वर्ष 2020 न केवल भारत के लिए, अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिए अत्यंत ही कष्टकारी वर्ष के रूप में व्यतीत हुआ। इतिहास के अंतर्गत् इस सभ्यता ने ऐसी किसी भी महामारी का कष्ट नहीं झेला, जिससे कि मुक्ति के लिए इतना लम्बा समय लगा हो। अभी भी सम्पूर्ण विश्व कोरोना से मुक्ति पाने के लिए संघर्षरत है।
यद्यपि वैज्ञानिक अपनी भरसक कोशिश कर रहे हैं कि वैक्सीन के माध्यम से इस महामारी से मुक्ति मिल सके। किन्तु कोई ऐसे स्पष्ट समाधान समक्ष दिखाई नहीं दे रहे हैं, जिससे कि यह शत-प्रतिशत दावे के साथ कहा जा सके कि इस कोविड-19 वायरस को समाप्त करने के लिए कोई दवा सक्षमतापूर्वक विकसित हो चुकी है। वास्तव में तो जो भी वैक्सीनों का निर्माण किया जा रहा है, उनके पीछे भी कार्यरत सिद्धांत मानव शरीर की प्रतिरोध क्षमता को ही बलिष्ट करना होता है या उसे उत्प्रेरित कर संभावित संक्रमण को परास्त करने के लिए सक्षमता तैयार करना होता है।
अंतोतगत्वा मानव के शरीर में पूर्व से व्याप्त प्रतिरोधक क्षमता या कृत्रिम रूप से विकसित प्रतिरोधक क्षमता से ही इस रोग पर विजय पाने का मार्ग वैज्ञानिकों ने भी विकसित किया है। ऐसे ही कुछ मार्ग भारत के योगर्षि बाबा रामदेव ने आरंभ से ही प्रस्तावित किया था, जिसमें उनके प्राणायाम विधि अनुलोम विलोम, कपालभांति, भस्त्रिका, योगासान एवं कुछ आयुर्वेदिक औषधियों का संयोजन कर सुरक्षित मार्ग बताया था। हजारों लोगों ने अनुभवों में यह बताया कि बाबा रामदेव की पद्धति से काफी लोग अपने आपको बचा पाए एवं काफी लोग संक्रमित होने के बावजूद तेजी से स्वस्थ भी हो गए।
पातंजलि के द्वारा ‘कोरोनिल’ नामक दवा भी इससे मुक्ति के लिए विकसित कर बाजार में उपलब्ध कराई गई। भारतीय लोगों ने योगाभ्यास, प्राणायाम, आयुर्वेदिक औषधियों, जड़ी-बूटियों का सहारा काफी हद तक लिया एवं साथ ही डॉक्टर एवं वैज्ञानिकों के परामर्श को मानकर सुरक्षित दूरी रखकर तथा संक्रमण से बचने के लिए उपायों को भी अपनाया। विटामिन और खनिजों के सेवन के अतिरिक्त एलोपैथिक औषधियों की अनुशंसा को भी लागों ने अंगीकृत किया। इन सबका समुचित परिणाम रहा कि भारत में जिस तेजी से कोरोना का संक्रमण फैला व हुआ था, उसके दुष्प्रभाव काफी सीमित रहे। पर अभी तक भारत संक्रमण मुक्त नहीं हो पाया है। इसलिए इस दिशा में प्रयास अवश्य जारी रखना आवश्यक है।
इस पृष्ठभूमि पर इस बात का हम अवश्य उल्लेख करना चाहते हैं कि मानव के स्वस्थ रोधक क्षमता बनाए रखने के लिए सुरक्षित वातावरण एवं पर्यावरण शुद्ध वायु, शुद्ध जल, शांत आकाश, शीतल परिवेश अत्यंत आवश्यक है। औद्योगिक सभ्यता के विकास की सबसे बड़ी विसंगति यही है कि पर्यावरण का जो अपरिहार्य एवं अनिवार्य अंग जीवन के लिए सबसे जरूरी है, वह जरूरत से ज्यादा प्रदूषण से संक्रमित हो रहा है। यह सौभाग्य है कि भारत का वार्षिक मौसम चक्र प्रकृति ने ऐसा बनाया है कि ग्रीष्मकाल, वर्षाकाल, शरदकाल एवं उनके साथ मध्य में ऋतु परिवर्तन का संधिकाल आता है। उनके कारण औद्योगिक प्रदूषण का उतना भयावह संचय शेष नहीं रहता, जितना कि यूरोप एवं अमेरिकी महाद्वीप के ठंडे देशों में हो जाता है। पर इस प्राकृतिक सुविधा का यदि हम ज्यादा समय तक दुरूपयोग करेंगे तो वह समय दूर नहीं है, जब इन सभी प्राकृतिक शक्तियों के बावजूद हम अपने पर्यावरण को उस सुरक्षित अवस्था तक कायम नहीं रख सकेंगे, जिससे कि मानव शरीर में अद्भुत रोगरोधन क्षमता विकसित होती है।
कोरोना संक्रमण एवं इससे मुक्ति के मार्ग के मूल्यांकन करने वाले अध्ययनकर्ताओं को इस बात का अवश्य संज्ञान लेना चाहिए कि न केवल भारत का, बल्कि विश्व के अन्य सभी भूभागों में पर्यावरण प्रदूषण का इस रोग के विस्तार एवं दुष्प्रभाव का क्या असर रहा है।
नववर्ष 2021 भारत के लिए एवं विश्व के समस्त मनुष्यों एवं जीव-जन्तुओं के लिए एक नई आशा के साथ आरंभ हो रहा है। जहॉं रोग से मुक्ति के लिए वैक्सीन की संभावना है, वहीं मौसम परिवर्तन से पृथ्वी को मुक्ति दिलाने के लिए अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति श्रीमान ‘जो बाईडन’ के संकल्प से भी एक नई हरित अर्थव्यवस्था (ग्रीन इकोनामी) की संभावना समक्ष प्रतीत हो रही है। हम सभी पाठकों को नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ एवं आने वाले गणतंत्र दिवस की शुभकामनाओं के साथ रोग मुक्त स्वस्थ नववर्ष की शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं।
– संपादक