स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण के लिए भी घातक घर पहुॅंच डिब्बाबंद खाद्य

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सुबह-सुबह जैसे ही अख़बार अख़बार खोलते हैं, उसमें इश्तिहार के लिए डाले गए पर्चे अथवा पैम्फलेट्स निकल कर नीचे गिर पड़ते हैं। ये रोज़ की ही बात है। हाँ, कभी कम पर्चे होते हैं तो कभी कुछ ज़्यादा। इनमें से ज़्यादातर पर्चे अथवा पैम्फलेट्स खानपान की चीज़ों अथवा भोजन से संबंधित ही होते हैं, जो प्रायः मेनू की शक्ल में होते हैं। प्रायः सभी पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा होता है फ्री होम डिलिवरी।

कई बार कुछ आकर्षक छूट का ज़िक्र भी रहता है। इन पर पते की बजाय फोन नंबर ही दिए गए होते हैं। फोन मिलाओ आर्डर करो कुछ ही देर में आपके घर की कालबेल बजेगी। डिलिवरी बाय आपका आर्डर किया गया सामान दे जाएगा और पैसे ले जाएगा। पैसों का भुगतान आन लाइन भी किया जा सकता है। अब जब भूख लगे या जब जी चाहे खाइए, पैकिंग का कचरा डस्टबिन में डालिए और अपना काम कीजिए या लंबी तानकर सो जाइए।

न खाना बनाने का झंझट, न बर्तन साफ करने की ज़हमत और न एसी से निकलकर बाहर जाने की दुश्वारी। है न बड़े आराम की बात। लेकिन ये उतने आराम की बात नहीं है, जितनी लग रही है। आज बड़ी-बड़ी कंपनियाँ आनलाइन फूड डिलिवरी के क्षेत्र में आगे आ रही हैं। आज लोगों की व्यस्तता के साथ-साथ आरामतलबी भी बढ़ रही है। लोगों की इसी मजबूरी व कमज़ोरी का भी ख़ूब फ़ायदा उठा रहे हैं होम डिलिवरी करने वाले ये फूड आउटलेट्स।

बड़ी-बड़ी कंपनियों के इस क्षेत्र में आ जाने से संभव है, करों के रूप में सरकार की आय में कुछ वृद्धि हो जाए और कुछ फ़ालतू चीज़ों के उत्पादन के रूप में कुछ आर्थिक विकास भी लेकिन लोगों की सेहत व पर्यावरण की सेहत पर इसका जो दुष्प्रभाव होगा वह इस लाभ से कई गुना अधिक घातक होगा।

बाज़ार का खाना कभी भी घर के खाने से स्वादिष्ट, शुद्ध व पौष्टिक नहीं हो सकता। यदि बाज़ार का खाना स्वादिष्ट लगता है, तो उसे कृत्रिम रूप से स्वादिष्ट बनाने का प्रयास किया जाता है। बाज़ार के खाने को स्वादिष्ट बनाने के लिए उसमें जो चीज़ें डाली जाती हैं, वे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक ही होती हैं। खाने को आकर्षक बनाने के लिए रंगों तक का प्रयोग किया जाता है जिनसे एलर्जी व केंसर होने की बहुत अधिक संभावना होती है। इसीलिए रोज़-रोज़ बाहर का खाना खाने वाले प्रायः कई परेशानियों की शिकायत करते मिलेंगे। ऐसे लोगों का पेट ख़राब रहना सामान्य बात है। जंक फूड व फास्ट फूड के कारण पहले ही पूरे विश्व में मोटापे व मोटापे से उत्पन्न बीमारियों में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। पैक्ड फूड की होम डिलिवरी व्यवस्था से यह स्थिति और भी बदतर होती जा रही है इसमें संदेह नहीं।

होम डिलिवरी में जो खाना आता है वह ताज़ा हो ही नहीं सकता। घर तक पहुँचते-पहुँचते वह ठंडा भी हो जाता है। रोटियाँ और नान कई बार चमड़े जैसे हो जाते हैं, जिन्हें खाना न केवल मुश्किल होता है, अपितु हानिकारक भी होता है। यदि उस खाने को रखकर थोड़ी देर बाद खाते हैं तो वह और भी ख़राब हो जाता है। यदि उसे दोबारा गरम करके खाते हैं तो वह गरम तो हो जाता है लेकिन साथ ही दूषित भी कम नहीं होता। बार-बार ठंडा-गरम होने से कई बार खाना विषाक्त तक हो जाता है जो खाने वाले के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। ऐसा भोजन पूर्णतः तामसिक प्रकृति का होता है जो सुस्ती व जड़ता भी उत्पन्न करता है। यदि ऐसे भोजन को माइक्रोवेव में गरम किया जाता है, तो उसके भी दुष्प्रभाव कम नहीं होते। इस प्रकार के भोजन से हमारा स्वास्थ्य ही नहीं, हमारी मनोदशा व कार्यक्षमता भी बुरी तरह से प्रभावित होती है।

होम डिलिवरी में जो खाना आता है उसमें पैकिंग बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। सप्लायर कोशिश करता है कि खाना यथासंभव गरम पहुँचे और उसका स्वरूप भी न बिगड़े। इसके लिए खाने की पैकिंग के लिए बहुत सी सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है, जो प्रायः डिस्पोजेबल ही होती है। इसमें से अधिकांश सामग्री नष्ट न होने वाली होती है, जो पर्यावरण के लिए अत्यंत घातक होती है।

