समुद्री धारा धीमी होने से धरती नहीं सोख पाएगी गर्मी

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विश्व पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल 2025 को ‘‘हमारी शक्ति-हमारा ग्रह’’ ध्येय वाक्य के साथ पूरे विश्व में मनाया जायेगा। पृथ्वी बहुत व्यापक शब्द है, जिसमें जल, थल, नभ, नदी, सरिता, कुएं, तालाब, भूमि, वन, वन्यप्राणी, सागर, महासागर इत्यादि अनेकों ऐसी सभी चीजें जुड़ी हैं जो इस धरती पर अस्तित्व में है। पृथ्वी दिवस पर धरती बचाने के आशय से ही तात्पर्य रहता है कि इसमें समाहित सभी कारकों के रक्षण, संरक्षण के लिए पहल करना है।

जब पूरी दुनिया 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाती है, अमेरिका में इसे वृक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है। पहले पूरी दुनिया में साल में दो दिन 21 मार्च और 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता था, लेकिन वर्ष 1970 से 22 अप्रैल को ही मनाया जाना तय किया गया है। फिर इसी दिन ही इसे मनाया जाता है। इसको मनाये जाने के पीछे अमेरिकी सीनेटर गेलार्ड नेल्सन रहे हैं। वे पर्यावरण को लेकर चिंतित रहते थे और लोगों में जागरूकता जगाने के लिए कोई राह बनाने का प्रयास करते रहते थे। पृथ्वी पर बहुआयामी कारक हैं जो इसके अंतर्गत आयेंगे, पर हम अपने इस अंक में पृथ्वी पर विद्यमान महासागर की जलधारा और तापमान वृद्धि के संबंध में ही संक्षिप्त लेखन करेंगे।

हाल ही के शोधो से वैज्ञानिक कहते हैं कि धरती रूग्ण हो गई है। इसका मतलब यह है कि तापमान 1850-1900 की औद्योगिक क्रांति से पहले के औसत की तुलना में 1.5 और 2 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करने के करीब है। यह लोगों को गर्मी से होने वाली मुश्किलें जैसे जलवायु परिवर्तन के खतरों की तरफ धकेल रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ते तापमान के लिए इंसानी गतिविधियों से मौसम में हो रहा बदलाव जिम्मेदार है जो अस्थायी तौर पर अल नीनो को हवा दे रहा है। लेकिन क्या आपको पता है कि धरती के इस बीमारी के पीछे कौन है? समंदरों में ऐसा क्या हो रहा है, जिससे दुनिया गर्म हो रही है।

समंदर में गोल घूम रहा है
दॅ कनवरसेशन के एक अध्ययन के अनुसार, अंटार्कटिका के चारों ओर पृथ्वी की सबसे शक्तिशाली समुद्री धारा बहती है। इसे अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट (ACC) कहते हैं। यह अटलांटिक, प्रशांत और हिंद महासागरों के बीच पानी को ले जाने का मुख्य रास्ता है। यह दुनिया के मौसम को ठीक रखने में मदद करती है। इसे वेस्ट विंड ड्रिफ्ट भी कहा जाता है।

धीमी होने से धरती नहीं सोख पाएगी गर्मी
एक नई रिसर्च में पता चला है कि । ACC जो अब तक बहुत स्थिर थी, अगले 25 सालों में धीमी हो सकती है। इससे समुद्री जीवन, समुद्र के बढ़ते स्तर और वातावरण से गर्मी सोखने की धरती की क्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है।

2050 तक 20 फीसदी तक धीमी
अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बहुत ज्यादा होता है, तो गणितीय माडल बताते हैं कि 2050 तक यह धारा 20ः तक धीमी हो सकती है। अंटार्कटिक बर्फ की चादरों से पिघला हुआ पानी समुद्र के खारे पानी को पतला कर देगा। इससे दुनिया की सबसे भरोसेमंद और महत्वपूर्ण समुद्री धाराओं में से एक का प्रवाह बाधित हो सकता है।

अमेजन नदी से 100 गुना ताकतवर धारा
रिसर्चरों के अनुसार, दक्षिणी महासागर तेजी से बदल रहा है। इस गिरावट के कारण को समझना, जलवायु और समुद्र में होने वाले बड़े बदलावों की भविष्यवाणी करने के लिए जरूरी है। । ACC अमेजन नदी से 100 गुना ज्यादा शक्तिशाली है। यह दुनिया के महासागरों में गर्मी और पोषक तत्वों को फैलाती है। अगर इसमें कोई रुकावट आती है, तो महासागरों की गर्मी और कार्बन सोखने की क्षमता कम हो सकती है। इससे जलवायु परिवर्तन को कम करने की उनकी क्षमता कमजोर हो जाएगी।

कई दशकों से इस धारा को मापने की कोशिश
ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के एक समुद्र विज्ञानी माइकल मेरेडिथ के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग से होने वाली 90ः से ज्यादा गर्मी समुद्र में चली गई है। उन्होंने कहा कि अगर यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है, तो ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए हमारे पास जो सबसे बड़ा सहारा है, वह खत्म हो जाएगा। वैज्ञानिक कई दशकों से ड्रेक पैसेज में । ACC को माप रहे हैं। यह दक्षिण अमेरिका और अंटार्कटिक प्रायद्वीप के बीच एक संकीर्ण जगह है, जहां इसके प्रवाह को ट्रैक करना आसान है। इसके नतीजे हमेशा एक जैसे रहे हैं।

