अभी तक लोगों को गायों की साहीवाल, गिर, थारपारकर जैसी देसी नस्लों के बारे में ही पता है, लेकिन आज हम ऐसी ही गाय की देसी नस्लों के बारे में बता रहे हैं जिनमें से कई विलुप्त हो गईं हैं और कुछ विलुप्त होने के कागार पर हैं। वैज्ञानिक रिसर्चों में जब से यह प्रमाणित हुआ है की देशी गाय का ए-2 मिल्क मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे श्रेष्ठ है तब से भारतीय नस्ल की देसी गाय सबकी जुबान पर हैं। विलुप्त के कगार पर खड़ी भारतीय नस्ल की गायों की दूध 80 रूपए से लेकर 120 रूपए किलो तक बिकता है, वहीं गाय और बुल की कीमत लाखों में हैं।
अभी अनुसंधान केन्द्र में साहीवाल (पंजाब), हरियाणा (हरियाणा), गिर (गुजरात), लाल सिंधी (उत्तरांचल), मालवी (मालवा मध्यप्रदेश), देवनी (मराठवाड़ा महाराष्ट्र), लाल कंधारी (बीड़ महाराष्ट्र) राठी (राजस्थान), नागौरी (राजस्थान), खिल्लारी (महाराष्ट्र), वेचुर (केरल), थारपरकर (राजस्थान), अंगोल (आन्ध्र प्रदेश), काकरेज (गुजरात) जैसी देसी गायों के नस्ल संरक्षण पर अनुसंधान चल रहा है।
यह हैं भारतीय गोवंश की नस्लें
साहीवाल प्रजातिः
साहीवाल भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। यह गाय मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। यह गाय सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं जिसकी वजह से दुग्ध व्यवासायी इन्हें काफी पसंद करते हैं। यह गाय एक बार मां बनने पर करीब 10 महीने तक दूध देती है। अच्छी देखभाल करने पर ये कहीं भी रह सकती हैं। साहीवाल गाय मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पाई जाती है।
गिर प्रजातिः
गिर गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है। यह गाय एक दिन में 50 से 80 लीटर तक दूध देती है। इस गाय के थन बहुत बड़े होते हैं। इस गाय का मूल स्थान काठियावाड़ (गुजरात) के दक्षिण में गिर जंगल है, जिसकी वजह से इनका नाम गिर गाय पड़ गया। भारत के अलावा इस गाय की विदेशों में भी काफी मांग है। इजराइल और ब्राजील में भी मुख्य रुप से इन्हीं गायों का पाला जाता है। गिर गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है।
लाल सिंधी प्रजातिः
लाल रंग की इस गाय को अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए जाना जाता है। लाल रंग होने के कारण इनका नाम लाल सिंधी गाय पड़ गया। यह गाय पहले सिर्फ सिंध इलाके में पाई जाती थीं। लेकिन अब यह गाय पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा में भी पायी जाती हैं। इनकी संख्या भारत में काफी कम है। साहिवाल गायों की तरह लाल सिंधी गाय भी सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं।
राठी प्रजातिः
भारतीय राठी गाय की नस्ल ज्यादा दूध देने के लिए जानी जाती है। राठी नस्ल का राठी नाम राठस जनजाति के नाम पर पड़ा। यह गाय राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर इलाकों में पाई जाती हैं। यह गाय प्रतिदन 6 -8 लीटर दूध देती है।
कांकरेज प्रजातिः
कांकरेज गाय राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भागों में पाई जाती है, जिनमें बाड़मेर, सिरोही तथा जालौर ज़िले मुख्य हैं। इस नस्ल की गाय प्रतिदिन 5 से 10 लीटर तक दूध देती है। कांकरेज प्रजाति के गोवंश का मुँह छोटा और चौड़ा होता है। इस नस्ल के बैल भी अच्छे भार वाहक होते हैं। अतः इसी कारण इस नस्ल के गौवंश को ‘द्वि-परियोजनीय नस्ल’ कहा जाता है।
थारपरकर प्रजातिः
