नींद में था गांव आर.एस. वेंकटपुर और एल.जी. पॉलीमर इंडस्ट्रीज प्लांट से स्टाइरीन गैस रिसी। अचानक सांस लेने में तकलीफ और घबराहट से लोग जाग उठे। बदहवास हो चीखने लगे। किसी को कुछ समझ नहीं आया। जहरीली स्टाइरीन गैस से अनेकों लोग बेमौत मारे गए।
आंध्रप्रदेश का विशाखापट्टनम, जो देश के आधुनिक व्यवस्थित शहरों में गिना जाता है। 7 मई सुबह साढ़े तीन बजे एलजी पालीमर इंडस्ट्री प्लांट से एकएक जहरीली स्टाइरीन गैस रिसाव शुरू हो गई। अलसुबह हादसा हुआ, जब लोग गहरी नींद में सोए हुए थे। अचानक जहरीली स्टाइरीन के रिसाव से 10 लोग की मौत हो गई। 5000 से अधिक लोगों को अस्पताल में भरती किया गया। जहरीली स्टाइरीन गैस का फैलाव 3 से 5 किलोमीटर तक हुआ, जिसके कारण आसपास के पांच गांव खाली करा कर उन्हें सुरक्षित स्थान पर भेज दिया। कई लोग सड़कों पर पड़े थे, वहीं बहुत सारे लोगों को आंखों में जलन और सांस लेने में तकलीफ हो रही थी।
मुख्यमंत्री जगमोहन रेड्डी जार्ज किंग अस्पताल में पीड़ितों को देखने पहुॅंचे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस घटना को दुखद बताया और गैस रिसाव की घटना पर गृह मंत्रालय से बात की और तुरंत राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बैठक बुलाई। घटना स्थल पर एनडीआरएफ की टीम पहुॅंच कर रेस्क्यु आपरेश जारी किया। मुख्यमंत्री जगमोहन रेड्डी घटनास्थल आर.एस. वेंकटपुरम में पहुॅंचे।
विशाखापट्टनम में जहरली स्टाइरीन गैस रिसाव का हादसा भोपाल गैस कांड के भयावह नजारे को फिर से ताजा कर दिया, जहॉं 1984 के 23 दिसम्बर की रात को यूनियन कार्बाइड संयंत्र से जहरली गैस निकलनी शुरू हो गई। जब लोगों का दम उखड़ने लगा था। बदहवास जान बचाने लोग दौड़ रहे थे। दौड़ते-दौड़ते लोग गिरने लगे थे और सड़कों पर गिरकर दम तोड़ रहे थे। गिरे दम तोड़ते लोगों के ऊपर से लांघकर लोग दौड़ रहे थे और ऐसे सारे लोग मारे गए। जो बच गए, वो जिंदगी भर असहाय जीवन जीने को मजबूर हो गए।
बहुराष्ट्रीय कम्पनी यूनियन कार्बाइड के भोपाल संयंत्र से जहरीली गैस मिक रिसी थी और अब एक दूसरी बहुराष्ट्रीय दक्षिणी कोरियाई कम्पनी एलजी पालीमर इंडस्ट्री प्लांट से जहरीली गैस स्टाइरीन अचानक रिसी और गैस 3 से 5 किलोमीटर के वातावरण में फैल गई। भोपाल गैस हादसे में 20 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। विशाखापट्टनम में हुए हादसे में अब तक 10 लोगों की मौत हुई और हजारों गैस प्रभावित अस्पताल में हैं।
आरएस वेंकटपुर में एलजी पालीमर इंडस्ट्री प्लांट को लाकडाउन के बाद फिर से चालू करने की तैयारी चल रही थी। जबकि सरकार ने कारखानों और खासकर हानिकारक उत्पाद वालों के लिए गाइडलाइन जारी की है। इसके बावजूद प्रबंधन ने लापरवाही की, जिसके कारण प्लांट से जहरीली स्टाइरिन गैस का रिसाव होने लगा, जबकि रात साढ़े तीन बजे थे। इस कारण 3 से 5 किलोमीटर तक जहरीली गैस फैल गई।
स्थानीय प्रशासन को खबर लगते ही तुरंत राहत व बचाव कार्य शुरू हो गया। सभी आपातकाल सेवाएं शुरू हो गईं। नेवी और अग्निशमन दल के साथ राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन के सदस्य भी घटना स्थल पर पहुॅंच गए।
