जलवायु सम्मेलन काॅप-28: वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी

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PM’s remarks at Opening Ceremony of High-level segment at COP 28 UAE Summit, in Dubai on December 01, 2023.

पृथ्वी पर बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के कारण चिंता के बादल गहराने लगे हैं। दुनिया का कार्बन उत्सर्जन 2023 में रिकार्ड पर पहुंच रहा है। पृथ्वी पर विनाश की कार्बन डाइआक्साइड गहराने लगी है और दुनिया के बड़े देशों के बीच वर्चस्व पाने की में युद्ध मचा हुआ है। दुनिया से परे हर देश अपना विकास देख रहा है। जलवायु परिवर्तन से उपजे भयावह संकटों की कल्पना करते वैज्ञानिक चेतावनी देते आ रहें हैं।

कल्पना करिए कि आप धरती पर भ्रमण करने वाला कोई एलियन हैं, और आपको पता चलता है कि यहां रहने वालों की गतिविधियों से ही इस ग्रह को संभावित महाविनाश का ख़तरा पैदा हो गया है। तो पहली बात जो एलियन कहेगा, वो ये है, ‘‘आप सभी को एक साथ बैठने और इसे हल करने पर राज़ी होने की ज़रूरत है।’’

लेकिन इस दिशा में प्रगति करना कठिन है। आपको इस बात पर ताज्जुब हो सकता है कि जब पहली बार दुनिया सामूहिक रूप से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन की कटौती करने पर सहमत हुई थी, जो कि जलवायु परिवर्तन का कारण है, वो आठ साल पहले पेरिस में हुए काॅप 21 सम्मेलन में हुआ था। क़रीब 200 देशों ने वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने और इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का संकल्प लिया था।
संयुक्त राष्ट्र वैज्ञानिकों का मानना है कि सबसे ख़तरनाक पर्यावरणीय प्रभावों से बचने के लिए यह ज़रूरी है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि साल 2015 में हुआ वो पेरिस समझौता एक बड़ा क़दम था और इसने ‘लगभग वैश्विक जलवायु कार्रवाई’ को गति दी। इससे दुनिया में अपेक्षित तपमान वृद्धि के स्तर को कम करने में मदद मिली। संयुक्त राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि, लेकिन पेरिस में तय किए गए लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अभी भी दुनिया उस गति से एक्शन नहीं ले रही है।

जलवायु परिवर्तन की रफ्तार बढी
तेजी के साथ कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सात साल के भीतर ही पृथ्वी पर 1.5 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान की सीमा पार हो सकती है। दुनिया के 26 देशों में कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है। 2023 में कार्बन डाइआक्साइड के उत्सर्जन का स्तर सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच जाएगा, वैज्ञानिकों ने ऐसी आशंका जताई है। ऐसी स्थिति में जलवायु परिवर्तन की रफ्तार और तेज होगी और भीषण मौसम के बुरे तेवर देखने को मिलेंगे, जिससे अनेकों विपदाओं का जन्म होगा।

काॅप28 जलवायु सम्मेलन
दुबई में जारी काप-28 जलवायु सम्मेलन में 5 दिसंबर 2023 को ‘ग्लोबल कार्बन बजट रिपोर्ट’ जारी की गई। जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल जो कार्बन उत्सर्जन का स्तर रिकार्ड ऊंचाई पर पहुंच गया था, उसमें इस साल बहुत ज्यादा बढ़ोतरी नहीं देखी गई है। इसके कारणों में जंगलों की कटाई में आई कुछ कमी को माना गया है।

2023 का नया रिकार्ड
2023 में उत्सर्जन का नया रिकार्ड बन सकता है। जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल से 36.8 अरब मीट्रिक टन कार्बन डाइ आक्साइड का उत्सर्जन होने का अनुमान है। यह मात्रा पिछले साल से 1.1 फीसदी ज्यादा होगी। 90 संस्थानों के वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट को तैयार किया है। रिपोर्ट में उत्सर्जन के आंकड़ों में जमीन के इस्तेमाल से होने वाला उत्सर्जन शामिल नहीं है। इसे मिला लिया जाए तो इस साल कुल उत्सर्जन 40.9 अरब टन के पार पहुंच जाएगा।

