बिजली क्षेत्र की विभिन्न परियोजनाओं और प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) के परिणामस्वरूप भारत के लगभग हर घर में बिजली और एलपीजी कनेक्शन है। निसंदेह यह स्वागत-योग्य है, लेकिन फिर भी भारत की प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत वैश्विक औसत की लगभग एक तिहाई ही है जो भारत में मानव विकास के मार्ग में एक बाधा माना जाता है। इस लेख में कुछ ऐसे विचार सुझाए गए हैं जिनसे परिवार खाना पकाने के लिए साफ ईंधन के विकल्पों की ओर कदम उठाएंगे। और इसके परिमामस्वरूप घरेलू ऊर्जा की मांग में जो वृद्धि होगी उसके लिए प्रभावी नियोजन और प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए भी सुझाव दिए गए हैं। बिजली से जुड़ी कुछ समस्याओं की बात इस शृंखला के पिछले लेख ‘शत प्रतिशत ग्रामीण विद्युतीकरण पर्याप्त नहीं है’ में की जा चुकी है।
खाना पकाने के लिए ऊर्जा
पीएमयूवाई के तहत गरीब परिवारों में सात करोड़ से अधिक नए एलपीजी कनेक्शन दिए गए हैं। लेकिन यह सुनिश्चित करना एक मुश्किल काम है कि परिवार खाना पकाने के लिए रसोई गैस या अन्य साफ ईंधन का उपयोग लगातार जारी रखें। इसके लिए चार-आयामी रणनीति की आवश्यकता है।
पहला, पीएमयूवाई जैसी आपूर्ति-आधारित योजना को सुदृढ़ करना होगा ताकि परिवारों की ओर से मांग भी बढ़े। इसके लिए पारंपरिक चूल्हे पर खाना पकाने वाली महिलाओं एवं बच्चों पर होने वाली गंभीर स्वास्थ्य-सम्बंधी प्रभावों के प्रति जागरूकता पैदा करनी होगी और इससे सम्बंधित जेंडर, व्यवहार और सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करने के प्रयास करने होंगे।
दूसरा, आपूर्ति पक्ष में बिजली, बायोगैस और पाइप द्वारा प्राकृतिक गैस जैसे अन्य स्वच्छ र्ठंधन भी शामिल करने चाहिए क्योंकि यह ज़रूरी नहीं कि एलपीजी सभी घरों के लिए पसंदीदा या उपयुक्त विकल्प हो।
तीसरा, महज़ कनेक्शन से आगे जाकर आधुनिक ईंधन का निरंतर उपयोग सुनिश्चित करने के लिए, पर्याप्त और अच्छी तरह से निर्देशित सब्सिडी प्रदान करने, देशव्यापी आपूर्ति शृंखला स्थापित करने और ग्रामीण वितरण के लिए कामकाजी व्यावसायिक माडल विकसित करने के लिए नीतिगत उपायों की आवश्यकता है। चौथा, आधुनिक ईंधन के निरंतर उपयोग और घरेलू वायु प्रदूषण में कमी को लेकर सुपरिभाषित लक्ष्य होने चाहिए।
चूंकि यह मुख्य रूप से स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौती है, इसलिए इन चारों आयामों के समन्वय और प्रबंधन के लिए एक बहु-मंत्रालयीय कार्यक्रम की आवश्यकता होगी जो स्वास्थ्य मंत्रालय में अवस्थित हो और प्रधानमंत्री कार्यालय से संचालित किया जाए।
बढ़ती आय, विद्युतीकरण में वृद्धि और परिवारों में खाना पकाने के आधुनिक ईंधन की खपत में वृद्धि के चलते घरेलू ऊर्जा खपत में वृद्धि होगी। इस परिवर्तन के कारकों और पैटर्न को समझने की आवश्यकता है।
