एंटोमोपैथोजेनिक निमाटोड से जैविक कीट नियंत्रण

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‘एंटोमोपैथोजेनिक’ निमाटोड शब्द मूलतः ग्रीक शब्द है जो इन्टोमोन और पैथोजेनिक नामक दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘इंटोमोन का अर्थ है कीट’ तथा ‘पैथोजेनिक’ का अर्थ है ‘रोगजनक’। अर्थात् एंटोमेपैथोजेनिक निमाटोड सूत्रकृमि का ऐसा समूह है जो कीटों में रोग उत्पन्न करता है या उनकी मृत्यु का कारण बनता है। एंटोमोपैथेजेनिक उपयोग हानिकारक कीटों के जैविक नियंत्रण में किया जा सकता है। हेटेरोरेबिटाइडी और स्टीनिरनिमेटाइडी परिवारों के निमोटोड कीटों के परजीवी है और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण नाशी जीवों एवम् हानिकारक कीटों के जैविक नियंत्रण कारकों के रूप में उपयोग किये जाते है।

जैविक कीट नियंत्रण
पौधे एवं फसल वृद्धि के लिए आजकल कीटनाशकों का प्रयोग अत्यधिक बढ़ गया है इन कीटनाशकों के दुष्प्रभाव का कारण इतना अधिक है कि यह मनुष्य भूमि व सूक्ष्म जीवों को अत्यंत हानि पहुँचा रहा है। कीटनाशक हर प्रकार के सूक्ष्म जीवों को खत्म कर देता है। इसी दुष्प्रभाव को कम करने के लिए जैविक कीट नियंत्रण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका प्रयोग मुख्यतः कीटनाशी जीवों का प्रबन्ध और पौधें वृद्धि के लिए किया जाता है।
जब फसलों में कीट-पतंगों को नियंत्रित करने के लिए अन्य जीवों का प्रयोग होता है तो इसे जैव नियंत्रण कहते हैं। वर्तमान में, ईपीएन जैविक नियंत्रक कारक का उपयोग विश्व के कई महत्वपूर्ण हानिकारक कीटों को नियंत्रित करने के लिए किया जा रहा है। जिससे कई महत्वपूर्ण हानिकारक कीट नियंत्रित हो सके। यह एक गैर रासायनिक प्रक्रिया है।

ईपीएन की सीमाएं
-ईपीएन के उपयोग का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह वातावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं डालता है। -ईपीएन में मेजबान कीट को ढूँढ कर मारने की क्षमता होती है। -ईपीएन के साथ अन्य रासायनों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। -ईपीएन को जीवित रहने व पर्याप्त मात्रा में वृद्धि के लिए पर्याप्त नमी व उचित तापमान की आवश्यकता होती है। -ईपीएन किसी विशेष कीट को संक्रमित करने के साथ-साथ अन्य कीटों पर संक्रमण करने की क्षमता रखता है। -ईपीएन व उससे जुड़े जीवाणु स्तनधारियों या पौधों के लिए कोई हानिकारक प्रभाव नहीं डालते है। -ईपीएन सामान्यतः 24-48 घण्टों की अवधि में कीटों को मार देता है।

ईपीएन के लिए आवश्यक शर्ते
-ईपीएन के प्रयोग के लिए मिट्टी का तापमान मिट्टी में उपस्थित नमी व सूर्य की किरणों का सही आकलन जरूरी है।
-ई.पी.एन के प्रयोग के समय उनके जीवन चक्रों और कार्यों को समझने के लिए कीट- कीटनाशकों की सही प्रजातियों के साथ ई.पी.एन की प्रजाति से मेल आवश्यक है।
-ई.पी.एन के साथ उचित सूत्रकृमि मेजबान की तलाश वाली रणनीति का मिलान आवश्यक है क्योंकि ईपीएन के आवेदन में खराब मेजबान उपयुक्त्ता सबसे आम गलती होती है।
-इन सब के अतिरिक्त जैसे क्षेत्र, मात्रा, सिंचाई और उपयुक्त सबसे अनुप्रयोग पद्धति बहुत महत्वपूर्ण है।

कीटों को संक्रमित करने की विधि-
तृतीय तरूण प्रावस्था (प्श्र) संक्रामक होती है। ये मिट्टी में कई महीनों तक मुक्त अवस्था में रह सकते हैं तथा कई कीटों की प्रजातियों को संक्रमित करने में सक्षम होते है।

सबसे अधिक जैव नियंत्रण प्रयोग किए जाने वाले एंटोमोपैथेजेनिक निमाटोड्स वे हैं, जो हानिकारक कीटों के नियंत्रण में उपयोग किए जाते हैं। उदाहरण के लिए ‘स्टेनर्नेमैटिड’ और ‘हेटेरोरैहबडाइटिस’ के सदस्य । ई.पी.एन. पारदर्शी परिवार के जीवाणुओं से संबधित होते हैं।