भारत और चीन
कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन के लिए वैज्ञानिकों ने चीन और भारत में कोयले, तेल और गैस के उपभोग को वृद्धि के लिए विशेष रूप से जिम्मेदार माना है। कोविड-19 के बाद चीन ने अपनी सीमाओं को फिर से खोला और आर्थिक गतिविधियां तेज हुईं। भारत में भी तेजी से विकास के चलते बिजली की मांग बढ़ी। अक्षय ऊर्जा स्रोतों की रफ्तार से ज्यादा तेजी से ऊर्जा की मांग बढ़ी जिसके कारण कोयले का इस्तेमाल भी बढ़ रहा है। कोविड के बाद बढ़ते विकास के कारण भारत और चीन में ऐसी स्थिति बनी।

1.5 डिग्री का लक्ष्य: कार्बन उत्सर्जन की बढ़ती रफ्तार के कारण पृथ्वी के तापमान को औद्योगिक क्रांति के स्तर से औसतन 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक पर रोक पाना संभव नहीं हो पा रहा है। एक्सटर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पिएरे फ्रीडलिंग्स्टाइन कहते हैं, ‘‘अब तो यह अटल दिखाई दे रहा है कि हम पेरिस समझौते में तय किए गए 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को पार कर जाएंगे।’’ 2015 में पेरिस में हुए जलवायु सम्मेलन में दुनिया के नेताओं ने तय किया था कि इस सदी के आखिर तक धरती तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ने नहीं दिया जाएगा। लेकिन ताजा रिपोर्टें को देखकर लगता हैं कि यह लक्ष्य अब पूरा नहीं हो पाएगा। 1.5 डिग्री सेल्सियस का स्तर इसी दशक के आखिर तक पार हो सकता है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ता है, तो उसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं। पृथ्वी पर फैले समुद्र का जल स्तर बढ़ेगा और कई तटीय शहर डूब में आ जाएंगे। धरती पर बढ़ती गर्मी और नदियों में बाढ़ के साथ कोरल रीफ के विनाश जैसी घटनाएं घटित होने लगेगी।

भविष्य की भयावह स्थिति के मद्देनजर फ्रीडलिंग्स्टाइन कहते हैं, ‘काप28 में नेताओं को जीवाश्म ईंधनों के इस्तेमाल में भारी कटौती पर सहमत होना होगा, ताकि उत्सर्जन कम किया जा सके और 2 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को जिंदा रखा जा सके।’

कुछ देशों में घटा उत्सर्जन
संयुक्त राष्ट्र की जलवायु समिति (आईपीसीसी) ने कहा है कि धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकना है, तो 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 43 फीसदी तक घटना होगा। लेकिन उत्सर्जन का स्तर पिछले कुछ सालों से लगातार बढ़ता जा रहा है। कोविड महामारी के कारण कुछ समय के लिए इसमें कमी देखी गई थी, लेकिन अब यह कोविड के पहले के स्तर से 1.4 फीसदी ऊपर जा चुका है।

जीवाश्म ईंधन के उपयोग से कार्बन उत्सर्जन के मामले में चीन सबसे ऊपर है। चीन कुल उत्सर्जन के 31 फीसदी के लिए जिम्मेदार है। वहीं ताजा रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ में उत्सर्जन घट रहा है। जहां पुराने कोयला संयंत्रों को बंद किया गया है।

दुनिया के सिर्फ 26 देश ऐसे हैं, जो 28 फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। अधिकतर यूरोप के देश ऐसे हैं जहां उत्सर्जन का स्तर गिर रहा है। बहरहाल गर्माती धरती पर कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जन को कम करने के लिए पुरजोर कोशिश की जा रही है ताकि जलवायु परिवर्तन के भयावाह संकटों से बचा जा सके।

स रविन्द्र गिन्नौरे