विश्व में हजारों बड़ी नदियां हैं तथा सैकडों नदी संगम स्थल हैं जहां नदियां आपस में मिलती हैं, किंतु जैसे भारतीय समाज के द्वारा नदियों के संगम को महत्व दिया गया है, वैसा उदाहरण विश्व में अन्यत्र कहीं नहीं है। भौगोलिक रूप से प्रयागराज में गंगा यमुना सरस्वती का संगम एक महत्वपूर्ण घटना है। भौगोलिक इकाई के रूप में सारी महान नदियों के किनारे ही मानवीय सभ्यताओं का जन्म हुआ एवं विकास हुआ है। सिंधु घाटी सभ्यता को प्राचीनतम माना जाता है। किन्तु अब ये सभ्यता इतिहास की गर्द में समा चुकी है। मैसोपोटामिया हो या ग्रीक हो या रोमन हो, सभी सभ्यताओं का क्रम टूट चुका है। एक मानवीय सभ्यता गंगा यमुना दोआब क्षेत्र में जन्मी तथा पुष्पित एवं पल्लवित हुई, जो अभी तक अक्षुण्ण है। गंगा यमुना दोआब की इसी सांस्कृतिक विरासत का प्रकटीकरण प्रयागराज में कुंभ के रूप में होता है।
गंगा यमुना सरस्वती के संगम की तरह ही मिसीसिपी और मिसौरी भी संगम बनाती हैं। ब्लू नील और व्हाइट नील भी सूडान के खारटोंग में मिलती हैं, मोन्टाना में मेडिसन, जैफरसन एवं गैलेटिन नदियां भी संगम बनाती हैं, र्हाेन एवं आर्वे भी जिनेवा में मिलती हैं , इसी तरह रियो निग्रो और अमेज़न भी सालीमोस ब्राजील में मिलती हैं। उदाहरण बहुत हैं पर कोई भी मानवीय संस्कृति भारत की तरह नदियों के पर्यावरणीय महत्व को नहीं समझ पाई है और न उन्हें महत्व दिया।
धर्म के नाम पर एक जगह जमा होने की परंपराएं दुनिया के कई हिस्सों में मौजूद हैं। लेकिन कुंभ की परंपरा इन सभी से ज्यादा प्राचीन है। यूरोप हो या अफ्रीका, जापान या जेरुसलम, हर जगह धर्म के नाम पर हजारों साल से लोग जमा होते रहे हैं। इनमें से ज्यादातर की शुरुआत का कोई लिखित रिकार्ड नहीं है, लेकिन दंतकथाओं को भी आधार मानें शायद इस तरह की परंपराओं में कुंभ पर्व सबसे पुराना है।
महाकुंभ एक ऐसा धार्मिक आयोजन है जिसमें दुनिया की कुल आबादी के 5 प्रतिशत के बराबर लोग एक शहर में इकट्ठा हो रहे हैं। इसमें 40 करोड़ श्रद्धालुओं के पहुॅंचने की संभावना है। यह संख्या दुनिया के कई देशों की आबादी का 2 गुने से लेकर 10 गुना तक है। इस महाकुंभ में 10 लाख संत-महात्मा तथा इतने ही कल्पवास करने वाले श्रद्धालु पूरे कुंभ अवधि के दौरान विद्यमान रहेंगे।
हिंदू धर्म में महाकुंभ किसी पर्व से कम नहीं है। इसे लेकर यह मान्यता है कि जो भी व्यक्ति महाकुंभ में स्नान करता है, उसके सभी पाप धुल जाते हैं और उसे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार अमृत पाने की चाह में देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन हुआ। इस दौरान कई तरह के रत्नों की उत्पत्ति हुई, जिन्हें सहमति के साथ देवताओं और असुरों ने आपस में बांट लिया। लेकिन जब आखिर में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर बाहर निकले, तो अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच युद्ध छिड़ गया।
समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश को लेकर देवताओं और राक्षसों में युद्ध हो गया। राक्षसों ने देवताओं को हराकर अमृत अपने पास रख लिया। देवताओं ने इन्द्र के बेटे जयंत को भेजा, जिसमें पक्षी का रूप लेकर धोखे से अमृत कलश चुरा लिया और स्वर्ग में छिप गया। इस कार्य हेतु जयंत के साथ 4 और देवताओं को भी भेजा गया था। जिसमें चन्द्रमा को कलश छलकने से बचाना था। सूर्य को कलश टूटने से बचाना था। बृहस्पति को राक्षसों को रोकना था और शनि को जयंत की निगरानी करनी थी कि वो सारा अमृत खुद न पी जाए।
छलकी अमृत की बूंदें
असुरों से अमृत को बचाने के लिए इंद्र के पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर भागने लगे। इस अमृत तो संभालने की जिम्मेदारी चंद्रमा को दी गई थी, लेकिन छीना-झपटी में वह कलश को संभाल नहीं सके, जिस कारण अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर गईं। आज इन्हीं चार स्थानों पर 12 साल के अंतराल में महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। इस दंतकथा के अनुसार यह कहा जा सकता है कि चंद्रमा जी की गलती के कारण ही आज महाकुंभ का आयोजन होता है। तभी से ये चारों स्थान पवित्र हो गये और यहां स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होने लगी।
कुंभ तिथि तय होने की व्यवस्था
अमृत कलश चुराने के लिए जयंत के साथ सूर्य, चन्द्र, बृहस्पति और शनि गये थे। इन ग्रहों की स्थिति के मुताबिक ही तय होता है कि कुंभ कहां मनाया जागा। हरिद्वार में चैत्र मास में जब गुरू शनि की कुंभ राशि में हों और सूर्य मेष राशि में हों, तब कुंभ का आयोजन होता है। प्रयागराज में माघ मास में जब गुरू मेष या वृषभ राशि में हों और सूर्य और नवचन्द्र दोनों शनि की मकर राशि में हों, तब आयोजित होता है। उज्जैन में चैत्र मास में गुरू जब सिंह राशि में हों और सूर्य जब मेष राशि में हों तब यहां कुभ मेला लगता है। नासिक में भाद्रपद मास में जब सूर्य और गुरू दोनों सूर्य की अपनी सिंह राशि में हों या जब सूर्य, चन्द्र और गुरू तीनों अमावस्या के दिन कर्क राशि में हों तब यहां कुंभ का आयोजन होता है।
ऋग्वेद में उल्लेख
ऋग्वेद के 10वें मंडल के 89वें सूक्त के 7वें मंत्र में कुंभ शब्द मिलता है।
जघान वृत्रं स्वाधितिर्वनेव रूरोज पुरो अरदन्न सिन्धून् बिभेद गिरिं नवमिन्न कुम्भमा गा इन्द्रो अकृणुत स्वयुग्भिः
लेकिन इस मंत्र का कुंभ मेले या कुंभ के स्नान से कोई सम्बन्ध नहीं है। ये इन्द्र के बारे में बताने वाला मंत्र है। इसका अर्थ है-
फरसा जैसे खरपतवार को काटता है, इन्द्र वैसे ही शत्रुओं का नाश करते हैं। इंद्र ने वर्षा के जल से नदियों को आकार दिया और पहाड़ों को कच्चे घड़े (कुंभ) की तरह फोड़ जल प्रस्तुत किया।
अर्थववेद में उल्लेख
ऋग्वेद से करीब 600 साल बाद अथर्ववेद पूरा हुआ था। इसमें भी चौथे मंडल के 34वें सूक्त के 7वें और 19वें सूक्त के तीसरे मंत्र में ‘कुंभ’ शब्द मिलता है।
पूर्णः कुंभोधि काल आहितस्तं वै पश्यामो बहुधा नु संतः स इवा विश्वा भुवनानि प्रत्यंड् कालं तमाहुः परमे व्योमन्
