आर्थिक सर्वेक्षण (2018-19) के अनुसार भारत की वार्षिक प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत 0.6 टन तेल के तुल्य है, जो वैश्विक औसत का लगभग एक तिहाई है। इस सर्वेक्षण में आगे बताया गया है कि यदि भारत को मानव विकास सूचकांक को 0.8 तक पहुंचाना है, जो काफी अधिक माना जाता है, तो ऊर्जा खपत को चार गुना बढ़ाना होगा।
आय में वृद्धि, शहरीकरण और टेक्नोलाजी में तेज़ी से विकास के चलते आवासीय ऊर्जा उपभोग के स्तर और पैटर्न में काफी बदलाव आने की उम्मीद है। इसलिए इन उभरते हुए पैटर्न का अध्ययन करना काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि ये न सिर्फ मांग को प्रभावित करेंगे बल्कि बढ़ती मांग की आपूर्ति हेतु संसाधनों के नियोजन को भी प्रभावित करेंगे। फिलहाल, इस बात को लेकर जानकारी बहुत कम है कि भारतीय परिवार ऊर्जा का उपयोग कैसे करते हैं।
भारत में राष्ट्रीय स्तर पर आवासीय ऊर्जा खपत सर्वेक्षण (आरईसीएस) नहीं किया जाता है। ऐसे सर्वेक्षणों से कई देशों को अपने परिवारों, घरों की विशेषताओं और खपत के पैटर्न को समझने में काफी मदद मिली है। हमारे यहां जनगणना और उपभोक्ता वस्तुओं से सम्बंधित नमूना सर्वेक्षण जैसे राष्ट्रीय स्तर के सर्वेक्षणों के माध्यम से विभिन्न उपकरणों के स्वामित्व और अलग-अलग कामों के लिए र्इंधन के अंतिम उपयोग का डैटा इकट्ठा किया जाता है। अलबत्ता, इनमें उपकरणों की दक्षता, प्रकार, आयु और उपयोग की विस्तृत जानकारी एकत्र नहीं की जाती है और न ही यह पता किया जाता है कि इस मामले में सम्बंधित नीतियों के प्रति जागरूकता कितनी है और उनका प्रभाव क्या है। यह जानकारी विभिन्न अंतिम उपयोगों के उपकरणों के स्वामित्व और उनके उपयोग के पैटर्न का आकलन करने और सरकारी नीतियों/कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने लिए ज़रूरी है।
प्रयास (ऊर्जा समूह) द्वारा उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के 3000 अर्द्ध शहरी और ग्रामीण परिवारों में विस्तृत आवासीय ऊर्जा खपत सर्वेक्षण के निष्कर्ष कुछ जानकारी व समझ प्रदान करते हैं जो नीतिगत निर्णयों में सहायक हो सकती है। कुल मिलाकर, सर्वेक्षण के निष्कर्षों से पता चलता है कि बुनियादी ज़रूरतों के लिए उपयोग की जाने वाली ऊर्जा की मात्रा परिवार की आय, भौगोलिक स्थिति और आवास के स्थान के आधार पर अलग-अलग होती है। बुनियादी ज़रूरतों में प्रकाश व्यवस्था, घर को ठंडा रखना, रेफ्रिजरेशन और खाना पकाना शामिल हैं। यह भी देखा गया कि घरों में ऊर्जा की खपत बिजली आपूर्ति की विश्वसनीयता, उपकरण की दक्षता और खाना पकाने के लिए स्वच्छ र्इंधन की उपलब्धता से तय होती है।
प्रकाश व्यवस्था बिजली का सबसे बुनियादी उपयोग है और इस संदर्भ में सकारात्मक बात यह सामने आई है कि उत्तर प्रदेश में 80 प्रतिशत से अधिक और महाराष्ट्र में 60 प्रतिशत घरों में कार्यक्षम एलईडी का उपयोग किया जाता है। उजाला कार्यक्रम ने प्रकाश उपकरण के बाज़ार में एलईडी के प्रति जागरूकता बढ़ाकर और इसके बाज़ार मूल्य को नीचे लाकर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हमारे सर्वेक्षण में अधिकतर परिवारों ने एलईडी खरीदने का प्राथमिक कारण उनकी गुणवत्ता को बताया। इसलिए बाज़ार के इस बदलाव को बनाए रखने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले एलईडी बल्ब की उपलब्धता सुनिश्चित करने पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
