प्रकृति सहेजते आत्मनिर्भर गांव होंगे खुशहाल

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‘हमारे समाधान प्रकृति में हैं’ इस अवधारणा को साकार करते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट ‘सुराजी गांव योजना’ के बाद छत्तीसगढ़ की कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए एक और सराहनीय पहल की है।
रिजेनरेटिव डेवलपमेंट
छत्तीसगढ़ में ‘रिजेनरेटिव डेवलपमेंट’ को गति प्रदान करने के लिए छत्तीसगढ़ ग्रीन काउंसिल का गठन करते हुए उसे अंतिम रूप दिया। रिजेनरेटिव डेवलपमेंट (पुनरूत्पादन विकास) टिकाऊ विकास से अधिक प्रगतिशील अवधारणा है। पुनरूत्पादन विकास के तहत उपलब्ध संसाधनों की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए ‘न्यू एज ग्रीन इकनोमिक’ के तहत लाइवलीहुड से स्थानीय लोगों की आय में वृद्धि के लिए काम किया जाएगा। बैठक में राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मंच पर छत्तीसगढ़ की राज्य के रूप में ब्रांडिंग, जैविक उत्पादों के मार्केट लिंकेज, प्रशिक्षण के माध्यम से स्व सहायता समूहों की क्षमता निर्माण, जिलों की विशेषता के अनुसार विकास और स्थानीय निवासियों को जोड़कर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाना बढ़ावा देने की जरूरत पर बल दिया गया।
गांव होंगे आत्मनिर्भर
छत्तीसगढ़ संभवत देश का पहला राज्य बनेगा जहां ग्रीन काउंसिल का गठन किया गया है। ग्रीन काउंसिल की बैठक में पर्यावरणीय मुद्दे को हल करने के लिए परिषद के दृष्टिकोण और मुख्य गतिविधियों को अंतिम रूप दिया गया। सरकार की पहल में स्थानीय स्थाई वन, औषधि हर्बल और अन्य उत्पादों को बाजार से जोड़ने के लिए महिला स्व सहायता समूह की क्षमता का निर्माण करने के साथ छत्तीसगढ़ में विशेषज्ञ कंपनियों को आमंत्रित करना और राज्य के भीतर क्रेडिट कार्यक्रम शुरू करना शामिल है। कार्बन उत्सर्जन के संबंध में मुख्यमंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ में वर्मी कंपोस्ट के उपयोग से हम जैविक खेती की ओर बढ़ रहे हैं। पराली ना जला कर उसका उपयोग चारे के रूप में कर कार्बन उत्सर्जन से होने वाले प्रदूषण में कमी ला रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि आने वाले समय में छत्तीसगढ़ सिक्किम के बाद दूसरा जैविक राज्य साबित हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के साथ-साथ स्थानीय लोगों की आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में इस तरह के प्रगतिशील कदम उठाने वाला छत्तीसगढ़ पहला राज्य बन सकेगा।
सुराजी गांव योजना
छत्तीसगढ़ की पर्यावरण हितैषी की योजनाओं में सुराजी गांव योजना के तहत ‘नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी’ योजना, ‘गोधन न्याय योजना’ गौठानों में गोबर से वर्मी कंपोस्ट तैयार करने का कार्य, फसल कटाई के बाद खेत में बचे पैरों को एकत्र कर उसे मवेशियों के चारे के रूप में उपयोग को प्रोत्साहित करना, ‘मुख्यमंत्री वृक्षारोपण योजना’ के अंतर्गत वन क्षेत्रों में विस्तार के साथ-साथ वन वासियों की आय में वृद्धि, लघु वनोपज में वैल्यू एडिशन प्रारंभ की गई है जो पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक सशक्तिकरण को गति दे रही है।
नरवा के तहत नालों एवं नहरों में चेक डैम बनाकर बारिश के पानी का संरक्षण किया जा रहा है जिससे भूजल रिचार्ज होगा और खेतों की सिंचाई भी आसानी से हो सकेगी। गरवा के तहत आवारा पशुओं के लिए गांवों में गौठान बनाए गए हैं। घुरुवा के तहत मवेशियों के गोबर से गोबर गैस के साथ विद्युत उत्पादन और खाद आदि का उत्पादन किया जा रहा है। बाड़ी के तहत घर से लगा बगीचा लगाने के लिए ग्रामीणों को प्रोत्साहित किया जा रहा है जो फल फूल के पेड़ लगाकर उसे बाजार में बेच सकेंगे।
वेल्यू एडिशन
गांव से जुड़े उद्योगों की ओर पहली बार किसी सरकार ने ध्यान दिया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बताया कि हर क्षेत्र में उत्पादन का लगातार हम वैल्यू एडिशन कर रहे हैं। पहले की सरकार ने समर्थन मूल्य तय नहीं किया था, चाहे वह लघु वनोपज, चावल या फलों समेत अन्य वस्तु हो, चाहे कोंडागांव में तीखुर हो, या दंतेवाड़ा में इमली कैंडी से जुड़ी वस्तुएं या महुआ हो। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे उत्पाद हैं जो विश्व स्तरीय हैं और बाजार में इनकी काफी मांग है। मुख्यमंत्री ने गौरेला पेंड्रा का ढ़ेकी वाला चावल, सूरजपुरा में जवाफूल फूल के चावल का जिक्र करते हुए बताया कि वहां के किसान इसकी पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। जशपुर की चाय, बस्तर की काफी महंगे दामों में विदेशों में बेची जा रही है।
