पारसी और हिन्दी में गुरु जंभेश्वर महाराज के ग्रंथ

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पाकिस्तान में लाहौर की सबसे पुरानी पब्लिक लाइब्रेरी में कई धार्मिक ग्रंथ हैं। जिनमें गुरु जंभेश्वर भगवान के पांच ग्रंथ भी शामिल हैं। ये ग्रंथ पारसी लिपि और हिन्दी भाषा में लिखे गए हैं। इनमें से एक में प्रथम पर्यावरणविद माने जाने वाले भगवान गुरु जंभेश्वर का बनाया गया स्कैच भी है।
शोध के लिए पाकिस्तान की विभिन्न लाइब्रेरी और गांवों का दौरा कर चुके सेंट्रल यूनिवर्सिटी हिमाचल प्रदेश के कुलपति प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने बताया वे गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय में गुरु जंभेश्वरजी महाराज धार्मिक अध्ययन संस्थान द्वारा ‘गुरु जाम्भोजी और भारतीय धर्मो में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की भावना’ विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में पहुंचे थे।
प्रो. बेदी ने कहा कि गुरु जंभेश्वर और गुरु नानक देव सहित कई भारतीय धार्मिक ग्रंथ आज भी पाकिस्तान के बड़े पुस्तकालयों में रखे हैं। इनमें 18वीं सदी के हस्तलिखित ग्रंथ भी शामिल हैं। इसके अलावा वहां रखे गुरुमुखी लिपि और हिन्दी भाषा में लिखे गए ग्रंथों में भी भगवान गुरु जंभेश्वर का जिक्र है। 18वीं सदी के एक ग्रंथ ‘शबद बोल संता के’ में गुरु जंभेश्रवर भगवान के योगदान के बारे में बताया गया है।
महाराजा रणजीत सिंह के मंत्रियों ने रखवाए थे ग्रंथ
प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी ने बताया कि 18वीं शताब्दी में पंजाब के महाराज रणजीत सिंह पुस्तकों के बहुत शौकीन थे। वे एक विशेष बैलगाड़ी रखते थे और कोई भी युद्ध जीतने के बाद उसमें वहां रखी सारी पुस्तकें ले आते थे। उनकी एक विशाल लाइब्रेरी थी। उनकी मृत्यु के बाद उनके मंत्रियों वीरुदीन और फकीरुदीन ने उनकी बहुत सारी किताबें लाहौर पब्लिक लाइब्रेरी में दान कर दी थी। उन्हीं किताबों में ये भगवान गुरु जंभेश्वर भगवान के ग्रंथ शामिल हैं।
पाकिस्तान के बुजुर्ग आज भी मानते हैं भगवान गुरु जंभेश्वर की शिक्षाएं
प्रो. बेदी बताते हैं कि भले ही वर्तमान दौर में भारत और पाकिस्तान के बीच सरहदें खींची हुई हों। आजादी से पहले पाकिस्तान के जिन हिस्सों में बिश्नोई समुदाय के लोग रहते थे, वहां के मुसलमान आज भी भगवान गुरु जंभेश्वर की शिक्षाओं को आदर्श मानते हैं। वहां कई जगहों पर मुसलमान न हरे पेड़ काटते हैं और न ही जीवों को मारते हैं। भगवान गुरु जंभेश्वर के 29 नियमों की स्थापना की थी और उन पर चलने वाले लोग बिश्नोई कहलाए। इन नियमों में हरा पेड़ नही काटना और जीवों की हत्या नहीं करना भी शामिल था।
यूएनओ ने दिया गुरु जंभेश्वर महाराज के विचारों को स्थान
प्रो. बेदी के अनुसार यूएनओ पर्यावरण दिवस पर दुनिया की पर्यावरण हितैषी व्यक्तियों पर बल देता है। यूएनओ के पैनल ने गुरु जंभेश्वर भगवान को चुना और पर्यावरण बचाने के लिए उनकी वाणी और विचारों को स्थान दिया है।
