दुनिया पैसा कमाने की फिक्र में दिन रात काम कर रही है लेकिन वो शायद भूल रही है कि जिन पैसो को कमाने में वो दिन रात एक कार रही है वो आपको एक अंतराल तक ही सुख सुविधा दे सकेगा अंत मे सुकून से जीने के लिए प्राकृतिक संसाधनों की ही जरूरत पड़ेगी जिसे न पैसे से खरीदा जा सकता है और न ही नया उत्पन्न किया जा सकता है ।
आज हम आपको प्राकृतिक संसाधनो में से एक उस पानी के बारे में बताएंगे जो पृथ्वी पर एक तिहाई मौजूद है जिसे हम ओसियन और सी कहते हैं। माना कि इसका पानी पीने लायक नही है लेकिन इसका ये मतलब कतई भी नही है कि वो किसी काम का नही है, बल्कि ये कहना गलत नही होगा कि हमे इन समुद्र और महासागरों की सबसे ज्यादा जरूरत है। बिना समुद्र और महासागरों के हम जीवन की कल्पना ठीक उसी तरह से नही कर सकते जिस तरह से जीने के लिए सांस और पीने की पानी की जरूरत होती है। लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ये दोनों चीज़े अगर सही औए स्वच्छ मात्रा में हमे आज मिल पा रही हैं, तो इसका मुख्य कारण भी वही समुद्र और महासागर हैं जिसे हम बार बार ये कहकर कोसते है कि इसमें खारा पानी है जो हमारे लिए किसी काम का नही है।
पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से प्रभावित है, जहां एक तरफ बाढ़ का खतरा हमेशा बना रहता है तो वही दूसरी तरफ सूखा पड़ने से भी पानी की जबरदस्त किल्लत होती है। इस प्रकार के प्राकृतिक आपदाओं के लिए कहीं न कहीं हम सभी जिम्मेदार है। एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन, प्रकृति में संतुलन बनाए रखने वाले फंगस के काम करने के तरीकों पर प्रभाव डाल रहा है।
एक अन्य रिपोर्ट पौधों के 350 गुना तेजी से विलुप्त होने के बारे में सचेत कर रही है। वहीं इन सब से समुद्र भी अछूता नहीं है । वहां भी कुछ न कुछ उथल-पुथल जारी है। नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन की वजह से दक्षिणी महासागर की कार्बन डाइआक्साइड को सोखने की क्षमता को बदल रहा है। इस बदलाव के कारण जलवायु परिवर्तन लंबे समय तक बढ़ सकता है।
पश्चिमी अंटार्कटिक प्रायद्वीप पृथ्वी का सबसे तेजी से होने वाले जलवायु परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, जिसके तापमान में नाटकीय रूप से वृद्धि हो रही है। ग्लेशियर पीछे हट रहे हैं और इसमें समुद्र की बर्फ का तेजी से पिघलना शामिल है। जलवायु परिवर्तन से जुड़ी प्रमुख ग्रीन हाउस गैस जो दुनिया के सभी महासागरों द्वारा अवशोषित होती है, दक्षिणी महासागर कार्बन डाइ आक्साइड के लगभग आधे हिस्से को अवशशोषण करता है।महासागरों के कार्बन डाइआक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता में कमी से दुनिया भर में अधिक गर्मी पैदा करने वाली गैस वातावरण में मिल सकती है।
जब महासागर वैश्विक कार्बन डाइ आक्साइड निकलने का एक तिहाई हिस्सा अवशोषित करते हैं, तो वहीं नदियाँ भी उत्सर्जित करने के लिए जिम्मेदार है। जलीय जीवन की गतिविधियों और रसायन विज्ञान की वजह से नदियां कार्बन डाइ आक्साइड लेती हैं नदियों को मुख्य रूप से 3 मुख्य ग्रीनहाउस गैसों के साथ विलय किया जाता है, कार्बन डाइ आक्साइड मीथेन और निटोर्स आक्साइड। लेकिन जल प्रदूषण के कारण, नदियों के आसपास के भूमि उपयोग और भूमि कवर परिवर्तन से वायुमंडलीय मात्रा की तुलना में नदियों में इन गैसों की मात्रा 4.5 गुना बढ़ जाती है। इस हिसाब से ये नदियाँ हर साल 3.9 बिलियन टन कार्बन छोड़ती हैं जो वैश्विक विमानन उद्योग से प्रतिवर्ष निकलने वाली कार्बन की मात्रा का लगभग चार गुना है। यह अनुमान है कि नदियों और झीलों जैसी जलीय प्रणालियां वायुमंडलीय मीथेन में 50ः से अधिक योगदान देती हैं और वैश्विक नदी नाइट्रस आक्साइड उत्सर्जन मानव उत्सर्जन के 10ः से अधिक हो गया है इसके अलावा हमें ये नहीं भूलना चाहिए की कार्बन डाइ आक्साइड की तुलना में मीथेन 84 गुना अधिक शक्तिशाली गैस है।
रविन्द्र गिन्नौरे