घर को ठंडा रखने के लिए छत के पंखे सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले उपकरण हैं। वैसे, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में मध्यम और उच्च आय वाले घरों में एयर कूलर और एयर कंडीशनर की उपस्थिति भी देखी गई है। यह मानकर कि जैसे-जैसे गर्मी बढ़ती जाएगी, घरों में माहौल को अनुकूल बनाने के उपकरणों की आवश्यकता बढ़ेगी। चूंकि छत के पंखे और एयर कूलर स्थानीय स्तर पर बनाए और बेचे जाते हैं, इनके प्रदर्शन का मूल्यांकन और सुधार करने के लिए विशिष्ट प्रयासों की आवश्यकता होगी।
हालांकि रेफ्रिजरेटर का स्वामित्व काफी अधिक है, उनका उपयोग खाना पकाने के तरीकों से निर्धारित होता है।
हमारे सर्वेक्षण से पता चलता है कि रेफ्रिजरेटर की उपस्थिति तो काफी अधिक है लेकिन उनका उपयोग सीमित ही है।
खाना पकाने के लिए ऊर्जा घरों की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकताओं में से एक है और इस ज़रूरत की आपूर्ति विभिन्न र्इंधनों से हो रही है। सर्वेक्षण के मुताबिक दोनों राज्यों में 90 प्रतिशत से अधिक सर्वेक्षित घरों में एलपीजी कनेक्शन हैं। लेकिन विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के कई घरों में खाना बनाने के लिए आंशिक रूप से या पूर्णतः ठोस र्इंधन का उपयोग किया जाता है। उत्तर प्रदेश के लगभग 45 प्रतिशत और महाराष्ट्र के लगभग 12 प्रतिशत सर्वेक्षित घरों में खाना पकाने के लिए आंशिक रूप से या पूरी तरह ठोस ईंधन का उपयोग किया जाता है। अधिकांश परिवारों को लगता है कि पूरा खाना पकाने की दृष्टि से एलपीजी काफी महंगा है। कई परिवारों ने बताया कि उन्हें चूल्हे पर पका खाना पसंद है। खाना पकाने के लिए ठोस र्इंधन के उपयोग को खत्म करके उनकी जगह एलपीजी या अन्य स्वच्छ र्इंधनों के उपयोग को बढ़ावा देने और उन्हें एकमात्र र्इंधन बनाने हेतु आर्थिक और व्यवहारगत दोनों तरह के हस्तक्षेपों की आवश्यकता है।
इसके साथ ही, इन घरों में पानी गर्म करने के लिए आम तौर पर ठोस र्इंधन का उपयोग किया जाता है जो अंदरूनी या स्थानीय (गांव स्तर के) वायु प्रदूषण का कारण बनता है। उत्तर प्रदेश के लगभग 37 प्रतिशत और महाराष्ट्र के लगभग 91 प्रतिशत घरों में पानी गर्म करने के लिए ठोस र्इंधन का उपयोग किया जाता है जबकि इन घरों में खाना पकाने के लिए एलपीजी का उपयोग किया जाता है। बिजली, एलपीजी या सौर वाटर हीटर जैसे विकल्पों को बढ़ावा देने के लिए हस्तक्षेप करने से पहले सावधानीपूर्वक इनका मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
