जलवायु परिवर्तन से घट रही बच्चों की लम्बाई

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वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण तूफान, सूखा और बाढ़ जैसी चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती संख्या भारत को दुनिया के सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक बनाती है। देश लगातार चरम मौसम का सामना कर रहा है। यंग लाइव्स अध्ययन ने वियतनाम, इथियोपिया, भारत (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) और पेरू में 20 से अधिक वर्षों तक 12,000 बच्चों के जीवन का फालो किया, और एक अनूठा डेटासेट तैयार किया, जो दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन बच्चों के विकास के कई पहलुओं को प्रभावित करता है।

हिन्दुस्तान में छपी रिपोर्ट बताती है कि जलवायु परिवर्तन का असर अब बच्चों के शारीरिक विकास पर पड़ने लगा है। बिहार समेत चार राज्यों उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश में बच्चों की उम्र के हिसाब से उनकी लंबाई नहीं बढ़ रही है। बिहार में लगभग 48 फीसदी बच्चों में यह समस्या देखी गई है। वहीं उत्तरप्रदेश में 44, राजस्थान में 51 और मध्यप्रदेश में 43 फीसदी बच्चों की लंबाई उनके उम्र के हिसाब से कम है।

यह अध्ययन अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान मुंबई ने पूरे देश में किया। इसको लेकर हाल में पटना में यूनिसेफ के साथ हुई बैठक में चिंता भी व्यक्त की गयी। यह अध्ययन बिहार के सभी एक लाख 15 हजार आंगनबाड़ी केंद्रों के 93 लाख बच्चों पर किया गया है। इन बच्चों की उम्र एक से छह वर्ष तक है। कुल 93 लाख बच्चों में 50 लाख उम्र के अनुसार लंबे नहीं हैं। ये बच्चे जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम के असामान्य उतार-चढ़ाव से अधिकतर समय बीमार और कुपोषित रहे। इसका असर इनके शारीरिक विकास पर पड़ा। दिसंबर के दूसरे सप्ताह में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन बच्चों की लंबाई कम पायी गयी, उन्हें बीमार होने के कारण पोषक तत्व कम मिले।

रिपोर्ट में क्या?
बिहार में औसतन में 48 फ़ीसदी तो उत्तर प्रदेश में औसतन 44 फीसदी बच्चों की लंबाई अपनी उम्र के हिसाब से कम पाई गई। अध्ययन बिहार के 115000 आंगनबाड़ी केदो के 93 लाख बच्चों पर किया गया है

जलवायु परिवर्तन के कारण बच्चे अधिक संक्रमित होते हैं, बच्चों में कुपोषण भी बढ़ा है, इसका असर उनके सेहत पर पड़ रहा पड़ता है देखा गया कि पिछले तीन साल से बच्चों की उम्र के हिसाब से उनकी लंबाई कम हो रही है। जलवायु परिवर्तन का असर बच्चों की लंबाई पर पड़ रहा है। बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में बच्चों की उम्र के हिसाब से लंबाई नहीं बढ़ रही है.

जलवायु परिवर्तन के असर
बच्चों का शरीर और दिमाग जलवायु परिवर्तन के प्रभावों जैसे प्रदूषण, घातक बीमारियों, और चरम मौसम के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होता है। वयस्कों की तुलना में, बच्चे अपने शरीर के वज़न के हिसाब से ज्यादा हवा में सांस लेते हैं और ज्यादा तरल पदार्थ पीते हैं। बच्चे ज़मीन पर ज्यादा समय बिताते हैं, इसलिए वे ज़मीनी स्तर के प्रदूषकों के ज्यादा करीब होते हैं।

अधिक तापमान, वायु प्रदूषण, और हिंसक तूफ़ान बच्चों के लिए घातक खतरे पैदा करते हैं। इनसे जुड़े कुछ खतरे हैंरू सांस लेने में कठिनाई, कुपोषण, और संक्रामक रोगों का ज्यादा खतरा। जलवायु परिवर्तन से होने वाली बीमारियों जैसे हैज़ा, मलेरिया, डेंगू, और जीका का भी ज्यादा खतरा होता है।
जलवायु परिवर्तन को एक प्रमुख खतरे के रूप में पहचानना होगा, जो बच्चों की अगली पीढ़ी के अधिकारों को कमजोर कर रहा है। बच्चे सबसे कमजोर समूह हैं, जो जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा बोझ उठाते हैं, जिनका जलवायु परिवर्तन की घटना में सबसे कम योगदान है। इसलिए, दुनिया के बच्चों की सुरक्षा के लिए समाधान प्रस्तावित करने से पहले इस खतरनाक घटना के कारणों और प्रभावों की जांच करना आवश्यक है।

  •  विकास ठाकुर