यहां पहली बार ‘पूर्ण कुंभ’ शब्द मिलता है। लेकिन ये कुंभपर्व के बारे में नहीं है। सायण के लिखे अथर्ववेद के टीका के मुताबिक यहां पूर्ण कुंभ का अर्थ समय का इष्टकाल है, जो जीवों को एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाता है।
संगम और प्रयाग का उल्लेख
संगम की ओर ऋग्वेद में इशारा मिलता है, जबकि प्रयाग का उल्लेख महाभारत और पुराणों में भी मिलता है। लेकिन कहीं भी प्रयाग में कुंभपर्व मनाने का उल्लेख नहीं है। ऋग्वेद के 10सें मंडल के 75वें सूक्त के 5वें मंत्र में गंगा, यमुना और सरस्वती का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद पर स्कंद पी. काशिख के टीका के हवाले से डॉ. डी.पी. दुबे अपनी किताब ‘कुंभ मेला: पिलग्रिमेज टू द ग्रेटेस्ट कास्मिक फेयर’ में कहते हैं, ‘‘तीनों नदियों का एक साथ जिक्र संगम की ओर इशारा करता है। टीका में संगम स्नान से मोक्ष प्राप्ति का वर्णन है। ये संगम चूॅंकि प्रयाग में ही है, इसलिए इसे प्रयाग का उल्लेख मान सकते हैं।’’
महाभारत ग्रंथ में उल्लेख
महाभारत गं्रथ के अस्तिका पर्व खंड और तीर्थ यात्रा खंड में प्रयाग का वर्णन है, जिसे प्रमुख तीर्थ स्थान कहा गया है। गंगा और यमुना के बीच की धरती को पवित्र योनि और प्रयाग को इस योनि का मुख माना गया है।
बौद्धग्रंथ में उल्लेख
मज्झिम निकायः बौद्ध ग्रंथ में भगवान बुद्ध के हवाले से कहा गया है कि क्रूर लोगों को प्रयाग में स्नान करके भी मोक्ष नहीं मिल सकता। ये ग्रंथ ईसा पूर्व दूसरी-तीसरी शताब्दी में लिखा गया था। यानी इसके पहले से ही ये मान्यता थी कि प्रयाग में स्नान से मोक्ष मिलता है।
पुराण में उल्लेख
मत्स्य पुराण में पहली बार ये जिक्र मिलता है कि हर साल माघ के महीने में प्रयाग के संगम में स्नान से मोक्ष मिलता है। पद्म पुराण में संगम में स्नान के साथ ही ये भी कहा गया है कि प्रयाग के संगम के पानी से आचमन करने से भी मोक्ष मिलता है।
12 वर्ष में महाकुंभ की कहानी
दंतकथा के मुताबिक जयंत को कलश चुराने और इसे दानवों से बचाने में बृहस्पति को 12 दिन लग गए थे। देवताओं का एक दिन इंसानों के एक साल के बराबर होता है। इसलिए महाकुंभ 12 साल में एक बार मनाया जाता है। इसीलिए गुरू भी एक राशि में एक वर्ष तक विराजमान रहते हैं।
कुंभ का नदियों से तालमेल
दंतकथा के मुताबिक जिन 4 स्थानों पर अमृत कलश से छलकी बूंदें गिरी थी, वे सभी स्थान नदियों से जुड़े हैं। हरिद्वार में गंगा नदी मैदानी इलाकों में उतरती है। मान्यता है कि यहां गंगा अमृत की तरह है। प्रयाग के त्रिवेणी में गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम माना जाता है, इसलिए यहां का पानी महाअमृत की तरह माना जाता है। नासिक में गोदावरी का अरूणा और वरूणा से संगम होता है। गोदावरी को दक्षिण की गंगा माना जाता है। उज्जैन में शिप्रा नदी उत्तर दिशा की ओर बहती है। ठीक उसी तरह जैसे बनारस में गंगा उत्तर दिशा की ओर बहती है।
महाकुभ में हिन्दू धर्म के मुख्य अखाड़े
महाकुंभ में हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण मठ-मठाधीश सम्मिलित होंगे, शैव, वैष्णव एवं उदासीन अखाड़ों के अंतर्गत 13 मुख्य अखाड़े इस प्रकार हैं।
