बढ़ते तापमान से समुद्री शैवाल सरगैसम बनी चुनौती

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वो 1492 का साल था। अटलांटिक महासागर में क्रिस्टोफ़र कोलंबस के समुद्री अभियान के सामने अचानक एक ऐसी मुसीबत आ खड़ी हुई थी जिसकी उन खोजकर्ताओं को अपेक्षा नहीं थी। उनकी नौका के सामने कई मीलों तक घना समुद्री शैवाल फैला हुआ था। नाविकों को चिंता थी कि उनका जहाज़ इसमें फंसकर डूब जाएगा। अब पांच सौ साल बाद लाखों टनों का वही समुद्री शैवाल जिसे सरगैसम कहा जाता है एक बार फिर दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती बनकर आ खड़ा हुआ है।

रिकार्ड मात्रा में यह समुद्री शैवाल यानि सगैसम कैरेबियाई द्वीपों और अमेरिका में फ़्लोरिडा के तट पर पहुंच रहा है। इससे वहां के निवासियों के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था को ख़तरा पैदा हो रहा है।

विशाल शैवाल
सरगैसम के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए चैनमिन हू फ़्लोरिडा यूनिवर्सिटी में समुद्र विज्ञान के प्रोफ़ेसर हैं, वो बीस साल से सरगैसम का अध्ययन कर रहे हैं। वो कहते हैं यह शैवाल काई की तरह का होता है जो पानी में पलता है। वो कहते हैं, यह ज्यादातर सरगैसो समुद्र में पाया जाता है जो उत्तर अटलांटिक महासागर का हिस्सा है। इस शैवाल पर ही सरगैसो समुद्र का नाम भी पड़ा है। सरगैसम के बीज नहीं होते लेकिन छोटी टहनियां होती हैं जो बढ़ती जाती हैं और धीरे धीरे उनकी चादर बनती जाती है जो समुद्र की सतह पर फैल जाती है। समुद्र की सतह पर तैरने वाले सरगैसम की चादर जब टूटती है तो इसका मलबा बिखर कर समुद्री तट तक पहुंच जाता है।

इस शैवाल के पत्ते काफ़ी बड़े होते हैं जो हल्के पीले या भूरे रंग के होते हैं। सरगैसम का अध्ययन कैसे करते हैं? सरगैसम का रंग समुद्र के पानी के रंग से बिल्कुल अलग होता है। और अतंरिक्ष में पृथ्वी के गिर्द चक्कर लगाने वाले सैटेलाइट के ज़रिए हम पूरे अटलांटिक महासागर पर नज़र रखते हैं। हर दिन अटलांटिक महासागर की तस्वीरें ली जाती हैं जिससे हम वहां मौजूद सरगैसम पर नज़र रख सकते हैं। अगर वहां सरगैसम बहुत छोटी मात्रा में हो तब भी उसका पता लग जाता है। हम टेक्नोलाजी के ज़रिए पता लगा सकते हैं कि किस जगह पर कितना सरगैसम मौजूद है। यह डाटा इकठ्ठा करके हम इसका प्रति माह औसत निकाल लेते हैं।

2011 में सरगैसम की मात्रा में भारी वृद्धि देखी गई जिसे ग्रेट सरगैसम ब्लूम कहा गया। पश्चिमी अफ्रीका से मैक्सिको तक सरगैसम की पट्टी फैलती है। 2011 से हर साल गर्मी के मौसम में यह हो रहा है। या तो सरगैसम की यह पट्टी अखंड होती है या कुछ जगहों पर सरगैसम के विशाल चादर के टुकड़े बनते दिखते हैं। यह नई बात है क्योंकि इससे पहले सरगैसम केवल सरगैसो समुद्र में पाया जाता था। अब वो अटलांटिक के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पाया जाने लगा है।

2011 के बाद से सरगैसम शैवाल नई जगहों पर क्यों पनपने लगा है, इसका पता अभी नहीं लग पाया है। इसकी एक वजह यह है कि 2010 के दौरान मौसम में कुछ बदलाव आए थे। पश्चिम से पूर्व की ओर तेज़ हवा और समुद्री जल का तेज़ करंट बह रहा था। इस तेज़ हवा और पानी के तेज़ बहाव ने सरगैसो समुद्र के सरगैसम को अटलांटिक के उष्णकटिबंधीय क्षेत्र की ओर ठेल दिया और 2011 में इस शैवाल को पर्याप्त मात्र में सूरज की गर्मी और पोषण मिला जिससे वो तेज़ी से फलफूलने लगा। संभवतः यह एक वजह हो सकती है।