स्टाइरीन गैस रिसाव से जो लोग प्रभावित हुए हैं, उन्हें सांस लेने में परेशानी, आंखों में जलन, घबराहट होने के साथ शरीर में रेशेज, उल्टी और बेहोशी छाने लगी है। स्टाइरीन पालीस्टरीन प्लास्टिक और रेजिन बनाने में इस्तेमाल होती है। यह रंगहीन या हल्का पीला ज्वलनशील द्रव्य है, जो गंध में मीठी है। इसे स्टाइरोल और विनाइल बेंजीन भी कहा जाता है। बेंजीन और एथिलीन का उपयोग बड़े पैमाने पर औद्योगिक क्षेत्र में होता है। प्लास्टिक और रबर बनाने में स्टाइरीन का इस्तेमाल होता है, जिससे तमाम तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं।
आधुनिक सुख-सुविधा के साजोसामान बनाने के लिए जहरीली स्टाइरीन ने कई निर्दोष लोगों को मौत की नींद में सुला दिया। एक बार फिर बहुराष्ट्रीय कम्पनी के प्लांट से जहरीली गैस निकली और लोग मरे। आखिर भारत में ही ऐसे खतरनाक उद्योगों के रखरखाव में लापरवाही क्यों बरती जाती है, जिसमें लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ती है। भोपाल गैस कांड के बाद जो मरे और गैस पीड़ित लोग मुआवजे के लिए जिंदगीभर चक्कर काटते रहे, शायद ऐसा नजारा फिर देखने को न मिले।
कोरोना वायरस को खत्म करने कौन बनाएगा संजीवनी
सुरसा के मुॅंह की तरह कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ता ही जा रहा है। कब तक दुनिया लाकडाउन के भरोसे चलेगी। कोरोना वायरस का खात्मा करने वाली कारगर दवा अभी तक उपलब्ध नहीं हो सकी है। जापान, अमेरिका और इजराइल ने कोविड 19 के कारगर इलाज की दवा ईजाद कर ली है। चीन ने भी दावा किया है कि उसने वायरस संक्रमण का खात्मा करने वाली दवा बना ली है। मगर चीन की किसी बात का भरोसा नहीं किया जा सकता। दुनिया के अधिकांश देश एलोपैथी दवा ईजाद कर रहे हैं, तो भारत में एलोपैथी के अलावा होम्योपैथी और आयुर्वेदिक पद्धति की दवाओं को आजमाया जा रहा है।
रेमडेसिवीर सफल रही
कोविड 19 के लिए अब तक कोई ऐसी दवा नहीं है, जो इलाज में मददगार साबित हो। वैसे अब तक दुनिया भर में 150 से अधिक दवाओं पर रिसर्च हो चुका है। ज्यादातर दवाएं प्रचलन में हैं, जिन्हें आजमाकर देखा गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कारगर इलाज के लिए एक सॉलिडैरिटी ट्रायल शुरू किया है। अब तक तीन तरह की दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है।
कोरोना वायरस की अब तक की सबसे कारगर दवा ‘रेमडेसिवीर’ है, जो ज्यादा असरकारी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के डॉक्टर ब्रुश आइलवर्ड कहते हैं कि मैंने अपने चीन के दौरे में पाया कि रेमडेसिवीर असरदायी है।
जापान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने रेमडेसिवीर को मान्यता दे दी, जिसका परीक्षण भी किया जा चुका है। इबोला वायरस के लिए इसे तैयार किया गया था, जो कई घातक बीमारियों में कारगर साबित हुई है। कोरोना काल के लिए रेमडेसिवीर संजीवनी बन गई है। शिकागो में इसका सफल परीक्षण कर कहा गया है कि कोविड 19 से संक्रमित 125 मरीजों को रेमडेसिवीर दी गई, जिसमें 123 पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए।
रेमडेसिवीर लिक्विड रूप में है, जो नसों के जरिए मरीज के शरीर में पहुॅंचाई जाती है। कोविड 19 के मरीजों पर इसका परीक्षण किया गया। इलाज के 10 दिन बाद वे स्वस्थ हो गए।
रोग प्रतिरोधक दवा
