आज दुनियाभर में विश्व मृदा दिवस मनाया जा रहा है। बढ़ते प्रदूषण और खेती में केमिकलों के लगातार बढ़ते इस्तेमाल से हमारी मिट्टी की क्वालिटी लगातार खराब होती जा रही है। विश्व के बहुत से भागों में उपजाऊ मिट्टी लगातार बंजर हो रही है और किसानों द्वारा ज्यादा रसायनिक खादों और कीड़ेमार दवाओं का इस्तेमाल करने से मिट्टी के जैविक गुणों में कमी आने के कारण इसकी उपजाऊ क्षमता में गिरावट आ रही है। किसानों और आम जनता को मिट्टी की सुरक्षा के लिए जागरुक करने के मकसद से संयुक्त राष्ट्र ने 2013 में हर वर्ष 5 दसंबर को विश्व मिट्टी दिवस मनाने का फैसला लिया गया था।
दरअसल पांच दिसंबर को थाईलैंड के राजा भूमिबोल अदुल्यादेज के जन्मदिन पर मनाया जाता है। राजा भूमिबोल अदुल्यादेज किसानों के बीच काफी लोकप्रिय थे और ऐसा माना जाता है कि राजा भूमिबोल ने 70 साल तक थाइलैंड पर शासन किया था। अपने शासन काल में राजा भूमिबोल ने कृषि पर विशेष ध्यान दिया था और कृषि सुधार को लेकर कई सुधार भी किए थे। ऐसा भी कहा जाता है कि राजा भूमिबोल अपने देश के हर गरीब और किसान से हर समय मुलाकात के लिए तैयार रहते थे उनकी समस्याओं को दूर करने का हरसंभव प्रयास करते थे।
मिट्टी का महत्व
मिट्टी पृथ्वी की एक चौथाई जैव विविधता का घर है। मृदा प्रदूषण को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि खराब मृदा प्रबंधन जमीन के नीचे के सूक्ष्म जीवों को प्रभावित करेगा। ये सूक्ष्मजीव पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) को संरक्षित करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। वे नाइट्रोजन को स्थिर करने में मदद करते हैं, जो पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक है। वे अपघटन की प्रक्रिया द्वारा मिट्टी में पोषक तत्व भी जोड़ते हैं।
हमारे भोजन का 95 प्रतिशत भाग मिट्टी से ही आता है और वर्तमान में विश्व की संपूर्ण मिट्टी का 33 प्रतिशत पहले से ही बंजर या खराब हो चुका है। खेतों की मिट्टी के लिए जरूरी पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और सूक्ष्म तत्व (माइक्रोन्यूट्रेएंट्स) के अनुपात का गणित गड़बड़ा गया है, जिससे मिट्टी की सेहत लगातार गिरती जा रही है। खराब होती देश की मिट्टी को देखते हुए ही केंद्र सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना शुरू की थी। इसके तहत हर किसान के खेत की मिट्टी की जांच करके उसके रिजल्ट के आधार पर ही किसानों को पोषक तत्वों की तय मात्रा को इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है।
केमिकलों से खराब होती जमीन
मिट्टी की जांच के आधार पर अगर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले की बात करें तो यहां कृषि वैज्ञानिकों ने करीब साढ़े 3 लाख हेक्टेयर जमीन से 85 हजार सैम्पल लिए थे। इन सैम्पलों की रिपोर्ट बताती है
कि जिले की मिट्टी में पोषक तत्वों की संतुलन बुरी तरह से बिगड़ गया है। मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का अनुपात 4ः2ः1 होना चाहिए। लेकिन जांच से पता चला है कि मिट्टी में नाइट्रोजन की बहुत कमी हुई है और पौधों को सांस लेने और अपना भोजन बनाने के लिए नाइट्रोजन की ही जरूरत होती है। सूक्ष्म तत्वों में से सल्फर की मात्रा भी कम है।
जांच से पता चला है कि मिट्टी के 85 फीसदी नमूनों में नाइट्रोजन कम मिला है और नाइट्रोजन 15 फीसदी के निम्न स्तर पर पहुंच गया है। 11 फीसदी क्षेत्र में फास्फोरस की 53 फीसदी कमी देखी गई है। 27 फीसदी क्षेत्र में फास्फोरस की अधिकता पाई गई है। 90 फीसदी इलाके में पोटाश की कहीं ज्यादा तो कहीं कम मात्रा देखने को मिली है। 60 फीसदी इलाके में सल्फर की कमी देखी गई है। इसके अलावा मैंगनीज और कापर की भी कई इलाकों में कमी देखी गई है।
मिट्टी की जांच अभियान
मिट्टी के गिरते स्तर को सुधारने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में मृदा सोयल हेल्थ कार्ड जारी करने के लिए अभियान शुरू किया था। इस अभियान के तहत देश के हर किसान के खेत की मिट्टी की जांच कर उन्हें मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराना है, ताकि किसान कृषि वैज्ञानिकों द्वारा केमिकलों की संतुलित मात्रा का अपने खेतों में इस्तेमाल कर सकें।
मिट्टी की जांच में घोटाला
उत्तर प्रदेश में मिट्टी की जांच अभियान में एक बड़ा घोटाला सामने आया था।
घोटाले के जांच होने पर 9 कृषि अधिकारियों को सस्पेंड भी किया गया था। जांच में पाया गया कि मिट्टी की जांच के जरूरी सामान की खरीद में बड़ा घोटाला किया गया था। प्रशासन ने पूरे मामले में संयुक्त निदेशक स्तर के दो अधिकारी, उप निदेशक स्तर के पांच तथा सहायक निदेशक स्तर के दो अधिकारियों को सस्पेंड करते हुए चार कंपनियों को ब्लैकलिस्ट भी किया था। योगी सरकार ने मृदा परीक्षण के लिए जांच एजेंसी के चयन में टेंडर की शर्ते भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुरूप नहीं होने, अनियमितता पाये जाने तथा फर्म विशेष को फायदा पहुंचाने के लिए टेंडर की शर्तों में बदलाव करने के आरोप में नौ अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया था।
क्यों जरूरी हैं मिट्टी में पोषक तत्व
पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए उन्हें 18 पोषक तत्वों की जरूरत होती है। ये पोषक तत्व उन्हें हवा, पानी और मिट्टी से मिलते हैं। 6 मुख्य पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम और सल्फर पौधों को मिट्टी से मिलते हैं। मिट्टी में इन पोषक तत्वों में से किसी की भी कमी होने पर पौधे अपना जीवन-चक्र सफलतापूर्वक पूरा नहीं कर पाते हैं।
भारत में मृदा संरक्षण
भारत क्षेत्रीय मृदा संरक्षण कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित करता है। उदाहरण के लिए, सोहरा पठार में मिट्टी की नमी बढ़ाने के लिए चेरापूंजी पारिस्थितिक परियोजना शुरू की गई थी। हालांकि, राष्ट्रीय कृषि विज्ञान योजना, जो देश में बारानी कृषि प्रणालियों के विकास पर केंद्रित है, पूरे भारत में मिट्टी की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करती है। साथ ही मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना भी शुरू की गई है।
उत्तम सिंह गहरवार