महाकुंभ में अखाड़े आकर्षण का प्रमुख केंद्र होते हैं। इस दौरान अखाड़ों का पेशवाई और नगरप्रवेश होता है। अखाड़ा साधुओं का वह दल होता है जो शस्त्र विद्या में निपुण होता है। अखाड़े एक तरह से हिंदू धर्म के मठ कहे जा सकते हैं।
अखाड़ों की शुरुआत आदि शंकराचार्य ने की थी। कहा जाता है कि उन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र विद्या में निपुण साधुओं के संगठन बनाए थे। शुरुआत में केवल 4 अखाड़े थे, लेकिन अब इनकी संख्या 13 हो चुकी है। अभी के समय में अखाड़ों को 3 कैटेगरी शैव, वैष्णव और उदासीन में बांटा गया है।
शैव अखाड़ेः शैव संप्रदाय के कुल सात अखाड़े हैं। इनके अनुयायी भगवान शिव की पूजा करते हैं।
महानिर्वाणी अखाड़ाः इस अखाड़े की स्थापना 748 ई. में हुई थी। अखाड़े के इष्टदेव कपिल मुनि हैं। इसका मुख्यालय प्रयागराज (इलाहाबाद) में है।
निरंजनी अखाड़ाः अखाड़े की स्थापना 903 ई. में हुई थी। मुख्यालय प्रयाग में है। इष्ट देवता भगवान कार्तिकेय हैं। अखाड़े के 70 प्रतिशत साधुओं ने हायर एजुकेशन प्राप्त की है।
अटल अखाड़ाः आदि शंकराचार्य ने 646 ई. अटल अखाड़ा की स्थापना की थी। अखाड़े का मुख्यालय वाराणसी में है।
आनंद अखाड़ाः विक्रम संवत के मुताबिक आनंद अखाड़े की स्थापना 856 ई. में बरार में हुई थी। इसका मुख्य केंद्र हरिद्वार में है। इस अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद नहीं है।
अग्नि अखाड़ाः अखाड़े की स्थापना 8वीं शताब्दी ई. में हुई थी। इनके इष्ट देव गायत्री हैं और मुख्यालय काशी है। इनके सदस्यों में चारों पीठ के शंकराचार्य, ब्रह्मचारी, साधु व महामंडलेश्वर हैं।
जूना अखाड़ाः यह शैव संप्रदाय का सबसे बड़ा अखाड़ा है। इसकी स्थापना उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में 1145 में हुई। अखाड़े के इष्ट देव रुद्रावतार दत्तात्रेय हैं। मुख्यालय वाराणसी में हैं।
आवाहन अखाड़ाः इस अखाड़े की स्थापना 547 ई. में आदि शंकराचार्य ने की थी। गजानन दत्तात्रेय इनके इष्ट देवता हैं। इस अखाड़े का मुख्यालय वाराणसी में है।
वैष्णव अखाड़ेः भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा करते हैं। वैष्णव संप्रदाय के तीन अखाड़े हैं।
दिगंबर अखाड़ाः माना जाता है कि अखाड़े की स्थापना 500 साल पहले अयोध्या में हुई थी। अखाड़े का मुख्यालय गुजरात के साबरकांठा में है। इनके 450 से ज्यादा मठ और मंदिर हैं।
निर्मोही अखाड़ाः अखाड़े की स्थापना 14वीं शताब्दी में रामानंदाचार्य ने की थी। यह अखाड़ा वाराणसी में स्थित है। अखाड़े के इष्ट देव हनुमान जी हैं।
निर्वाणी अखाड़ाः निर्वाणी अखाड़े की स्थापना 748 ई. में हुई थी। इनके देवता भगवान विष्णु हैं। मुख्यालय हनुमान गढ़ी, अयोध्या में है।
उदासीन अखाड़ेः अखाड़े की अनुयायी ‘ऊं’ की पूजा करते हैं। उदासीन संप्रदाय के भी तीन अखाड़े हैं।
उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ाः इस अखाड़े को 1825 ई. में बसंत पंचमी के दिन हरिद्वार में हर की पौड़ी पर स्थापित किया गया था। प्रमुख आश्रम प्रयागराज में है।