मलेरिया की दवा क्लोरोक्विन और हाइड्राक्सी-क्लोरोक्वीन में वायरस प्रतिरोधी और इंसानों की प्रतिरोधक प्रणाली को शिथिल करने के गुण मौजूद हैं। यह दवा उस समय बड़ी चर्चा में आई जब अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कोविड 19 के इलाज में इसकी संभावनाओं पर विचार किया। भारत ने इस दवा को अमरीका सहित कई देशों को निर्यात किया।
हाइड्राक्सी क्लोरोक्विन का इस्तेमाल अर्थराइटिस में भी किया जाता है, क्योंकि यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को नियमित करने में मदद कर सकती है। लैब जांच में यह पता चला कि यह कोरोना वायरस के संक्रमण को रोक सकता है। डॉक्टरों का अनुभव भी यही कहता है कि यह संक्रमित मरीज पर असर करता है।
इजराइल ने बनाई दवा
आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भी एक दवा ईजाद की गई है। CHADOXI पर अंतिम परीक्षण चल रहा है। यह दवा जून-जुलाई के अंत तक आ जाएगी। प्रसिद्ध फार्मा एक्ट्राजेनिक इसे तैयार कर रही है। कम्पनी का कहना है कि साल के अंत तक दवा के दस करोड़ डोज तैयार हो सकेंगे।
इजराइल ने दावा किया कि उसने कोरोना वायरस को खत्म करने वाला एंटीबाडी विकसित कर लिया है। इजराइल के रक्षामंत्री नफताली बेनेट ने बताया कि देश के प्रमुख बायोलाजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने जो एंटीबाडी विकसित किया है, वह वायरस पर सीधा अटैक करता है और उसे शरीर में बेअसर कर देता है। इसे पेटेंट कराने की प्रक्रिया चल रही है। यह एंटीबाडी मोनोक्लोनल, नई और शुद्ध है। इसमें हानिकरक प्रोटीन की मात्रा कम है। यह कोरोना वायरस को बेअसर कर देती है। कोरोना वायरस पर इस एंटीबाडी का परीक्षण परिणाम बेहतर आया है।
भारत में कोरोना वायरस से निपटने के लिए आयुर्वेदिक दवाएं भी हैं। आयुष मंत्रालय तथा इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने कोविड-19 के इलाज पर शोध की अनुमति आगरा कुबेरपुर स्थित नेमिनाथ होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज को दी है। होम्योपैथी में कई दवाएं हैं, जिसे आयुष मंत्रालय ने इसे बेहतर बताया था, लेकिन कई विरोधी बयान के बाद इसका बाकायदा परीक्षण करवाया जा रहा है। 200 मरीजों को होम्योपैथी दवा दी जाएगी। फिर मरीजों का परीक्षण कराया जाएगा। होम्योपैथी दवा सहज व सरल है। कोविड-19 के लिए यह सबसे सस्ती दवा साबित होगी।
आयुर्वेदिक दवा
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में संक्रमण से बचाव और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए कई दवाएं हैं। आयुष मंत्रालय ने शरीर के प्रतिरोधक क्षमता मजबूत करने के लिए कुछ आयुर्वेदिक दवाओं के उपयोग की सलाह दी है। केरल के पंकज कस्तूरी हर्बल रिसर्च फाउंडेशन द्वारा विकसित आयुर्वेदिक दवा को क्लीनिकल परीक्षण की मंजूरी मिली है।
आयुष मंत्रालय आयुर्वेद और देशी चिकित्सा पद्धतियों के करीब दो हजार फार्मूले खंगाल रहा है, ताकि कोविड-19 के उपचार की कारगर औषधि तैयार हो सके। मंत्रालय तीन तरह से देशी चिकित्सा पद्धति का इस्तेमाल करना चाहता है। एक बचाव करने वाली दवा, दूसरी इलाज तथा तीसरे ऐसे उत्पाद जो खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग किए जा सकें, जो कोविड-19 प्रबंधन में उपयोगी सिद्ध हों। एमिल फार्मा ने 13 जड़ी-बूटियों से बने फार्मूले फीफाट्रोल को क्लीनिकल परीक्षण शुरू करने का अनुरोध किया है।
