भारी पड़ेगी प्रकृति को न समझने की नासमझी

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क्या आप सोच सकते हैं किसी भी तरह के मानवाधिकार या सामाजिक न्याय के लिए अभियान चलाने के बारे में, ऐसे में जब जनसंहार और उत्पीड़न कानूनन जायज हों? यदि आप पर्यावरण और जलवायु न्याय, या प्रकृति के अधिकारों के लिए अभियान चला रहे हैं, या फिर आप किसी भी स्तर पर प्रकृति के संरक्षण के काम कर रहे हैं, तो आपके सामने ऐसी समस्या आएगी क्योंकि प्रकृति को तो कुछ भी नुकसान पहुंचाओ, सब जायज है।
धरती के इकोसिस्टम को नष्ट करना, आज भी अपराध नहीं है। इसे रिकार्ड करते समय ब्व्टप्क्-19 महामारी के दौरान, कई प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियां फिलहाल बंद हैं। लेकिन जैसा कि संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण प्रमुख ने बताया है, प्रकृति चेतावनी दे रही है।
महामारियों की अधिकता और बार-बार आना जैसी घटनाएं लगातार होती रहेगीं। अगर हम अपने विनाशकारी क्रियाकलापों से बाज नहीं आएंगे। मुनाफे की हवस के लिए प्रकृति और पारिस्थितिकी तंत्र का विनाश प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ रहा है। निसंदेह जलवायु और पर्यावरणीय संकट पहले से ही हम झेल रहे हैं और इस तरह की गड़बड़ी और क्षति का प्रत्यक्ष परिणाम हम आज साफ-साफ देख रहे हैं।
इसलिए यह जरूरी है कि हम इस क्षण को गंभीरता से लें। और प्रकृति की लूट की इन गतिविधियों को रोकें ताकि हम अपने आधारभूत नियमों और कानूनों को व्यवस्थित कर सकें, प्रकृति के अनुकूल बदलाव कर सकें। कानूनों को इस लायक बना सकें कि कारपोरेट, शोषण की बजाय प्रकृति के पोषण में लग सकें।

कारपोरेट के व्यवहार को प्रकृति के जीवन, पोषण और संरक्षण में लगाने का कोई ऐसा आधारभूत नियम नहीं है जो प्रकृति को गंभीर हानि पहुंचाने से रोक सके। आज प्रकृति के शोषण ने हमारे सामने सबसे गंभीर वैश्विक पर्यावरणीय संकट पैदा कर दिया है। कई मायनों में यह हमारी सभी समस्याओं में से सबसे अहम है। विकास के चक्कर में दुनिया ने प्रकृति का जम कर दोहन किया है। यही वजह है कि मानव के अस्तित्व पर बात आ पड़ी है।
यह एक पहेली जैसा है। कुछ तो है जो हम देख नहीं पा रहे हैं। एक अपराध जो हमारे आस-पास लगातार हो रहा है। एक अपराध जो हमारे चारों ओर हो रहा है। लेकिन अभी तक इसे कोई नाम नहीं दिया गया है, जबकि दुनिया की करोड़ों की आबादी जो ऐसे अपराध से प्रभावित है, और दर्द की पीड़ा को झेल रहे हैं।
इकोसाइड अपराध
कल्पना कीजिए जिन्हें हम प्यार करते हैं जो जीवन का सहारा देते हैं – जैसे मधुमक्खियों से लेकर चिंपांजी तक, नदियों से लेकर वर्षावनों तक, उपजाऊ जमीन से लेकर महासागरों तक, खाद्य श्रृंखला से लेकर भूमि के रख-रखाव तक, सबको सुरक्षित रखना कितना आसान होता, अगर इकोसिस्टम को नुकसान पहुंचाना एक अपराध होता। हां जी इतने भर से बहुत फर्क पड़ता। यहां तक कि इकोसाइड शब्द के इस्तेमाल भर से ही बहुत कुछ बदल जाता।
हम जैव विविधता का संकट झेल रहे हैं जो कि अंततः एक जलवायु संकट भी है। क्योंकि इकोसाइड कई दशकों से होता आ रहा है यह एक अपराध माना जाना चाहिए। हमें इकोसाइड को अंतरराष्ट्रीय अपराध घोषित कराने के लिए ही अभियान चलाना चाहिए। यह वैश्विक अभियान चलाना आपराधिक न्याय प्रणालियों को ज्यादा सक्षम बनाने के लिए ही समर्पित होना चाहिए। शायद कुछ लोगों को यह सब संभव नहीं लगता। इकोसाइड के संबंध में जरूरी कानूनों के लिए अंतरराष्ट्रीय अपराध मामलों के वकीलों के साथ काम करना चाहिए। जो ज्यादा प्रभावित राज्य हैं उनके साथ काम करना चाहिए, जिन्होंने इस मुद्दे को वैश्विक मंचों पर उठाया है।
अगर ऐसा कोई अभियान सफल होता है तो यह हर किसी की जीत होगी। यह अभियान खतरे में पड़ी धरती की सभी प्रजातियों के लिए होना चाहिए। इसमें ऐसे सभी लोगों को शामिल करना चाहिए जो अपने पूर्वजों के जंगल और जमीन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जैव विविधता को बचाने और संरक्षित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं।
यदि हमें पृथ्वी पर रहना है तो अब भी मौका है कि प्रकृति की रक्षा करें। सभी देश कारखानों से निकलने वाले विषैले पदार्थों से जूझ रहे हैं। हर आम आदमी चाहता है उसके बच्चों के लिए रहने लायक एक पृथ्वी मिले। इकोसाइड को अपराध घोषित करने से यह सब आसान हो जाएगा, सब कुछ संरक्षित होना शुरू हो जाएगा। आपको विचार करना होगा और प्रकृति संरक्षण के लिए प्रयास कर रहे लोगों को आपको समर्थन देना होगा तभी इस धरा को हम रहने योग्य बनाए रख सकते हैं। आप स्वयं विचार करिए कि आप इसके लिए क्या कर सकते हैं।
‘इकोसाइड कानून’ बनाने के लिए हर देश के नागरिकों को अपनी-अपनी सरकार के ऊपर दबाव बनाना चाहिए, जिससे कि पुरानी विनाशकारी गतिविधियों पर लौटने से बचने के लिए सरकारें चर्चा करें। इस कोविड महामारी के समाप्त होने से पहले, यह अब सिर्फ एक विचार नहीं होना चाहिए, इस पर सोचने का अब समय आ गया है, रहने लायक संसार बनाने के लिए इसे जन अभियान बनाना चाहिए।
उत्तम सिंह