प्रदूषण से बढ़ रहा गर्भपात

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बढ़ते प्रदूषण के चलते बड़ी संख्या में गर्भपात हो रहे हैं। गर्भपात और मृत बच्चे होने के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार है वायु प्रदूषण। ऐसा खतरा भारत सहित दक्षिण एशिया के देशों में बढ़ता जा रहा है। भारत के शहरी क्षेत्रों में जहॉं वायु प्रदूषण अधिक है, ऐसे मामले ज्यादा सामने आ रहे हैं।
खतरा दक्षिण एशिया में
दक्षिण भारत में वैश्विक स्तर पर गर्भ नष्ट होने के मामलों की सबसे ऊॅंची दर है। द लैंसेट मेडिकल जर्नल में छपे एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि दक्षिण एशिया में हर साल करीब 3.50 लाख गर्भ नष्ट होने के मामलों का सम्बन्ध बढ़े हुए प्रदूषण से है। इस पर पेकिंग विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ता के ताओ श्यू कहते हैं, ‘‘हमारे निष्कर्ष इस बात को और साबित करते हैं कि प्रदूषण के खतरनाक स्तर का मुकाबला करने के लिए तुरंत कदम उठाने की जरूरत है।’’ लैंसेट में पिछले महीने प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में खराब वायु गुणवत्ता 2019 में हुई, जिसके कारण 16.7 लाख लोगों की मौत हुई। 2017 में यह संख्या 12.4 लाख थी।
वैज्ञानिक विश्लेषण में पाया गया कि प्रदूषण की वजह से फेफड़ों की दीर्घकालीन बीमारी, सांस लेने में संक्रमण, फेफड़ों का कैंसर, दिल की बीमारी, दिल का दौरा, मधुमेह, नवजात शिशु सम्बन्धी बीमारी और मोतियाबिंद जैसी बीमारियां होती हैं। ताजा अध्ययन में चीनी शोध दल ने दक्षिण एशिया में ऐसी 34197 माताओं के डाटा का अध्ययन किया, जिन्हें कम से कम एक बार स्वतः गर्भपात या मृत जन्म हुआ हो और उन्होंने एक या एक से ज्यादा जीवित बच्चे को भी जन्म दिया हो।
इनमें से तीन चौथाई से भी ज्यादा महिलाएं भारत से थीं और बाकी पाकिस्तान और बांग्लादेश से। वैज्ञानिकों ने इन माताओं का गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 के जमाव से सम्पर्क में आने का अनुमान लगाया। पीएम 2.5 धूल, कालिख और धुएं में पाए जाने वाले बहुत छोटे कण हैं, जो फेफड़ों में फंस सकते हैं और रक्त प्रवाह में घुस सकते हैं।
गर्भ नष्ट होने की वजह से महिलाओं पर मानसिक, शारीरिक और आर्थिक असर होते हैं और इन्हें कम करने से लिंग आधारित बराबरी में प्रारंभिक सुधार हो सकते हैं। वैज्ञानिकों ने हिसाब लगाया कि सालाना गर्भ नष्ट होने के मामलों में 7.1 प्रतिशत मामले भारत में वायु प्रदूषण के कारण हैं। जहॉं वायु गुणवत्ता में मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ऊपर का प्रदूषण है।
भारत और चीन दोनों दुनिया के 30 सर्वाधिक प्रदूषित देशों में शामिल हैं। चीन 29वें और भारत 30वें नम्बर पर है। उपग्रह की तस्वीरें बताती हैं कि पिछले सात सालों में चीन के हालात सुधरे हैं, जहॉं अब जीएम 2.5 का स्तर 45 से 75 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर है, जबकि भारत में यह स्तर औसतन 85 माइक्रोग्राम से अधिक रहता है। सोगा-2020 रिपोर्ट अमेरिका स्थित हेल्थ इफेक्ट इंस्टीट्यूट और ग्लोबल बर्डन आफ डिजीज प्रोजेक्ट ने जारी की है।
बढ़ रही प्रदूषित हवा
भारत में करीब 14 करोड़ लोग सुरक्षित मानकों से 10 गुना अधिक प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। असुरक्षित स्तर के अलावा सल्फर डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में भारत नम्बर एक है। भारत में जनवरी 2019 में नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) लागू किया, जिसके तहत 100 से अधिक चुने हुए शहरों में प्रदूषण का स्तर 2024 तक 20 से 30 फीसदी कम किया जाएगा।
वायु प्रदूषण के जिम्मेदार
भारत में वायु प्रदूषण फैलाने में उद्योग, गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, कोयले से चलने वाले विद्युतघर, निर्माण स्थलों पर उड़ने वाली धूल और फसलों की पराली जैसे कारण ज्यादा जिम्मेदार माने जाते हैं।
ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट 2018 में पीएम 10 के आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई जिसमें भारत के प्रदूषित शहरों को दर्शाया है। 10 सर्वाधिक प्रदूषित शहर हैं झरिया, धनबाद, नोएडा, गाजियाबाद, अहमदाबाद, बरेली, प्रयागराज, मुरादाबाद, फिरोजाबाद और दिल्ली।
शहरी क्षेत्रों में वायु शुद्ध करने वाले पेड़ कटने के साथ समस्या और बढ़ी है। जिसके समाधान के लिए अब शहरों के बीच ऑक्सीजोन बनाने की शुरूआत हो चुकी है। वायु प्रदूषण शहरों में जानलेवा साबित हो रहा है, जिससे निपटने का सबसे सरलतम उपाय है हरियाली को बढ़ावा देना। अभिजात्य जीवन परिवेश में रहने वाले समझ गए हैं, अब जन सामान्य को समझना भी जरूरी है।
पिछले कुछ सालों में देश में प्रदूषण को रोकने के लिए कई पहल की है। जैसे बीएस-4 के बाद भारत में बीएस-6 वाहनों को उतारा गया। दिल्ली में सभी कोयला बिजलीघर बंद कर दिए गए हैं। दिल्ली-एनसीआर इलाके के ईंट-भट्ठे बंद करवा दिए हैं या फिर उनमें जिक-जैक तकनीक के जरिए कम प्रदूषण करने वाली चिमनियां लगाई गई हैं। देश की राजधानी में ट्रकों को प्रवेश की अनुमति नहीं है और प्रदूषण बढ़ने की स्थिति में एक ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) के तहत आपातकालीन कदम उठाए जाते हैं।
रविन्द्र गिन्नौरे