सरगैसम के अध्ययन में पाया गया कि उसमें आर्सिनिक धातु के अंश मौजूद थे। चैनमिन हू ने बताया, हमारे पास सरगैसम के पर्याप्त सैंपल नहीं हैं जिसके आधार पर निश्चित तौर पर कुछ कहा जा सके लेकिन तट के नज़दीक सरगैसम में प्रदूषण के अधिक तत्व थे जबकि बीच समुद्र में वो कुछ कम थे। मगर कई जगह सरगैसम में आर्सिनिक की मात्रा सुरक्षित स्तर से अधिक थी। पिछले पांच सालों में सरगैसम की मात्रा पहले से कहीं अधिक रही है। अगले साल यह और बढ़ेगी या नहीं कहना मुश्किल है। लेकिन अनुमान है कि आने वाले पांच या दस सालों में इसमें वृद्धि होगी।

शैवाल के कुछ फ़ायदे
दी सरगैसो सी कमीशन के कार्यकारी सचिव डेविड फ्रीस्टोन का मानना है कि सरगैसम समुद्री जैव विविधता के लिए बेहद फ़ायदेमंद है। सरगैसो सागर कहां स्थित है? यह अटलांटिक में बरमूडा द्वीपों के गिर्द फैला हुआ है। लोग समझते हैं कि बरमूडा कैरेबियाई द्वीप समूह का हिस्सा है, मगर वह दरअसल अमेरिका के नार्थ कैरोलाइना के स्तर पर उत्तर में स्थित है। हम इसे ‘बिना सीमा वाला सागर’ भी कहते हैं। बरमूडा के इर्द गिर्द पानी लगभग चार हज़ार मीटर गहरा है। अब चूंकि सरगैसो शैवाल पानी की सतह पर तैरते हैं तो उसके नीचे कई किस्म कि छोटी बड़ी मछलियां रहती हैं, कछुए और अन्य समुद्री जीव पलते हैं। सरगैसो के समुद्री कछुए लुप्तप्राय करार दिए जा चुके हैं। वह सरगैसो की वजह से बचे हुए हैं। यह पूरा तंत्र सरगैसम के कारण फलता फूलता है।

सरगैसम को मानव गतिविधियों से ख़तरा
डेविड फ्रीस्टोन कहते हैं कि सरगैसो सागर के एक तरफ़ यूरोप है और दूसरी तरफ़ अमेरिका है। यह एक प्रमुख जलमार्ग है। नौकाओं की वजह से सरगैसो सागर में सरगैसम की विशाल चादरें टूट गई हैं। नौकाओं की आवाजाही का उन पर बुरा प्रभाव पड़ा है। सरगैसम को दूसरा बड़ा नुकसान मछली उद्योग से हुआ है। 2010 में जब यह प्रोजेक्ट शुरू किया तब इस क्षेत्र में मछली पकड़ने की गतिविधि काफ़ी कम थी। पिछले पांच सालों में इसमें बड़ी वृद्धि हुई है। कई समुद्री जीव स्क्विड पर पलते हैं। पूर्व में चीन ने सरगैसो सागर में स्क्विड पकड़ने के अपने उद्योग को तीन गुना बढ़ा दिया है। इसलिए सरगैसो का इको सिस्टम बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। यह तो बात हुई बीच समुद्र के पानी की स्थिति की। मगर जब सरगैसम तटों पर पहुंचता है तो स्थिति कुछ और ही बन जाती है।

शैवाल से नुक़सान

सरगैसम के समुद्री तट पर प्रभाव के बारे में डाक्टर मैरी लुई फ़ेलिक्स जो एक मरीन बायलाजिस्ट यानि समुद्री जीव वैज्ञानिक हैं और सेंट लूशिया के सर आर्थर लुईस कम्यूनिटी कालेज में पर्यावरण विज्ञान की प्रोफ़ेसर हैं, उनका कहना है कि वो बचपन से ही सेंट लूशिया के तट पर सरगैसम देखती आई हैं मगर अब इसका स्तर बढ़ रहा है। यह एक अलग किस्म की प्रजाती है। सेंट लूशिया में सरगैसम की समस्या 12-13 सालों से रही है। लेकिन जून से नवंबर महीने के बीच सरगैसम की मात्रा बहुत बढ़ जाती है।