सुदर्शन वटी, संजीवनी वटी, गोदंती भस्म, त्रिभुवन कीर्तिरस तथा महामृत्यंजय रस से निर्मित इस फार्मूले में माइक्रोवियल संक्रमण के खिलाफ लड़ने की क्षमता है। आयुर्वेद पद्धति की एक और दवा जिसमें आठ औषधि शामिल हैं, इसका परीक्षण किया जा रहा है। चार फार्मूलों पर अध्ययन को मंजूरी दी गई है। डॉ. नेसारी ने बताया कि गिलोय, अश्वगंधा, मुलेठी से बने तीन फार्मूलों एवं आयुष मंत्रालय द्वारा विकसित एक दवा आयुष 64 को भी कोविड 19 के मरीजों को दिए जाने का फैसला किया है।
रोग प्रतिरोधक काढ़ा
भारत में पहली बार आयुर्वेदिक दवाओं को प्रोत्साहन देकर उसे इस्तेमाल में लाया जा रहा है। गुजरात में एक करोड़ छब्बीस लाख लोगों को निःशुल्क दवा वितरित की गई है, जिसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की औषधि है। अस्पताल में कोरोना वायरस से संक्रमित 3585 मरीजों को आयुर्वेदिक काढ़ा दिया गया। आयुर्वेदिक दवाओं में संशमनी, दशमूल, त्रिकुट चूर्ण, तुलसी, नीम और हल्दी को विशेष रूप से लिया गया है। गोवा और उत्तरप्रदेश में एलोपैथिक दवाओं के साथ आयुर्वेदिक औषधियॉं दी जा रही हैं, ताकि मरीज की रोग प्रतिरोध शक्ति बढ़े।
आयुर्वेदिक पद्धति में जटिल बीमारियों का इलाज व वायरस संक्रमण का इलाज होता है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार की देखरेख में 50 से अधिक प्रोजेक्ट चल रहे हैं। कौन सा आयुर्वेदिक फार्मूला कोरोना वायरस से मुक्ति दिलाएगा, अब यह देखना है। आयुर्वेद पद्धति से बनी कोरोना वायरस को खत्म करने वाली दवा बेहतर तो होगी, वहीं आयुर्वेद को फिर से चिकित्सा जगत में महत्वपूर्ण स्थान मिल सकेगा।
बहरहाल कोविड-19 से मुक्ति दिलाने वाली दवा को कौन बाजार में उतारता है, यह देखना है। बहुत सारी दवाएं अभी परीक्षण के दौर से गुजर रही हैं। फिलहाल संक्रमण की रोकथाम के लिए कुछ दवाओं का उपयोग डॉक्टर कर रहे हैं। वहीं भारत के कई राज्यों में एलोपैथी दवा के साथ आयुर्वेदिक दवाओं की डोज दिया जा रहा है। कोरोना की दवा बाजार में लाकर कौन जीतेगा, यह तो समय ही बताएगा।
सैय्यद अहमद अली
सावधान : कोरोना का भयावह खतरा टला नहीं है
एक अदृश्य वायरस से फैली महामारी से पूरी दुनिया में हाहाकार मचा है। विश्व के शक्तिशाली देश उसके सामने लाचार, बेबस से हो गए हैं, जिन्होंने घुटने टेक दिए। इंसान का सारा वैभव, उसकी आर्थिक प्रगति के आड़े आ गई। ऐसी महामारी जिसके बारे में कभी सोचा भी न था कि उसे ऐसे हालात से गुजरना पड़ेगा। हाथ पर हाथ रखे अपने ही घरों में कैद हो जाना होगा। कोविड 19 के आगाज से मानवता महामारी के युग में प्रवेश कर चुकी है। लाकडाउन के चलते जीवन निर्वाह की जरूरतें अहम हो गई हैं और दुनिया जान चुकी है कि हमारी तरक्की प्रकृति के विनाश से संभव नहीं है।
वायरस से बेबस इंसान
चीन के वुहान शहर से फैले कोराना वायरस ने चार माह में 40 लाख लोगों को अपनी चपेट में ले लिया। कोविड-19 के नाम से जाना जाने वाला वायरस का संक्रमण अभी थमा नहीं है। पौने तीन लाख लोगों ने अपनी जान गंवाई है, लेकिन मौत का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। वायरस संक्रमित मृत लोगों के अंतिम संस्कार की परम्परा भी ध्वस्त हो चली है। भय इतना कि अपने प्रियजन की मौत पर उसे गले लगाकर रोने पर भी पाबंदी है। मानवीय प्रियजन की मौत पर उसे गले लगाकर रोने पर भी पाबंदी है। मानवीय संवेदनाएं कुंठित हो गई हैं। शहरों में सन्नाटा और श्मशान में हलचल तेज हो चली है। कोरोना ने लोगों के आंसुओं को भी सुखा दिया।
