वेल्स के एक भौतिक विज्ञानी सर विलियम राबर्ट ग्रोव 1839 में फ्यूल सेल पर रिसर्च कर रहे थे, तभी उनको यह पता लगा कि हाइड्रोजन को इलेक्ट्रिक एनर्जी का सोर्स बनाया जा सकता है। हाइड्रोजन की इस चमत्कारी ताकत के बारे में उनकी इस खोज पर दुनिया ने पहले उतना ध्यान नहीं दिया। मगर, जब कोयले और पेट्रोलियम का विकल्प खोजा जाने लगा तो सबको उनकी उस खोज की अहमियत का अंदाजा हुआ।
1950 के दशक तक राबर्ट ग्रोव की फ्यूल से तकनीक व्यावहारिक रूप से बड़े पैमाने पर लागू नहीं हुई थी। मगर, उस जमाने में अमेरिकी और सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रमों में इसका इस्तेमाल होना शुरू हुआ। 1990 के दशक में हाइड्रोजन ईंधन सेल से चलने वाली कारों ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। इसके बाद जलवायु परिवर्तन पर हुए सम्मेलनों में यह बात सामने निकलकर आई कि अगर धरती को बचाना है तो वैश्विक तापमान को औसतन 1.5 डिग्री सेल्सियस से कम रखना होगा। यहीं पर ग्रीन हाइड्रोजन का कान्सेप्ट आया, जिससे जुड़े एक प्रोजेक्ट की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को विशाखापत्तनम में नींव रखी। जानते हैं क्या है ग्रीन हाइड्रोजन और इसका नफा-नुकसान भी समझते हैं।
हाइड्रोजन अकेले नहीं रह सकता
त्वबीमेजमत प्देजपजनजम व िज्मबीदवसवहल के अनुसार, दरअसल, हाइड्रोजन अकेले कभी नहीं रह सकता है। हाइड्रोजन ईंधन सेल को ऊर्जा पैदा करने के लिए हाइड्रोजन और आक्सीजन की जरूरत होती है। यह एक ऐसी तकनीक है जो हाइड्रोजन को आक्सीजन की ओर आकर्षित करने की शक्ति का लाभ उठाती है। यानी जब भी संभव हो ये दोनों तत्व बंधन बनाने की कोशिश करेंगे। आमतौर पर पानी बनाएंगे। एक ईंधन सेल का डिजाइन तीन प्रमुख कंपोनेंट के माध्यम से इस परमाणु संबंध का फायदा उठाता है- एनोड, इलेक्ट्रोलाइट और कैथोड।
ग्रीन हाइड्रोजन क्या है
हाइड्रोजन हमारे ग्रह पर सबसे ज्यादा मात्रा में पाया जाने वाला तत्व है। यह आमतौर पर पानी (भ्2व्) या मीथेन (ब्भ्4) जैसे यौगिक का हिस्सा होता है। शुद्ध हाइड्रोजन को केवल अन्य तत्वों से अलग करके प्राप्त किया जाता है, जिसके लिए पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
कोयले से 95% ग्रीन हाइड्रोजन
आज जो भी हाइड्रोजन बनाया जा रहा है, उसका बड़ा हिस्सा यानी लगभग 95 प्रतिशत जीवाश्म ईंधन का उपयोग करके बनाया जाता है। स्टीम मीथेन रिफार्मिंग और गैसीकरण जैसी प्रक्रियाओं में प्राकृतिक गैस और कोयले का उपयोग किया जाता है, जो सालाना लगभग 830 मिलियन टन कार्बन डाइआक्साइड (ब्व्2) वातावरण में छोड़ते हैं। यह रकम यूनाइटेड किंगडम और इंडोनेशिया के कुल सालाना ब्व्2 उत्सर्जन के बराबर है।
कैसे बनाते ग्रीन हाइड्रोजन
ग्रीन हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलिसिस नामक प्रक्रिया से बनाई जाती है, जहां बिजली का उपयोग करके पानी के अणुओं से हाइड्रोजन निकाला जाता है। इससे काफी बिजली पैदा होती है। यही वह बिजली की मांग है, जिसने पिछले दशकों में ग्रीन हाइड्रोजन को बहुत महंगा बना दिया है। इलेक्ट्रोलाइजर, इलेक्ट्रोलिसिस के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मशीन, जो फोटोवोल्टिक ऊर्जा पर चलती है, प्राकृतिक गैस का उपयोग करके स्टीम मीथेन को फिर से बनाने की तुलना में छह गुना अधिक महंगी हो सकती है।
830 मिलियन टन कार्बन की बचत