डाक्टर फ़ेलिक्स का मानना है कि 2023 में स्थिति इतनी ख़राब नहीं हुई जितनी कि दो-तीन साल पहले थी। दो साल पहले समुद्री तट से तीस फ़ीट दूर तक सरगैसम की घनी परत फैल गई थी। सरगैसम जब सड़ने लगता है तो उससे हाइड्रोजन सल्फ़ाइड गैस का उत्सर्जन होता है जिसकी दुर्गंध सड़े हुए अंडों जैसी होती है। इतना ही नहीं इससे आंखों में जलन हो सकती है, सिर चकराने लगता है, सिरदर्द होता है, सांस लेने में दिक्कत भी हो सकती है या पेट भी ख़राब हो सकता है। इस सरगैसम में छोटी मछलियां फंस कर सड़ने लगती हैं।

डाक्टर मैरी लुई फ़ेलिक्स ने बताया, तट पर इतना सरगैसम इकठ्ठा हो जाता है कि उसकी कई फ़ीट लंबी घनी दीवार बन जाती है। कई छोटी मछलियां और दूसरे छोटे समुद्री जीव इसमें फंस कर सड़ने लगते हैं। आप कल्पना कर सकते हैं कि सरगैसम की सड़ांध इससे कितनी तीव्र हो जाती है। इससे तट के आसपास जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है।

हाइड्रोजन सल्फ़ाइड हवा में घुल कर पानी की छोटी बूंदों में परिवर्तित हो जाता है जिससे घरों में इस्तेमाल होने वाले कई महंगे उपकरणों में ज़ंग लगने लगता है या वो ख़राब हो जाते हैं।

डाक्टर मैरी लुई फ़ेलिक्स ने कहा, तीन साल पहले मैं एक सर्वेक्षण कर रही था तब कई लोगों ने कहा कि उनके फ्रिज, टीवी, कूलर और म्यूज़िक सिस्टम जैसे इलेक्ट्रिक उपकरण ख़राब हो रहे हैं। यहां रहने वाले अधिकांश लोग ग़रीब हैं। उनके लिए यह बड़ा आर्थिक नुकसान है। मछुआरे समुद्र में नहीं जा पाते क्योंकि उनकी नौकाओं के इंजन ख़राब हो जाते हैं। हमारी अर्थव्यवस्था पर्यटन पर निर्भर है। यहां पर याट और लग्ज़री नौकाएं आती हैं। यहां के अधिकांश होटल समुद्री तट पर बने हैं। सरगैसम से आने वाली दुर्गंध की वजह से लोग होटल में नहीं रहना चाहते। इससे पर्यटन पर बुरा असर पड़ा है।
पर्यटन के प्रभावित होने से उससे जुड़ा रोज़गार भी प्रभावित हुआ है। सरगैसम को हटाने के लिए तीन काम किए जा सकते हैं जो सरगैसम की मात्रा पर निर्भर करते हैं। अगर सरगैसम छोटी मात्रा में इकठ्ठा हो रहा है तो उसे वहीं छोड़ा जा सकता है। लेकिन अगर बड़ी मात्रा में सरगैसम तट पर जमा हो रहा है तो उसे हटाने के लिए ट्रकों का इस्तेमाल करना पड़ेगा जिसके लिए हज़ारों डालर खर्च करने पड़ेंगे और आम लोगों को भी इसकी सफ़ाई में शामिल होना पड़ेगा। सरकार के लिए यह खर्च उठाना मुश्किल है।

सरगैसम में काफ़ी नमक होता है, इसलिए उसे ज़मीन पर नहीं डाला जा सकता क्योंकि इससे खेती की ज़मीन की क्वालिटी ख़राब होगी। कैरेबियन क्षेत्र में फ्रांस के कई द्वीप हैं इसलिए वो सरगैसम की समस्या से निपटने के लिए शोधकार्य में पैसे लगा रहा है। अमेरिका में भी इस विषय पर काफ़ी शोधकार्य चल रहा है।

मैरी लुई फ़ेलिक्स का कहना है कि यह जानने के लिए भी काफ़ी रीसर्च चल रही है कि सरगैसम का क्या इस्तेमाल किया जा सकता है। क्या इसे खाद या बायोगैस के बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है? क्या इसे साफ़ करके पशुओं के आहार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है? उन्होंने कहा कि यह क्षेत्रीय समस्या है और कई शोध संस्थान और विश्वविद्यालय इस पर शोध कर रहे हैं। यह तो बात हुई सरगैसम के तट पर पहुंचने पर उससे निपटने की। लेकिन क्या इसे वहां पहुंचने से रोका जा सकता है?
सागर में एक बूंद

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के लेमोंट डोहोर्टी अर्थ आब्ज़रवेटरी के साथ काम करने वाले समुद्र जीव वैज्ञानिक प्रोफ़ेसर अजीत सुब्रमण्यम कहते हैं कि सरगैसम को तटों तक पहुंचने से रोकने की ज़रूरत है और रोबोटिक प्लैटफ़ार्म की सहायता से पानी पर तैरते सरगैसम को तट पर पहुंचने से पहले ही जमा कर के समुद्र के तल में डाला जा सकता है।

