इलेक्ट्रानिक कचरे से निकलने वाले जहरीले तत्व जैसे गैसें मिट्टी व पानी में मिलकर उन्हें बंजर और जहरीला बना देते हैं। फसलों और पानी के जरिए ये तत्व हमारे शरीर में पहुंचकर बीमारियों को जन्म देते हैं। लेकिन अब अगर आप अपने पुराने मोबाइल को फेंकने जा रहे हैं या उसे नए मोबाइल के बदले दुकान पर देने जा रहे हैं तो थोड़ा रूकिए। क्या आप जानते हैं कि देश में हर साल उत्पन्न होने वाले 60,000 टन ई कचरे में 1,800 टन पुराने मोबाइल फोन की बदौलत पैदा होता है।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस वर्ष जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल फोन की बदौलत होने वाले ई कचरे में 2025 तक 16 गुना का इजाफा होगा। इलेक्ट्रानिक कचरे में पुराने खराब हो चुके कंप्यूटर, मोबाइल फोन, फ्रिज या अन्य इलेक्ट्रानिक उत्पाद आते हैं। उपभोक्तावाद बढने के साथ-साथ ई कचरे का निपटान देश के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।
इस समस्या ने संगठित रिसाइकिलिंग नामक एक नए सेक्टर को जन्म दिया है। अब तक कई कंपनियां मोबाइल रिसाइकिलिंग के क्षेत्र में उतर चुकी हैं। बाजार में ऐसे मोबाइल फोन भी है जिनके निर्माण में सोना, चांदी और प्लेटिनम के साथ-साथ तांबे जैसी धातुओं का भी इस्तेमाल होता है।
दुनिया में हर साल होने वाली सोने और चांदी की कुल आपूर्ति का 3 फीसदी हिस्सा सोने और चांदी में ही खप जाता है। इसके अलावा पैलेडियम उत्पादन का 12 फीसदी, कोबाल्ट का 18 फीसदी तथा भारी मात्रा में तांबा, इस्पात, निकल और एल्मूमीनियम भी मोबाइल तथा पीसी के निर्माण में इस्तेमाल किया जाता है। इसे या तो किसी लैंडफिल में डाल देते हैं या फिर कीमती मेटल निकालने के लिए इसको जला देते हैं, जो कि और भी नुकसानदेह है।
किसी उपकरण के अधिकांश हिस्सों को स्थानीय स्तर पर ही रिसाइकिल किया जाता है जब कि मोबाइल फोन के प्रिंटेड सर्किट बोर्ड ‘पीसीबी’ को धातु निकालने के लिए विदेश स्थित स्मेल्टिंग कंपनियों के पास भेजा जाता है।
कीमती धातुओं के अलावा एक औसत मोबाइल फोन में लेड और मर्करी जैसे जहरीले रसायन भी होते हैं जिन्हें अगर सही तरीके से निपटाया न जाए तो पर्यावरण तथा स्वास्थ्य को गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है। देश में मोबाइल उद्योग का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था इंडियन सेल्युलर एसोसिएशन आईसीए ई-कचरे के संबंध में दिशानिर्देशों पर काम कर रही है।
बड़ी मोबाइल हैंडसेट निर्माता कंपनियों ने भले ही पुराने मोबाइल वापस लेकर उन्हें रिसाइकिल करने वाली अधिकृत कंपनियों को देने की नीति घोषित कर दी हो लेकिन अधिकांश उपभोक्ताओं को अभी भी इन योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं है और इसलिए ये योजनाएं गति नहीं पकड़ पा रही हैं।