यह गाय राजस्थान में जोधपुर और जैसलमेर में मुख्य रूप से पाई जाती है। थारपारकर गाय का उत्पत्ति स्थल ‘मालाणी’ (बाड़मेर) है। इस नस्ल की गाय भारत की सर्वश्रेष्ठ दुधारू गायों में गिनी जाती है। राजस्थान के स्थानीय भागों में इसे ‘मालाणी नस्ल’ के नाम से जाना जाता है। थारपारकर गौवंश के साथ प्राचीन भारतीय परम्परा के मिथक भी जुड़े हुए हैं।
हरियाणवी प्रजातिः
इस नस्ल की गाय सफेद रंग की होती है। इनसे दूध उत्पादन भी अच्छा होता है। इस नस्ल के बैल खेती में अच्छा कार्य करते हैं इसलिए हरियाणवी नस्ल की गायें सर्वांगी कहलाती हैं।
देवनी प्रजातिः
देवनी प्रजाति के गोवंश गिर नस्ल से मिलते-जुलते हैं। इस नस्ल के बैल अधिक भार ढोने की क्षमता रखते हैं। गायें दुधारू होती हैं।
नागौरी प्रजातिः
इस नस्ल की गाय राजस्थान के नागौर जिले में पाई जाती है। इस नस्ल के बैल भारवाहक क्षमता के विशेष गुण के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध है।
नीमाड़ी प्रजातिः
नीमाड़ी प्रजाति के गोवंश काफी फुर्तीले होते हैं। इनके मुँह की बनावट गिर जाति की जैसी होती है। गाय के शरीर का रंग लाल होता है, जिस पर जगह-जगह सफेद धब्बे होते हैं। इस नस्ल की गाय दूध उत्पादन के मामले में अच्छी है।
सीरी प्रजातिः
इस नस्ल के गोवंश दार्जिलिंग के पर्वतीय प्रदेश, सिक्किम एवं भूटान में पाये जाते हैं। इनका मूल स्थान भूटान है। ये प्रायः काले और सफेद अथवा लाल और सफेद रंग के होते हैं। सीरी जाति के पशु देखने में भारी होते हैं।
मेवाती प्रजातिः
मेवाती प्रजाति के गोवंश सीधे-सीधे तथा कृषि कार्य हेतु उपयोगी होते हैं। इस नस्ल की गायें काफी दुधारू होती हैं। इनमें गिर जाति के लक्षण पाये जाते हैं तथा पैर कुछ ऊँचे होते हैं। इस नस्ल के गोवंश हरियाणा राज्य में पाये जाते हैं।
हल्लीकर प्रजातिः
हल्लीकर के गोवंश मैसूर (कर्नाटक) में सर्वाधिक पाये जाते हैं। इस नस्ल की गायें सबसे ज्यादा दूध देती है।
भगनारी प्रजातिः
भगनारी प्रजाति के गोवंश नारी नदी के तटवर्ती इलाके में पाये जाने की वजह से इस नस्ल का नाम ‘भगनारी दिया गया है। इस नस्ल के गोवंश नदी तट पर उगने वाली घास व अनाज की भूसी पर करते हैं। गाये दुधारू होती है।
कंगायम प्रजातिः
इस प्रजाति के गोवंश काफी फुतीले होते है। इस जाति के गोवंश कोयम्बटूर के दक्षिणी इलाकों में पाये जाते हैं। दूध कम देने के बावजूद भी यह गाय 10-12 सालों तक दूध देती है।
मालवी प्रजातिः
मालवी प्रजाति के बैलों का उपयोग खेती तथा सड़कों पर हल्की गाड़ी खींचने के लिए किया जाता है। इनका रंग लाल, खाकी तथा गर्दन काले रंग की होती है। इस नस्ल की गायें दूध कम देती हैं। मध्य प्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र में यह नस्ल पायी जाती है।
गावलाव प्रजातिः
गावलाव प्रजाति के गोवंश को सर्वोत्तम नस्ल माना गया है। मध्य प्रदेश के सतपुड़ा, सिवनी क्षेत्र व महाराष्ट्र के वर्धा, नागपुर क्षेत्र में इस जाति के गोवंश पाये जाते हैं। गायों का रंग प्रायः सफेद तथा गलंकबल बड़ा होता है। इनका दूध उत्पादन भी अच्छा होता है।
वेचूर प्रजातिः
वेचूर प्रजाति के गोवंश पर रोगों का कम से कम प्रभाव पड़ता है। इस जाति के गोवंश कद में छोटे होते हैं। इस नस्ल की गायों के दूध में सर्वाधिक औषधीय गुण होते हैं। इस जाति के गोवंश को बकरी से भी आधे खर्च में पाला जा सकता है।
बरगूर प्रजातिः
बरगूर प्रजाति के गोवंश तमिलनाडु के बरगुर नामक पहाड़ी क्षेत्र में पाये गये थे। इस जाति की गायों का सिर लम्बा, पूँछ छोटी व मस्तक उभरा हुआ होता है। बैल काफी तेज चलते हैं। गायों की दूध देने की मात्रा कम होती है।