स्टेनर्नेमेटिड वंश से संबंधित जीवाणु की प्रजाति ‘जिनोबडर्स’ है तथा हेटेरोरैहबडइटिस वंश से संबंधित जीवाणु की प्रजाति ‘फोटोरबडस’ है। ये जीवाणु इन निमाटोड्स की आँतों से संबंधित रहते है। इ.पी.एन. अन्य परजीवी एवं पादप सूत्रकृमि से भिन्न होता है क्योंकि इसके साथ उनके अन्तः पारस्परिक संबधों के कारण वे अपने मेजबानों को अन्य के मुकाबले कम अवधि में मार देते हैं। यह अपने मेजबान को कमजोर अथवा निष्क्रिय कर देते हैं।

इ.पी.एन. केवल कीटों को मारने में सक्षम है।
ई.पी.एन. मिट्टी में रहने वाले निमाटोड के एक समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं। जो कीटों एक बड़ी श्रृंखला पर परजीवी होते हैं। ‘स्टेनर्नेमैटिड’ में 70 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं तथा ‘हैटेरोरैहबडाइटिस’ में लगभग 20 प्रजातियाँ उपस्थित हैं।

ई.पी.एन. का जीवन चक्र
ई.पी.एन. अपने जीवन चक्र का अधिकांश समय कीटों के शरीर में पूरा करता है लेकिन संक्रमण तरुण अवस्था इसका अपवाद हैं जो कि मुक्त अवस्था में मिट्टी में पाया जाता है।

‘स्टेनर्नेनीमा’ तथा ‘हेटेरोरैबडाइटिस’ की संक्रमण तरुण प्रावस्था किसी कीट में उसके शरीर के सामान्य छेदों के द्वारा प्रवेश करता है जैसे कि मुख, गुदाद्वार अथवा वायुमार्ग।

हैटेरोरैबडाइटिस की संक्रमण तरुण अवस्था मेजबान कीट के छल्ली के अंतरखंडीय झिल्ली के द्वारा भी शरीर में प्रवेश करती है।
कीट के शरीर में प्रवेश करने के बाद संक्रमण तरुण निमाटोड अपने आँतों में उपस्थित पारम्परिक संगठन वाले बैक्टीरिया को मुक्त कर देता है और यह तेजी से विभाजित करने लगते हैं।

‘वंश ‘जीनोरैबडट्स’ के बैक्टीरिया ‘स्टीनर्नेमाइडिस’ के लिए काम करतें हैं तथा वंश ‘फोटोरैबड्टस’ के बैक्टीरिया हेटेरोरैबडाइटिड्स के लिए काम करते हैं। ये दोनों बैक्टीरिया मेजबान कीट को 24-48 घण्टे के अन्दर मृत कर देते हैं।

निमाटोड्स, जीवाणुओं के रहने के लिए स्थान प्रदान करते हैं। इसी के बदले में बैक्टीरिया मेजबान कीट को मार कर निमाटोड्स को पोषण प्रदान करता है। इस पारस्परिक संगठन के बिना कोई भी निमाटोड ई.पी.एन. की तरह काम करने में सक्षम नहीं होता।

निमाटोड तथा बैक्टीरिया साथ में, द्रवीकृत मेजबान पर आहार करते हैं तथा श्र.2 तथा श्र.4 के विकास चरणों के माध्यम से वयस्कों में परिपक्व होकर मृतक कीट के शव के अंदर कई पीढ़ियों तक प्रजनन करते हैं।

‘स्टीनरनेमिट्स संक्रमण किशोर नर या मादा बन सकते है। जबकि हेटेरोरैबडाइस स्व-निशेचित उभयलिंगी में विकसित होते हैं, बाद की पीढ़ियों दो लिंगों को जन्म देती हैं, जब मेजबान में खाद्य संसाधन दुर्लभ हो जाते हैं, तो वयस्क बाहरी वातावरण का सामना करने के लिए अनुकूलित नए संक्रमण किशोर पैदा करते हैं। ई.पी.एन. का जीवन चक्र कुछ दिनों में पूरा हो जाता है। लगभग एक सप्ताह बाद, सैकड़ों तथा हजारों संक्रमण किशोर दिखाई पड़ते हैं तथा नए मेजबान को तलाश करने लगते हैं।

स डाॅ. हेमलता पन्त, डाॅ. ज्योति वर्मा एवं कु. निधि गुप्ता
असिस्टेंट प्रोफेसर एवम् जूनियर रिसर्च असिस्टेंट, जन्तु विज्ञान विभाग, सी. एम. पी. कालेज, प्रयागराज, 211002