उदासीन पंचायती नया अखाड़ाः बड़ा उदासीन अखाड़े के संतों से वैचारिक मतभेदों के बाद इस अखाड़े की 1846 स्थापना हुई। इसका प्रमुख केंद्र हरिद्वार के कनखल में है।
निर्मल अखाड़ाः इस अखाड़े की नींव 1862 में बाबा मेहताब सिंह महाराज रखी थी। इसका संबंध गुरु नानक देव जी से माना जाता है।
महाकुंभ 2025 का बजट
इस बार महाकुंभ का बजट 5060 करोड़ रूपए है। केन्द्र सरकार ने 2100 करोड़ महाकुंभ के लिए दिए हैं। पिछले बार महाकुंभ का बजट पूरा खर्च नहीं हो पाया था। पिछले 2013 के कुंभ के समय राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार थी, जिसके अभिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। तत्समय इस आयोजन के लिए 1214 करोड़ का बजट दिया गया था। हालांकि मेले पर कुल खर्च 1017 करोड़ 37 लाख रूपए ही हुआ था। वर्ष 2025 के कुंभ का बजट 2013 की अपेक्षा 4043 करोड़ रूपए ज्यादा है।
मेला का क्षेत्रफल
इस बार कुंभ मेले का क्षेत्रफल 2400 हेक्टेयर बढ़ा दिया गया है। वर्ष 2013 में कुंभ मेला 16 वर्ग किलोमीटर एरिया में था इस बार 2400 हेक्टेयर बढ़ने से इसका क्षेत्रफल 40 वर्ग किलोमीटर हो गया है, जो पिछले बार से ढाई गुना ज्यादा है।
पांटून पुल
पिछले कुंभ में गंगा पर 18 पांटून पुल बनाए गए थे। इस बार इनकी संख्या 30 है, जिनमें 15 पुल संगम के बेहद करीब बनाए गए हैं। पांटून पुल अस्थायी होते हैं, जिसमें बड़े-बड़े लोहे के पीपे पर पुल का स्ट्रक्चर तैयार होता है।
कुंभ के सेक्टर
पिछले कुंभ में मेला 14 सेक्टर में बंटा था। इस बार महाकुंभ को 25 सेक्टर में बांटा गया है। पहले रामघाट और काली सड़क के पास गंगा सटी रहती थी। इस बार बड़ी-बड़ी मशीनें लगाकर गंगा की धारा को झूंसी साइड मोड़ा गया। इससे जगह और बढ़ गई।
सुरक्षा व्यवस्था
पिछले कुंभ को 14 सेक्टर में बांटकर लगभग 12000 सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए थे। इनमें 12 एएसपी, 30 सीओ, 409 इंस्पेक्टर और 4913 सिपाही शामिल थे। जबकि इस बार के महाकुंभ में 56 थाने और 144 चौकियां बनाई गई हैं। अभी यूपी में सिर्फ कानपुर में सबसे ज्यादा 52 थाने हैं। इस बार कुंभ में 2 साइबर थाने अलग से बनाए गए हैं। हर थाने में साइबर डेस्क होगी। सिविल पुलिस, पीएसी, एनएसजी, एसटीएफ, होमगार्ड, डिफेंस और एनजीओ को मिलाकर मेले में 50 हजार से ज्यादा लोग सुरक्षा व्यवस्था संभालेंगे।
श्रद्धालु
यह कुंभ भीड़ के मामले में नया रिकार्ड बनाने जा रहा है। प्रशासन की तैयारी और उम्मीद के मुताबिक 40 करोड़ से ज्यादा लोग 42 दिन चलने वाले इस मेले में शामिल हो सकते हैं। 5 शाही स्नान में सबसे अधिक भीड़ 29 जनवरी को मौनी अमावस्या पर होगी। उस दिन 4 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। पिछले महाकुंभ में 12 करोड़ लोग सम्मिलित हुए थे। वहीं मौनी अमावस्या पर 3 करोड़ लोग आए थे। श्रद्धालुओं की गिनती के लिए मेले में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस कैमरे लगे हैं, जो हेड काउंट करते हैं। इसी से श्रद्धालुओं के आगमन का गणना निकाली जाती है।
