चिंतन किया जाता है तो सभी देशों के बीच तथा सभी देशों के अंतर्गत नागरिकों के बीच बढ़ रही आर्थिक समृद्धि की प्रतिस्पर्धा तथा बढ़ रही जनसंख्या का दबाव एक ऐसा वीभत्स दृश्य दिखाता है कि पृथ्वी पर भविष्य में भूमि की दुर्दशा को रोकना दुःस्वप्न लगता है। चूॅंकि, कोई भी लोकतांत्रिक सरकार न तो जनसंख्या नियंत्रण की बात कर सकती है और न ही सादगीपूर्ण ऐश्वर्यमुक्त सभ्यता के लिए नागरिकों को समझाइश ही दे सकती है। पूरा विश्व एक गंभीर दर्शन के संकट में उलझ चुका है। आज किसी के लिए भी इस पीढ़ी के युवा को यह समझाना कठिन है कि किसी जमाने में जब पृथ्वी पर बिजली नहीं थी, रेडियो, टेलीविजन नहीं थे, वायुयान नहीं थे, ट्रक, कार नहीं थे तब भी मानव सभ्यता के समक्ष इतना बड़ा खतरा पैदा नहीं हुआ था, जो आज उत्पन्न हो गया है। आर्थिक लाभ के लालच में प्रकृति को परास्त करने लोगों में कोई पीछे नहीं है, चाहे वह धर्माचार्य हों (पंडित, मौलवी, पादरी इत्यादि सभी धर्म) या राजनेता हों, या उद्यमी हों, या प्रशासनिक अधिकारी या आम नागरिक हों, या खास नागरिक हों। ज्यादातर लोग अधिक से अधिक धन कमाने की होड़ में पृथ्वी पर प्रकृति परास्त हो रही है।
विडम्बना यह है कि वर्तमान अर्थव्यवस्था में प्रति इकाई धन के अर्जन पर प्रकृति को पहुॅंचे क्षय की पूर्ति हेतु समाज पर पड़ रहे बोझ या लागत का मूल्य जोड़ने का कोई प्रावधान नहीं है। उससे भी बड़ी दुविधा यह है कि आम नागरिक प्रकृति तथा पर्यावरण संरक्षण के दायित्व को अपना दायित्व मानता ही नहीं है। वह उसे पूरी तरह से सरकार का ही जिम्मा मानता है। इसका मुख्य कारण यह है कि पूरे विश्व के किसी भी देश में बच्चों को, युवाओं को प्रकृति की सीमा और प्राकृतिक पर्यावरण की आवश्यकता, उपादेयता, अनिवार्यता आदि के बारे में सम्यक शिक्षा ही नहीं दी जाती है। जबकि विश्व के समक्ष वर्तमान में व्याप्त मौसम परिवर्तन तथा तापमान वृद्धि की समस्या इतनी गंभीर है कि आने वाले 5-6 वर्षों में ही वायुमंडलीय तापमान मानव सभ्यता के अस्तित्व को पूरी तरह से नष्ट करने के रौद्र स्तर पर पहुॅंचता हुआ दिखाई देता है।
इसी वर्ष दक्षिण अरब तथा संयुक्त अरब अमीरात के देशों में हुई औचक प्रलयकारी वर्षा भी दूसरा ही एक संकेत है। पृथ्वी पर मार्च, अप्रैल तथा मई माह में औसत तापमान में 1.20 डिग्री से अधिक ही वृद्धि के प्रमाण विश्वव्यापी हैं। इसके समाधान की चर्चा जब कभी भी वैश्विक स्तर पर होती है, तो दुर्भाग्य यह है कि समृद्ध देश और विपन्न देशों के राजनेता एवं प्रशासकीय अधिकारी जन ज्यादा समय धन के आबंटन की चर्चा पर ही बर्बाद कर देते हैं। विश्व स्तर पर भूमि के उपयोग में आ रहे भयावह परिवर्तन, हरीतिमा हीनता, जनसंख्या विस्तार, जैव विविधता, धारणीय विकास पर सार्थक रोडमैप पर सार्थक चर्चा नहीं होती। इन सभी प्रकार की जानकारियों को विश्व में बोली जाने वाली स्थानीय भाषाओं में अनुवाद कर प्रस्तुत नहीं किया जाता। जबकि आवश्यकता यह है कि पृथ्वी के प्रत्येक मनुष्य को उसकी सरल भाषा में, मौलिक भाषा में संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण विभाग की चिंता यूट्यूब और सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्मों (पटलों) से सहज उपलब्ध होना चाहिए। ताकि प्रत्येक नागरिक इस भ्रम से मुक्त हो सके कि इस पृथ्वी पर पैदा हो रहे असंख्य मानवों की उत्पत्ति ईश्वर की देन नहीं है, अपितु मनुष्यों का भ्रम है। साथ ही यह भी पता चल सके कि प्रकृति और ईश्वर इस भूमंडल पर एक अतिरिक्त जल की बूंद भी नहीं बनाने वाला है और न ही एक वर्गफुट भूभाग ही सृजन करने वाला है।
प्रकृति पुरूष ने सदा सभी समय और काल खंडों में जब कभी भी किसी दूत को भेजा है, तो उसका आदेश सर्वप्रथम प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा, संरक्षण ही रहा है। मानव से मानव तथा अन्य जीवों के प्रति सद्भाव का ही रहा है। यह हमारी भयंकर भूल है कि हम स्वर्ग तथा नर्क के लोभ तथा भय में आपस में द्वंद करके आर्थिक शक्ति सृजन कर दूसरों को परास्त करने के लिए प्रकृति तथा पर्यावरण को समाप्त कर रहे हैं। सभी धर्मों का अंततोगत्वा लक्ष्य यह होना ही चाहिए कि मनुष्य को स्वर्ग के लालच तथा नर्क के भय से मुक्त करके इस प्रकृति तथा पर्यावरण के संरक्षण के मार्ग में निहित कर सके।
वर्तमान में भारतवर्ष में लोकतांत्रिक पर्व के द्वारा नए संसद के गठन के लिए चुनाव प्रक्रिया जारी है। पर चिंता का विषय है कि ज्यादातर राजनैतिक दलों ने पर्यावरण और प्रकृति संरक्षण को अपने घोषणापत्र में सर्वोच्च स्थान नहीं दिया है। इसका भी मूल कारण यही है कि आम नागरिकों में प्रकृति, पर्यावरण संरक्षण की अनिवार्यता एवं उपादेयता को कोई सम्यक बोध नहीं दिया गया है। अस्तु, आज यह, समाज के पुरोधाओं का दायित्व है, धर्माचार्यों एवं विद्वानों का दायित्व है कि अपने-अपने धर्मों के अनुयायियों को प्रकृति के प्रति सम्मान तथा संरक्षण की आवश्यकता का सम्यक ज्ञान दें, तभी पृथ्वी सुरक्षित रहेगी, तभी मानव स्वस्थ रहेगा तथा आने वाली पीढ़ियां निरोगी होंगी तथा समाज सुखी होगा। विश्व पर्यावरण दिवस हेतु हार्दिक शुभकामनाएं।
-संपादक