उत्तराखंड का एक बड़ा हिस्सा हिमालय क्षेत्र का है। जहॉं के ग्लेशियर और उनसे निकली सदानीरा नदियों की अपनी प्रकृति है। ग्लेशियरों से निकली नदियां कभी अपने प्रवाह क्षेत्र बदल लेती हैं, परन्तु इन्हें बांधने से रौद्र रूप धारण कर लेती हैं। देवभूमि से उद्गमित हुई नदियों से पहाड़ में पांच प्रयाग बनते हैं। कुमायूॅं के साथ दो मुख्य भागों में बंटे गढ़वाल में बड़े ग्लेशियर हैं, जहां से निकलती हैं नदियां। उंचाई के साथ न्यूनतम तापमान के कारण बनते हैं ग्लेशियर। प्रति 165 मीटर की उंचाई पर तापमान 1 डिग्री कम हो जाता है, जिससे पैदा होने वाली नमी पहाड़ों से टकराकर जम जाती है। निरंतर ऐसी प्रक्रिया से ग्लेशियर आकार लेने लगते हैं। ग्लेशियरों की जमी बर्फ की निचली सतह से पिघलकर बहने वाला पानी नदियों को जन्म देता है, उसे सतत प्रवाहमान बनाए रखता है।
बढ़ते तापमान के चलते ग्लेशियर तेजी से पिघलने लगे हैं। ग्लेशियरों के पिघलने से हिमस्खलन होना स्वाभाविक है। पहाड़ों के ऊपर ग्लेशियरों से होने वाला हिमस्खलन नदियों में बाढ़ लाकर उसे तबाही करने वाला बनाता है और ऐसा ही हुआ उत्तराखंड में। ठीक 7 साल पहले 2013 में केदारनाथ में हुई तबाही जैसी।
जल संरक्षण को लेकर बढ़ रही है जागरूकता
उत्तराखंड के चमोली जिले से सटे रुद्रप्रयाग जिले की जखोली ब्लाक के ग्राम पंचायत लुठियाग में कुछ महिलाओं ने सामूहिक प्रयास से जल संरक्षण की दिशा में शानदार काम किया है । महिलाओं ने छोटी झील बनाकर वर्षा के पानी को संरक्षित कर गांव में सूख चुके प्राकृतिक स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने का काम किया है। प्राकृतिक स्त्रोतों पुनर्जीवित होने से गांव में पानी की समस्या भी दूर हुई है। गांव में महिलाओं की और से किये गए जल प्रबंधन की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तारीफ कर चुके है । उत्तराखंड में ऐसे कई क्षेत्र है जहाँ लोग जल संरक्षण को लेकर जागरूक हुए है और वह बिना किसी सरकारी मदद के जल संरक्षित कर रहे है
जल संरक्षण की प्रेरणा
जैसे जैसे उत्तराखंड में जल संकट बढ़ रहा है वैसे वैसे लोगों में जल संरक्षण को लेकर जागरुकता भी बढ़ रही है। दिल्ली से लगभग 600 किलोमीटर दूर उत्तराखंड चमोली जिले की ग्रामसभा नैणी के झुरकंडे गाँव की कमला भंडारी ने अपने परम्परागत ज्ञान से पेयजल स्रोत्रों को जिंदा करने के साथ जल संग्रहित कर गांव की महिलाओं को प्रेरणा दी है।
50 साल की कमला भंडारी किसान है। प्राकृतिक स्रोतों के सूखने के कारण पिछले कुछ सालों से उनको अपनी फसलों के लिये पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा था। जिसके कारण उनकी खेती प्रभावित हो रही थी। इसके बाद कमला ने प्राकृतिक जल स्त्रोतों को पुनर्जीवित करने के साथ बारिश के पानी को भी संरक्षित करना शुरू कर दिया। कमला ने उन सभी जल स्त्रोतों के आस पास पौधे रोपण किया जिनसे उनके खेतों तक पानी पहुँचता था। और बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिये पहाड़ो में बड़े बड़े गड्ढे किये। आखिरकार 5 साल बाद उनकी मेहनत रंग लाई और प्राकृतिक जल स्त्रोत जो सूख गए थे वह पुनर्जीवित हो गए।
कमला ने 20 नाली भूमि में परम्परगत खेती को छोड़ एक हिस्से में सेब नींबू माल्टा लगाने के लिये खेतों में बड़े बड़े पानी के टैंक बनाये और बारिश के पानी को संरक्षित किया।कमाल भंडारी के इस प्रयास ने गांव की दूसरी महिलाओं को प्रेरित किया। जिसके बाद महिलाओं ने स्वयं सहयता समूह बनाकर खेतों में फल सब्जी उत्पादन करने में जुट गई। महिलाओं की कड़ी मेहनत से फसलों का अच्छा खासा उत्पादन होता है और जिसे वह गांव के पास की सब्जी मंडी में भी बेचती है। गाँव की महिलाओं की शानदार पहल की तारीफ करते हुए ग्राम प्रधान ज्योति कैलखुरा कहती है, जल संरक्षण को लेकर महिलाओं का यह अथक प्रयास सराहनीय और प्रेरणादायक है
एक नजर
– 01 अप्रैल से जलवायु परिवर्तन से जुड़ी व्यवस्था शुरू होगी।
– 10 जनवरी को गत वर्ष नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम लांच।
– 102 शहरों को योजना में शामिल किया गया।
– 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहर दायरे में।
– 46 बड़ी आबादी वाले शहरों की बदलेगी फिजा।
– हर साल देश में प्रदूषण से और खराब हालात को देखते हुए सरकार सक्रिय हुई।
– प्रदूषण को ध्यान में रखकर विकास की परियोजनाएं तैयार की जाएंगी।
– वायु प्रदूषण के कारण वर्ष 2017 में देश में 12 लाख लोगों की मौत हुई।
– 2019 की ग्लोबल एयर रिपोर्ट में वायु प्रदूषण दुनिया का तीसरा बड़ा खतरा।
सस्टेनेबल विकास
कचरा प्रबंधन को सस्टेनेबल विकास का महत्वपूर्ण अवयव माना जाता है। सस्टेनेबल विकास का तात्पर्य पर्यावरण फ्रेंडली और दीर्घकालीन विकास से है। कचरा प्रबंधन के उपभोग और पुनः उपभोग से एक चक्र बनता है जो प्राकृतिक संसाधनों पर हमारी निर्भरता को कुछ हद तक कम करता है और उनके दोहन में कमी लाता है। इसलिए इन दिनों सस्टेनेबल विकास की योजना बनाते समय कचरा प्रबंधन पर बहुत जोर दिया जाता है।