दुनिया लाकडाउन में है और कोविड 19 अपनी पूरी रफ्तार पर है। हर रोज संक्रमित व्यक्ति बढ़ रहे हैं और अस्पताल में जुटे हैं डॉक्टर उन्हें स्वस्थ करने के लिए। तरह-तरह की दवाओं की आजमाइश हो रही है, लेकिन कोविड 19 के लिए कोई कारगर दवा नहीं है। यूरोपीय देशों में मरीज इतने हो गए हैं कि उम्रदराज मरीजों को उनके हाल पर छोड़ दिया जा रहा है। आधुनिक मानव इतना बेबस, कट्टर हो जाएगा, ऐसी कल्पना भी कभी किसी ने नहीं की थी। बस स्तब्ध हो देश-दुनिया की सरकारें मौत के आंकड़े को देख रही हैं, आखिर यह क्यों और कैसे?
हर सौ साल में महामारी
वायरस जन्य महामारी प्रकृति चक्र के साथ चलती है। हर बार महामारी में ज्यादा लोग वहॉं मारे जाते हैं, जहॉं-जहॉं प्राकृतिक परिवेश का ह्रास हुआ है। हर सौ साल बाद ऐसी महामारी आती है। महामारी के इतिहास पर नजर डालें तो स्पष्ट हो जाएगा कि 2020 दुनिया के इंसानों के लिए कुछ भयावह होने वाला है। 1720 में प्लेग फैला, लाखों लोग मारे गएं 1820 में कॉलरा और 1920 में स्पेनिश फ्लू जैसी महामारी में लाखों लोग मौत के आगोश में चले गए। 2020 में कोविड 19 का दौर चल रहा है, जिसका सिलसिला कब खत्म होगा, कहा नहीं जा सकता।
भारत में बढ़ता संक्रमण
बढ़ते वायरस संक्रमण से बचने के लिए हमें पूरी तरह सजग रहना होगा। भारत में वायरस संक्रमण की रफ्तार भले धीमी रही हो, लेकिन थमी नहीं है। दुनिया की दूसरी बड़ी आबादी वाले देश में कई विषमताएं कोविड-19 को फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं। 18 मई तक देश में कोविड 19 के मामले 100000 तक पहुॅंचने वाले हैं। इसी रफ्तार से संक्रमण बढ़ा तो 15 अगस्त तक संक्रमितों की संख्या 4 करोड़ तक पहुॅंच जाने की आशंका है। जून के अंत तक हालत खराब होने की आशंका है। रोज एक लाख लोग कोविड 19 से संक्रमित सामने आने लगेंगे। यह अनुमान केबिनेट सेक्रेट्री राजीव गाबा की अध्यक्षता में 26 अप्रैल को नई दिल्ली में हुई बैठक के दौरान सरकार की ओर से जताया गया है। इस भयावह स्थिति के बारे में केन्द्र सरकार ने राज्य सरकारों को अवगत कराया है।
अनुमान से अधिक रफ्तार कोविड 19 की हो गई। 11 मई को भारत में संक्रमित लोगों का आंकड़ा 67 हजार को पार कर गया। मई के दूसरे सप्ताह में देश के 9 राज्यों में सक्रिय मरीजों की संख्या घटी तो 15 राज्यों में बढ़ी। महाराष्ट्र में 22171 कोविड 19 संक्रमित हो चुके हैं। राज्य के बाहरी क्षेत्रों की झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों में यह संक्रमण बेहद खतरनाक हो सकता है।
तीन लाख लोग मरे
विश्व के 193 देश महामारी से जूझ रहे हैं। विकसित देशों में कोविड 19 ज्यादा मारक हो गया है। लगभग 42 लाख इसकी चपेट में आए हैं तो 3 लाख लोगों ने अपने प्राण गंवा दिए। अमेरिका में मौत का आंकड़ा 80 हजार को पार कर गया। राष्ट्रपति ट्रंप पहले ही कह चुके हैं, अगर मौत का आंकड़ा 1 लाख में थम गया तो हम इस पर अपनी जीत मानेंगे। इंग्लैंड में 31855, इटली में 30560, स्पेन में 26621, फ्रांस में 26380 और ब्राजील में 10739 लोग महामारी के शिकार 10 मई तक हो चुके। मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है, क्योंकि अब तक कोई अचूक दवा नहीं बनी है कोविड 19 से निपटने के लिए।