अंटार्कटिका की बर्फ तेजी से पिघल सकती है
अगर यह धारा कमजोर होने लगती है, तो गर्म पानी बर्फ की चादरों के करीब आ जाएगा। इससे अंटार्कटिक की बर्फ तेजी से पिघलने लगेगी। रिसर्चरों के अनुसार, बर्फ तेजी से पिघलने से धारा और कमजोर हो सकती है, जिससे धारा के धीमे होने का एक बुरा चक्र शुरू हो जाएगा। अंटार्कटिक की बर्फ तेजी से पिघलने से समुद्र का स्तर भी बढ़ जाएगा। मेरेडिथ ने कहा कि जरूरी नहीं है कि अतीत भविष्य का मार्गदर्शन करे। उन्होंने आगे कहा कि पहले हमने इस धारा में स्थिरता देखी है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आगे भी ऐसा ही होगा।

क्या खतरे में है समुद्री जीवन
अंटार्कटिक सर्कम्पोलर करंट ACC एक बहुत ही महत्वपूर्ण समुद्री धारा है जो अंटार्कटिका के चारों ओर घूमती है। यह धारा दुनिया के मौसम को नियंत्रित करने में मदद करती है। लेकिन, नई रिसर्च से पता चला है कि यह धारा धीमी हो सकती है, जिससे कई परेशानियां हो सकती हैं। अगर ऐसा होता है, तो समुद्र का स्तर बढ़ सकता है, समुद्री जीवन खतरे में पड़ सकता है, और धरती की गर्मी सोखने की क्षमता कम हो सकती है। वैज्ञानिकों को इस पर नजर रखनी होगी और यह पता लगाना होगा कि इसे कैसे रोका जा सकता है।

गर्मी बढ़ने की आशंका 30 गुना
दुनिया भर में पड़ रही भीषण गर्मी को वैज्ञानिक विनाश का संकेत मान रहे हैं। मौसम एक्सपर्ट के अनुसार, भौगोलिक तौर पर भारत के बहुत बड़े हिस्से को प्रभावित करने वाली हीट वेव (Heat Wava) यानी लू 100 साल में कभी एक बार चलती है। हालांकि, ये लू भारत के अलावा अब ये दुनिया के कई देशों को प्रभावित कर रही है यहां तक कि ठंडे देशों में भी भीषण गर्मी का अनुभव हो रहा है। जलवायु परिवर्तन से इस गर्मी के बढ़ने की आशंका 30 गुना तक बढ़ी है। यही वजह है कि अप्रैल की शुरुआत में ही ज्यादा गर्मी शुरू हो गई है।

सूरज की तपिश इतनी क्यों बढ़ गई
जब पेट्रोल-डीजल या कोयला जैसे जीवाश्म ईंधन जलाते हैं, तो कार्बन प्रदूषण वातावरण में फैलता है, जो एक कंबल की तरह काम करता है। यह धरती के माहौल को गर्म कर देता है। वायुमंडल में इतना ज्यादा कार्बन प्रदूषण है कि इसकी वजह से मौसम में बदलाव आ रहा है और गर्मी बढ़ रही है। 99ः से ज्यादा वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि जलवायु परिवर्तन का सबसे प्रमुख कारण इंसानों की वजह से हो रहा प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन हैं। जब तक हम प्रदूषण को खत्म नहीं कर देते, तब तक गर्मी और ज्यादा बढ़ती जाएगी।

अलनीनो ने आग में घी डालने का किया काम
वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसानी गतिविधियों से दुनिया भर में गर्मी बढ़ रही है। हालांकि अल-नीनो ने इसमें आग में घी डालने जैसा काम किया है जिसे इस रिकार्ड तोड़ गर्मी की बड़ी वजह माना जा रहा है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल आन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की विशेष रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ोतरी होती है, तो तेज और ज्यादा बारिश, सूखा और लू जैसे गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं।

पृथ्वी संरक्षण में योगदान
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पृथ्वी दिवस को लेकर देश और दुनिया में जागरूकता का भारी अभाव है। सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाये जाते हैं। सभी को इसमें कुछ न कुछ प्रयास करना पड़ेगा, तभी हम जिस धरती पर रह रहे हैं उसे रहने लायक बनाए रख सकते हैं। वैसे तो ऐसे कई तरीके हैं जिससे हम अकेले और सामूहिक रूप से धरती को बचाने में योगदान दे सकते हैं। हमें हर दिन धरती के संरक्षण के लिए कुछ न कुछ करते रहना चाहिए, पर इंसान यदि विश्व पृथ्वी दिवस के दिन ही थोड़ा बहुत योगदान दे दे तो धरती के कर्ज को कुछ तो उतारा जा सकता है।

स उत्तम सिंह गहरवार