आज से करीब दस साल पहले मैंने प्लास्टिक के बगैर जिंदगी बिताने की कोशिश की थी। आज एक दशक बाद जब दुनिया भर में तमाम देश प्लास्टिक के इस्तेमाल को कम करने या पूरी तरह से खत्म करने की बातें कर रहे हैं, इसके लिए जरूरी कदम उठा रहे हैं। तो ये सवाल बनता है कि क्या आज एक दशक बाद बिना प्लास्टिक के जिंदगी बसर करना आसान हुआ है?
आज से दस साल पहले यानी 2008 में भयंकर गर्मी पड़ रही थी। मुझे वो गर्मी इसलिए याद है क्योंकि मेरे किचेन से प्लास्टिक की दूध की बोतलों और दही के खाली डिब्बों के गर्म होने की बू आती थी।
जुलाई के उस महीने में मैंने अपने पूरे परिवार, यानी मेरे पति और छोटे बच्चे के इस्तेमाल किए हुए प्लास्टिक के 603 सामानों को इकट्ठा किया। इसके बाद अगले महीने यानी अगस्त 2008 में मैंने ये तजुर्बा करने की कोशिश की कि क्या प्लास्टिक के बगैर जिया जा सकता है।
मेरे इस प्रोजेक्ट की वजह बीबीसी की एक रिपोर्ट थी जिसने प्रशांत महासागर के बीच में प्लास्टिक की वजह से हुए प्रदूषण के बारे में बताया था। इससे मेरे जहन में सवाल उठा था कि क्या ये मुमकिन है कि हम एक बार इस्तेमाल करके फेंक दिए जाने वाले प्लास्टिक को अपनी जिंदगी से हटा सकते हैं।
मेरे उस साल के तजुर्बे का जवाब था, ऐसा मुश्किल है। लेकिन अगस्त 2008 में भी हमारे परिवार ने अपने इस्तेमाल में आने वाले प्लास्टिक के सामान की तादाद 603 से घटाकर 116 कर ली थी। इसमें से भी 63 तो फेंक दी जाने वाली नैपी थीं।
आज एक दशक बाद हमारे घर में प्लास्टिक की नैपी का इस्तेमाल नहीं होता। आज हमारे घर में दो बच्चे हैं, तो जाहिर है हमारी शापिंग कार्ट में उनके लिए जरूरी सामान भरा होता है। इसमें से ज्यादातर सामान की पैकिंग प्लास्टिक में होती है। इसकी वजह साफ है। प्लास्टिक हल्का होता है। ज्यादा दिनों तक चलता है। इसमें पैक खाना ज्यादा वक्त तक ताजा रहता है। इसे लाना-ले जाना और रखना आसान होता है।
आज प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करने की लोगों की सोच को देखते हुए, मैंने अपने 2008 के तजुर्बे को एक बार फिर से दोहराने की सोची।
मैंने सोचा कि क्या एक महीने तक, ऐसे सामान पर जिया जा सकता है, जिसमें किसी भी तरह से प्लास्टिक का इस्तेमाल न हुआ हो?