प्रथम पर्यावरणविद माने जाने वाले गुरु जंभेश्वर महाराज की शिक्षा पर एशिया के सभी देश चिंतन कर रहे हैं। भारत सहित एशिया के देशों को जिन पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उनके बारे में इतिहासकार मानते हैं कि गुरु जंभेश्वर की शिक्षाओं का माडल भारत एशिया के सामने पेश करे तो पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान हो सकता है।
पर्यावरण बचाने को सुझाव –
प्रो. बेदी के अनुसार पर्यावरण को लेकर गुरु जंभेश्वर भगवान की शिक्षाएं उल्लेखनीय है। गुरु जंभेश्वर धार्मिक अध्ययन संस्थान को भारतीय संविधान में शामिल सभी 22 भाषाओं में गुरु जंभेश्वर भगवान की शिक्षाओं को प्रकाशित करना चाहिए। इससे पूरा राष्ट उनकी पर्यावरण सहित अन्य शिक्षाओं से प्रेरणा ले सकेगा। सार्क देशों के साथ मिलकर प्रथम पर्यावरणविद् गुरु जंभेश्वर भगवान की शिक्षाओं संबंधी कोई कार्यक्रम आयोजित करना चाहिए।
प्रो. हरमोहिंदर सिंह बेदी
साभारः डाः राजेंद्र विश्नोई, आगरा (उत्तरप्रदेश)

आक्सीजन के पेड़ लगाए

जंगल काटे जा रहे हैं, कहीं आग लगाई जा रही है। खत्म होते जंगलों में शहर आबाद हो रहे हैं, कहीं खेतों में तब्दील हो रहे हैं । धरती के जीवन को प्राणवायु देने वाले जंगलों को हम अपने विकास के लिए खत्म हो कर रहे हैं। वहीं प्रदूषित होती हवा के चलते लाखों लोग अकाल मौत मर रहे हैं।
शहर हुए जहरीले-
दुनिया के बड़े शहर जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं। शुद्ध हवा कितनी अनमोल है, यह हम कोविड-19 महामारी में देख रहे हैं। लोग अस्पताल में पड़े हैं और आक्सीजन के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। पेड़-पौधों को यदि हम खत्म नहीं करते तो हमें यह दुर्दिन नहीं देखना पड़ता। पेड़ हमारे रक्षक हैं, जिन्हें हम पूजते हैं। भारतीय संस्कृति में पेड़ों को धर्म से जोड़कर देखा गया है और स्कंद पुराण में कहा गया है-
अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वाऽऽमलक त्रयञ्च पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।
अर्थात जो कोई पीपल, नीम, बरगद, इमली, कैथ, बिल्व, आंवला और आम के वृक्षों के पौधों का रोपण करेगा उसकी देखभाल करेगा उसे नर्क के दर्शन नहीं करना पड़ेगा।
आक्सीजन देने वाले पेड़-
पुराण में वर्णित इन पेड़ों को आज के संदर्भ में देखें,
अश्वत्थ% = पीपल 100% कार्बन डाइआक्साइड सोखता है।
पिचुमन्द% = नीम 80% कार्बन डाइआक्साइड सोखता है।
न्यग्रोध% = वटवृक्ष 80% कार्बन डाइआक्साइड सोखता है।
चिञ्चिणी% = इमली 80% कार्बन डाइआक्साइड सोखता है।
कपित्थ%= कविट 80% कार्बन डाइआक्साइड सोखता है।
बिल्व%= बेल 85% कार्बन डाइआक्साइड सोखता है।
आमलक% = आंवला 74% कार्बन डाइआक्साइड सोखता है।
आम्र% = आम 70% कार्बन डाइआक्साइड सोखता है।

इस सीख का अनुसरण न करने के कारण हमें आज ऐसी परिस्थिति के स्वरूप में नरक के दर्शन हो रहे हैं। अभी भी कुछ बिगड़ा नही है, हम अभी भी अपनी गलती सुधार सकते हैं।
अनमोल जैव विविधता-