होम डिलिवरी के लिए खाने की पैकिंग में गत्ते, पेपर, प्लास्टिक, थर्मोकोल व एल्युमीनियम फायल का बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है। इन पदार्थों की गंध भी खाने में मिल जाती है। एक बार मैंने पाया कि खाने के एक पैक्ड डिब्बे में जो रसगुल्ला रखा था उसमें से प्याज़ और लहसुन की गंध आ रही थी। पैक्ड फूड में यदि कई चीज़ें एक साथ रखी होती हैं, तो सब चीज़ों में एक दूसरे की गंध व्याप्त हो जाती है, जिससे हर चीज़ का स्वाद नष्ट हो जाता है। इस प्रकार के दुष्प्रभावों की सूची बहुत लंबी है।

कई बार जितनी मात्रा में खाना होता है, उतनी ही मात्रा में पैकिंग मैटीरियल भी इस्तेमाल किया जाता है, जो सीधा कूड़े में जाता है। इसी कारण से आजकल शहरों में ही नहीं क़स्बों तक में कूड़ा बढ़ने से उसके निपटारे की समस्याएँ बढ़ती जा रही हैं।

खाने की होम डिलिवरी पर्यावरण के लिए भी अत्यंत घातक है। पैकिंग मैटीरियल के उत्पादन में न केवल प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा दोहन किया जाता है, अपितु उनके उत्पादन में लगे उद्योगों के कारण प्रदूषण भी फैलता है। खाने की होम डिलिवरी में जिस पैकिंग मैटीरियल का प्रयोग किया जाता है, वह भी खाने को दूषित ही करता है।

काग़ज़ व गत्ते के संपर्क में आने से खाना काग़ज़ व गत्ते के हानिकारक तत्त्वों को सोख लेता है। प्लास्टिक का प्रभाव तो और भी घातक होता है। पैक्ड फूड में पैकिंग मैटीरियल की गंध भी व्याप्त हो जाती है, जिससे खाने का स्वाद भी ख़राब हो जाता है। कई बार डिलिवरी के लिए तैयार पेक्ड खाना कहीं भी रख दिया जाता है, जिससे खाने का पैकेट बाहर से संक्रमित हो जाता है। खाना खोलते समय सबसे पहले पैकेट पर हाथ लगते हैं और फिर खाने पर जिससे उसमें रखा खाना भी संक्रमित होने की संभावना बनी रहती है।

खाने की होम डिलिवरी में जिस पैकिंग मैटीरियल का प्रयोग किया जाता है, वह सीधा बाज़ार से आता है और प्रयोग कर लिया जाता है। उत्पादन के दौरान यह पैकिंग मैटीरियल अनेक प्रकार के हानिकारक तत्त्वों के संपर्क में आता है। उत्पादन की प्रक्रिया में कई रासायनिक पदार्थों का प्रयोग होता है, जो पैकिंग मैटीरियल में प्रयोग की जाने वाली चीज़ों पर एक परत बना लेते हैं। कई बार ये रसायन अत्यंत विषाक्त और स्वास्थ्य के लिए घातक होते हैं। प्रयोग करते समय न तो प्रयुक्त इस सामग्री को धोया ही जा सकता है और न धोने से इनके दुष्प्रभावों से मुक्त होना ही संभव है। पैकिंग मैटीरियल की सारी विषाक्तता और गंदगी पेक्ड फूड में आ जाती है। पेक्ड फूड में खाना बेकार भी कम नहीं होता। खाने का बहुत सा अंश पैकिंग मैटीरियल पर लगा रह जाता है। इससे खाद्य पदार्थों की जो बर्बादी होती है वह भी दुर्भाग्यपूर्ण है।

खाने की होम डिलिवरी भी प्रायः किसी न किसी वाहन के द्वारा ही की जाती है, जिससे सड़कों पर यातायात बढ़ता है और साथ ही प्रदूषण के स्तर में भी वृद्धि ही होती है। यदि हम घर पर खाना नहीं बनाएँगे और न ही खाने के लिए उठकर कहीं बाहर जाएँगे, तो भी हमारे स्वास्थ्य एवं भोजन बनाने की कुशलता पर प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ेगा। भोजन बनाना भी एक कला है। इससे घर पर पौष्टिक भोजन बनाने की कला ही समाप्त हो जाएगी। खाना बनाने में परिश्रम भी करना पड़ता है। इसके लिए बाज़ार से सामान भी लाना पड़ता है। पैक्ड फूड के प्रयोग के कारण काम करने और चलने से शरीर में जो गत्यात्मकता व स्फूर्ति बनी रहती है, वह समाप्त हो जाएगी और हम बहुत जल्दी घातक रोगों की चपेट में आ जाएँगे। यदि हमें अपना स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों बचाने हैं तो हमें जंक फूड व फास्ट फूड से ही नहीं पेक्ड फूड व होम डिलिवरी सिस्टम से भी तौबा करनी होगी।

स सीताराम गुप्ता
ए.डी. 106 सी., पीतमपुरा,
दिल्ली – 110034