ग्रीन हाइड्रोजन प्राप्त करने की इस विधि से 830 मिलियन टन ब्व्2 की बचत होगी। जो जीवाश्म ईंधन का उपयोग करके इस गैस के उत्पादन के दौरान सालाना निकलती रहती है। इसी तरह, दुनिया में सभी ग्रे हाइड्रोजन को बदलने के लिए नए नवीकरणीय स्रोतों से 3,000 ज्ॅी/वर्ष की आवश्यकता होगी, जो यूरोप की वर्तमान मांग के बराबर है।
स्वच्छ ऊर्जा के रूप में हाइड्रोजन
ईंधन के रूप में उपयोग के लिए हाइड्रोजन की वैश्विक मांग 1975 से तीन गुना बढ़ गई है और 2018 में 70 मिलियन टन प्रति वर्ष तक पहुंच गई है। इसके अलावा, ग्रीन हाइड्रोजन एक स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है जो केवल जल वाष्प उत्सर्जित करता है और कोयले और तेल के विपरीत हवा में कोई अवशेष नहीं छोड़ता है। हाइड्रोजन का इंडस्ट्री के साथ पुराना रिश्ता है। इस गैस का इस्तेमाल 19वीं सदी की शुरुआत से ही कारों, हवाई जहाजों और अंतरिक्ष यानों को ईंधन देने के लिए किया जाता रहा है।
कैसे बन सकता है भावी ईंधन
विश्व अर्थव्यवस्था का डीकार्बाेनाइजेशन यानी एक ऐसी प्रक्रिया जिसे रोक नहीं जा सकता। यह हाइड्रोजन को और महत्व देगा। विश्व हाइड्रोजन परिषद के अनुसार, अगर 2030 तक इसकी उत्पादन लागत 50ः तक कम हो जाती है, तो यह भविष्य का ईधन साबित होगा। चीन इस मामले में वर्ल्ड लीडर बनने की फिराक में है। वह अभी दुनिया में सबसे ज्यादा ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करता है, जबकि वह इसका सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है।
फायदे और नुकसान
100% टिकाऊ और स्वच्छः- हरित हाइड्रोजन दहन के दौरान या उत्पादन के दौरान प्रदूषणकारी गैसों का उत्सर्जन नहीं करता है।
स्टोर करने में आसानः- हाइड्रोजन को स्टोर करना आसान है, जिससे इसका उपयोग बाद में भी किसी काम के लिए किया जा सकता है।
बहुआयामीः- हरित हाइड्रोजन को बिजली या सिंथेटिक गैस में बदला जा सकता है और इसका इस्तेमाल इंडस्ट्री भी बड़े पैमाने पर कर सकेगी।
ज्यादा लागतः- अक्षय सोर्स से प्राप्त ऊर्जा यानी ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन की लागत अभी काफी ज्यादा है।
ज्यादा एनर्जी खपतः- आमतौर पर हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए अन्य ईंधनों की तुलना में अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
असुरक्षितः- हाइड्रोजन एक अत्यधिक अस्थिर और ज्वलनशील तत्व है और इसलिए रिसाव और विस्फोटों की आशंका रहती है।
हरित हाइड्रोजन का दुनिया में बढ़ रहा असर
हाइड्रोजन ईंधन के रूप में अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और जर्मनी जैसे देश अलग-अलग क्षेत्रों में लीडर बन चुके हैं। जापान जैसे देश तकनीकी रूप से वर्ल्ड लीडर है। भारत भी राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन पर काम कर रहा है।
66% प्राकृतिक गैस के बजाय पानी से हासिल हो
अंतरराष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी (प्त्म्छ।) के अनुसार, वर्ष 2050 तक कुल ऊर्जा मिश्रण में हाइड्रोजन की हिस्सेदारी 12ः तक हो जाएगी। एजेंसी ने यह भी सुझाव दिया कि उपयोग किए जाने वाले इस हाइड्रोजन का लगभग 66ः हिस्सा प्राकृतिक गैस के बजाय पानी से प्राप्त किया जाना चाहिए। ग्रीन हाइड्रोजन अक्षय ऊर्जा (जैसे सौर, पवन) का उपयोग करके जल के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा निर्मित होता है और इसमें कार्बन फुटप्रिंट कम होता है।
