस संकट ने सभी प्रकार के सामाजिक, धार्मिक आडम्बरों से सदा के लिए मुक्त होने का सुनहरा अवसर दिया है। इस संकट ने पर्यावरण के प्रति प्रेम जागृत करने और प्रकृति की प्रतिछाया बनकर जीने के लिए विवश किया है। भारत के सुरक्षित भविष्य के लिए सम्पूर्ण जनसंख्या नियंत्रण और एक देश एक कानून की आवश्यकता को रेखांकित किया है। यह विषाणु जनित त्रासदी इस युग को एक चिंतन विराम दे रहा है। आशा करना चाहिए कि देश और समाज इससे एक सार्थक सबक अवश्य लेंगे। प्रकृति पुरूष परमेश्वर से प्रार्थना है कि सकल जगत को इस महामारी से मुक्ति दिलावे।