लाकडाउन के बाद चुनौतियां
7 लाख लोगों की मौत कोरोना वायरस से हो सकती है। ऐसी चौंकाने वाली बात यूनीवर्सिटी आफ ब्रिस्टल के अध्ययन से सामने आई है। यह भी कहा गया है कि मंदी, गरीबी और लापरवाही के चलते मौत का आंकड़ा बढ़ भी सकता है। अगर कोविड 19 के लिए वैक्सीन नहीं बनी तो ब्रिटेन को 2024 तक सोशल डिस्टेंसिंग के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। लॉकडाउन की वजह से वैश्विक मंदी भी
वैश्विक कटघरे में खड़ा विश्व स्वास्थ्य संगठन
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) पर दुनिया के कई देशों ने उंगली उठाई, जिसने कोविड-19 की सूचना से महामारी घोषित करने में लापरवाही बरती। डब्ल्यूएचओ ने कोविड 19 को वैश्विक महामारी घोषित करने में 72 दिन लगा दिए, जब 114 देश वायरस की चपेट में आ चुके थे। दुनिया भर में मौत के तांडव का आज जो हृदय विदारक दृश्य नजर आ रहा है, वह नहीं होता अगर चीन वुहान में फैले वायरस की सूचना दुनिया को देता। डब्ल्यूएचओ समय रहते विश्व को कोविड-19 के बारे में चेतावनी जारी कर देता है।
महामारी घोषणा में विलम्ब
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अधनोम गेग्रेयेसस शक के घेरे में आ गए हैं। आरोप लग रहे हैं कि कोरोना वायरस से होने वाली बीमारी कोविड 19 को वैश्विक महामारी घोषित करने में जान-बूझकर देरी की। वहीं टेड्रोस ने कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए चीन के कम्युनिस्ट सरकार की सराहना की थी, जबकि ऐसा नहीं था। डब्ल्यूएचओ पर अमेरिका सहित कई देशों ने सवाल किए कि आखिर क्यों देरी हुई, महामारी की चेतावनी देने में?
कोराना वायरस प्रकोप की घोषणा चीन ने 31 दिसम्बर 2019 को की थी। ताइवान ने डब्ल्यूएचओ को 31 दिसम्बर को चेतावनी भरा पत्र लिखकर वायरस संक्रमण के बारे में आगाह किया था, जिसके जवाब में महानिदेशक टेड्रोस ने कहा कि चाइना में सब कुछ ठीक-ठाक है और यह मानव से मानव में नहीं फैलता। 14 जनवरी 2020 को डब्ल्यूएचओ ने ट्विट किया, ‘‘चीन की शुरूआती जांच में इस बात के संकेत नहीं मिले हैं कि कोराना वायरस इंसानों से इंसानों में नहीं फैलता।’’ 22 जनवरी को डब्ल्यूएचओ ने अपने बयान से पलटा और ट्विट किया कि वुहान में कोराना वायरस इंसानों से इंसानों में फैलने के मामले सामने आए हैं। दुनिया की सेहत का रखवाला संगठन डब्ल्यूएचओ ने कोराना वायरस के बारे में जैसी गलतबयानी की, वह क्या किसी साजिश के तहत की थी या फिर संगठन ने खुद कोराना वायरस के बारे में सही तरीके से जांच-पड़ताल नहीं की।
30 जनवरी 2020 को चीन ने अपने देश में जन स्वास्थ्य आपातकाल लगाया। 30 जनवरी की रात्रि डब्ल्यूएचओ ने कोरोना को ग्लोबल इमरजेंसी घोषित किया। वैश्विक महामारी घोषणा तक कोविड-19 से 114 देश में फैल चुका था और 1.18 लाख लोग कोरोना संक्रमित हो चुके थे।
विफल रहा डब्ल्यूएचओ
