पर्यावरण ऊर्जा टाइम्स पत्रिका के माध्यम से हमारी संस्था वर्ष 1998 से निरंतर पर्यावरण संरक्षण हेतु जन सामान्य की भूमिका को बढ़ाने हेतु ज्ञान प्रसार का संकल्प लेकर प्रतिमाह प्रकाशित कर रही है। किन्तु कोरोना के गंभीर दुष्प्रभाव ने इसके प्रकाशन को वर्ष 2020 में गंभीर रूप से दुष्प्रभावित किया, तदैव प्रिंट कापी का प्रकाशन बंद करना पड़ा। अभी केवल डिजिटल कापी का ही प्रकाशन किया जा रहा है। इसमें भी समय-समय में व्यवधान उत्पन्न होने से प्रकाशन विलंब हो रहा है। इस महामारी से उत्पन्न भयावह स्थिति के परिणामस्वरूप प्रकाशन में विलंब के लिए हम सभी सुधी पाठकों से क्षमा चाहते हैं।
भारत में भी कोरोना महामारी के आगाज का लगभग एक वर्ष पूर्ण हो चुका था। प्रारंभिक अवस्था में देश में इस महामारी से लड़ने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी, कोई ज्ञान नहीं था, कोई जानकारी नहीं थी और न ही पर्याप्त तैयारियां थीं। तदैव केन्द्र शासन ने लाकडाउन के माध्यम से इसके प्रसार को रोकने के प्रयास किए। साथ ही साथ वैक्सीन निर्माण एवं अन्य उपचार हेतु आवश्यक सभी दवाईयों एवं सामग्रियों के उत्पादन में तेजी से वृद्धि की गई। परिणमातः ऐसा लगता है कि इस वायरस के गंभीर दुष्प्रभावों को आंशिक रूप से रोक पाना संभव हो पाया। वैज्ञानिकों की मान्यता है कि यह एक खतरनाक वायरस है, जो शायद ही कभी समाप्त हो। तदैव इससे लड़ने के लिए अत्यावश्यक है कि जन सामान्य अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमताओं में पर्याप्त वृद्धि करने के सभी प्रयास करें।
चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के द्वारा रोग रोधक क्षमता विकसित करने हेतु दवाओं की सतत् खोज की जा रही है। किन्तु हमारी मान्यता है कि स्वच्छ पर्यावरण एवं स्वस्थ वायुमंडल तथा निर्मल जल मंडल के बिना जीव-जगत का निरंतर स्वस्थ बने रहना कठिन है। कोरोना एक ऐसा वायरस है जो सबसे अधिक फेफड़ों को संक्रमित कर प्रभावित करता है, जिससे सामान्य व्यक्ति की श्वसन शक्ति प्रभावित होकर आक्सीजन के अभाव में मृत्यु हो जाती है। तदैव यह अत्यंत अनिवार्य है कि रोग रोधक क्षमता को श्रेष्ठ स्तर पर बनाए रखने के लिए वायुमंडल में न्यूनतम प्रदूषण हो या अति नगण्य हो। इसी प्रकार रोग रोधक क्षमता विकसित करने हेतु निर्मल जल के महत्व को पुनः रेखांकित करने की आवश्यकता नहीं है। जापान के ओकिनावा द्वीप समूह में विश्व में सर्वाधिक स्वस्थ एवं दीर्घायु लोग पाए जाते हैं। वैज्ञानिक विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इसके पीछे सबसे बड़ा कारण द्वीप का एकदम स्वच्छ तथा निर्मल पर्यावरण ही है।
अतः हमें भी अपने स्थानीय, राष्ट्रीय एवं वैश्विक पर्यावास को स्वास्थ्य के लिए श्रेष्ठकर बनाने हेतु समस्त प्रयास करना चाहिए। हमारी सरकार प्रति वर्ष फरवरी माह में आर्थिक बजट लेकर आती है, जिससे हमें सरकार के आर्थिक आय तथा व्यय के लेखा-जोखा का ज्ञान होता है। सरकार अर्थव्यवस्था के नियोजन हेतु आर्थिक आंकड़ों को जिस प्रकार प्रस्तुत करती है, उसी प्रकार आवश्यकता है कि हम अपने प्राकृतिक पर्यावरणीय घटकों का भी बजटीय निरूपण करें। हमें आंकलन कर जन सामान्य को बताना चाहिए कि विशाल भूभाग पर बसने वाले लोगों के स्वस्थ एवं सुरक्षित जीवन के लिए कितनी शुद्ध हवा, कितना निर्मल जल, कितना विषमुक्त खाद्य, कितना प्रदूषण मुक्त आकाश उपलब्ध है? हमें बताना होगा कि हमारे भविष्य के विकास की दिशा एवं मार्ग केवल संरक्षित एवं सुरक्षित पर्यावरणीय बजट पर ही आश्रित हों।
वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण के कानूनी मार्ग अत्यंत क्षीण तथा अपर्याप्त हैं। केवल सजा एवं जुर्माने के माध्यम से पर्यावरणीय घटकों को संतुलित करके सुरक्षित रखना दुष्कर है। प्रत्येक उद्यम, प्रत्येक आर्थिक गतिविधि का एक टूल ‘‘पर्यावरणीय दुष्प्रभाव पदचिन्ह (एनवायरमेंट फुटप्रिंट)’’ बनाना आवश्यक है। जिसका सहज ज्ञान सभी नागरिकों को हो तथा इस टूल में प्रदूषण मुक्ति के विकल्प एवं पर्यावरण संरक्षण के मार्गों की भी जानकारी होना आवश्यक है, तभी हम वर्तमान जनसंख्या एवं अन्य सभी जीव-जन्तुओं एवं वनस्पतियों के लिए पृथ्वी के पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं। आइए! हम सभी सुधी पाठक मिलकर चिंतन करें कि पंच-तत्वीय पर्यावरणीय घटकों का बजट हम कैसे निरूपित कर सकें, ताकि आने वाली पीढ़ियों की धरोहर को हम यथाश्रेष्ठ गुणवत्ता के साथ सहेज कर उन्हें सौंप सकें।
–संपादक