पर्यावरणीय मूल्यों को संजोने वालों का हो मूल्यांकन

धर्म, जाति की भावना से उठकर धरती को भयावह संकट से बचाने के लिए कुछ जागरूक लोग उठ खड़े हुए हैं, जिनका उद्देश्य है भविष्य में मानव समाज को सुखमय रखने का। सरकारें जिनके कार्यों का मूल्यांकन न कर उनके प्रति उदासीनता बरत रही है जिसके कारण संपूर्ण मानवता को भयावह संकट के भंवरजाल में फंसती जा रही है।
आज दुनिया के समक्ष बदलती जलवायु का भयावह संकट उठ खड़ा हुआ है। बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं से समूचा विश्व भयभीत हो रहा है, कहीं भूकंप, कहीं बाढ़, कहीं आग की भेंट चढ़ते जंगल से धरती का तापमान दिनों दिन बढ़ रहा है। हवाएं प्रदूषित हो इंसानों की अकाल मौत का कारण बन रही है। मानसून वर्षा के अभाव से फसलें सूख रही है, कहीं पीने का पानी मुहैया नहीं हो रहा है। ऐसी आपदाएं तेजी से घट रही है। दुनिया तेजी से उस नर्क में जा रही है जहां इंसान प्रदूषण का शिकार बनेगा। आज पूरी दुनिया में इंसानों को तरह-तरह के रोग घेर रहें हैं, मौत का तांडव मचा हुआ है। वहीं बहुत सारे लोग भोजन और पानी की तलाश में पलायन कर रहे हैं। मौत से बदतर जीवन जीने के लिए इंसान विवश हो रहा है और भविष्य में इससे भी भयावह मंजर होगा। ऐसे भयानक संकट का दौर शुरू हो चुका है।
भविष्य ही नहीं वर्तमान की भयावहता से बचने के लिए, धरती के पर्यावरण को बचाने के लिए कुछ जागरूक नागरिक, मानवता का धर्म निभाते हुए निष्काम भाव से अपने काम में जुटे हैं जो पर्यावरण जन जागरूकता का काम कर रहे हैं। प्रकृति और प्राकृतिक संसाधन को बचाए रखने वालों के लिए सत्ता के मोहपाश में फंसी सरकारें इस ओर गंभीर नहीं हुई है। धरती के रखवाले बने अपने ऐसे जागरूक नागरिक के लिए सरकार के पास कोई व्यवस्था नहीं है, कानून नहीं है जो उनके प्रकृति संरक्षण के कामों को उन्हीं के परिवेश में आगे बढ़ाएं उन्हें पुरस्कृत उनकी योजनाओं को मूर्त रूप प्रदान करें।
आज के परिवेश में स्वहित, स्वार्थपरता आदि ही परंपरा और मूल्यों के रूप में स्थापित होते जा रहे हैं। राष्ट्रहित, मानवता को पोषित करने वालों को नकारा जा रहा है। देश में खलनायकों को हीरो की तरह स्थापित किया जा रहा है। सत्ता की राजनीति में अपराधियों की घुसपैठ इस कदर हो चुकी है कि आम जनमानस ही उसे अपना कर्णधार मारने को विवश हो चुकी है।
नागरिक जागरूकता के अभाव से संकीर्णता बढ़ रही है, राष्ट्रीय एकता की जड़ें पोली हो रही है। संविधान में सभी को समानता का अधिकार तो दिया गया है मगर दूषित होती राजनीति के चलते समानता के अधिकार छीने जा रहे हैं । बाहुबली अपराधी सत्ता के शीर्ष पर पहुंच रहे हैं आम नागरिक चुपचाप देख रहा है ऐसी परिस्थिति में जलवायु का संकट दिनोंदिन गहराता जा रहा है जिस पर हमारे जनप्रतिनिधि गंभीरतापूर्वक विचार नहीं कर रहे हैं।
देश,समाज, और पर्यावरण संरक्षण का जज्बा लिए प्रकृति को संजोकर एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए मुट्ठी भर जागरूक नागरिक ही कर रहे हैं लेकिन राजनीतिक स्वार्थ के चलते उसे अनदेखा किया जा रहा है।
सर्वे भवंतु सुखिनः का उद्घोष करता भारत दुनिया में अपनी अलग छवि रखता है ऐसे देश के जनमानस की आजादी आज भी आधी-अधूरी है जहां सज्जनता पर कुठाराघात किया जा रहा है। इसका सीधा उत्तर है कि हमारे देश का कानून। आज भी अंग्रेजी कानूनों को अपनाए हुए हैं जहां पुलिस सत्ता की गुलाम है। अंग्रेजों के कानून का मकसद भारत के संसाधनों को लूटना और लूट का विरोध करने वालों को जेल में डालना। भारतीयों का दमन करने के लिए बने 222 अंग्रेजी कानून आजाद भारत में आज भी लागू हैं।
लोकतांत्रिक देश भारत का कानून अपराधियों के लिए बना हुआ है जिसके तहत अपराधियों की सजा तय होती है। देश के आम नागरिक के लिए कोई कानून नहीं है जहां उसकी सज्जनता को पुरस्कृत किया जाए। समाज को जागरूक बनाने के लिए, प्रकृति को संजोने के लिए, जन जागरूकता फैलाने वालों प्रोत्साहन लिए कोई कानून नहीं बनाया गया है। देश हित, मानव हित का जज्बा लिए समाज में जो काम कर रहे हैं उनकी योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए भी कोई संवैधानिक व्यवस्था नहीं है। ऐसे में समाज की प्रतिभाएं,समाजिक मूल्यों का ह््रास हो रहा है। दुनिया को भयावह पर्यावरण संकट से बचाने के लिए जो लोग आगे आ रहे हैं, सरकार को उनकी भावनाओं को समझते हुए उन्हें आगे लाना होगा, उनकी योजनाओं को मूर्त रूप देना होगा ताकि धरती पर मानव जीवन सुखमय हो सके।
रविन्द्र गिन्नौरे