सुविधाएं
आगंतुकों के लिए व्हआईपी टेंट सिटी बसाई जा रही है। इसमें 150 महाराजा यानी व्हीआईपी टेंट सिटी बनाई जा रही है। इसका एक दिन का चार्ज 30 हजार रूपए से ज्यादा होगा। 1500 सिंगल रूम, 400 फैमिली टेंट भी तैयार हो रहे हैं। इसके अलावा डोम सिटी तैयार की गई है। जिसका किराया एक लाख से ज्यादा है।
महाकुंभ में डेढ़ लाख शौचालय बनाए जा रहे हैं। इनमें 300 मोबाइल शौचालय हैं। 2013 में कुल 33903 शौचालय बनाए गए थे। घाट पर करीब 10000 चेंजिंग रूम बनाए जाएंगे। 2013 के कुंभ में चेंजिंग रूम की संख्या 2500 के करीब थी। इस बार के कंुभ में 10 खोया-पाया केन्द्र बनाए गए हैं। अगर कोई व्यक्ति किसी किसी भी सेक्टर में खो जाए, उसकी जानकारी मेले के हर केन्द्र पर होगी। एलईडी पर उसकी फोटो आएगी।
यातायात
महाकुंभ के लिए रेलवे 3000 विशेष ट्रेनें चलाएगा, जो 13000 से ज्यादा फेरे लगाएंगी। रेलवे का आंकलन है कि रोजाना 5 लाख यात्री जनरल कोचों से यात्रा करेंगे। प्रयागराज जंक्शन के अतिरिक्त शहर के 8 स्टेशन तैयार हो गए हैं। यूपी रोडवेज की तरफ से 7 हजार से ज्यादा बसें चलेंगी। इनमें 200 एसी, 6800 साधारण और 550 शटल बसें शामिल होंगी।
प्रयागराज एयरपोर्ट से देश के करीब 23 शहरों के लिए सीधी उड़ानें होंगी। दिल्ली, मुॅंबई, हैदराबाद, भुवनेश्वर, लखनऊ, रायपुर, बेंगलुरू, अहमदाबाद, गुवाहाटी, कोलकाता के लिए फ्लाइट रहेंगी। वहीं व्हीआईपी, विदेशी मेहमानों के 200 से ज्यादा चार्टर्ड प्लेन महाकुंभ में आएंगे। प्रयागराज एयरपोर्ट पर सिर्फ 15 विमानों की पार्किंग की जगह है। इसलिए एयरपोर्ट अथारिटी आफ इंडिया ने चार राज्यों के 11 एयरपोर्ट्स से पार्किग के लिए रिपोर्ट मांगी है।
विद्युत व्यवस्था
महाकुंभ को भव्य दिखाने में बिजली का रोल महत्वपूर्ण रहने वाला हैं इसलिए इस बार बिजली का बजट 391.04 करोड़ रखा गया है। 1532 किलोमीटर लम्बी लाईन खींची गई है। 67000 स्ट्रीट लाइट लगाई गई है। प्रमुख जगहों पर हाईमास्ट अलग से लगाया गया है। 85 अस्थायी नए बिजलीघर बने हैं 170 सब स्टेशन हैं। 85 डीजी सेट, 15 आरएमयू और 42 नए ट्रांसफार्मर लगाए गए हैं। 4 लाख 71 हजार लोगों को कनेक्शन दिया जा रहा है। 2013 में बिजली का कुल बजट 50 करोड़ के आसपास था। 22 हजार एलईडी लाईट लगाई गई थीं। इस साल 2004 हाईब्रिड सोलर लाइट लगाई जा रह हैं।
नई पहल: महाकुंभ में आसमान के साथ, पानी के अंदर भी ड्रोन के जरिए निगरानी होगी। अंडर वाटर सेफ्टी के लिए पहली बार नदी के अंदर 8 किलोमीटर तक डीप बैरीकेडिंग की जाएगी। आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस कैमरे लगे हैं, जो हेड काउंट करेंगे। अगर किसी एक एरिया में 2 हजार लोगों के खड़े होने की जगह है, तो वहां 1800 होते ही संबंधित अफसर को जानकारी हो जाएगी। कुंभ में 100 फेस रिकग्निेशन कैमरे लगाए गए हैं। पुलिस रिकार्ड ें पहले से संदिग्धों को आसानी से चिन्हित किया जा सकेगा। 2700 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। मेले में पहली बार गूगल नेवीगेशन और एआई चैटबाट का प्रयोग किया गया है। गूगल के जरिए कुंभ के हर हिस्से में श्रद्धालु पहुंच सकते हैं। एआई चैटबाट के जरिए कुंभ से जुड़ी हर जानकारी हासिल कर सकते हैं। इसे 12 भाषाओं में बनाया गया है।