पेड़ -पौधों को लगाएं, तो ऐसे पेड़ों का चुनाव करें जो देश-काल और हमारे वातावरण के अनुकूल हो। प्रकृति ने हर तरह के वातावरण में विविध वनस्पति को हमें धरोहर की भांति सोंपा है। जहां जिस तरह के रोग फैलते हैं, उनके शमन के लिए प्राकृतिक तौर पर पेड़ पौधे भी संजोए हैं। मानव ही नहीं, पशु -पक्षी, कीट-पतंगों की दुनिया भी इन पर आश्रित रहती है। यही अनमोल जैव विविधता है जो मानव जीवन को तरह-तरह के उपहारों से नवाजती है।
विदेशी पेड़ो का मोह-
घरों में बाग- बगीचे भी लगाए जाते रहे हैं और घर के आंगन में एक तुलसी भी लगाई जाती थी। बदलते नजरिए के साथ घर आंगन के पेड़ पौधे भी बदल गए लोगों ने अपने घरों में विदेशी मूल के पेड़ पौधों को लगाना शुरू कर दिया। इसी के साथ पेड़ पौधों का परंपरागत ज्ञान भी विलुप्त हो गया। आज हमने औषधि महत्व के पेड़ पौधों को आपने घर आंगन से बाहर कर दिया।
विदेशी पेड़ पौधों का रोपण करके हमने अपने यहां के कीट -पतंगों, पशु- पक्षियों को भी उनके घरों से बेदखल कर दिया। इंसान ने अपनी आदतें और स्वभाव बदल दिया परंतु पशु- पक्षी और कीट- पतंगों ने अपनी आदत नहीं बदली। विदेशी मूल की वनस्पतियों के आक्रमण से हमारी जैव विविधता पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। स्थानीय पेड़ पौधों के अस्तित्व के लिए खतरा भी उठ खड़ा हुआ है। गाजर घास, लैंटाना कैमारा, विलायती बबूल आदि देश की जैव विविधता के लिए खतरा हो गया है वहीं स्थानीय वनस्पतियां भी इनके पनपने से खत्म हो रही हैं।
अंधानुकरण का नतीजा-
पश्चिमी देशों का अंधानुकरण कर हम ने अपना बड़ा नुकसान कर लिया है। पीपल, वट और नीम जैसे वृक्ष रोपना बंद होने से सूखे की समस्या बढ़ रही है।
ये सारे वृक्ष वातावरण में आक्सीजन की मात्रा बढ़ाते हैं। साथ ही धरती के तापनाम को भी कम करते है। हमने इन वृक्षों के पूजने की परंपरा को अन्धविश्वास मानकर उपभोक्ता संस्कृति के चक्कर में इन वृक्षो से दूरी बनाकर यूकेलिप्टस (नीलगिरी) के वृक्ष सड़क के दोनों ओर लगाने की शुरूआत की। यूकेलिप्टस झट से बढ़ते हैं, लेकिन ये वृक्ष दलदली जमीन को सुखाने के लिए लगाए जाते हैं। इन वृक्षों से धरती का जलस्तर घट जाता है। विगत 42 वर्षों में नीलगिरी के वृक्षों को बहुतायात में लगा कर पर्यावरण की हानि की गई है।
पूजा जाता है पीपल-
हिन्दू शास्त्रों में पीपल को वृक्षों का राजा कहा गया है,
मूले ब्रह्मा त्वचा विष्णु शाखा शंकरमेवच। पत्रे पत्रे सर्वदेवायाम् वृक्ष राज्ञो नमोस्तुते।। भावार्थ-जिस वृक्ष की जड़ में ब्रह्मा जी, तने पर श्री हरि विष्णु जी एवं शाखाओं पर देव आदि देव महादेव भगवान शंकर जी का निवास है और उस वृक्ष के पत्ते पत्ते पर सभी देवताओं का वास है ऐसे वृक्षों के राजा पीपल को नमस्कार है।
आने वाले वर्षों में प्रत्येक 500 मीटर के अंतर पर यदि एक-एक पीपल, बट, नीम आदि का वृक्षारोपण किया जाएगा, तभी अपना भारत देश प्रदूषणमुक्त हो सकेगा । भविष्य में भरपूर मात्रा में नैसर्गिक आक्सीजन मिले इसके लिए आज से ही अभियान आरंभ करने की आवश्यकता है।
रविन्द्र गिन्नौरे