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सीधे आरोप लगाते हुए कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना के मामले में चीन को लेकर गंभीर नहीं है। इसी के चलते दुनिया भर में कोरोना संक्रमण फैला। ट्रंप ने दावा किया कि डब्ल्यूएचओ अपने काम में विफल रहा है। इसी के साथ अमेरिका ने डब्ल्यूएचओ को फंडिंग रोक दी। डब्ल्यूएचओ का सालाना बजट 4.5 बिलियन डॉलर का है। इसमें अमेरिका की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत ही है। अमेरिका ही नहीं कई देश यह मानते हैं कि चीन को लेकर डब्ल्यूएचओ का रवैया उदासीनता भरा रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन आखिर अपनी क्षमता के विपरीत काम क्यों कर रहा है, यह एक अहम् मुद्दा है? 2013 में पश्चिमी अफ्रीका में इबोला संक्रमण के दौरान और उसके डब्ल्यूएचओ की प्रतिक्रिया को लेकर भी काफी आलोचना हुई थी। 2020 में कोविड 19 के मामले में महानिदेशक टेड्रोस पर सीधे आरोप लग रहे हैं कि वे चीन के सहयोगी हैं। हालांकि इसके बाद महानिदेशक टेड्रोस ने अमेरिका के आरोपों को खारिज करने के साथ अपने इस्तीफे की खबरों का भी खंडन किया।
इथोपिया की चेतावनी
क्या सचमुच डब्ल्यूएचओ महानिदेशक और चीन के बीच कोई गहरा सम्बन्ध है? ट्रेडोस पर वायरस संक्रमण को लेकर कई बार आरोप लगे, जब वे अपने देश इथोपिया के स्वास्थ्य मंत्री थे। स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए टेड्रोस ने तीन महामारी की जानकारी छुपाई, जिसके चलते इथोपिया के हजारों लोग बेमौत मारे गए। टेड्रोस 2005 से लेकर 2012 तक इथोपिया के स्वास्थ्य मंत्री थे। इस दौरान 2006, 2009 और 2011 में हैजा ने इथोपिया में पांव पसारे। उस वक्त टेड्रोस ने कहा था, पानी से होने वाले इस डायरिया का पता लगाना मुमकिन नहीं था। वहीं कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि इथोपिया सरकार ने दबाव बनाकर यह जानकारी छुपाई थी। ऐसे में टेड्रोस का चयन डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक के लिए कैसे हुआ?
विश्व स्वास्थ्य संगठन आखिर क्यों वैश्विक राजनीति का अखाड़ा बनता जा रहा है। 21वीं सदी के घटनाक्रम जोड़कर देखा जाए तो कहीं दाल में काला नजर आता है।
2002 में सार्स कोरोना वायरस चीन से दुनिया में फैला था, तब चीन से हवाई उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। उस दौरान डब्ल्यूएचओ की महानिदेशक थी नार्वे की ग्रो हारलेम ब्रण्टलैंड, जिन्होंने चीन को महत्वपूर्ण सूचना देने में देर करने के लिए आड़े हाथों लिया था।
चीन और डब्ल्यूएचओ
2002-03 में फैली सार्स नामक महामारी में हुई मौतों और दहशत का वातावरण फैला था। कोविड-19 की तरह चीन ने इसे विश्व समुदाय को बताने में देर की थी। लेकिन तब और वर्तमान में फर्क था। डब्ल्यूएचओ सार्स महामारी रोकने के लिए सिफारिश की और दुनिया भर में फैलने से रोका। चीन में कोविड-19 तब चीन के वुहान से हवाई उड़ानों पर प्रतिबंध नहीं लगाया। वहीं डब्ल्यूएचओ ने 2003 में जारी कोरोना वायरस के बारे में चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया, यह अहम प्रश्न है।
कोरोना के बारे में अक्टूबर 2019 के मध्य में यह खुलासा हो चुका था कि यह वायरस मनुष्यों से मनुष्यों के बीच फैल चुका था। इस बात के पुख्ता सबूत हाल ही में मिले हैं। फिर भी डब्ल्यूएचओ ने गंभीरता से पहल नहीं की। चीन ने कोविड-19 के मामले में अपनी विफलताओं और सरकारी ब्यौरों को सेंसर