मेगा इवेंट
महाकुंभ में इंटरनेशनल लेवल के कुल 25 मेगा इवेंट निर्धारित किए गए हैं। इसे विदेशी कम्पनियों ने डिजाइन किया है। एक कार्यक्रम में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और दो इवेंट में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शामिल होंगे। 10 से ज्यादा देशों के राष्ट्राध्यक्ष आयेंगे। वर्ष 2013 में भी धार्मिक और सांस्कृतिक प्रोग्राम हुए थे, लेकिन उस वक्त प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और राष्ट्रपति नहीं आए थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 5 से ज्यादा बार आये थे।
शाही स्नानं
वैसे तो महाकुंभ 40 दिनों तक चलेगा। किन्तु शाही स्नान के दिन स्नान करने की विशेष परम्परा एवं महत्व है। कुंभ में शाही स्नान की तिथियों में सबसे अधिक श्रद्धालु स्नान हेतु एकत्रित होते हैं। शाही स्नान की महत्वपूर्ण तिथियां निम्नानुसार हैं।
13 जनवरी 2025- पौष पूर्णिमा
14 जनवरी 2025- मकर संक्रांति
29 जनवरी 2025- मौनी अमावस्या
03 फरवरी 2025- बसंत पंचमी
12 फरवरी 2025- माघी पूर्णिमा
26 फरवरी 2025- महाशिवरात्रि
मान्यतानुसार उक्त तिथियों में त्रिवेणी संगम में स्नान अत्यंत फलदायक माना जाता है अतः उक्त तिथियों में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु एकत्रित पुण्यलाभ अर्जित करते हैं।
महाकुंभ में कचरे का निपटारा
गंगा के किनारे 10000 एकड़ में फैले क्षेत्र में अगले डेढ़ महीनों में इतने लोग आएंगे जितनी कि दुनिया के तमाम देशों की आबादी तक नहीं होगी। इस बार तो अनुमान है 40 करोड़ लोगों के आने का। साधुओं समेत 50 लाख तीर्थयात्री तो पूरे महाकुंभ के दौरान शिविरों में रहने की योजना बना रहे हैं। इस दौरान हर दिन पैदा होने वाले कचरे का प्रबंधन और उसका ट्रीटमेंट अपने आप में बहुत बड़ी चुनौती है। इस दौरान पैदा होने वाले कूड़े-कचरे के निस्तारण और ट्रीटमेंट के लिए इसरो और बार्क की तरफ से तैयार की गई तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। मानव अपशिष्ट खासकर मल-मूत्र और खाना पकाने, वर्तन धोने वगैरह से पैदा हुए अपशिष्ट जल से निपटने के लिए अधिकारी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
योगी आदित्यनाथ की अगुआई वाली यूपी सरकार इस साल महाकुंभ मेले पर 1,600 करोड़ रुपये केवल पानी और वेस्ट मैनेजमेंट के लिए रखे गए हैं। इसमें से भी 316 करोड़ रुपये मेला क्षेत्र को खुले में शौच मुक्त बनाने पर खर्च किए जाएंगे, जिसमें टायलट और यूरिनल की स्थापना और उनकी निगरानी शामिल है। योगी सरकार ने महाकुंभ के बेहतर प्रबंधन के लिए मेला क्षेत्र को यूपी का 76वां जिला घोषित कर रखा है। मेला मैदान को 25 सेक्टरों में बांटा गया है। 29 जनवरी को मौनी अमावस्या का स्नान है।