छत्तीसगढ़ में देश की 25 फीसदी औषधि उत्पादित हो रही हैं। इमली और गोंद उत्पादन में छत्तीसगढ़ अग्रणी राज्य है। मोटे अनाज में रागी, कुटकी, कोदो, सांवा जो इम्यूनिटी से भरपूर है और बाज़ार में इनकी काफी मांग है, इस ओर ध्यान देकर छत्तीसगढ़ में इनका समर्थन मूल्य घोषित किया गया है। गांव को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सरकार का यह सराहनीय कदम है।
जैविक खेती और बिजली
जैविक कृषि और विद्युत उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए छत्तीसगढ़ ने दो महत्वपूर्ण ‘एमओयू’ किए हैं। कृषि और ग्रामीण व्यवस्था को सुधारने के लिए ‘भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर (बार्क ) और ‘छत्तीसगढ़ बायो फूड विकास प्राधिकरण’ के बीच एक एमओयू हुआ जिसके तहत गोठानों में गोबर से उत्पादित बिजली का उपयोग रुलर इंडस्ट्रियल पार्क की पावर चलित मशीनों, पेयजल, सिंचाई, प्रकाश व्यवस्था सहित अन्य कार्यों के लिए होगा अतिरिक्त विद्युत का विक्रय विद्युत वितरण कंपनी को किया जाएगा।
कृषि क्षेत्र को सशक्त बनाने की दिशा में खाद्यान्न, सब्जी और लघु वनोपज को लंबे समय तक सुरक्षित तरोताजा एवं गुणवत्ता युक्त रखने के लिए सरकार पहला ‘फूड इरेडिएटर प्लांट’ स्थापित करने जा रही है। ‘फूड इरेडिएटर प्लांट’ संचालन एवं तकनीक हस्तांतरण के लिए ‘बीज निगम’ एवं ‘परमाणु ऊर्जा विभाग’ के अंतर्गत ‘विकिरण बोर्ड एवं आइसोटोप प्रौद्योगिकी’ के बीच एक एमओयू किया गया है।
ड्रीम प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार
छत्तीसगढ़ की सुराजी गांव योजना ‘नरवा गरवा घुरवा बाड़ी’ गांव और ग्रामीणों को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने वाली बनती, मगर अक्षम अधिकारियों के चलते सरकार की महत्वकांक्षी योजना पर पानी फिरता दिख रहा है। गाय जो संपूर्ण अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग है उसे ही उपेक्षित किया जा रहा है। गांव में गौठानों का समुचित संचालन नहीं होने से गायों का अब भी झुंड सड़कों पर पसरा दिखाई दे रहा है। रायपुर से बिलासपुर की ओर जाने वाले नेशनल हाईवे पर गाय दिखती हैं।
‘रोका छेका’ के तहत मवेशियों को खेत की ओर आने से रोकना है जिसका पालन नज़र नहीं आ रहा है। वहीं खेतों की ओर आती गाय मवेशी एसिड से मौत का शिकार बन रहे हैं। कई गांव में ऐसी वारदातें आम हो चली है। गांवों ‘रोका छेंका’ नहीं होने के कारण किसान उन्हारी फसल लगाने से वंचित हो रहा है। गौ तस्करी के मामले आज भी यदा-कदा अखबार की सुर्खियां बन रहे हैं। गौठानों के संचालन के लिए सरकार की ओर से जो राशि मिल रही है उसे गौठान का संचालन करने वाले ही हड़प रहे हैं। भ्रष्ट अधिकारियों के चलते सरकार की महती योजना पर प्रश्न चिन्ह लगता जा रहा है।
वन्य प्राणियों से बढती समस्या
वन्य प्राणियों और इंसानों की मुठभेड़ की समस्या छत्तीसगढ़ में बढ़ती ही जा रही है। हाथियों के झुंड से प्रभावित छत्तीसगढ़ के अनेक गांव आज भी रात में जागरण करते हैं वहीं ग्रामीण हाथियों के कारण अपनी जान भी गंवा रहे हैं। छत्तीसगढ़ के अलग-अलग वन क्षेत्रों के समीपस्थ गांवों में जंगली सूअर, नीलगाय का आतंक मचा हुआ है जहां किसान अपनी फसल पल भर में गंवा बैठते हैं। बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग जिले के कई गांव में ‘बंदेलिन गाय’ का आतंक कई दशकों से चला आ रहा है जो खेत में खड़ी फसलें चट कर जाती हैं। बंदेलिन गाय आज भी समस्या बनी हुई है। धमतरी जिले के आसपास नीलगाय खेती किसानी में बांधा बन रही है। रही सही कसर बंदर पूरी कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के अधिकांश गांवों में बंदरों का आतंक हैं जहां किसान उन्हारी फसलें व सब्जियों की खेती नहीं कर पा रहे हैं। ऐसी तमाम समस्या का एकमात्र कारण है कि जंगल वन्य प्राणियों का भरण पोषण करने में अक्षम सिद्ध हो रहे हैं! जंगल के प्राणी भोजन, पानी की तलाश में आबादी की ओर आकर्षित हो रहे हैं। बिगड़े वनों के सुधार के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर रही है परन्तु जमीनी स्तर के भ्रष्ट अधिकारीयों के चलते जंगल उजाड़ हो रहे हैं जो सरकार की महती योजना पर पलीता लगाते दिख पड़ रहे हैं।
भारत गांवों का देश है और यहां की अर्थव्यवस्था कृषि पर टिकी हुई है। छत्तीसगढ़ की सरकार ने गांव की अर्थव्यवस्था पर ध्यान समूचे विकास के लिए योजनाएं चलाई हैं जिन्हें भ्रष्टाचार का दीमक चाट ना लें इस पर सरकार को दृढ़ता पूर्वक काम करना होगा।
– रविन्द्र गिन्नौरे
भाटापारा, छत्तीसगढ़