वो कहते हैं, रोबोटिक प्लैटफार्म की मदद से हम प्रतिदिन सौ टन सरगैसम समुद्र के तल में डाल सकते हैं। हमें लगता है कि इस समस्या का हल निकाला जा सकता है। हमने इस दिशा में कुछ काम किया है और समझने की कोशिश की है कि कितनी मात्रा में सरगैसम को समुद्र में कितनी गहराई में डाला जा सकता है ताकि गैस माड्यूल फटे नहीं।

इसके गैस माड्यूल के फटने से जो गैस निकलती है उसके बल पर सरगैसम पानी पर तैरता रहता है। अगर गैस माड्यूल के फटे बिना सरगैसम को समुद्र की गहराई में ले जाया जाए तो पानी का दबाव सरगैसम को नीचे धकेल सकता है। ऐसा करने के लिए सरगैसम को अच्छी तरह समझने की ज़रूरत है।

प्रोफ़ेसर अजीत सुब्रमण्यम ने कहा, हम रीसर्च के ज़रिए यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर सरगैसम को समुद्र तल में दो हज़ार मीटर की गहराई में डाला जाए तो उसका क्या होता है? वहां उसे सड़ कर विघटित होने में कितना समय लगता है, वो कितनी आक्सीजन सोंखता है और समुद्र तल के पर्यावरण पर इसका क्या असर होता है।

सरगैसम से जो ज़हरीली गैस निकलेगी उसका क्या असर होगा? मुझे लगता है समुद्र तल में पानी के करंट की वजह से सरगैसम से निकलने वाले ज़हरीले तत्व डायल्यूट हो जाएंगे यानि उनकी तीव्रता कम हो जाएगी। मुझे लगता है कि हर हालत में समुद्र तट पर बड़ी मात्रा में सरगैसम के इकठ्ठा की तुलना में यह कम नुकसानदेह होगा। लेकिन ऐसे कई सवाल हैं जिनके हमारे पास अभी ठोस जवाब नहीं हैं।

चैनमिन हू ने पता लगाया था कि अटलांटिक के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र में सरगैसम में लगभग साढ़े तीस लाख टन कार्बन मौजूद है। क्या इसे पानी की सतह से हटा कर समुद्र की गहराई में डालने से पर्यावरण पर कोई असर पड़ेगा? वैज्ञानिकों के सामने सवाल यह भी है कि क्या यह पर्यावरण में कार्बन उत्सर्जन कम करने में मददगार साबित हो सकता है?

प्रोफ़ेसर अजीत सुब्रमण्यम ने कहा, यह ऐसे अहम सवाल हैं जिनका जवाब हम ढूंढना चाहते हैं। हमें समझना पड़ेगा कि समुद्र तल में सौ या दो सौ साल तक सरगैसम के पड़े रहने से क्या असर पड़ेगा। कितने समय में उससे कार्बन का उत्सर्जन होगा। हमें इसे गंभीरता से समझना होगा। ऐसा भी नहीं है कि समुद्र में एक ही जगह पर हम दस लाख टन सरगैसम डाल दें। जिन जगहों पर यह पाया जाता है, जैसे बारबडोस, एंटिगा और पोर्टे रिको, वहां से उसे इकठ्ठा कर के छोटे हिस्से में अलग जगहों पर डालना होगा। ज़ाहिर है समुद्र तल पर धीरे धीरे इसका असर होगा। मगर हम यह तो जानते हैं कि समुद्र तट पर इसका कितना बड़ा असर पड़ रहा है। हमें दोनों परिणामों को देख कर चुनना पड़ेगा कि नुकसान किस बात से कम होगा।

तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर कि समुद्री शैवाल-सरगैसम का मसला क्या है? पानी में तैरते सरगैसम पर कई समुद्री जीव पलते हैं लेकिन मछली उद्योग और नौकाओं की आवाजाही से उसे ख़तरा पैदा हो रहा है। जिन देशों के तटों पर सैंकड़ों टन सरगैसम बह कर जमा हो जाता है वहां के समुदायों के स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा असर पड़ रहा है। सरगैसम की समस्या के हल के लिए कई वैज्ञानिक और संस्थाएं शोधकार्य कर रही हैं। मगर एक बात स्पष्ट है कि स्थिति विकट होती जा रही है और जल्द ही इसके समाधान की ज़रूरत है।

स उत्तम सिंह गहरवार