अधिकारियों को उम्मीद है कि उस दिन महाकुंभ में करीब 50 लाख तीर्थयात्री आस्था की डुबकी लगाएंगे। अधिकारियों का कहना है कि इन लोगों से हर दिन करीब 1.6 करोड़ लीटर मल और तकरीबन 24 करोड़ लीटर गंदा पानी पैदा होने की संभावना है। मेला क्षेत्र में 1.45 लाख शौचालय बनाए गए हैं। इनके अस्थायी सेप्टिक टैंकों में इकट्ठा होने वाले कचरे और स्लज के ट्रीटमेंट के लिए फेकल स्लज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किए गए हैं। कचरे के ट्रीटमेंट के लिए आधुनिक तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कचरे के ट्रीटमेंट में हाइब्रिड ग्रेन्युलर सीक्वेंसिंग बैच रिएक्टर जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस तकनीक को बार्क और इसरो के साथ पार्टनरशिप में विकसित किया गया है।
नदी संस्कृति और प्रयाग
नदी संस्कृति एवं पर्यावरणीय प्रकृति सम्मत जीवनचर्या सनातन काल से हमारे लिये वरणीय है। प्रयाग यानि दो या दो से अधिक नदी प्रवाहों का आपस में मिलना। हमारी संस्कृति में प्रथम महत्वपूर्ण स्थल हैं पंच प्रयाग। पहला है अलकनंदा एवं धौलागिरि का संगम जिसे विष्णु प्रयाग कहते हैं, दूसरा नंदप्रयाग जो अलकनंदा एवं नंदाकिनी नदियों का संगम है, तीसरा है कर्ण प्रयाग जो कि अलकनंदा एवं पि़डर नदियों का संगम है, चौथा रुद्र प्रयाग जो अलकनंदा एवं मंदाकिनी का संगम है तथा पांचवां है देवप्रयाग जो अलकनंदा एवं भागीरथी का संगम है। ये पंच प्रयाग भारतीय सनातन संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। यहां विशेष तिथियों में लोग धार्मिक अनुष्ठानों एवं स्नान हेतु एकत्रित होते हैं। उत्तरप्रदेश के इटावा में यमुना, चंबल, पहुज, सिंद और कुंआरी नदियों का संगम। सतलुज नदी और ब्यास नदी का संगम, गंगा और गंडक का संगम। छत्तीसगढ़ राज्य में राजिम संगम जो राजिम प्रयाग के रूप में पूज्य हैं। यहां पैरी, सोंढुर और महानदी नदियां मिलती हैं। यद्यपि यहां स्थानीय लोगों के द्वारा सतधारा यानि सात नदियों के स़गम की बात भी मानी जाती है। ये सात नदियां हैं महानदी, सोढुर, पैरी, सूखा, सरगी, केशवा और बगनई । इसके अलावा छत्तीसगढ़ में गोदावरी और इंद्रावती का संगम है, जो बीजापुर में होता है इसे भद्रकाली के रूप में पूजा जाता है। छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के सीमा में भमरगढ़ में इंन्द्रावती, पामुल गौतमी एवं कोटरी नदियों का त्रिवेणी संगम है। दक्षिण में कृष्णा एवं तुंगभद्रा का संगम जो कि आलमपुर तेलांगना में होता है । पश्चिम में कृष्णा एवं कोयना मिलकर प्रीति संगम का निर्माण करती हैं।
उल्लेखनीय पहलू ये है कि सनातन भारतीय समाज इस बात के महत्व को समझता है कि नदियों का हमारे जीवन में कितना महत्व है और पर्यावरणीय जीवन संस्कृति ही पूरे विश्व के लिए हितकारी है। जिस सस्टेनेबल डिवेलपमेंट की बड़ी चर्चा पूरे विश्व में है वो हमारी नदी संस्कृति में सदा से मौजूद रहा है। देर सबेर इस नदी संस्कृति में सन्निहित वैज्ञानिकता से देश और दुनिया जरुर संज्ञान लेगी और इस नदी संस्कृति को वैश्विक स्तर पर लागू करने के प्रयास होंगे।
- उत्तम सिंह गहरवार