जिन आधुनिक उपकरणों को बेकार समझकर फेंक दिया जाता है तो उन्हें इलेक्ट्रानिक कचरा कहा जाता है। जैसे कि घर और आफिस में डेटा प्रोसेसिंग, टेलिकम्यूनिकेशन, कूलिंग या एंटरटेनमेंट के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले आइटम इस कैटिगरी में आते हैं, जैसे कि कंप्यूटर, एसी, फ्रिज, सीडी, मोबाइल, सीडी, टीवी ओवन आदि। इसके लिए अलग से पूरा सिस्टम तैयार होना चाहिए, क्यों कि भारत में न सिर्फ अपने मुल्क का ई कचरे जमा हो रहा है, विकसित देश भी अपना कचरा यहीं जमा कर रहे हैं। विकसित देश इंडिया को इंपिंग ग्राउंड की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं क्यों कि उनके यहां रीसाइकलिंग काफी महंगी है। हमारे यहां इलेक्ट्रानिक कचरे की रीसाइकलिंग और डिस्पोजल, दोनों ही सही तरीके से नहीं हो रहे। इसे लेकर जारी की गई गाइडलाइंस कहीं भी फालो नहीं हो रहीं। ग्लोबल स्तर पर सालाना 5 करोड़ टन की मात्रा में बढ़ रहे ये इलेक्ट्रानिक्स उपकरण चिंता का सबब हैं।
भारत में इलेक्ट्रानिक कचरे हेतु रेग्युलेशन गाइडलाइंस अनिवार्य नहीं है। कबाड़ी इलेक्ट्रानिक कचरे को मेटल गलाने वालों को बेचते हैं जो कापर और सिल्वर जैसे महंगे मेटल निकालने के लिए इन्हें जलाते हैं या एसिड में उबालते हैं। एसिड का बचा पानी खुले में फेंक दिया जाता है। यह सेहत के लिए काफी नुकसानदेह है।
दुनिया भर में सलाना चार करोड़ टन इलेक्ट्रानिक कचरे की बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि चीन और भारत में इलेक्ट्रानिक कचरा इंपोर्ट करने पर रोक है लेकिन फिर भी सरकार के ढुल-मुल रवैये की वजह से बाहर से बड़ी तादाद में इलेक्ट्रानिक कचरा यहां आता है।
यूएन की रिपोर्ट जोर देती है कि भारत और चीन को जल्द से जल्द इलेक्ट्रानिक कचरा जमा करने और नष्ट करने के लिए एक कड़ी पालिसी की जरूरत है क्योंकि आने वाले दिनों में यह और बढ़ेगा। चीन में 2030 तक पुराने कंप्यूटर्स से पैदा हुए इलेक्ट्रानिक कचरे में 500 फीसदी बढ़ोतरी होगी, जब कि भारत में यह 400 फीसदी बढ़ जाएगा। मोबाइल फोन का इलेक्ट्रानिक कचरे में योगदान सात गुना बढ़ेगा, वही भारत में यह 20 गुना तक बढ़ जाएगा, यानी उस वक्त हमारे लिए चीन से भी बड़ा खतरा होगा।
अगर इलेक्ट्रानिक कचरे का जिम्मा संगठित क्षेत्र को सौंपा जाए और वह सही ढंग से इसे रीसाइकल कराए तो न सिर्फ सेहत से जुड़ी समस्याएं दूर होगी, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। कुल इलेक्ट्रानिक कचरे का 90 फीसदी हिस्सा न तो सही तरीके से डिस्पोजल किया जा रहा है, न ही रीसाइकलिंग ढंग से की जाती है। आमतौर पर सामान्य-कूड़े-कचरे के साथ ही इसे डंप कर दिया जाता है। ऐसे में इनसे निकलने वाले रेडियोधर्मी पदार्थ Am239 चिकित्सा उपकरण और आग का पता लगाने, धूम्रपान डिटेक्टरों में सक्रिय संवेदन तत्व और प्रकाश उत्सर्जक डायोड भीतर गैलियम आर्सेनाइड के रूप में आर्सेनिक और दूसरे हानिकारक तत्व अंडरग्राउंड वाटर और जमीन को प्रदूषित कर रहे हैं। तो क्या फौरन गंभीर कदम उठाए जाने का वक्त आ गया है?
संजय गोस्वामी
यमुना जी /13, अणुशक्तिनगर, मुंबई -94