इस तरह की सूझबूझ से विस्तृत आवासीय ऊर्जा खपत सर्वेक्षण का महत्व स्पष्ट है। समय-समय पर राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी प्रतिनिधिमूलक जानकारी एकत्र करना भारत में तेज़ी से बदलती ऊर्जा की घरेलू मांग के प्रबंधन के लिए नीतियों के निर्माण और उनका मूल्यांकन करने के लिए महत्वपूर्ण है। नवगठित राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, जिसमें राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन शामिल है, समय-समय पर इस तरह के व्यापक सर्वेक्षण कर सकता है, जैसे वह पारिवारिक खर्च, आवास की स्थिति, स्वास्थ्य और अन्य मामलों में करता है।
प्रथम दृष्टि में इस सर्वेक्षण से पता चलता है कि दोनों राज्यों के घरों में लगभग 60 प्रतिशत ऊर्जा खपत खाना पकाने, लगभग 16 प्रतिशत पानी गर्म करने और 9 प्रतिशत घर को ठंडा रखने के लिए खर्च की जाती है। इस बात का विश्लेषण आगे किसी लेख में करेंगे कि ऊर्जा की यह मांग र्इंधन के प्रकार, परिवार की आमदनी और उसके ग्रामीण या शहरी होने के साथ कैसी नज़र आती है।
आदित्य चुनेकर एवं
श्वेता कुलकर्णी
पानी गर्म करने में खर्च ऊर्जा की अनदेखी
भारत में वर्तमान ऊर्जा नीति में नहाने के लिए पानी गर्म करने में खर्च होने वाली ऊर्जा को अनदेखा किया गया है। ठोस र्इंधन के उपयोग को खत्म करने के उद्देश्य से किए जाने वाले हस्तक्षेपों का ध्यान मूलतः खाना पकाने पर केंद्रित रहा है। अतीत की नीतियों में सौर वाटर हीटरों पर काफी ध्यान दिया गया था, लेकिन 2014 में सौर वाटर हीटरों पर सब्सिडी देने वाले एक राष्ट्रीय कार्यक्रम को भी बंद कर दिया गया। दूसरी ओर, ब्यूरो आफ एनर्जी एफिशिएंसी (बीईई) के पास स्टोरेज इलेक्ट्रिक वाटर हीटर के लिए अनिवार्य मानक और लेबलिंग (एस-एंड-एल) कार्यक्रम ज़रूर है। इस आलेख में, हम सर्वेक्षित घरों में पानी गर्म करने के पैटर्न की चर्चा करेंगे और यह देखेंगे कि इनका नीतिगत हस्तक्षेपों के लिए क्या निहितार्थ हो सकता है।
आम तौर पर, महाराष्ट्र की तुलना में उत्तर प्रदेश में सर्दियां अधिक ठंडी होती हैं। लेकिन सर्वेक्षित परिवारों में उत्तर प्रदेश में 34 प्रतिशत जबकि महाराष्ट्र में 92 प्रतिशत घरों में नहाने के लिए गर्म पानी का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश में नहाने के लिए गर्म पानी का उपयोग औसतन साल में केवल 2 महीने किया जाता है जबकि महाराष्ट्र में ऐसा 6 महीने किया जाता है। उत्तर प्रदेश में नहाने के लिए गर्म पानी के कम उपयोग के कई कारक हो सकते हैं। संभवतः आमदनी एक कारण हो सकता है – जहां निम्न आय वाले 25 प्रतिशत घरों में नहाने के लिए गर्म पानी का उपयोग किया जाता है वहीं उच्च आय वाले घरों में यह आंकड़ा 50 प्रतिशत है। इसमें कुछ सामाजिक प्रथाओं का भी योगदान है। एक बात यह कही जाती है कि लोग सर्दियों में नहाने के लिए गुनगुने भूजल का उपयोग करते हैं। हालांकि, यह संभावना हो सकती है कि जैसे-जैसे आय में वृद्धि होगी और सामाजिक प्रथाओं में बदलाव आएगा, वैसे-वैसे पानी गर्म करने के लिए ऊर्जा के उपयोग में भी वृद्धि होगी। इसकी और जांच करने की आवश्यकता है।