पहला हफ्ताः सुबह के नाश्ते की जंग
मैंने सबसे पहले अपने सुबह के नाश्ते के रूटीन से प्लास्टिक को हटाने की सोची। आज हम जागते हैं, तो हमारे घर के दरवाजे पर दूध की बोतलें रखी होती हैं। ये कांच की बनी होती हैं। पहले जहां इन बोतलों के लिए लिखकर आर्डर देना होता था, वहीं अब ये आनलाइन खरीदी जा सकती हैं।
बच्चों को ये नया तजुर्बा बहुत रास आया। मेरी आठ साल की बच्ची को मैंने अपनी दोस्त से ये कहते हुए सुना कि, ‘हमारे दरवाजे पर रात के वक्त अपने आप ही दूध की बोतलें आ जाती हैं’।
साल 2018 में प्लास्टिक की थैलियों और पैकेट में बंद दूध की जगह दूध की बोतलें खरीदने वाले हम अकेले नहीं। ब्रिटेन में ऐसे दूध की सप्लाई करने वाली कंपनी मिल्क ऐंड मोर कहती है कि जनवरी से अब तक उसके दस हजार से ज्यादा आनलाइन ग्राहक बढ़े हैं। ऐसा तब हुआ है, जब 2008 के मुकाबले दूध की खपत में करीब 7 प्रतिशत की गिरावट आई है।
जो दूध घर पहुंचाया जाता है, वो महंगा होता है। लेकिन, इससे हम दूध लेने के लिए बार-बार दुकान जाने से भी तो बच जाते हैं। दूध की प्लास्टिक वाली बोतलों को सबसे ज्यादा रिसाइकिल किया जाता है। आज की तारीख में प्लास्टिक के थैले, पाउच और डिब्बों के मुंह बंद करने में इस्तेमाल होने वाला कवर, हमारे घर में मौजूद कुल प्लास्टिक का एक चौथाई होते हैं।
नाश्ते में हम अक्सर गोल ब्रेड के पैकेट इस्तेमाल करते हैं, जो प्लास्टिक में पैक होकर आते हैं। इसके अलावा हम जो अनाज इस्तेमाल करते हैं, वो भी प्लास्टिक के डिब्बों में आते हैं।
प्लास्टिक के बगैर महीना गुजारने की मुहिम के तहत मैंने बाहर से ब्रेड लेने के बजाय उन्हें घर में ही बनाने की सोची। काम तो उतना मुश्किल नहीं था, हां, देखने में वो ब्रेड इतनी अच्छी नहीं थी, जितनी बाजार की होती है।
अब रही बात अनाज की। तो वो प्लास्टिक के पैकेटों में आते हैं। मैंने अपने परिवार से कहा कि वो अनाज के पैकेट के बजाय हलवे से काम चलाएं। सबके मुंह इस बात पर फूल गए। फिर मैंने पास ही एक दुकान तलाशी, जो बिना प्लास्टिक की पैकिंग वाला अनाज बेचता था। वहां अपने डिब्बे खुद लेकर जाना होता था, ताकि आप उसमें भर कर सामान ला सकें। इन कोशिशों से मैंने सुबह के नाश्ते की जंग जीत ली थी।
दूसरा हफ्ताः सुपरमार्केट
इसमें कोई दो राय नहीं कि अलग-अलग सामान लेने के लिए अलग दुकानों में जाना थकाऊ और बहुत वक्त लेने वाला है। इसके बजाय एक ही बार में सुपरमार्केट जाकर खरीदारी करना आसान है।
तो, मैंने अपने बिना प्लास्टिक के जीने की मुहिम के साथ सुपरमार्केट जाने का फैसला किया। आज की तारीख में तो हर सामान प्लास्टिक की थैली, पैकेट या डिब्बे में बंद होकर आता है नतीजा ये कि सुपरमार्केट में ऐसा सामान तलाशना, जो प्लास्टिक में पैक न हो, बहुत मुश्किल था।
सलाद से लेकर पास्ता और कच्ची सब्जियां तक बिना प्लास्टिक की पैकिंग के खोजना मुश्किल था। इसके बजाय टिन के डिब्बों में बंद खाने की चीजें खरीदी गईं। घर से झोला ले जाकर मैंने कई सामान खुदरा खरीदे।
दिक्क्त ये थी बच्चों के लिए जैम खरीदना हो, या चाकलेट हैजेलनेट स्प्रेड। अगर डिब्बे कांच या टिन के थे, तो उनके ढक्कन प्लास्टिक वाले थे। इसी वजह से मैंने बच्चों की पसंद के कई सामान नहीं लिए।