घरों में ऊर्जा उपयोग से सम्बंधित बेहतर जानकारी से ऊर्जा की मांग पर आय और कीमतों के असर, उपकरण खरीद, ईधन में परिवर्तन आदि के कारकों की बेहतर समझ मिल सकती है। इसके आधार पर ऊर्जा मांग का बेहतर अनुमान लगाया जा सकेगा और ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों में मदद मिलेगी।
मकानों के गुणधर्मों, उपकरणों के स्वामित्व, उपकरणों के उपयोग और घरेलू ऊर्जा उपयोग से सम्बंधित अन्य कारकों के बारे में राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय स्तर पर जानकारी एकत्र करने के लिए समय-समय पर सर्वेक्षण किए जाने चाहिए। कई देश इस तरह के सर्वेक्षण करते हैं, और वर्तमान भारतीय सर्वेक्षण में ऐसी कोई सूचना नहीं मिलती है। इसलिए, भारत को भी इस तरह के सर्वेक्षण करने के लिए एक संस्थान बनाना चाहिए, जिसको राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा संचालित किया जा सकता है।
दक्षता में सुधार
भविष्य में घरेलू ऊर्जा मांग के प्रबंधन में ऊर्जा दक्षता सम्बंधी उपायों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। भारत में रेफ्रिजरेटर और एयर-कंडीशनर (एसी) जैसे बड़े उपकरणों की संख्या फिलहाल बहुत कम है जो आने वाले समय में तेज़ी से बढ़ेगी और इनके लिए ऊर्जा दक्षता उपाय बहुत महत्वपूर्ण होंगे।
ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (बीईई), ऊर्जा कुशल उपकरणों को बढ़ावा देने के लिए एक ‘स्टार रेटिंग कार्यक्रम’ चलाता है। तीन कदम इस कार्यक्रम को और मज़बूत बनाने में मदद कर सकते हैं। सबसे पहला, बीईई को नियमित रूप से सभी उपकरणों के लिए दक्षता रेटिंग को उन्नत करना चाहिए।
उदाहरण के लिए, रेफ्रिजरेटर और एसी के लिए स्टार रेटिंग में संशोधन के ज़रिए 2019 में 5-स्टार उपकरण की ऊर्जा खपत 2009 की तुलना में कम हुई है लेकिन वहीं छत के पंखों के लिए 2010 के बाद से कोई संशोधन नहीं किया गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि भारत में सालाना बिकने वाले तीन से चार करोड़ सीलिंग फैन में से 80-90 प्रतिशत बहुत घटिया दक्षता वाले हैं। दूसरा, बीईई को विभिन्न उपकरणों के स्टार लेबल के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। इसमें उनके पूरे जीवनकाल में संभावित पैसे की बचत भी शामिल होना चाहिए जो उच्च शुरुआती लागत की भरपाई कर देती है।
तीसरा, बीईई को बाज़ार में स्टार-रेटेड माडल के बेतरतीबी से लिए गए नमूनों के प्रदर्शन का आकलन करना चाहिए और परिणामों को सार्वजनिक करना चाहिए। इससे स्टार लेबल में उपभोक्ताओं का विश्वास बढ़ेगा और परिणामस्वरूप कुशल उपकरणों को अपनाने में वृद्धि होगी।
भारत घरेलू ऊर्जा खपत में तेज़ी से वृद्धि की ओर बढ़ रहा है। इसे उपयुक्त नीति और संस्थागत डिज़ाइन द्वारा सुगम बनाने की आवश्यकता है, जिसका नियोजन घरेलू ऊर्जा मांग के संभावित कारकों और पैटर्न की बेहतर समझ के आधार पर हो तथा कुशलता से प्रबंधन किया जाए।
आदित्य चुनेकर
ऊर्जा क्षेत्र में अपरिहार्य परिवर्तन
