ई-कचरा प्रबंधन: राष्ट्रीय हरित अधिकरण का पहरा

You are currently viewing ई-कचरा प्रबंधन: राष्ट्रीय हरित अधिकरण का पहरा

भारत में ई-कचरा प्रबंधन की तेजी से बढ़ती चुनौती से जुड़े पर्यावरणीय कानूनों को मजबूती प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण प्रतिबद्ध है। हाल ही में पिछले दिनों अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव के नेतृत्व में हरित अधिकरण ने ई-कचरा प्रबंधन रिपोर्टिंग की वर्तमान स्थिति पर गहरा असंतोष व्यक्त किया है। हरित अधिकरण ने अपने पूर्व आदेशों का पालन न करने का दावा करने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा इलेक्ट्रानिक कचरे के उत्पादन और निस्तारण पर एक नई रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिये हैं। वहीं ई-कचरा (प्रबंधन) नियमों का पालन न करने वाले राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई का भी उल्लेख करने को कहा है। यह पहल ई-कचरे से निपटने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और पारिस्थितिक अखंडता के लिए एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दा है।

देश में ई-कचरा प्रबंधन से जुड़े विनियमों को लागू कराने में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की अहम भूमिका है। सीपीसीबी न केवल ई-कचरा (प्रबंधन) नियमों के पालन की निगरानी के साथ-साथ ई-कचरा प्रबंधन और निपटारा संबंधी जागरूकता कार्यक्रमों हेतु भी सक्रिय पहल करने की जिम्मेदारी है। एनजीटी ने सीपीसीबी को यह नई रिपोर्ट तैयार करने और प्रस्तुत करने के लिए 12 दिसंबर तक का वक्त दिया है, जिसमें प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में ई-कचरे के उत्पादन, उपचार सुविधाओं और मौजूदा अंतराल पर विस्तृत डेटा शामिल होना चाहिए।

देश में बढ़ते ई कचरे पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने सात नवंबर, 2022 को निर्देश दिये थे कि ई-कचरे के मामले में सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और प्रदूषण नियंत्रण समितियां, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी रिपोर्ट का पालन करें। लेकिन तमाम जिम्मेदार संस्थाओं द्वारा इन निर्देशों का अनुपालन ठीक तरीके से न करने पर एनजीटी ने असंतोष व्यक्त किया है।

ई-कचरा, पर्यावरण के लिए खतरनाक होते हैं, मानव स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता हैं। ई-कचरे के निपटान और तोड़फोड़ से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है।

इनसे निकलने वाले द्रव और रसायन पानी, जमीन के अंदर के पानी, मिट्टी और हवा में मिल सकते हैं। इनके जरिये ये जानवरों और फसलों में प्रवेश कर सकते हैं। ऐसी फसलों के इस्तेमाल से मानव शरीर में घातक रसायन पहुंचने का खतरा होता है। इलेक्ट्रानिक सामान में लेड, कैडियम, बेरियम, भारी धातु जैसे घातक रसायन होते हैं।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा दिसंबर, 2020 में जारी एक रिपोर्ट बताती है कि 2019-20 में भारत में करीब 10.1 लाख टन इलेक्ट्रानिक कचरा पैदा हुआ था। वहीं 2017-18 में यह 25,325 टन और 2018-19 में 78,281 टन था। वहीं 2018 में केवल 3 फीसदी ई-कचरा एकत्र किया था, जबकि 2019 में यह आंकड़ा केवल 10 फीसदी था। मतलब साफ है कि देश में ई कचरे को रि-सायकल करना तो दूर की बात है, इस कचरे की एक बड़ी मात्रा एकत्र ही नहीं किया जा पा रहा है। वहीं एक अन्य रिपोर्ट के आंकडे दर्शाते है कि देश में 2022 के दौरान 413.7 करोड़ किलोग्राम इलेक्ट्रानिक कचरा पैदा हुआ था।