ब्राउन, ग्रे और ब्लू हाइड्रोजन क्या है
ब्राउन हाइड्रोजन का उत्पादन कोयले का उपयोग करके किया जाता है, जहां उत्सर्जन को वायुमंडल में छोड़ा जाता है। वहीं, ग्रे हाइड्रोजन प्राकृतिक गैस से पैदा होती है, जहां संबंधित उत्सर्जन को वायुमंडल में छोड़ा जाता है। ब्लू हाइड्रोजन भी प्राकृतिक गैस से पैदा होती है, जहां कार्बन कैप्चर और स्टोरेज का उपयोग करके उत्सर्जन को कैप्चर किया जाता है।
भारत में ग्रीन हाइड्रोजन की स्थिति
कुल उत्पादित हाइड्रोजन का 1ः से भी कम हिस्सा ‘ग्रीन हाइड्रोजन’ होता है। भारत उर्वरक और रिफाइनरियों सहित औद्योगिक क्षेत्रों में अमोनिया और मेथनाल के उत्पादन के लिए हर साल लगभग छह मिलियन टन हाइड्रोजन की खपत करता है। उद्योग की बढ़ती मांग और परिवहन एवं बिजली क्षेत्रों के विस्तार के कारण यह वर्ष 2050 तक बढ़कर 28 मिलियन टन हो सकता है।
भारत में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी
अक्षय ऊर्जा की भारत की कुल ऊर्जा में 40ः हिस्सेदारी है। चीन और अमेरिका के बाद भारत कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक है। हालांकि, बड़े पैमाने पर ऊर्जा भंडारण के बगैर रिन्युबल एनर्जी पारंपरिक एनर्जी सोर्स का विकल्प नहीं बन सकती। इसके लिए स्टोरेज क्षमता विकसित करना जरूरी है, तभी इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो सकता है।
लिथियम बैटरियों पर भारी ग्रीन हाइड्रोजन
लिथियम बैटरियों में बड़े पैमाने पर ऊर्जा का भंडारण नहीं हो सकता। वहीं, ग्रीन हाइड्रोजन का काफी बड़ी मात्रा में भंडारण हो सकता है। यह लंबी दूरी का सफर करने वाले ट्रक, बैटरी से चलने वाली कार, बड़े कार्गाे ले जाने वाले जलपोत, ट्रेनों के लिए बेहतरीन ऊर्जा सोर्स साबित हो सकती है।
सस्ता होने पर बढ़ेगा इस्तेमाल
भारत में ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल तभी बढ़ेगा, जब इसका उत्पादन सस्ता होगा। यानी स्टील, सीमेंट और वाहन उद्योग इसका इस्तेमाल तभी करेंगे, जब यह उनकी लागत पर खरा उतरेगा। फिलहाल, ग्रीन हाइड्रोजन से बनाए जाने वाला स्टील पारंपरिक ईंधन से बनाए जाने वाले स्टील से 50 से 127 फीसदी महंगा हो जाएगा। भारत में हाइड्रोजन की कीमत 400 से 500 रुपए प्रति किलो है। ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल इंडस्ट्री में तभी बढ़ेगा, जब इसकी कीमत 150 रुपए किलो पर आ जाएगी। रिफाइनरी, फर्टिलाइजर और स्टील उद्योग हाइड्रोजन के सबसे बड़े उपभोक्ता है।
1,500 टन अक्षय प्रतिदिन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आंध्र प्रदेश में पुडीमडका में एनटीपीसी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड के ग्रीन हाइड्रोजन हब प्रोजेक्ट की नींव रखेंगे। 1.85 लाख करोड़ रुपए की लागत वाला यह प्रोजेक्ट 20 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता विकसित करेगा। भारत हर दिन 1,500 टन ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करेगा। साथ ही, ग्रीन मेथनाल, ग्रीन यूरिया और सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल जैसे उत्पाद भी बनाए जाएंगे। यह पहल राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के तहत है जिसका मकसद 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता हासिल करना और इस क्षेत्र में निर्यात को बढ़ावा देना है।
- भाव्या सिंह