कुल मिलाकर हालात दस बरस पहले वाले ही थे। खाने-पीने का ज्यादातर सामान अब भी प्लास्टिक की पैकिंग में ही आ रहा था। ये मोर्चा बेहद मुश्किल रहा। हालांकि बहुत सी कंपनियों ने अब बिना प्लास्टिक की पैकिंग भी बाजार में उतारी है। मगर, फिलहाल उसकी तादाद बहुत कम है।
अब टोमैटो केचप गत्तों में आने लगे हैं। वहीं मांस को प्लास्टिक की जगह दूसरी चीजों से बनी थैलियों में पैक किया जा रहा है। इसी तरह फ्रोजेन फूड भी प्लास्टिक के बजाय दूसरी पैकिंग में आने लगा है। आइसलैंड नाम की ब्रिटिश कंपनी ने 2023 तक अपनी पैकिंग में प्लास्टिक का इस्तेमाल पूरी तरह खत्म करने का एलान किया है।
तीसरा हफ्ताः समुद्री किनारे पर असर
मेरे तजुर्बे का आधा वक्त बीत चुका था। तब हमने छुट्टियों में लंदन से कार्नवाल जाने का फैसला किया। मैं रास्ते के लिए अपना दोबारा इस्तेमाल हो सकने वाला कप और बोतल रखना भूल गई। नतीजा ये हुआ कि पूरे रास्ते में हमें प्लास्टिक में पैक सामान लेना पड़ा।
ब्रिटेन में रोजाना 2 करोड़ दस लाख पानी की बोतलें और 68 लाख काफी के कप एक बार इस्तेमाल करके फेंक दिए जाते हैं। मैंने सोशल मीडिया की मदद ली और प्लास्टिक मुक्त जीवन की मेरी मुहिम दोबारा पटरी पर लौटी। आज सोशल मीडिया पर तमाम हैशटैग के साथ प्लास्टिक मुक्ति की मुहिम चलाई जाती हैं।
2014 में ब्रिटेन के समुद्री रिजार्ट ब्यूड में प्लास्टिक के प्रदूषण से मुक्ति के लिए रु2उपदनजमेइमंबीबसमंद हैशटैग के साथ मुहिम चलाई गई थी। इससे जुड़ी एवरिल सैन्सबरी कहती हैं कि ‘आज लोग काफी जागरूक हो गए हैं। पहले घरों में प्लास्टिक के सामान भरे पड़े होते थे। आज उनकी तादाद काफी कम हो गई है। लोग प्लास्टिक को यहां-वहां फेंकने से परहेज करते हैं।’
लेकिन ब्यूड रिजार्ट की एक खूबी है। यहां आप किसी भी दुकान में चले जाएं, तो लोग आप की पानी की बोतल भर देंगे। इससे प्लास्टि की बोतलों में बंद पानी खरीदने का चलन कम हुआ है। समुद्री किनारों पर प्लास्टिक के कचरे के ढेर भी कम हुए है। आज पूरे ब्रिटेन में पानी भरने के ऐसे 7800 सार्वजनिक नल लगाए गए हैं।
चौथा हफ्ताः फैसले की घड़ी
मेरे तजुर्बे के आखिरी हफ्ते में मैंने देखा कि प्लास्टिक में पैक टायलेट के सामान अभी भी हमारे घर में आ रहे हैं। हालांकि मैंने बांस के ब्रश जरूर खरीदे थे। लेकिन मुझे पता है कि उसके रेशे, प्लास्टिक के ही थे। हां, प्लास्टिक की शैंपू की बोतल की जगह मैंने शैम्पू बार खरीदा था।
महीने के आखिर में मैंने देखा कि भले ही हमारी जिंदगी से प्लास्टिक पूरी तरह नहीं मिटा था। लेकिन, हम इसकी तादाद काफी कम करने में कामयाब रहे थे। हां, ऐसा करने में वक्त ज्यादा लग रहा था। लेकिन, ये महंगा सौदा नहीं था। कुल मिलाकर अब भी हमारे घर में काफी सामान ऐसा आ रहा था, जो प्लास्टिक में पैक होता था। इसमें खाने-पीने का सामान ज्यादा था। आज तो हमारे दफ्तर में भी फिर से इस्तेमाल हो सकने वाले काफी के मग और पानी की ग्लास इस्तेमाल हो रही हैं।
कुल मिलाकर, आज दस साल बाद भी मैंने ये पाया कि प्लास्टिक मुक्त जीवन नामुमकिन और अव्यवहारिक है। हां, बदलाव तेजी से आ रहा है। तमाम कंपनियां अपने सामान ऐसी पैकिंग में ला रही हैं, जो प्लास्टिक में न हो। दुकानों में लोग दोबारा झोला लेकर जाने लगे हैं। काफी और पानी पीने के लिए ऐसे कप और बोतलें प्रयोग की जा रही हैं, जिनका दोबारा इस्तेमाल हो सके। यानी अभी भले ये मुमकिन न हो, पर शायद अगले कुछ सालों में हम प्लास्टिक के बगैर जीना सीख लेंगे।
क्रिस्टीन जीवांस