बीसवीं शताब्दी में नियोजन का प्रमुख मकसद था भविष्य में बिजली की मांग का अनुमान लगाना, अधिक से अधिक पारंपरिक बिजली उत्पादन क्षमता स्थापित करना और इसे ट्रांसमिशन लाइनों के माध्यम से लोड केंद्रों से जोड़ना।
उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति किसी एकाधिकार प्राप्त संस्था द्वारा की जाती थी जिसमें आपूर्ति शृंखला के सभी स्तरों का एक ही मालिक होता था। मूल्य निर्धारण क्रास सब्सिडी के सिद्धांत पर आधारित होता था, जिसमें बड़े औद्योगिक और वाणिज्यिक उपभोक्ता ऊंचे शुल्क का भुगतान करते थे ताकि कृषि और घरों के लिए सस्ता शुल्क सुनिश्चित किया जा सके। लेकिन इसमें तेज़ी से परिवर्तन आ रहा है, मुख्यतः राष्ट्रीय नीतिगत पहल और वैश्विक तकनीकी-आर्थिक परिवर्तनों के कारण।
एक तरफ अक्षय उर्जा सस्ती हो रही है तथा बैटरी भंडारण की लागत भी कम हो रही हैं तथा दूसरी ओर कोयला आधारित बिजली की लागत बढ़ रही है। इनका मिला-जुला परिणाम होगा कि बिजली आपूर्ति में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ेगी। लंबे समय में, इससे परिवहन, खाना पकाने और उद्योगों जैसे कई अन्य क्षेत्रों में विद्युतीकरण बढ़ने की संभावना है। इससे स्थानीय वायु प्रदूषण, ऊर्जा सुरक्षा और बढ़ते ऊर्जा आयात बिल जैसी समस्याओं को आंशिक रूप से संबोधित किया जा सकता है। ये रुझान ऊर्जा क्षेत्र में आमूल बदलाव ला सकते हैं।
सबके लिए बिजली की सस्ती और भरोसेमंद पहुंच के साथ-साथ खाना पकाने के आधुनिक और स्वच्छ ईंधन के के प्रति सभी दलों ने व्यापक प्रतिबद्धता दिखाई है जो स्वागत योग्य है। अलबत्ता, इसे टिकाऊ वास्तविकता में बदलने के लिए बहुत काम करना होगा।
वर्तमान में, सरकार के भीतर ज़रूरतों के आकलन और प्राथमिकताएं तय करने, तथा परिवर्तन और जोखिमों का अंदाज़ा लगाकर उनके लिए तैयारी करने को लेकर एक सीमित गंभीरता है। इसके चलते संसाधनों के फंस जाने और पुराने रास्ते पर निर्भरता की समस्या हो सकती है क्योंकि निवेश लंबे समय के लिए होते हैं और पूंजी पर निर्भर होते हैं।
इस तरह की दिक्कत से बचने के लिए दो कदम महत्वपूर्ण हैं। सबसे पहले, महत्वपूर्ण डैटा की सार्वजनिक उपलब्धता की खामियों और विसंगतियों को संबोधित किया जाना चाहिए। दूसरा, सरकार के भीतर विश्लेषणात्मक क्षमता को बढ़ाया जाना चाहिए।
ऊर्जा विश्लेषण कार्यालय
नीति और निर्णय में सरकार की मदद करने के लिए, एक विश्लेषणात्मक एजेंसी की स्थापना करने की आवश्यकता है जिसे डैटा एकत्र करने और तालमेल बैठाने, रुझानों का विश्लेषण करने, रिपोर्ट प्रकाशित करने और नीतिगत हस्तक्षेपों का सुझाव देने का अधिकार हो। यह एजेंसी मौजूदा तकनीकी एजेंसियों जैसे केंद्रीय विद्युत अभिकरण (सीईए), पेट्रोलियम नियोजन व विश्लेषण प्रकोष्ठ (पीपीएसी) और सीसीओ से अधिक से अधिक लाभ उठाएगी।
इस एजेंसी को ऊर्जा विश्लेषण कार्यालय (ईएओ) कह सकते हैं। इसमें कई मंत्रालयों को शामिल किया जाना चाहिए। ऐसे कार्यालय के प्रभावी होने के लिए दो प्रमुख शर्तें हैंः नीतिगत प्रासंगिकता और राजनीतिक प्रभाव से स्वतंत्रता।