कृष्णाबेलीः
कृष्णाबेली प्रजाति के गोवंश महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में पाये जाते हैं। इनके मुँह बड़ा, सींग और पूँछ छोटी होती है। इन गायों से भी अच्छा दूध उत्पादन होता है।
डांगी प्रजातिः
इस प्रजाति के गोवंश अहमद नगर, नासिक और अंग्स क्षेत्र में पाये जाते हैं। गायों का रंग लाल, काला व सफेद होता है। गायें कम दूध देती हैं।
पवार प्रजातिः
इस नस्ल के गोवंश उत्तर प्रदेश के रुहेलखण्ड में पाये जाते हैं। इनके सींगों की लम्बाई 12 से 18 इंच तक होती है। इनकी पूंछ लम्बी होती है। इनके शरीर का रंग काला और सफेद होता है। यह गाय कम दूध देती है।
अंगोल प्रजातिः
अंगोल प्रजाति तमिलनाडु के अंगोल क्षेत्र में पायी जाती है। इस जाति के बैल भारी बदन के और ताकतवर होते हैं। इनका शरीर लम्बा, किन्तु गर्दन छोटी होती है। यह प्रजाति सूखा चारा खाकर भी जीवन निर्वाह कर सकती है। इस नस्ल के ऊपर ब्राजील काम कर रही है।
हासी-हिसारः
हासी-हिसार प्रजाति के गोवंश हरियाणा के हिसार क्षेत्र में पाये जाते हैं। इस नस्ल के गोवंश का रंग सफेद व खाकी होता है। इस प्रजाति के बैल को खेती के लिए प्रयोग किया जाता है।
बचौर प्रजाति
इस नस्ल के गोवंश बिहार प्रांत के तहत सीतामढ़ी जिले के बचौर एवं र्कोइलपुर परगनां में पाये जाते हैं। इस जाति के बैलों का प्रयोग खेतों में किया जाता है। इनका रंग खाकी, ललाट चौड़ा, आंखें बड़ी-बड़ी और कान लटकते हुए होते हैं।
आलमवादी प्रजाति
इस प्रजाति के गोवंश कर्नाटक राज्य में पाये जाते हैं। इनका मुँह लम्बा और कम चौड़ा होता है तथा सींग लम्बे होते हैं।
केनवारिया प्रजाति
इस प्रजाति के गोवंश बांदा जिला के केन नदी के तट पर पाये जाते हैं। इनके सींग काँकरेज जाति के पशुओं जैसी होती हैं। गायें कम दूध देती हैं।
खेरीगढ़ प्रजाति
इस प्रजाति के गोवंश खेरीगढ़ क्षेत्र में पाये जाते हैं। गायों के शरीर का रंग सफेद होता है। इनकी सींग बड़ी होती है। इस नस्ल के बैल फुर्तीले होते हैं और मैदानों में स्वच्छन्द रूप से चरने से स्वस्थ एवं प्रसन्न रहते हैं। इस नस्ल की गायें कम दूध देती है।
खिल्लारी प्रजाति
इस प्रजाति के गोवंश का रंग खाकी, सिर बड़ा, सींग लम्बी और पूँछ छोटी होती है। इनका गलंकबल काफी बड़ा होत है। खिल्लारी प्रजाति के बैल काफी शक्तिशाली होते हैं लेकिन गायों में दूध देने की क्षमता कम होती है। यह नस्ल महाराष्ट्र तथा सतपुड़ा (म.प्र.) क्षेत्रों में पायी जाती है।
अमृतमहाल प्रजाति
इस प्रजाति के गोवंश कर्नाटक राज्य के मैसूर जिले में पाये जाते हैं। इस नस्ल का रंग खाकी, मस्तक तथा गला काले रंग का, सिर और लम्बा, मुँह व नथुने कम चौड़े होते हैं। इस नस्ल के बैल मध्यम कद के और फुर्तीले होते हैं। गायें कम दूध देती है।
दज्जल प्रजाति
भगनारी नस्ल का दूसरा नाम ‘दज्जल नस्ल’ है। इस नस्ल के पशु पंजाब के दरोगाजी खाँ जिले में बड़ी संख्या में पाले जाते हैं। कहा जाता है कि इस जिले के कुछ भगनारी नस्ल के सांड़ खासतौर पर भेजे गये थे। यही कारण है कि दरोगाजी खाँ में यह नस्ल काफी पायी जाती है। इस नस्ल की गाय में अधिक दूध देने की क्षमता होती है।
धन्नी प्रजाति
इस नस्ल की गोवंश पंजाब में पाए जाते है। इस नस्ल के पशु बहुत फुर्तीले होते हैं। पंजाब के अनेक भागों में इन्हें पाला जाता है। इनकी गाय दुधारु नहीं होती है। इस नस्ल में दुग्धोत्पादन की क्षमता में वृद्धि के लिए विशेष ध्यान दिया ही नहीं गया।
आर.के. शुक्ला