भारत में अभी तक 178 पंजीकृत ई-वेस्ट पुनर्चक्रणकर्ता (रि-साइक्लर) ही हैं, जिन्हें ई-वेस्ट को संसाधित करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा मान्यता दी गई है, लेकिन भारत के ज्यादातर ई-कचरा पुनर्चक्रणकर्ता ई-वेस्ट को पुनर्चक्रण ही नहीं कर पा रहे हैं और कुछ इसे खतरनाक तरीके से संग्रहित कर रहे हैं। इनमें से कई पुनर्चक्रणकर्ताओं के पास ई-कचरा प्रबंधन की क्षमता भी नहीं है।

आंकडे बताते है कि खतरनाक ई-कचरे को सुरक्षित रूप से संसाधित करने के लिए नए नियम आने के बावजूद भी लगभग 80 प्रतिशत ई-कचरा (पुराने लैपटाप और सेल फोन, कैमरा और एयर कंडीशनर, टीवी और एलईडी लैंप) अनौपचारिक सेक्टर द्वारा गलत तरीके से निपटान किया जा रहा है, जिससे प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी खतरा कई गुना बढ़ने की संभावना है। इतना ही नहीं इससे भूजल और मिट्टी भी प्रदूषित हो रही है।

गौरतलब है कि दुनिया भर में प्रतिवर्ष 2 से 5 करोड़ टन ई-कचरा पैदा होता है। जबकि वर्तमान में सिर्फ 12.5 फीसदी ई-कचरे का पुनर्चक्रण किया जाता है। मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रानिक सामान में बड़ी मात्रा में सोना या चांदी जैसी कीमती धातुएं होती हैं। अमेरिका में प्रतिवर्ष डंप किए गए मोबाइल फोन में 3.82 अरब रुपये के सोना या चांदी होते हैं। ई-कचरे के पुनर्चक्रण से धातु पाए जा सकते हैं। 10 लाख लैपटाप के पुनर्चक्रण से अमेरिका के 3657 घरों में प्रयोग होने वाली बिजली जितनी ऊर्जा मिलती है।

विश्व भर में ई-कचरे का वार्षिक उत्पादन 2.6 करोड़ टन की दर से बढ़ रहा है, जो 2030 तक 8.2 करोड़ टन तक पहुंच जाएगा। अगले 30 वर्षों में इस बढ़ते वैश्विक ई-कचरे की मात्रा दोगुना बढ़कर 10 करोड़ टन पर पहुंच जाएगी। कई देशों में इलेक्ट्रानिक्स की खपत तेजी से बढ़ रही है। यह ज्यादा से ज्यादा गैजेट्स और इलेक्ट्रानिक उत्पाद, बढ़ते ई कचरे में भी इजाफा कर रहे हैं। पुनर्चक्रण की कमी वैश्विक इलेक्ट्रानिक उद्योग पर भारी पड़ती है और जैसे-जैसे उपकरण अधिक संख्या में, छोटे और अधिक जटिल होते जाते हैं, समस्या बढ़ती जाती है। वर्तमान में, कुछ प्रकार के ई-कचरे का पुनर्चक्रण और सामग्री और धातुओं को पुनर्प्राप्त करना एक महंगी प्रक्रिया है।

हमें इस बढ़ती समस्या के बारे में गंभीरता से सोचना होगा। इससे निपटने के लिए सबसे साथ की आवश्यकता है। राष्ट्रीय प्राधिकरणों, प्रवर्तन एजेंसियां, उपकरण निर्माताओं, इनको पुनर्चक्रण करने में लगे लोगों, शोधकर्ताओं के साथ उपभोक्ताओं को भी इनके प्रबंधन और पुनर्चक्रण में अपना योगदान देने की जरूरत है।

  •  कुमार सिद्धार्थ

29, संवाद नगर, नवलखा,
इंदौर (म.प्र.)