यह संतुलन बनाने के लिए ईएओ को कार्यपालिका के प्रशासनिक नियंत्रण में रखा जा सकता है किंतु इसके बजट की स्वीकृति तथा कार्य की समीक्षा संसद द्वारा की जाए। ईएओ को ऊर्जा क्षेत्र की चुनौतियों के प्रति दीर्घकालिक दृष्टिकोण रखना चाहिए और कार्यपालिका को नीति सम्बंधी इनपुट प्रदान करना चाहिए। जन भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
छोटे पर ध्यान
ऊर्जा के क्षेत्र में, अक्षय ऊर्जा और उसके भंडारण में विकास के चलते बड़े उपभोक्ताओं के लिए वैकल्पिक व सस्ते स्रोत खोजने के कई अवसर पैदा हो रहे हैं। लेकिन, यही उपभोक्ता ऊंचा भुगतान करते हैं। येहाथ से निकल जाने पर राजस्व की जो हानि होगी, वह बिजली वितरण कंपनियों (डिस्काम) के वर्तमान व्यापार माडल के अंत का संकेत है।
डिस्काम के भविष्य को लेकर दो गंभीर निहितार्थ हैं। आपूर्ति की लागत में से 70 प्रतिशत से अधिक का हिस्सा तो बिजली खरीद का होता है। जब मांग अनिश्चित हो जाएगी तो बिजली की खरीद अधिक जटिल और जोखिम भरा काम हो जाएगा। इसके साथ ही, क्रॉस सब्सिडी देने वाले उपभोगताओं के कम होने से या तो छोटे, ग्रामीण और कृषि उपभोगताओं से वसूला जाने वाला शुल्क बढ़ेगा या राज्य द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी की राशि में तेज़ी से वृद्धि ज़रूरी हो जाएगी।
यदि ठीक तरह से प्रबंधन नहीं किया गया, तो इन परिवर्तनों के कारण डिस्काम के लिए गंभीर वित्तीय संकट पैदा हो जाएगा, छोटे उपभोक्ताओं के लिए आपूर्ति की गुणवत्ता में कमी आएगी, परिसंपत्तियां बेकार पड़ी रहेंगी और कंपनियों को वित्तीय संकट से निकालने के लिए बेल-आउट की व्यवस्था करनी होगी जिसका असर बेंकिंग क्षेत्र पर भी पड़े बिना नहीं रहेगा।
इस तरह की समस्याओं से बचने के लिए ज़रूरी है कि डिस्काम्स के नियोजन और संचालन के तरीकों में मूलभूत परिवर्तन लाए जाएं। बाज़ार और प्रतिस्पर्धा बढ़ते क्रम में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। बड़े उपभोक्ताओं को अपने लिए आपूर्तिकर्ता चुनने की अनुमति देने से उन्हें लागत कम करने में मदद मिलती है, और इससे उत्पादन क्षमता में वृद्धि को भी युक्तिसंगत बनाया जा सकता है। डिस्कॉम्स को गहन मांग-आपूर्ति विश्लेषण के बिना नई बेसलोड क्षमता जोड़ने से बचना होगा।
कृषि फीडर को सौर-संयंत्रों से जोड़ने से सब्सिडी को कम करने में मदद मिलेगी और किसानों को दिन के वक्त भरोसेमंद आपूर्ति दी जा सकेगी। इन उपायों से डिस्काम्स को छोटे और ग्रामीण उपभोक्ताओं को आपूर्ति और सेवा में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने की गुंजाइश मिलेगी। ऊर्जा परिवर्तन एक अवसर प्रदान करता है जिसमें संसाधनों को अकार्यक्षम ढंग से उलझने से बचाया जा सकेगा और साथ में काफी पर्यावरणीय व आर्थिक लाभ भी मिलेगे। लेकिन यदि इस परिवर्तन का प्रबंधन ठीक से नहीं किया गया तो अफरा-तफरी मच जाएगी जिसका खामियाज़ा शायद छोटे व ग्रामीण व छोटे उपभोक्ता भरेंगे।
अश्विन गंभीर