जो परिवार नहाने के लिए पहले से ही गर्म पानी का उपयोग कर रहे हैं वे अलग-अलग र्इंधन का इस्तेमाल करते हैं। उत्तर प्रदेश के लगभग 35 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 52 प्रतिशत सर्वेक्षित परिवारों में पानी गर्म करने के लिए ठोस र्इंधन का उपयोग किया जाता है। दिलचस्प बात तो यह है कि इनमें से उत्तर प्रदेश के लगभग 37 प्रतिशत और महाराष्ट्र के लगभग 91 प्रतिशत घरों में पानी गर्म करने के लिए तो ठोस र्इंधन का उपयोग किया जाता है लेकिन खाना बनाने के लिए एलपीजी का इस्तेमाल होता है।
इससे लगता है कि पानी गर्म करने के लिए ठोस र्इंधन का उपयोग समाप्त करने के लिए सावधानीपूर्वक विकसित कार्यक्रमों की आवश्यकता है। आंगन में रखे ठोस र्इंधन बायलर या खुली हवा में चूल्हे का उपयोग महाराष्ट्र के घरों में काफी आम है। इससे अंदरूनी घरेलू प्रदूषण तो नहीं होगा लेकिन यह स्थानीय प्रदूषण में योगदान अवश्य दे सकता है।
पानी को गर्म करने के लिए एलपीजी दूसरे नंबर का मुख्य र्इंधन है, खास तौर पर अर्ध-शहरी क्षेत्रों में। उत्तर प्रदेश में लगभग 39 प्रतिशत और महाराष्ट्र में लगभग 33 प्रतिशत अर्ध-शहरी सर्वेक्षित परिवारों में पानी गर्म करने के लिए एलपीजी का उपयोग किया जाता है।
जिन घरों में पानी गर्म करने के लिए एलपीजी का उपयोग किया जाता है वहां सिलेंडर की खपत अन्य परिवारों की तुलना में थोड़ी अधिक होती है। इसके लिए उत्तर प्रदेश में औसतन 2 सिलेंडर और महाराष्ट्र में 0.7 सिलेंडर अधिक उपयोग किए जाते हैं। उत्तर प्रदेश में लगभग 19 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 7 प्रतिशत परिवार एलपीजी इंस्टेंट वाटर हीटर का उपयोग करते हैं। अन्य परिवार पानी गर्म करने के लिए एलपीजी स्टोव का उपयोग करते हैं जिसका उपयोग वे खाना पकाने के लिए भी करते हैं।
कुछ घरों में पानी गर्म करने के लिए बिजली का उपयोग भी किया जाता है – उत्तर प्रदेश में लगभग 19 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 8 प्रतिशत घरों में पानी गर्म करने के लिए बिजली का उपयोग होता है। उत्तर प्रदेश के 92 प्रतिशत और महाराष्ट्र के 82 प्रतिशत ऐसे घरों में पानी गर्म करने के लिए इमर्शन राड का उपयोग किया जाता है। इसकी वजह से बिजली के झटके और आग जैसी दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है।
सौर वाटर हीटर का उपयोग दोनों ही राज्यों में न के बराबर है। पानी गर्म करने के लिए एक ही घर में अलग-अलग र्इंधनों का उपयोग नहीं किया जाता जैसे खाना पकाने के लिए किया जाता है।
यदि पानी गर्म करके उपयोग किया जाता है तो कुल घरेलू ऊर्जा खपत में इसका काफी योगदान रहता है। ठोस र्इंधन के आम उपयोग के परिणामस्वरूप अंदरूनी और स्थानीय वायु प्रदूषण होता है जिससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। खाना पकाने के लिए ठोस र्इंधन के उपयोग को खत्म करने के लिए जिस ढंग के हस्तक्षेप किए गए हैं, वे शायद इस मामले में कारगर न रहें। बिजली, एलपीजी और सौर वाटर हीटर जैसे विकल्पों को अपनाने का आग्रह करने से पहले उनका सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना होगा।
अगले आलेख में हम अपने सर्वेक्षण के नतीजों और प्रत्येक कार्य में कुल उर्जा खपत के योगदान का आकलन करके इस शृंखला का समापन करेंगे।